Author name: Mukesh Kumar Singh

Mukesh Kumar Singh
करी पत्ते की खेती curry leaves farming
फल-फूल और सब्जी, न्यूज़, मसालों की खेती

Curry leaf farming: करी पत्ते की खेती यानी सालों-साल कमाई का ज़रिया

करी पत्ता एक सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक मसाला है जो औषधीय गुणों से भरपूर है। इसीलिए करी पत्ते की खेती में हमेशा जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। इसकी माँग पूरे साल रहती है। इसके कच्चे और मुलायम पत्ते, पके हुए पत्तों की तुलना में ज़्यादा क़ीमती और उपयोगी होते हैं। इस पर रोग-कीट का प्रकोप भी बहुत कम पड़ता है।

दुग्ध उत्पादन Heat stress in dairy cattle गर्मी से वैश्विक दूध उत्पादन
पशुपालन, डेयरी फ़ार्मिंग

Heat Stress In Dairy Animals: गर्मी से वैश्विक दुग्ध उत्पादन में गिरावट, बचाव के लिए अपनाएँ 10 घरेलू नुस्ख़े

विश्व के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश भारत में गायें गर्मी से परेशान हैं। गर्मी के मौसम में दूध उत्पादन के घटने जैसी समस्या का सामना पशुपालकों को करना पड़ता है। गर्मी और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों की वजह से भारत के पशुपालन विशेषज्ञों की ओर से भी पशुपालकों को अपने दुधारू पशुओं को तेज़ गर्मी और लू से बचाने के लिए अनेक सलाह दी गयी हैं।

mushroom processing unit मशरूम प्रोसेसिंग यूनिट
न्यूज़

Mushroom Processing: मशरूम की प्रोसेसिंग कैसे की जाती है? घर में मशरूम कैसे होगा तैयार?

मशरूम उत्पादक किसान यदि ख़ुद अपनी मशरूम का सेवन करना चाहें तो वो क्या करें? इन किसानों के लिए शहरों से प्रोसेस्ड मशरूम को ख़रीदकर लाना और फिर उसका इस्तेमाल करना व्यावहारिक नहीं होता। इसीलिए, यदि वो अपने घरों में ही मशरूम की प्रोसेसिंग करना सीख लें तो अपनी निजी ज़रूरतों के अलावा वो रिश्तेदारों और मेहमानों वग़ैरह को भी प्रोसेस्ड मशरूम मुहैया करवा सकते हैं।

बायोचार - मिट्टी को उपजाऊ बनाने का तरीका
न्यूज़, मिट्टी की सेहत

जानिए, क्यों अनुपम है बायोचार (Biochar) यानी मिट्टी को उपजाऊ बनाने की घरेलू और वैज्ञानिक विधि?

बायोचार के इस्तेमाल से मिट्टी के गुणों में सुधार का सीधा असर फसल और उपज में नज़र आता है। इससे किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता और खेती की लागत घटती है। लिहाज़ा, बायोचार को किसानों की आमदनी बढ़ाने का आसान और अहम ज़रिया माना गया है।

कठिया किस्में गेहूँ की खेती Kathiya Wheat Farming
कृषि उपज, गेहूं, न्यूज़

Kathiya Wheat Farming: गेहूँ की खेती से ज़्यादा कमाई, अपनाएं कठिया गेहूँ की किस्में

सेहत के प्रति जागरूक लोगों के बीच कठिया गेहूँ की माँग तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि इसमें ‘बीटा कैरोटीन’ पाया जाता है। बाज़ार में भी किसानों को कठिया गेहूँ का उचित दाम मिलता है। इस तरह, कठिया गेहूँ, अपने उत्पादक किसानों को भी आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इसीलिए ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को चाहिए कि यदि वो गेहूँ पैदा करें तो उन्हें कठिया किस्में को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation)
न्यूज़, सब्जियों की खेती

चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation): छोटी जोत वाले किसानों के लिए क्यों है फ़ायदेमंद?

