गहत की खेती: उत्तराखंड की पौष्टिक दाल और इसके फ़ायदे

जानें पहाड़ी इलाकों में गहत की खेती के फ़ायदे, पोषण मूल्य और इसके अनोखे गुण। गहत, एक पौष्टिक दाल है और सेहत के लिए बेहद फ़ायदेमंद होती है।

गहत की खेती Horse Gram Cultivation

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पाई जाने वाली गहत एक बहुत ज़रूरी दाल की फ़सल है। इसमें औषधीय गुण होते हैं और ये पौष्टिक भी होती है, इसलिए ये गांव के लोगों के लिए सस्ता और आसानी से मिलने वाला प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है। गहत को हॉर्स ग्राम या कुल्थी भी कहा जाता है, और इसका खाने में व्यापक उपयोग किया जाता है।

गहत पुराने ज़माने से खाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। अब इसकी मांग बढ़ रही है, जिससे किसानों को इसका अच्छा दाम मिल रहा है और इसे बेचने के मौके भी तेजी से बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में एक पुराना कृषि तरीका है, जिसमें कई फ़सलें एक साथ उगाई जाती हैं। इसे ‘बारानाजा’ कहते हैं, और गहत की खेती इस तरीके का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये तरीका सदियों से चला आ रहा है।

गहत की खेती और पैदावार (Cultivation and Production of Horse gram)

गहत की खेती भारत में बहुत पुराने समय से होती आ रही है। ये केवल भारत में ही नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, वेस्ट इंडीज, म्यांमार, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में भी उगाई जाती है। भारत में गहत की खेती लगभग 4.58 लाख हेक्टेयर जमीन पर होती है, जिससे 2.89 लाख टन गहत पैदा होती है। हर हेक्टेयर में औसतन 659 किलो गहत पैदा होती है। गहत के दाने हल्के बादामी, काले और भूरे रंग के होते हैं।

उत्तराखंड में गहत की खेती करीब 11,000 हेक्टेयर जमीन पर होती है, जिससे 11,000 टन गहत पैदा होती है। यहां हर हेक्टेयर में औसतन 10 क्विंटल (1000 किलो) गहत पैदा होती है, जो दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत ज़्यादा है। ज़्यादातर ग़रीब किसान इसे अपने खाने के लिए उगाते हैं और बहुत कम बाज़ार में बेचते हैं।

गहत की खेती का महत्व (Importance of Horse Gram Cultivation)

पहाड़ी इलाकों में जैविक कृषि में गहत की खेती का विशेष महत्व है। ये हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी को ज़्यादा उपजाऊ बनाती है। जब गहत के पत्ते सड़ते हैं, तो मिट्टी में खाद की मात्रा बढ़ जाती है। गहत का सूखा भूसा दूध देने वाले जानवरों के लिए बहुत पौष्टिक होता है। गहत ज़्यादातर समुद्र की सतह से 1800 मीटर की ऊंचाई तक उगाई जाती है। उत्तराखंड में इसे 1200 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जाता है। ये फ़सल कम बारिश वाले इलाकों में, जहां पानी आसानी से निकल जाता है, वहां अच्छी तरह उगती है।

गहत की खेती के पोषण और औषधीय गुण (Nutritional and Medicinal Properties of Horse Gram Cultivation)

गहत के बीज में बहुत अच्छे पोषक तत्व और औषधीय गुण होते हैं। गहत में दूसरी दालों जितना ही प्रोटीन होता है, लेकिन इसमें रेशे, कैल्शियम, लोहा और मॉलिब्डिनम की मात्रा भारत की दूसरी दालों से ज़्यादा होती है। आमतौर पर, गहत को साबुत खाया जाता है, जो इसे अनाज के साथ खाने के लिए बहुत अच्छा बनाता है।

