Author name: Mukesh Kumar Singh

Mukesh Kumar Singh
तुलसी की खेती कैसे करें
एग्री बिजनेस

तुलसी की खेती (Basil Farming): कई गुणों की खान है तुलसी, इसके करोबार से कर सकते हैं अच्छी कमाई भी

तुलसी की खेती पूरे देश में हो सकती है। तीन महीने बाद इससे उपज मिलने लगती है। लागत निकालकर इससे प्रति हेक्टेयर एक लाख रुपये से ज़्यादा की कमाई हो सकती है। सिंचित जगहों के लिए तुलसी की अगेती खेती उपयुक्त है। इसके लिए फ़रवरी के आख़िर तक नर्सरी में तुलसी के बीजों की बुआई करनी चाहिए।

दुधारू पशुओं को बाँझपन (infertility) से कैसे बचाएँ?
पशुपालन, डेयरी फ़ार्मिंग, पशुपालन और मछली पालन

दुधारू पशुओं को बाँझपन (infertility) से कैसे बचाएँ?

गर्भावस्था में माँ और बच्चे की बढ़िया सेहत के लिए और ब्याने के बाद ज़्यादा दूध उत्पादन पाने के लिए सन्तुलित पोषक आहार को कभी नज़रअन्दाज़ नहीं करना चाहिए। यदि किसी भी वजह से हरे चारे की उपलब्धता नहीं हो तो भी सूखे चारे की पौष्टिकता को बढ़ाकर पशु आहार को सन्तुलित रखना बहुत ज़रूरी है। पशुओं की प्रजनन क्षमता और उत्पादकता पर सबसे ज़्यादा प्रभाव आहार में विटामिन की कमियों का पड़ता है।

दीनानाथ घास (Dinanath Grass): एक बार बोएँ और बार-बार काटें पौष्टिक हरा चारा
कृषि उपज, पशुपालन, पशुपालन और मछली पालन

दीनानाथ घास (Dinanath Grass): एक बार बोएँ और बार-बार काटें पौष्टिक हरा चारा, पशुओं का शानदार सन्तुलित आहार

दीनानाथ घास पूरे साल हरा चारा देने वाली फसल है, लेकिन इसे बहुवर्षीय फसल माना जाता है। इसका फसल चक्र ऐसा है कि पकने पर इसके बीज खेत में गिर जाते हैं और अगले खरीफ़ मौसम में इनसे अपने आप ही शानदार पौधे उगने लगते हैं। इस तरह, एक बार बुआई करने के बाद दीनानाथ घास खेत में 3-4 साल तक अपने आप उगती रहती है।

Prawn farming: झींगा पालन की उन्नत तकनीक अपनाएँ, मछली के अलावा कार्बनिक खाद से भी पाएँ शानदार कमाई
जल कृषि, न्यूज़, पशुपालन

Prawn farming: झींगा पालन की उन्नत तकनीक अपनाएँ, मछली के अलावा कार्बनिक खाद से भी पाएँ शानदार कमाई

झींगा समुद्री जीव है। लेकिन व्यावसायिक माँग की वजह से इसे मीठे पानी में भी पालते हैं क्योंकि बाज़ार में ये 250 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकता है। यदि उन्नत और वैज्ञानिक तरीके से झींगा पालन की जाए तो एक एकड़ के तालाब से 6 से 8 महीने में लागत निकालकर कम से कम 2 लाख रुपये की कमाई होती है। इसके अलावा हज़ारों रुपये के कार्बनिक खाद की पैदावार का बोनस भी मिलता है।

Raised bed planter जलवायु परिवर्तन कुंड और नाली विधि से बुआई
कृषि उपकरण, कृषि उपकरण न्यूज़, जलवायु परिवर्तन, टेक्नोलॉजी, न्यूज़, फसल प्रबंधन, विविध

Raised Bed Planter: जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में बेहद उपयोगी है कुंड और नाली विधि से बुआई

बुआई की परम्परागत छिटकवाँ विधि को ऊँची लागत और जलवायु परिवर्तन की दोहरी मार से बचाने के लिए ही कृषि विज्ञानियों ने कुंड और नाली विधि से बुआई करने की तकनीक विकसित की। कुंड और नाली विधि की बदौलत खेतों में बारिश के पानी का ज़्यादा संरक्षण होता है।

