एलोवेरा की खेती (Aloevera Farming): जानिए लागत से लेकर कमाई के बारे में, एलोवेरा उत्पादों का बढ़ता बाज़ार
बेकार पड़ी भूमि व असिंचित भूमि में बिना किसी विशेष खर्च के एलोवेरा की खेती (Aloevera Farming) कर लाभ कमाया जा सकता है।
बेकार पड़ी भूमि व असिंचित भूमि में बिना किसी विशेष खर्च के एलोवेरा की खेती (Aloevera Farming) कर लाभ कमाया जा सकता है।
लाल रंग का सुंदर सा दिखने वाला फल स्ट्रॉबेरी, किसानों के लिए मुनाफ़ा कमाने का अच्छा ज़रिया है। देश के कई ऐसे किसान हैं जो स्ट्रॉबेरी की खेती कर अच्छी आमदनी अर्जित कर रहे हैं।
भले ही MSP पर सरकारी खरीद का सुख कम ही किसानों के नसीब में हो, लेकिन इससे उन्हें बहुत बड़ी मदद और राहत मिलती है।
“आज ही सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़ा एक और अहम फ़ैसला लिया है। ज़ीरो बजट खेती यानि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए, देश की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके से बदलने के लिए MSP को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए, ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस कमेटी में केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे।”
बीते एक दशक में कश्मीर में केसर की खेती में नयी जान फूँकने के लिहाज़ से नैशनल सैफरॉन मिशन ने शानदार काम किया है। एक ही छत के नीचे केसर के किसानों को हर तरह से मदद देने वाले इस प्रोजेक्ट में ‘सैफरॉन पार्क’ की भूमिका भी बेजोड़ रही है। इसी की बदौलत आज कश्मीरी केसर को GI Tag हासिल है। पढ़िए किसान ऑफ़ इंडिया की एक्सक्लुसिव ग्राउंड रिपोर्ट।
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प्रधानमंत्री ने किसानों से कहा कि सिर्फ़ गेहूँ, चावल या चीनी में ही आत्मनिर्भरता पर्याप्त नहीं है। बीते 6 साल में देश में दाल के उत्पादन में करीब 50 प्रतिशत वृद्धि हुई। जो काम हमने दलहन में किया या अतीत में गेहूँ-धान को लेकर किया, वही संकल्प अब हम खाद्य तेल के लिए भी लेना है। देश को इस क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए तेज़ी से काम करना है।
15 जुलाई 2021 तक सरकार ने ऐसे 42.16 लाख किसानों की पहचान कर ली थी जिन्होंने किसान सम्मान निधि का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है। इन किसानों से सरकार को 29.93 अरब रुपये वसूलने हैं। इसीलिए किसान सम्मान निधि के योग्य लाभार्थी किसानों को चाहिए कि वो ये जाँच कर लें कि सत्यापन के बाद उन्हें योग्य पाया गया है या नहीं, क्योंकि संदिग्ध ब्यौरे वाले 50 लाख से ज़्यादा किसानों के खाते में 9 अगस्त को जारी होने वाली 2,000 रुपये की किस्त नहीं पहुँचेगी।
करेला स्वाद में भले ही कड़वा हो, लेकिन इसकी खेती उन किसानों के लिए बड़ी मददगार है जिन्हें जानवरों या आवारा पशुओं या मवेशियों के फसल को खा जाने का ख़तरा सताता रहता है। क्योंकि अपने कड़वेपन की वजह से करेला इन्हें पसन्द नहीं आता। करेले की खेती की एक और ख़ूबी ये है कि इसकी लागत ज़्यादा नहीं होती, जबकि पैदावार से कमाई अच्छी होती है।
राजस्थान कृषि विभाग की शर्त है कि बाड़बन्दी अनुदान योजना का लाभ लेने तीन किसानों का ऐसा समूह बनाया जाना ज़रूरी है जिनकी सामूहिक कृषि भूमि 5 हेक्टेयर से कम नहीं हो। इसके अलावा तारबन्दी करने से पहले और करने के बाद में खेतों की जियो टैगिंग करना भी अनिवार्य है। इस अनुदान योजना के तहत किसानों को बाड़बन्दी की कुल लागत का 50 फ़ीसदी या अधिकतम 40 हज़ार रुपये की सहायता की जाती है।
किसान पेंशन योजना (Kisan Pension Scheme) का मक़सद छोटे और सीमान्त किसानों को 60 साल की उम्र के बाद 3,000 रुपये महीना पेंशन देने का है। लिहाज़ा, सुयोग्य किसानों को पैमाने पर आगे आकर PMKMDS का लाभ ज़रूर उठाना चाहिए, ताकि बुढ़ापे में उनकी आमदनी का एक ठोस ज़रिया तैयार हो सके।
प्याज़ की खेती में बीज के बाद सबसे ख़ास चीज़ है सिंचाई, क्योंकि खेत में नमी के कम या ज़्यादा होने का पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पैदावार की अच्छी क्वालिटी होने पर ही उपज का बढ़िया दाम मिल पाता है। वर्ना, किसान की उम्मीदों पर पानी फिरने का जोख़िम रहता है।
नासा ने 10 ऐसे पौधों (सजावटी पौधे) की पहचान की जो हवा में मौजूद ज़हरीले तत्वों को अवशोषित करने में माहिर हों। ये तत्व हैं – बेंजीन (benzene), फॉर्मेल्डिहाइड (formaldehyde), ज़ाइलीन (xylene), टोलुइन (toluene) और ट्राईक्लोरोएथिलीन (trichloroethylene).