चौलाई से मिलने वाले साग (सब्ज़ी) और दाना (अनाज) दोनों ही नकदी फसलें हैं। चौलाई के खेती में ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती। चौलाई की खेती के लिए प्रति एकड़ करीब 200 ग्राम बीज की ज़रूरत पड़ती है। जानिए चौलाई की खेती से जुड़ी ऐसी कई जानकारियां।

प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक
न्यूज़, टेक्नोलॉजी, फसल प्रबंधन

प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक फल-सब्ज़ी की खेती में लागत घटाने का बेजोड़ नुस्ख़ा है

प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक की वजह से एक बार सिंचाई करने के बाद खेतों में ज़्यादा वक़्त तक नमी बनी रहती है। इस तकनीक में रोपे गये या अंकुरित हुए नन्हें पौधों के तनों के आसपास का हिस्सा प्लास्टिक से ढका होने की वजह से खरपतवार नहीं पनप पाते। लिहाज़ा, इन्हें निकालने या नष्ट करने के लिए न तो गुड़ाई-निराई की श्रम की लागत आती है और ना ही खरपतवार-नाशक रासायनिक दवाईयों की ज़रूरत पड़ती है। दूसरी ओर, परम्परागत खेती में ज़मीन की जिस उर्वरा शक्ति को खरपतवार हथिया लेते हैं वो ताक़त प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक की वजह से ज़मीन में ही बनी रहती है और उस फसल के पौधों के ही काम आती है, जिसकी खेती को किसान ने चुना है।  

मोटे अनाज की खेती 1 millets farming
न्यूज़, जलवायु परिवर्तन, फसल न्यूज़, विविध

Millets Farming: मोटे अनाज की खेती के ज़रिये करें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का मुक़ाबला

हरित क्रान्ति के तहत जैसे-जैसे गेहूँ और धान की पैदावार बढ़ी वैसे-वैसे भारतीय थालियों से पौष्टिक मोटे अनाजों से बने व्यंजन और इसकी प्रति व्यक्ति खपत घटती चली गयी। आम तौर पर धान के मुक़ाबले मोटे अनाजों की पैदावार कम है। लेकिन देश के कुछ ज़िलों में वर्षा आधारित मोटे अनाजों की खेती की उपज धान से बेहतर है। इसीलिए जलवायु अनुकूलन और अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए मोटे अनाज की खेती आज के वक़्त की मांग है।

Nairobi fly नैरोबी मक्खी
न्यूज़, फसल न्यूज़

Nairobi fly: फ़सल की दोस्त तो है ‘नैरोबी मक्खी’ लेकिन इससे बचकर रहें किसान

‘नैरोबी मक्खी’ ना तो इन्सान को काटती है और ना ही कोई डंक मारती है, लेकिन शरीर पर ये जहाँ भी बैठती है वहाँ ‘पेडेरिन’ नामक पदार्थ का स्राव कर देती है। इससे शरीर पर खुजली और जलन होने के अलावा घाव हो जाता है। इसीलिए इसे ‘ड्रैगन बग’ (dragon bug) भी कहा गया है। ‘नैरोबी मक्खी’ को लेकर सबसे अहम हिदायत ये है कि इसके शरीर पर बैठते तो उसे स्पर्श किये बग़ैर उड़ा देना चाहिए तथा यदि शरीर को खुजलाया हो तो उस हाथ से आँखों को छूने से सख़्त परहेज़ करना चाहिए।

फव्वारा तकनीक Sprinkler And Drip Irrigation
टेक्नोलॉजी, तकनीकी न्यूज़, न्यूज़, फसल न्यूज़, फसल प्रबंधन

Sprinkler and Drip Irrigation: पानी बचाकर खेती की कमाई बढ़ाने में बेजोड़ है फव्वारा और बूँद-बूँद सिंचाई

राजस्थान, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में अब तक 93 प्रतिशत से ज़्यादा खेतीहर ज़मीन को सूक्ष्म सिंचाई विधियों के दायरे में लाया जा चुका है। इस लिहाज़ से राजस्थान की उपलब्धियाँ सबसे आगे है। फव्वारा सिंचाई विधि के आने वाले देश के कुल इलाकों में राजस्थान की हिस्सेदारी एक-तिहाई से ज़्यादा है। दूसरी ओर आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में बूँद-बूँद सिंचाई वाली ड्रिप इरीगेशन के प्रति किसानों में ज़्यादा रुझान दिखाया है।

पशु आहार (Animal Feed)
पशुपालन और मछली पालन, पशुपालन

Animal Husbandry: सस्ता, सुलभ और पौष्टिक पशु आहार (Animal Feed) क्या हो और कैसा हो?