नैनो तरल यूरिया (Nano liquid Urea)
उर्वरक, न्यूज़, प्रॉडक्ट लॉन्च, फसल न्यूज़

पीएम मोदी ने किया IFFCO नैनो तरल यूरिया प्लांट का उद्घाटन, एक बोरी यूरिया की ताकत एक बोतल में समाई

आमतौर पर यूरिया की 45 किलोग्राम की एक बोरी का इस्तेमाल एक एकड़ की फसल के लिए किया जाता है। जबकि यही काम नैनो तरल यूरिया की 500 मिलीलीटर की बोतल से दोगुनी कुशलता से हो जाता है। यूरिया की बोरी का दाम 267 रुपये है तो नैनो लिक्विड यूरिया की आधा लीटर की बोतल की कीमत 240 रुपये है। नैनो तरल यूरिया की सिर्फ़ 2 मिलीलीटर मात्रा का एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना होता है और पूरी फसल के दौरान नैनो तरल यूरिया का सिर्फ़ दो बार छिड़काव करने की ज़रूरत पड़ती है।

मधुमक्खी पालन
न्यूज़, अन्य, पशुपालन, पशुपालन न्यूज़

विश्व मधुमक्खी दिवस (World Bee Day 2024): मधुमक्खी की ऐसी नस्लों की पहचान हुई जो पॉलीहाउस में भी करती हैं परागण (Pollination)

वैज्ञानिकों ने बताया कि भारतीय नस्ल वाली मधुमक्खी ‘एपिस सेराना’ और डंक रहित मधुमक्खी ‘टेट्रागोनुला इरिडिपेनिस’ को यदि पॉलीहाउस में पाला जाए तो वहाँ के insect proof माहौल में भी खुले खेतों जैसी कीट-पतंगों वाली पॉलीनेशन की ख़ूबियाँ और फ़ायदे हासिल हो सकते हैं। इस नयी तकनीक से पॉलीहाउस की खेती की लागत घटती है और कमाई बढ़ती है।

गुलदाउदी की खेती
न्यूज़, फल-फूल और सब्जी, फूलों की खेती, सब्जी/फल-फूल/औषधि

सर्दियों वाले गुलदाउदी (Chrysanthemum) के दिलकश फूलों को गर्मियों में उगाने की तकनीक विकसित

गुलदाउदी उगाने की नयी तकनीक से जहाँ घरेलू बाग़ीचों की रौनक बदल सकती है, वहीं नसर्री मालिकों, फूल उत्पादक किसानों और फूलों के कारोबार से जुड़े लोगों के लिए भी आमदनी के नये मौके विकसित हो सकते हैं। NBRI का उद्यानिकी प्रभाग लम्बे अरसे से जुलाई में ही गुलदाउदी को खिलाने की तकनीक विकसित करने की कोशिश कर रहा था। ज़ाहिर है मई-जून में खिलने वाली किस्म से ये मुराद पूरी हो गयी। अपनी उपलब्धि से उत्साहित NBRI के वैज्ञानिकों का इरादा जल्द ही गुलदाउदी की ऐसी किस्मों की पहचान करके उनका ऐसा कलेंडर बनाना है जिससे गुलदाउदी के चाहने वालों को पूरे साल इसके फूलों से सुकून हासिल करने का मौका मिल सके।

मोटे अनाज की खेती Coarse Grain Farming
कृषि उपज, न्यूज़, फसल न्यूज़

Coarse Grains Farming: थाली से गायब हुए मोटे अनाज की वापसी क्यों?

धान और गेहूँ की तुलना में परम्परागत मोटे अनाज काफ़ी कम पानी और खाद से उग जाते हैं। कम उपजाऊ भूमि में भी इसकी अच्छी पैदावार और लाभकारी दाम मिल जाता है। मोटे अनाज की खेती में महँगे रासायनिक खाद और कीट नाशकों की ज़रूरत नहीं पड़ती। ये पर्यावरण के बेहद अनुकूल होते हैं और पोषक आहारों की दुनिया में तो परम्परागत मोटे अनाजों और भी बेजोड़ हैं।

सह-फसली खेती (co-cropped farming): क्यों मुनाफ़े की खेती का राम बाण नुस्ख़ा है सह-फसली?
न्यूज़

सह-फसली खेती (co-cropped farming): क्यों मुनाफ़े की खेती का राम बाण नुस्ख़ा है सह-फसली?