किसानों को एक छोटा सा मंत्र हमेशा याद रखना चाहिए कि काला धुआं का मतलब है कि डीज़ल की ज़रूरत से ज़्यादा ख़पत हो रही है। ऐसा उस वक़्त भी होता है जबकि इंजन पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ पड़ रहा होता है।
धान की भूसी की राख में सिलिका की ख़ासी मात्रा होती है। यदि इसका उपयोग हो जाए तो ‘आम के आम, गुठलियों के दाम’ वाली बात हो सकती है। यहीं से बिभू ने सिलिका के उत्पादन, उसके उपयोग और डिमांड के बारे में समझ बढ़ायी और पाया कि स्टील सेक्टर की कम्पनियाँ सिलिका का उपयोग इंसुलेटर के रूप में करती हैं।
किसानों के लिए फसल बीमा एक ऐसी लागत है, जिसका 95 प्रतिशत से लेकर 98.5 फ़ीसदी तक बोझ सरकार उठाती है। ये सब्सिडी इतनी ज़्यादा है कि इसे ‘तकरीबन मुफ़्त’ भी कह सकते हैं। किसानों को असली ताक़त बैंक या बीमा कम्पनियों से सम्पर्क साधने और बीमा पालिसी खरीदने पर ही लगानी होती है। बीमा की किस्त तो महज सांकेतिक है। हज़ार रुपये की वास्तविक किस्त के बदले किसान को सिर्फ़ 15 रुपये से लेकर 50 रुपये की ही किस्त भरनी है। बाक़ी 950 से लेकर 985 रुपये तक सरकारें भरेंगी।
सिर्फ़ खेती करने और अनाज उगाने भर से किसान के बढ़िया मुनाफ़ा नहीं हो सकता। खेती में कमाई तभी है, जब हम इसे कॉमर्शियल फ़ार्मिंग, इन्नोवेशन, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग और ब्रॉन्डिंग से भी जोड़ेंगे। इसे यदि किसान अकेले नहीं कर सकते तो उन्हें सामूहिक स्तर पर करना चाहिए और अपने इलाके की विशेषताओं का लाभ लेने के लिए नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र की मदद लेनी चाहिए।
उनके बकरी बैंक की दो ही शर्तें हैं। पहला, बैंक से यदि गर्भवती बकरी लेनी है तो 1200 रुपये देने होंगे और दूसरा ये कि बकरी लेने वाले को बैंक को भरोसा देना होगा कि वो 40 महीने में बकरी और उसके चार मेमनों को वापस बैंक में लौटाएगा।
ग्राम पंचायतों के कामकाज को व्यवस्थित करने और ग्रामीण जनता की मदद के लिए हरेक पंचायत में एक-एक पंचायत और एकाउंट सहायक की भर्ती करने की नीति 21 जुलाई को बनायी गयी। इसके तहत ही 58,189 पंचायतों में ‘पंचायत सहायक’ की भर्ती की जाएगी। उम्मीदवारों की भर्ती और ट्रेनिंग का काम अगले दो महीने में पूरा करने का कार्यक्रम बनाया गया है।
हल्दी की विभिन्न किस्मों से प्रति हेक्टेयर क़रीब 400-600 क्विंटल के बीच पकी हल्दी का उत्पादन होता है। उपज का वजन सूखने के बाद क़रीब एक चौथाई रह जाता है। इसका बाज़ार भाव 6 हज़ार रुपये से लेकर 10 हज़ार रुपये प्रति क्विंटल तक मिल जाता है। इस तरह लागत को घटाने के बाद हल्दी की खेती से प्रति हेक्टेयर करीब 5 लाख रुपये का मुनाफ़ा हो सकता है।