देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या का मुख्य खाद्यान्न चावल है। इस समय किसान धान की नर्सरी और रोपाई का कार्य तेज़ी से कर रहे हैं। हालांकि, देखा गया है कि धान की फसल कई बार प्रबंधन की कमी की वजह से गल या सूख जाती है। इससे किसानों को धान से बेहतर उपज नहीं मिल पाती है। किसानों के लिए धान की रोपाई में खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई प्रंबधन मुख्य कार्य है, जिसका सही प्रबंधन कर धान की फसल से अच्छी उपज की नींव रखी जा सकती है। किसान ऑफ़ इंडिया ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एग्रोनॉमी डीवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह से धान की खेती में उच्च प्रबंधन को लेकर ख़ास बातचीत की।
धान की रोपाई के इन अहम बातों पर रखें ध्यान
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह ने कहा कि मध्य और देर से पकने वाली धान की प्रजातियों की रोपाई का कार्य जून महीने तक समाप्त कर लेना चाहिए। धान की शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की रोपाई जुलाई के दूसरे पखवाड़े में कर सकते हैं। धान के रोपाई के पौध 20 से 25 दिन के होने चाहिए। नर्सरी से पौध निकालते समय इस बात का ध्यान देना चाहिए की पौधों की जड़ें टूटनी नहीं चाहिए। इसके लिए पौध उखाड़ने के एक दिन पहले नर्सरी में पानी लगा दें तथा उखाड़ते समय सावधानी रखें। पौध की रोपाई पंक्तियों में करें। कतारों से कतारों और पौध से पौध की दूरी 25×15 सेंटीमीटर रखें। एक स्थान पर एक जगह दो से तीन पौध का रोपण करना चाहिए। पौध 3-4 सेंटीमीटर की गहराई पर लगाए। भरपूर उत्पादन लेने के लिए पूजों (Hills) की सख्यां 36 प्रति वर्गमीटर रखी जानी चाहिए।
धान की खेती में खरपतवार प्रबंधन में न करें चूक
डॉ. राजीव कुमार सिंह ने कहा कि धान की फसल में खरपतवारों की समस्या सबसे ज़्यादा गंभीर है। खरपतवारों की वजह से जहां धान की फसल की वृद्धि ठीक से नहीं हो पाती, वहीं इसकी उपज भी प्रभावित होती है। धान की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान, खरपतवारों की अधिकता, उनकी किस्म पर निर्भर करती है। ऐसे में इनका नियंत्रण समय से करना बेहद ज़रूरी हो जाता है। धान की खेती में आमतौर पर खरपतवार से ज़्यादा नुकसान होता है।
धान की फसल में पाए जाने वाले खरपतवार अमूमन तीन तरह के होते हैं। पहला चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, दूसरा संकरी पत्ती वाले खरपतवार और तीसरा मोथा कुल के खरपतवार। धान की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान को 5 से 85 प्रतिशत तक आंका गया है।जबकि कभी-कभी ये नुकसान 100 फ़ीसदी तक हो सकता है।
खेतों से खरपतवारों को हाथ या खुरपी की सहायता से निकालते हैं, लेकिन कतारों में सीधी बोई गई फसल में कोनोवीडर या पैडीवीडर की सहायता से भी खरपतवारों का नियंत्रण कर सकते हैं। इसके अलावा, केमिकल दवाओं का वीसपायरीबैक दवा, जो मार्केट में कई नाम से मिल जाती है, उसकी 80-100 मिलीलीटर दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस दवा को 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर खेत में छिड़काव कर खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है।
धान में केमिकल उर्वरकों के ज़्यादा इस्तेमाल से बचें
डॉ. राजीव ने कहा कि भूमि में पोषक तत्वों की मात्रा, उर्वरक देने की विधि और समय का भी फसल और खरपतवारों की वृद्धि पर असर पड़ता है। फसल और खरपतवार दोनों ही खेत के पोषक तत्वों के लिये कॉम्पीटीशन करते हैं। खरपतवार नियंत्रण करने से ये सुनिश्चित किया जाता है कि तमाम पोषक तत्व फसलको ही मिले। पोषक तत्वों की बताई गई आदर्श मात्रा को ठीक समय और उचित तरीके से देने पर धान की फसल इनका समुचित उपयोग कर पाती है। असिंचित उपजाऊ भूमि में जहां खरपतवारों की समस्या ज़्यादा होती है, वहां नाइट्रोजन की आरंभिक मात्रा को बुआई के समय न देकर, पहली निराई-गुड़ाई के बाद देना ज़्यादा लाभदायक होता है।
धान में जैविक उर्वरकों का करें इस्तेमाल
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव के अनुसार बेसल डोज देने के बाद नाइट्रोजन की बाकी बची 50 प्रतिशत मात्रा की पहली डोज धान रोपाई के 25-30 दिन बाद देनी चाहिए। जिन किसानों ने बेसल डोज के तौर पर जिंक सल्फेट का इस्तेमाल नहीं किया है, वो धान की खड़ी फसल में 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का छिड़काव कर सकते हैं। इसके अलावा, आप धान की फसल में जैव उर्वरक ब्लूग्रीन एल्गी या अजोला का इस्तेमाल रोपाई के 25-30 दिन के बाद कर सकते हैं। अजोला और ब्लूग्रीन एल्गी की 10-15 किलो मात्रा का प्रति हेक्टेयर खेत में प्रयोग किया जाना चाहिए। इससे लागत कम होने के साथ मृदा की उर्वरता बनी रहती है।
सिंचाई प्रबंधन कैसे करें?
धान की फसल को सबसे अधिक पानी की ज़ रूरत पड़ती है। फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में जैसे रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने वाली, बाली निकलने, फूल निकलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी बना रहना बेहद ही ज़रूरी होता है। पुष्पन की प्रक्रिया के तुरंत बाद इन बालियों में दानें पड़ने शुरू हो जाते हैं। इस समय खेत में यह ध्यान ज़रुर देना चाहिए कि खेत में पर्याप्त नमी रहे। खेतों में दरारें नही पड़नी चाहिए। अगर खेत में नमी नहीं रहेगी तो बालियों में दाने नही बनेंगें। बाद में फिर बने भी तो वह अच्छी क्वालिटी के नहीं होंगे। इसलिए नमी बनाए रखने के लिए धान के खेत का मेड़बंदी ज़रूरी है ताकि जो बारिश का पानी या खेत में जो पानी पड़ा है, वो बाहर न निकले। खेत में 3-4 सेंटीमीटर पानी बने रहने से अच्छी उपज मिलती है। इस तरह धान की फसल सही प्रबंधन अपनाकर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
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