फसल के ख़राब होकर कम उत्पादन देने से किसान उतना तबाह नहीं होता, जितना शानदार फसल होने पर होता है। इसीलिए किसानों को ऐसी फसलें चुननी चाहिए जिसका बाज़ार में अच्छा भाव मिलने की उम्मीद हो। अब सवाल ये है कि किसान अपनी फसलों का चुनाव कैसे करें? इसका सबसे आसान जवाब है कि उन्हें सह-फसली खेती तकनीक को अपनाना चाहिए।

एथनॉल उत्पादन ethanol production in india
एग्री बिजनेस, कृषि उपज, गन्ना, न्यूज़, फ़ूड प्रोसेसिंग

एथनॉल उत्पादन (Ethanol Production) के मौजूदा तरीके से देश की खाद्य सुरक्षा को हो सकता है ख़तरा: कृषि विशेषज्ञ

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि गन्ना आधारित एथनॉल उत्पादन इकाइयों की क्षमता बढ़ती रही तो सिंचाई से जुड़ी चुनौतियाँ पेंचीदा हो जाएँगी, क्योंकि जितने गन्ने से एक लीटर एथनॉल पैदा होता है, उसके उत्पादन के लिए 2,750 लीटर पानी की ज़रूरत पड़ती है।

मुँहपका-खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease, FMD)
पशुपालन, पशुपालन और मछली पालन

मुँहपका-खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease, FMD) : जानिए पशुपालक कैसे कर सकते हैं इस रोग का इलाज?

मुँहपका-खुरपका रोग एक क्षेत्रीय महामारी (endemic) है। मुँहपका-खुरपका रोग के फैलने का कोई मौसम निश्चित नहीं होता। ये कभी भी किसी गाँव में पहुँचकर उसके पशुओं में फैल सकता है। FMD के वायरस एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका के कुछ इलाकों में ही मिलते हैं। ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अमेरिका के ज़्यादातर क्षेत्रों को FMD मुक्त माना गया है।

खस की खेती से शानदार कमाई
न्यूज़

Vetiver Farming: खस की खेती में कितनी लागत और कमाई? कहां से लें ट्रेनिंग?

खस की खेती के लिए किसी ख़ास तरह की ज़मीन की ज़रूरत नहीं होती। आमतौर पर खस की खेती में प्रति एकड़ लागत करीब 60-65 हज़ार रुपये बैठती है। प्रति एकड़ खस की उपज से करीब 10 किलो तक तेल निकल जाता है। बाज़ार में इस तेल का दाम करीब 20 हज़ार रुपये प्रति किलो तक मिल जाता है।

पशुओं और इंसान के लिए बेहद ख़तरनाक है ब्रूसीलोसिस
पशुपालन, पशुपालन और मछली पालन

पशुपालन (Animal Husbandry): पशुओं और इंसान के लिए बेहद ख़तरनाक है ब्रूसीलोसिस (Brucellosis) का संक्रमण, कैसे करें बचाव?

नये खरीदे गये पशुओं की ब्रूसीलोसिस की जाँच करवाये बग़ैर अन्य स्वस्थ पशुओं के साथ कभी नहीं रखना चाहिए। अगर किसी पशु को गर्भधारण की तीसरी तिमाही में गर्भपात हुआ हो तो उसे फ़ौरन बाकी पशुओं से अलग-थलग करके आसपास की जगह को फ़िनाइल से धोकर जीवाणु रहित रखना चाहिए, क्योंकि इसके स्त्राव से अन्य पशुओं के संक्रमित होने का ख़तरा बहुत ज़्यादा होता है।

एयर प्यूरीफाइंग पौधे (Air Purifying Plants): प्रदूषण सोखने वाले एयर प्यूरीफाइंग पौधों की लिस्ट में वैज्ञानिकों ने जोड़े तीन और पौधे
लाईफस्टाइल, न्यूज़

एयर प्यूरीफाइंग पौधे (Air Purifying Plants): प्रदूषण सोखने वाले एयर प्यूरीफाइंग पौधों की लिस्ट में वैज्ञानिकों ने जोड़े तीन और पौधे, साफ़ हवा के लिए इन्हें ज़रूर अपनाएँ  

शोध से पता चला कि ‘एयर प्यूरीफाइंग पौधे पीस लिली’, ‘कॉर्न प्लांट’ और ‘फर्न अरूम’ नामक तीन पौधों में भी प्रदूषणरोधी गुण मौजूद हैं। नयी पहचान उन परम्परागत पौधों से अलग है जिन्हें घरों में रखने का लिए मुफ़ीद बताया जाता रहा है, क्योंकि इन तीनों पौधों में हवा में मौजूद नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को सोखने की क्षमता पायी जाती है।

