Author name: Mukesh Kumar Singh

Mukesh Kumar Singh
Water Fern management research by ICAR
न्यूज़

जानिये, कैसे भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार ढूँढ़ा झीलों-तालाबों में आतंक मचाने वाले ‘वाटर फ़र्न’ (Water Fern) के सफ़ाये का पुख़्ता इलाज़

‘वाटर फ़र्न’ पर जैविक नियंत्रण की तकनीक के प्रदर्शन के लिए कटनी ज़िले के पडुआ गाँव के 20 हेक्टेयर में फैले तालाब को चुना गया। ये तालाब 3 साल से ‘वाटर फ़र्न’ से गम्भीर रूप से संक्रमित था और गाँव वालों की इससे छुटकारा पाने की सभी कोशिशें नाकाम साबित हो चुकी थीं। लेकिन ‘सिर्टोबैगस सालिविनिया’ घुनों की सेना ने क़रीब डेढ़ साल में तालाब को ‘वाटर फ़र्न’ से मुक्त कर दिया।

ICAR education courses
कृषि रोजगार एवं शिक्षा, न्यूज़

ICAR E-Learning Portal: यदि आप छात्र, अध्यापक या किसान हैं तो जानिये कैसे बढ़ाएँ ऑनलाइन शिक्षा से अपना कौशल और ज्ञान?

ICAR और NAIP की ओर से Learning and Capacity Building Program चलाया जाता है। इसमें B.Sc. (Agriculture), B.V.Sc. (Veterinary & AH), B.F.Sc. (Fisheries Science), B.Tech. (Dairy Technology), B.Sc. (Home Science), B.Tech. (Agricultural Engineering) और B.Sc. (Horticulture) जैसे सात अहम स्नातक स्तरीय कोर्सेस के लिए ऑनलाइन शैक्षिक सामग्री तैयार की जाती है। किसान समेत कोई भी व्यक्ति इस ऑनलाइन सुविधा का मुफ़्त फ़ायदा उठा सकता है। जानिए कैसे उठाएं ICAR E-Learning Portal से फ़ायदा।

युवा किसान फ़ौरन प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PM-KMY) से जुड़ें और आजीवन पेंशन पाने के हक़दार बनें
सरकारी योजनाएं

युवा किसान फ़ौरन प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PM-KMY) से जुड़ें और आजीवन पेंशन पाने के हक़दार बनें

यदि आप ऐसे युवा किसान हैं जिसकी उम्र 18 से 40 साल के बीच है तो आपको फ़ौरन प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PM-KMY) से जुड़ जाना चाहिए और अपने जेब ख़र्च में से छोटी बचत करके किसान पेंशन योजना की किस्तें भरने का बीड़ा उठाना चाहिए। मोटे तौर पर किसान पेंशन योजना का लाभार्थी बनने की शर्तें वही हैं जो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PMKSNY) के लिए तय की गयी हैं। PM-KMY का उद्देश्य मौजूदा दौर के ऐसे युवा किसानों को उस वक़्त 3,000 रुपये महीना की आजीवन पेंशन पाने का हक़दार बनाने का है, जब उनकी उम्र 60 साल हो जाएगी।

मोदी सरकार की पहल से कैसे शुरू हुई भारत में हींग की खेती (Asafoetida Farming)? जानिए, अभी कितने किसान हैं इससे जुड़े?
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मोदी सरकार की पहल से कैसे शुरू हुई भारत में हींग की खेती (Asafoetida Farming)? जानिए, अभी कितने किसान हैं इससे जुड़े?

भारतीय मसालों में हींग का अहम स्थान है। लेकिन देश में हींग की खेती नहीं हो सकी क्योंकि इसके पौधों को बेहद ठंडी और पर्याप्त धूप वाली शुष्क जलवायु पसन्द है। इसके अलावा हींग के ज़्यादातर बीजों में ऐसी क़ुदरती निष्क्रियता होती है जिसकी वजह से उसका सौ में से कोई एक-दो बीज ही अंकुरित होता है। लेकिन 2020 में भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने हींग की खेती की तकनीक विकसित करके लाहौल-स्पीति के ठंडे रेगिस्तान में इसकी प्रायोगिक खेती शुरू करवायी है।

पराली जलाने की मशीन (Stubble Burning crop residue machines)
कृषि उपकरण, न्यूज़, रोटावेटर, सरकारी योजनाएं

