टिड्डी प्रबंधन: सबसे खतरनाक रेगिस्तानी टिड्डियों से कैसे करें फसलों का बचाव?
भारत में पाई जाने वाली रेगिस्तानी टिड्डी सबसे ज़्यादा खतरनाक होती है। इनका झुंड जब खेतों, हरे-भरे घास के मैदानों में आता है और ज़्यादा विनाशकारी रूप ले लेता है।
भारत में पाई जाने वाली रेगिस्तानी टिड्डी सबसे ज़्यादा खतरनाक होती है। इनका झुंड जब खेतों, हरे-भरे घास के मैदानों में आता है और ज़्यादा विनाशकारी रूप ले लेता है।
जहां तक नाइट्रोजन प्रबंधन का संबंध है, कृषि क्षेत्र एक दुष्चक्र में है। मिट्टी में नाइट्रोजन मौजूद होता है जो पौधों और फसलों को बढ़ने में मदद करता है। इसका उपयोग विशेष रूप से उर्वरकों और कीटनाशकों में किया जाता है जो पौधों को बढ़ने में और बेहतर उपज पाने में मदद करते हैं।
Hydroponic Farming At Home | सब्जियों को हाइड्रोपोनिकली उगाने वाली ये विदेशी तकनीक है। 1859-1875 में जर्मन वनस्पतिशास्त्री जूलियस वॉन सैक्स और विल्हेम नोप की खोज से मिट्टी रहित खेती की ये तकनीक ईज़ाद हुई। बता दें कि हाइड्रोपोनिक एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब होता है बिना मिट्टी और सिर्फ़ पानी के जरिए खेती करना। जानिए हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती के बारे में।
एकीकृत कृषि प्रणाली उन स्थानों के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है जहां पर एक फसल होती है, सिंचाई की कमी और कम बारिश का क्षेत्र हो। इस पद्धति से कृषि को पशुधन के साथ जोड़ कर लाभ कमा सकते हैं। मुर्गीपालन और मछली पालन को एक ही जगह पर रखा जा सकता है ताकि साल भर रोज़गार पैदा हो सके।
खेती की सफलता बहुत हद तक सिंचाई के सही साधनों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। हमारे देश में आज भी बहुत से किसान पानी के लिए बारिश पर ही निर्भर है, ऐसे में अनियमित बरसात से उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे इलाकों के लिए लिफ़्ट सिंचाई तकनीक फ़ायदेमंद मानी जाती है।
चावल की खपत सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बहुत अधिक है। ऐसे में वैश्विक आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैदावार बढ़ाना ज़रूरी है, मगर कीट और रोग धान की खेती में बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।
Frost Management: किसान अपनी फसलों को पाले से बचाने के लिए कई सारे उपाय करते हैं, जिससे उनकी फसलों को नुकसान न हो। जब तापमान 4 डिग्री के आस-पास हो तो को अलर्ट हो जाना चाहिए। पाले से बचने के लिए किसानों को अपने खेत में हल्की सी सिंचाई जरूर कर देनी चाहिए।
बुंदेलखंड की सख्त ज़मीन पर पॉलीहाउस तकनीक से खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें बांदा कृषि विश्वविद्यालय अहम भूमिका निभा रहा है। मुश्किल परिस्थितियों में सब्ज़ियों का उत्पदान कैसे पूरे साल किया जाए, इसके लिए विश्वविद्यालय ने एक प्रोजेक्ट के तहत 200 स्क्वायर मीटर के छोटे एरिया में कई पॉलीहाउस लगाए हुए हैं। जानिए सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पॉलीहाउस तकनीक से खेती के बारे में विस्तार से।
चने की खेती में समेकित नाशीजीव प्रबंधन यानि आईपीएम तकनीक से पौध संरक्षण, मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने या बनाए रखने के साथ-साथ कीटों और रोगों के संक्रमण से फसलों को बचाया जा सकता है।
कृषि अवशेष को अक्सर जला दिया जाता है या खेतों में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। हालांकि, टिकाऊ प्रथाओं की मदद से, इन अवशेषों के इस्तेमाल से अब खाना पकाने के लिए ऊर्जा के एक मूल्यवान स्रोत के रूप में किया जा सकता है।
जैविक खाद के कुटीर उत्पादन की तकनीक बेहद आसान और फ़ायदेमन्द है। इससे हरेक किस्म की जैविक खाद का उत्पादन हो सकता है। इसे अपनाकर किसान ख़ुद भी जैविक खाद के कुटीर और व्यावसायिक उत्पादन से जुड़ सकते हैं।
बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और इसके मानव स्वास्थ्य पर पड़ते हानिकारक प्रभाव को देखते हुए खेती में जैविक विधि के इस्तेमाल को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। ऐसे में अब बहुत से किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए भी प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी उपग्रह-आधारित तकनीक विकसित की है, जो भारत में कृषि अवशेष जलाने से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर प्रकाश डालता है।
सूत्रकृमि कई तरह के होते हैं और ये बहुत सी फसलों को रोगग्रस्त करके नुकसान पहुंचाते हैं। पॉलीहाउस की फसलें भी इससे अछूती नहीं है। सूत्रकृमि के साथ समस्या ये है कि किसान जल्दी इसकी पहचान नहीं कर पाते जिससे जड़-गांठ सूत्रकृमि की रोकथाम मुश्किल हो जाती है।
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक देश है, लेकिन हर साल कीटों की वजह से फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है और किसानों का मुनाफ़ा कम हो जाता है। ऐसे में समेकित कीट प्रबंधन से फसलों के नुकसान को रोका जा सकता है।
ये तो अब वैज्ञानिक रूप से भी साबित हो चुका है कि प्रकाश प्रदूषण पौधों के चक्र में बाधा पैदा करता है। परागण और कृषि पर गलत प्रभाव डालता है। कैसे इसके प्रभाव को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। पढ़िए इस लेख में।
खुले खेत की बजाय पॉलीहाउस में शिमला मिर्च और खीरे जैसी सब्ज़ियां उगाना किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित होता है, क्योंकि इसमें फसल पर मौसम की मार नहीं पड़ती। मध्यप्रदेश के किसान नेपाल सिंह परिहार पॉलीहाउस में खीरा और शिमला मिर्च की खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं।
खरपतवार वो अनचाहे पौधे होते हैं जो फसलों के बीच अपने आप उग आते हैं। इनकी वजह से फसलों को हानि हो सकती है। इसलिए इनका उचित प्रबंधन ज़रूरी है, वरना किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। जानिए खरपतवार नियंत्रण के कुछ तरीके।
बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अधिक फसल उत्पादन की ज़रूरत है और इसके लिए खेती में लगातार नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी ही एक बहुत ही उपयोगी तकनीक है सीड नैनो प्राइमिंग।
धान की सीधी बुआई तकनीक से 20 प्रतिशत सिंचाई और श्रम की बचत होती है। यानी, कम लागत में धान की ज़्यादा पैदावार और अधिक कमाई। इस तकनीक से मिट्टी की सेहत में भी सुधार होता है, क्योंकि पिछली फसल का अवशेष वापस खेत में ही पहुँचकर उसमें मौजूद कार्बनिक तत्वों की मात्रा में इज़ाफ़ा करता है। इस तकनीक से धान की फसल भी 10 से 15 दिन पहले ही पककर तैयार हो जाती है। खरीफ मौसम में धान की सीधी बुआई को मॉनसून के दस्तक देने से 10-12 दिन पहले करना बहुत उपयोगी साबित होता है।