पशुओं को ऐसा आहार खिलाने से बचना चाहिए जो हम खाते हैं। कभी-कभार रसोई में बची हुई रोटी या हरी सब्जी के छिलके वग़ैरह तो पशु आहार के रूप में खिलाये जा सकते हैं, लेकिन पशुओं को दूध, शहद, बादाम, किशमिश, देसी घी आदि महँगी खाद्य सामग्री खिलाना समझदारी नहीं है। इनसे पशुओं को कोई नुकसान भले ना हो, लेकिन फ़ायदा बिल्कुल नहीं होता।

गन्ने के साथ इंटर क्रॉपिंग
कृषि उपज, गन्ना, टेक्नोलॉजी, तकनीकी न्यूज़, न्यूज़, पपीता, फल-फूल और सब्जी, फलों की खेती, फसल प्रबंधन

गन्ने के साथ इंटर क्रॉपिंग (Intercropping with Sugarcane): गन्ना किसान पपीते की सहफसली खेती का नुस्ख़ा ज़रूर आज़माएं

यदि गन्ना किसान गन्ने के साथ कुछ दूसरी फसलें लगाएँ तो उन्हें अच्छी कमाई हो जाती है। पपीते की फसल जल्दी तैयार हो सकती है और ये गन्ने के खेत में जगह भी ज़्यादा नहीं लेती। इसीलिए गन्ने के साथ पपीता उगाने से दोहरा लाभ मिलता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में दोमट और बलुई मिट्टी की बहुतायत है। ऐसी मिट्टी न सिर्फ़ गन्ने के लिए बढ़िया है बल्कि पपीते के लिए भी बेहद मुफ़ीद होती है।

पशुओं का गर्मी से बचाव
पशुपालन और मछली पालन, पशुपालन

गर्मी से पशुओं को बचाने के लिए अपनायें ऐसे 10 घरेलू नुस्ख़े जिनकी वैज्ञानिक करते हैं सिफ़ारिश

गम्भीर ताप तनाव (heat stress) की वजह से पशुओं के शरीर का तापमान, दिल की धड़कनें, रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ जाता है। चारे का सेवन 35 प्रतिशत तक कम हो सकता है। देसी नस्ल के पशु तो फिर भी ज़्यादा तापमान सहन कर लेते हैं लेकिन विदेशी और संकर नस्लों में इसे बर्दाश्त करने की क्षमता भी कम होती है।

Bio priming जैविक बीज टीकाकरण
टेक्नोलॉजी, न्यूज़, फसल प्रबंधन

Bio priming: जैविक बीज टीकाकरण विधि खेती की लागत घटाने और मुनाफ़ा बढ़ाने में कैसे बेहद उपयोगी है?

बीज टीकाकरण की बदौलत जहाँ क़रीब 30 प्रतिशत ज़्यादा पैदावार मिलती हैं, वहीं उत्पादन लागत घटने की वजह से भी खेती का मुनाफ़ा ख़ासा बढ़ जाता है। बीज टीकाकरण एक सस्ती और सरल विधि है। लेकिन भारत में ज़्यादातर किसानों को बीज टीकाकरण की विधि का ज्ञान नहीं हैं अथवा वो इन्हें प्रयोग में नहीं लाते हैं।

धनिये की खेती (Coriander Farming)
धनिया, न्यूज़, मसालों की खेती

धनिये की खेती (Coriander Farming): जानिए कम लागत वाली नकदी फसल धनिये से कैसे कमा सकते बढ़िया मुनाफ़ा

धनिये की खेती सस्ती है। इसकी प्रति हेक्टेयर लागत क़रीब 15 हज़ार रुपये बैठती है और लागत निकालने के बाद किसान प्रति हेक्टेयर 50 से 60 हज़ार रुपये कमा लेते हैं। धनिया उत्पादक किसानों को ऐसी किस्म चुननी चाहिए जिससे पत्तियों और बीजों दोनों का ही अच्छा उत्पादन हो। बीज और पत्तियाँ, दोनों से सम्पन्न किस्मों की फसल अपेक्षाकृत ज़्यादा वक़्त में तैयार होती है। इस दौरान भी किसान को आमदनी देती रहती हैं।

बहुस्तरीय खेती multi layer farming
टेक्नोलॉजी, न्यूज़, फसल प्रबंधन

Multi layer farming: बहुपरत या बहुफ़सली या बहुस्तरीय खेती के लिए कौन से फ़सल समूह हैं सबसे बेहतर?