पराली जलाने (Stubble Burning) से बचने के लिए किसानों ने खरीदीं 2 लाख से ज़्यादा मशीनें, डीकम्पोजर कैप्सूल का भी खूब हुआ इस्तेमाल

कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण को बढ़ावा देने वाली केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की इस योजना का नाम है– ‘Promotion of Agricultural Mechanization for In-Situ Management of Crop Residue in the States of Punjab, Haryana, Uttar Pradesh and NCT of Delhi’. ये योजना Sub-Mission on Agricultural Mechanization (SMAM) का ही एक हिस्सा है।

प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना
न्यूज़, वीडियो

प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना: ज़ीरो बजट खेती (Zero Budget Farming) अपनाने की प्रधानमंत्री ने किसानों से फिर की अपील, जानिए कितने पते की सलाह है ‘नैचुरल फार्मिंग’?

देश के किसान समुदाय में क़रीब 72 करोड़ आबादी रहती है। इस समुदाय की औसत मासिक आमदनी का राष्ट्रीय औसत महज 10,218 रुपये है। इस समुदाय के लिए ‘ज़ीरो बजट खेती’ का सीधा मतलब है – खेती की बाहरी लागत को ख़त्म करके आमदनी बढ़ाना। इसी योजना को हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के नाम से चलाया जा रहा है।

किसान कार्ड
सरकारी योजनाएं

Kisan Card: मोदी सरकार सभी किसानों को देगी विशेष पहचान पत्र, बहु-उद्देश्शीय होगा किसान कार्ड

देश में किसानों की कुल संख्या 15.8 करोड़ है। इनमें से लघु और सीमान्त किसानों की संख्या क़रीब 12.6 करोड़ है। इनमें से भी 11.64 करोड़ किसान PM-KISAN पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं। यानी 73.7 फ़ीसदी किसानों का ब्यौरा तो सरकार के पास मौजूद ही है। इन्हें तो महज कुछेक महीने में किसान आईडी कार्ड जारी हो सकता है।

ज़ीरो बजट खेती
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‘ज़ीरो बजट खेती’ (Zero Budget Farming): जानिए क्यों प्रधानमंत्री इस प्राकृतिक तकनीक को ज़ोर-शोर से बढ़ावा देना चाहते हैं?

‘ज़ीरो बजट खेती’ (Zero Budget Farming) या ‘ज़ीरो बजट प्राकृतिक खेती’ (Zero Budget Natural Farming) में कुछ भी नया नहीं है। ये तो खेती का सबसे पुराना और परम्परागत तरीक़ा है जो युगों-युगों से दुनिया भर में मौजूद है। आसान शब्दों में कहें तो ‘ज़ीरो बजट खेती’ का सीधा मतलब खेती की बाहरी लागत को ख़त्म करके किसानों की आमदनी बढ़ाने की कोशिश करना है। इसे व्यापक स्तर पर अपनाने की शुरुआत 2015 में आन्ध्र प्रदेश में हुई।

PM Kisan Tractor Yojana ‘प्रधानमंत्री किसान ट्रैक्टर योजना
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FAKE NEWS: PM Kisan Tractor Yojana जैसी कोई सरकारी स्कीम नहीं, झूठ और झाँसे से बचें किसान

ऐसा प्रचार पूरी तरह से झूठा, भ्रामक, निराधार, मनगढ़न्त, फ़र्ज़ी और फेक है कि मोदी सरकार की ओर से किसानों को ट्रैक्टर ख़रीदने के लिए PM Kisan Tractor Yojana चलायी जा रही है और इसके तहत ट्रैक्टर के दाम की आधी रक़म सब्सिडी में दी जाएगी। भारत सरकार की ओर से 15 अगस्त 2020 को औपचारिक तौर पर ऐसे सभी विज्ञापनों या ख़बरों को झूठा और निराधार करार दिया जा चुका है।

प्रधानमंत्री सम्मान निधि (Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi)
सरकारी योजनाएं, न्यूज़

आख़िर किस प्रदेश में अभी तक सिर्फ़ एक किसान को मिली है प्रधानमंत्री सम्मान निधि की किस्त?

