एलोवेरा की खेती (Aloevera Farming): जानिए कैसे करें , इन बातों का रखेंगे ध्यान तो होगी बढ़िया आमदनी
एलोवेरा की खेती के लिए खाद और कीटनाशक की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही कई कारण हैं कि एलोवेरा की खेती की ओर किसानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है।
एलोवेरा की खेती के लिए खाद और कीटनाशक की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही कई कारण हैं कि एलोवेरा की खेती की ओर किसानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है।
जिरेनियम एक शाकीय पौधा है। इसकी खेती के लिहाज़ से सुखद ये है कि CSIR-CIMAP ने इसकी अनेक प्रजातियाँ विकसित की हैं। जानिए जिरेनियम की खेती की कहां से ल सकते हैं ट्रेनिंग।
उत्तर प्रदेश के सम्भल, बदायूँ, कासगंज जैसे कई ज़िलों में CSIR-CIMAP की ओर से विकसित नयी विधि से जिरेनियम की खेती की जा रही है। जानिए क्या है नयी तकनीक और कैसे किसानों को हो रहा इससे फ़ायदा।
चना उत्पादकों का सच्चा साथी है चनामित्र ऐप (Chanamitra) जो उन्न्त बीज से लेकर कीट प्रबंधन से जुड़ी हर जानकारी प्रदान करके किसानों को अधिक पैदावर में मदद करता है।
सूअर पालन का बिज़नेस करना चाहते हैं तो इस ऐप के ज़रिए आपको हर छोटी-बड़ी जानकारी मिल जाएगी।
काजू की खेती कर रहे किसानों को काजू के फल का पाउडर बनाने पर फायदा तो होगा ही, इससे ग्रामीण इलाके में रोज़गार भी बढ़ेगा।
मिट्टी, ज़्यादा जगह और पोषक तत्वों की कमी जैसी समस्याओं का हाइड्रोपोनिक खेती समाधान हो सकती है। जानिए कैसे बेहद असरदार तकनीक है हाइड्रोपोनिक।
काली मिर्च अन्य मसालों से महंगी मिलती है और इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में काली मिर्च की खेती करके किसान बहुत मुनाफा कमा सकते हैं। आइए, जानते हैं इसकी खेती से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें।
ब्रोकली काफ़ी हद्द तक फूल गोभी की तरह ही है। लेकिन सीज़न में जहाँ फूल गोभी का दाम कौड़ियों के भाव हो जाता है, वहीं ब्रोकली की कीमत 30 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिल जाती है। अलबत्ता, ये कीमतें तभी आकर्षिक लगेंगी जब बाज़ार में ब्रोकली को खरीदार मिल जाएँ। इसीलिए ब्रोकली की खेती में हाथ आज़माने से पहले बाज़ार की नब्ज़ पर परखना बहुत ज़रूरी है।
यदि सूझबूझ के साथ और वैज्ञानिक तरीके से सफ़ेद मूसली या सतावर की खेती की जाए तो ये फसल किसान को खुशहाल बना सकती है। बाज़ार में उम्दा मूसली का दाम 1000-1500 रु. प्रति किलोग्राम तक मिल सकता है। मझोले किस्म की फसल का दाम 700-800 रु. प्रति किलो और हल्की किस्म का दाम 200-300 रु. प्रति किलोग्राम तक मिलता है। सफ़ेद मूसली की उन्नत खेती पर प्रति एकड़ लागत करीब 5-6 लाख रुपये बैठती है और यदि उपज का दाम औसतन 1.2 लाख रुपये प्रति क्विंटल भी मिला और यदि प्रति एकड़ औसत उपज करीब 15 क्लिंटल भी रही तो उपज का दाम करीब 18 लाख रुपये बैठेगा। इसमें से लागत घटा दें तो किसान को प्रति एकड़ 10-12 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफ़ा मिलेगा।
असिंचित क्षेत्रों के किसानों के लिए फालसा की खेती वरदान साबित हो सकती है क्योंकि इसके पौधे अनुपजाऊ, खराब, घटिया, पथरीली या बंजर मिट्टी में भी पनप सकते हैं। फालसा सूखा रोधी होते हैं। इन पर प्रतिकूल मौसम का बहुत कम असर पड़ता है।
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के रवि प्रसाद ने रोज़गार के अवसर विकसित करने की सराहनीय उपलब्धि हासिल की है। वो केले के रेशे से कालीन, चप्पल, टोपी, बैग और डोरमैट वग़ैरह बनाते हैं। अपने इस व्यवसाय से उन्होंने कइयों को रोज़गार दिया है।
19 जनवरी को इफको के सर्वोच्च शासी निकाय निदेशक मंडल (Board of Directors) ने दिलीप संघाणी को IFFCO का 17वां अध्यक्ष निर्वाचित किया।
गन्ना विकास विभाग द्वारा उत्तर प्रदेश के 36 गन्ना बहुल जिलों में स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं। बडचिप तकनीक से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसर बड़े हैं।
महिलाएं अब खेती-बाड़ी में भी सिर्फ़ पुरुषों की सहायक नहीं रह गई हैं, बल्कि आगे बढ़कर कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में दूरदर्शिता और मेहनत के बल पर एक नया मुक़ाम हासिल कर रही हैं।
फसलों में यूरिया (Urea) के अत्यधिक इस्तेमाल को कंट्रोल करने के उद्देश्य से कृषि वैज्ञानिकों ने कस्टमाइजड लीफ-कलर-चार्ट (सीएलसीसी) तकनीक विकसित की है।
मौजूदा सरकार किसानों को ज़ीरो बजट फार्मिंग या खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रकार की मदद दे रही है। जानिए किसने की ज़ीरो बजट प्राकृतिक खेती की शुरुआत।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), कृषि में निरन्तर विकास और किसानों के लिए खेती-किसानी को लाभकारी बनाने की दिशा में काम करता रहा है। हम आपको इस लेख में ICAR की बड़ी उपलब्धियों के बारे में बता रहे हैं।
वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर न सिर्फ लक्ष्मी ने अपने जीवन स्तर में सुधार किया, बल्कि समय के साथ उनका डेयरी उद्योग भी विकसित होता जा रहा है। जानिए लक्ष्मी ने किस तरह से तकनीक से तकदीर बदली।
रबी सीज़न में देश के कई किसानों ने अपने खेतों में चने की फसल की बुवाई की हुई है। चने की खेती (Chickpea Farming) कर रहे किसानों को इस वक़्त फसल पर कई बीमारियों के लगने का डर रहता है। आइए जानते हैं उन रोगों के बारे में और उनके उपचारों के बारे में।