बकरी पालन (Goat Farming): बकरियों की 8 नयी नस्लें रजिस्टर्ड
न्यूज़, पशुपालन, बकरी पालन

बकरी पालन (Goat Farming): बकरियों की 8 नयी नस्लें रजिस्टर्ड, चुनें अपने इलाके के लिए सही प्रजाति और पाएँ ज़्यादा फ़ायदा

बकरी पालन में न सिर्फ़ शुरुआती निवेश बहुत कम होता है, बल्कि बकरियों की देखरेख और उनके चारे-पानी का खर्च भी बहुत कम होता है। लागत के मुकाबले बकरी पालन से होने वाली कमाई का अनुपात 3 से 4 गुना तक हो सकता है, बशर्ते इसे वैज्ञानिक तरीके से किया जाए। बकरी पालन के विशेषज्ञों ने देश के विभिन्न इलाकों की जलवायु के अनुकूल 8 नयी और ख़ास नस्लों की बकरियों की पहचान करके उन्हें पंजीकृत भी करवाया है। ताकि बकरी पालक किसान अपने इलाके की जलवायु के अनुरूप उन्नत नस्ल की बकरियों का चुनाव करके उसके पालन से ज़्यादा से ज़्यादा आमदनी पा सकें।

चारा चुकन्दर की खेती chara beetroot farming
पशुपालन और मछली पालन, न्यूज़, पशुपालन

चारा चुकन्दर की खेती (Fodder Beet): हरे चारे की भरपाई करने वाली शानदार फसल की किस्म विकसित

‘काज़री’ ने हरे चारे की एक नयी किस्म वाली फसल को विकसित किया है। इसका नाम है- चारा बीट या चारा चुकन्दर। इसकी खेती किसी भी किस्म की मिट्टी में हो सकती है। इसकी पैदावार पर मिट्टी और पानी के खारेपन या ख़राब गुणवत्ता का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लिहाज़ा, इसे पूरे देश में कहीं भी उगाया जा सकता है।

अनाज का भंडारण food grain storage
कृषि उपज, दाल, न्यूज़

जानिए कैसे करें अनाज का भंडारण (Food Grains Storage), अनाज के दुश्मनों से बचाएं अपनी फसल

उचित भंडारण व्यवस्था नहीं होने की वजह से सालाना औसतन देश का करीब 10 प्रतिशत अनाज बर्बाद हो जाता है। ये नुकसान बहुत बड़ा है और इसे पूरी ताक़त लगाकर रोका जाना चाहिए।

जोंक पशुओं पर हमला leech attack on animals
न्यूज़, पशुपालन, पशुपालन और मछली पालन

Leech attack: पहाड़ी इलाकों में पशुओं पर होने वाले जोंक के हमले की रोकथाम कैसे करें?

जोंक ऐसे परजीवी हैं जो ज़्यादातर गर्मी और बरसात के महीनों में ही सक्रिय रहते हैं। ठंड के मौसम में जोंक के हमले कम नज़र आते हैं। पूर्वोंत्तर के अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर और मिज़ोरम में तो जोंक संक्रमण को मिथुन के लिए एक गम्भीर स्वास्थ्य समस्या और स्थानिक रोग (local disease) का दर्ज़ा दिया गया है।

गेहूं के किसानों के लिए ‘पूसा यशस्वी’ है शानदार सौग़ात, सबसे ज़्यादा पैदावार देने वाली किस्म विकसित
कृषि उपज, गेहूं, न्यूज़, फसल न्यूज़

गेहूं के किसानों के लिए ‘पूसा यशस्वी’ है शानदार सौग़ात, सबसे ज़्यादा पैदावार देने वाली किस्म विकसित

पूसा यशस्वी में प्रोटीन और ज़िंक की मात्रा बाक़ी किस्मों से कहीं ज़्यादा पायी जाती है। इस उन्नत किस्म पर गेहूँ की मुख्य बीमारियों जैसे रतुआ, करनाल बंट, पाउडरी मिल्ड्यू, फुट रॉट वग़ैरह के प्रति भी ज़बरदस्त प्रतिरोधकता है। इसीलिए इसे किसी रासायनिक नियंत्रण की ज़रूरत नहीं पड़ती। लेकिन सही पैदावार पाने के लिए खेतों का सिंचाई युक्त होना चाहिए और बुआई सही समय पर ही होनी चाहिए।

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