7 दिसम्बर 2021 तक के आँकड़ों के अनुसार, अभी तक PMKSNY के लाभार्थियों की संख्या 11,79,28,275 रही है। इसमें से सबसे ज़्यादा 2.6 करोड़ (या 2,60,18,970) लाभार्थी उत्तर प्रदेश के हैं, जिसकी आबादी क़रीब 25 करोड़ है। जबकि सबसे कम और वो भी सिर्फ़ एक किसान केन्द्र शासित प्रदेश दमन का है। इस केन्द्र शासित प्रदेश में सिर्फ़ एक ज़िला है दमन और राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार इस ज़िले में कम से कम 24 गाँव हैं।

जैविक खेती ( Organic Farming )
जैविक खेती, जैविक/प्राकृतिक खेती, न्यूज़

सिर्फ़ जैविक खेती में ही है कृषि का सुनहरा भविष्य, कैसे पाएँ सरकारी मदद?

जैविक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से तीन साल के लिए 50 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर की वित्तीय सहायता दी जाती है। इसमें से 31 हज़ार रुपये यानी 62% रकम जैव उर्वरकों, जैव कीटनाशकों, जैविक खाद, खाद, वर्मी-खाद, वनस्पति अर्क वग़ैरह हासिल करने के लिए DBT (Direct Benefit Transfer) के ज़रिये किसानों के बैंक खातों में सीधे भेजे जाते हैं। उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए बाक़ी शर्तें जो पूरे देश जैसी ही हैं, लेकिन वहाँ वित्तीय सहायता की दर तीन साल के लिए 25 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर रखी गयी है।

42.16 लाख अपात्र किसानों को मिले PM Kisan योजना के 2,992 करोड़ रुपये, उगाही की कार्रवाई जारी - Kisan Of India
सरकारी योजनाएं

42.16 लाख अपात्र किसानों को मिले PM Kisan योजना के 2,992 करोड़ रुपये, उगाही की कार्रवाई जारी

बीते फरवरी में पता चला कि PMKSNY का लाभ 33 लाख अयोग्य किसान भी उठा रहे थे। इसकी वजह से सरकार को करीब 2500 करोड़ रुपये का चूना लगा। इसकी भरपाई के लिए सरकार ने अयोग्य लाभार्थियों का पता लगाकर उन्हें मिली रक़म की वसूली की घोषणा की थी। अब पता चला है कि देश में कुल 42.16 लाख अपात्र किसानों ने भी इस योजना का फ़ायदा उठा लिया। इससे सरकार को 2,992 करोड़ रुपये की चपत लगी। हालाँकि, अब सरकार की ओर से अयोग्य किसानों को नाजायज़ रकम लौटाने के लिए नोटिस दिये जा रहे हैं।

कोल्ड स्टोरेज और कोल्ड चेन नेटवर्क बनाने के लिए कैसे उठाएँ सरकारी मदद का फ़ायदा?
सरकारी योजनाएं

कोल्ड स्टोरेज और कोल्ड चेन नेटवर्क बनाने के लिए कैसे उठाएँ सरकारी मदद का फ़ायदा?

परम्परागत खेती के जाल से निकलने की चाहत रखने वाले उद्यमी किसानों और उनके संगठनों को अपने बूते पर कोल्ड स्टोरेज और कोल्ड चेन नेटवर्क बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए सरकार की ओर 35 से लेकर 75 फ़ीसदी तक की वित्तीय सहायता दी जाती है। खेती में क्रान्तिकारी बदलाव लाने के लिए इन योजनाओं का भरपूर दोहन किया जाना चाहिए, क्योंकि भारत में केन्द्र हो या राज्यों की सरकारें, कोई भी अपने कोल्ड स्टोरेज स्थापित नहीं करती।

छोटी जोत वाले किसानों के लिए बेजोड़ है चौलाई या रामदाना की खेती
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छोटी जोत वाले किसानों के लिए बेजोड़ है चौलाई या रामदाना की खेती

चौलाई की खेती के लिए प्रति एकड़ करीब 200 ग्राम बीज की ज़रूरत पड़ती है। बीज का दाम करीब 75-80 रुपये बैठता है। फसल पकने पर प्रति एकड़ 3 से 4 क्विंटल रामदाना पैदा होता है। बाज़ार में ये 75-80 रुपये प्रति किलो के भाव से बिकता है। यानी प्रति एकड़ 30 हज़ार रुपये की उपज। इसीलिए इसे छोटी जोत वाले किसानों के लिए बेजोड़ माना जाता है। चौलाई की बुआई के करीब महीने भर इसकी पत्तियाँ भी तोड़ी जाती हैं। इसे बेचने से भी आमदनी होती है।

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