मल्टीलेयर फ़ार्मिंग से कम लागत में ज़मीन की प्रति इकाई से ज़्यादा उत्पादकता और उच्च आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। ऐसी एकीकृत कृषि प्रणाली जिसमें एक ही खेत से एक फ़सल के लिए ज़रूरी उर्वरक और सिंचाई से साल में 4-5 फ़सलों की पैदावार हासिल की जा सकती है। इसे छोटे और सीमान्त किसानों के लिए स्थायी विकास का ज़रिया भी माना गया है, क्योंकि इससे ज़्यादा मुनाफ़ा के अलावा बेहतर खाद्य और पोषण सुरक्षा हासिल होती है।

नील हरित शैवाल (Blue-Green Algae)
कृषि रोजगार एवं शिक्षा, न्यूज़

नील हरित शैवाल (Blue-Green Algae): जैविक खाद उत्पादकों की कमाई बढ़ाने का best option

नील हरित शैवाल से नाइट्रोजन चक्र का स्थिरीकरण (stabilization) होता है। इसके इस्तेमाल से न सिर्फ़ धान की पैदावार बढ़ती है, बल्कि धान के बाद ली जाने वाली रबी की फसलों के लिए भी मिट्टी में बढ़े नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों से फ़ायदा होता है। यदि खेत में लगातार 3 से 4 साल तक इस जैविक खाद का उपयोग होता रहे तो इससे आगामी कई वर्षों तक मिट्टी को शैवाल के उपचारित करने की नौबत नहीं आती, क्योंकि मिट्टी का उपजाऊपन बनी रहती है।

मिट्टी की सेहत (Soil Health) 2
कृषि उपज, न्यूज़, मिट्टी की सेहत

मिट्टी की सेहत (Soil Health): दुनिया भर में ‘बंजर होती धरती’ बनी मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती

अब तक हम भारत की 29 प्रतिशत ज़मीन को अनुपादक बना चुके हैं या उसकी उत्पादन क्षमता नष्ट कर चुके हैं। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.87 करोड़ हेक्टेयर में से क़रीब 9.64 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन की मिट्टी अपक्षरित हो चुकी है। इसका मतलब है कि ऐसी ज़मीन की मृदा की ऊपरी उर्वर परत इतनी नष्ट हो चुकी है वो खेती के लायक नहीं रही।

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सब्जी/फल-फूल/औषधि, जैविक खेती, जैविक/प्राकृतिक खेती, तकनीकी न्यूज़, न्यूज़, फल-फूल और सब्जी, लाईफस्टाइल, होम गार्डनिंग

Rooftop Organic Farming: छतों पर सब्जियों की जैविक खेती करने के हैं फ़ायदे ही फ़ायदे

Rooftop organic farming (छत पर जैविक खेती): किचन गार्डेन की तरह घर की छत पर सब्जियाँ उगाकर पैसे की बचत के अलावा घरेलू पानी और कचरे का जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल हो सकता है। घर की छत पर सब्जियों की जैविक खेती करके पूरे साल ताज़ा सब्ज़ियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।

जूट की खेती (Jute Farming)
न्यूज़

जूट की खेती (Jute Farming In India): भारत है नंबर 1। जानिए उगाने की उन्नत तकनीकें और फ़ायदे

जूट, खरीफ़ की फसल है। इसे गरम और नम जलवायु चाहिए। इसके लिए 21 से 38 डिग्री सेल्सियस और 90% सापेक्षिक नमी वाली जलवायु बेहद मुफ़ीद है। बंगाल की जलवायु जूट के लिए बेहतरीन है। देश में 83 जूट मिलें हैं, जो सालाना 16 लाख टन से ज़्यादा जूट उत्पाद तैयार करते हैं। जूट उद्योग से करीब 3 लाख लोग सीधे रोज़गार पाते हैं। इसके निर्यात से देश को करीब 40 लाख डॉलर की विदेशी मुद्रा मिलती है।

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