भारतीय आयुर्वेद में गहत का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है। ये  गुर्दे की पथरी को गलाने में मदद करती है, जो पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों में एक आम समस्या है। इसके अलावा, यह पेट के छालों, पेट में तेज़ाब बनने और शुगर की बीमारी को क़ाबू में रखने में भी मदद करती है। गहत के बीजों में ज़्यादा रेशे होते हैं और यह शरीर को गरम करती है, इसलिए ये मोटापा कम करने में भी मदद करती है।

गहत में क्या-क्या होता है (हर 100 ग्राम में): 

नमी 9.28 ग्राम
प्रोटीन 21.73 ग्राम
खनिज 3.24 ग्राम
वसा 0.62 ग्राम
कुल फाइबर 7.88 ग्राम
कार्बोहाइड्रेट 57.24 ग्राम
ऊर्जा 330 किलो कैलोरी

गहत की खेती को बेहतर बनाने के लिए प्रयास (Efforts to Improve Horse Gram Cultivation)

उत्तराखंड में ज़्यादातर ग़रीब किसान पुरानी क़िस्म की गहत उगाते हैं, जिससे कम फ़सल होती है। इसलिए, किसान इस फ़सल से पूरा फ़ायदा नहीं उठा पाते। गहत की खेती के पोषण, स्वास्थ्य और रोजगार देने की क्षमता को देखते हुए, भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा ने पहाड़ी इलाकों के लिए नई और बेहतर क़िस्में बनाई हैं।

संस्थान के वैज्ञानिकों ने अल्मोड़ा जिले में किसानों के खेतों में गहत की नई क़िस्में दिखाईं। उन्होंने देखा कि फ़सल कैसे बढ़ती है, कब फूल आते हैं, और ये बीमारियों और कीड़ों से कैसे लड़ती है। किसानों को नई क़िस्मों और गहत की खेती के नए तरीकों के बारे में बताया गया, जिससे उनकी फ़सल और कमाई दोनों बढ़ीं।

निष्कर्ष

गहत उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों के ग़रीब किसानों और आदिवासी लोगों की रोज़ी-रोटी और पोषण के लिए बहुत ज़रूरी दाल है। लेकिन इसका पूरा फ़ायदा नहीं उठाया जा रहा है, इसलिए ये एक उपेक्षित दाल बन गई है। पहाड़ी इलाकों में गहत की कम पैदावार और कम फ़ायदे के कारण किसान धीरे-धीरे दूसरी फ़ायदेमंद फ़सलें उगाने लगे हैं। गहत को इसके पोषण और स्वास्थ्य फ़ायदों की वज़ह से लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया जा सकता है।

साथ ही, पुरानी क़िस्मों की तुलना में नई और बेहतर क़िस्मों के अच्छे नतीजों से पहाड़ी किसानों को गहत की खेती फिर से शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसलिए, आम किसान भी गहत की खेती की असली ताक़त को समझ सकते हैं और इसे और बेहतर बनाने के तरीकों के बारे में सोच सकते हैं। इससे उनकी कमाई बढ़ सकती है।

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गहत की खेती (Horse Gram Cultivation) पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सवाल : गहत की दाल कौन सी होती है?  

जवाब: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में गहत एक महत्वपूर्ण दाल की फ़सल है। इसमें औषधीय गुण हैं और ये बहुत पौष्टिक होती है। इसलिए, गांव के लोगों के लिए यह सस्ता और आसानी से मिलने वाला प्रोटीन का अच्छा स्रोत है।

सवाल : गहत दाल के पौष्टिक गुण क्या-क्या हैं?  

जवाब: गहत में प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, लोहा, और मॉलिब्डिनम भरपूर होते हैं। यह दाल शाकाहारियों के लिए एक बेहतरीन प्रोटीन स्रोत है और उनकी ऊर्जा को भी बढ़ाती है।

सवाल : गहत की फ़सल के फ़ायदे क्या-क्या हैं? 

जवाब: गहत सस्ते और पौष्टिक आहार का बेहतरीन स्रोत है। ये मिट्टी को भी बेहतर बनाती है, जिससे अन्य फ़सलों की पैदावार भी बढ़ती है।

सवाल : गहत की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु कौन सी है?  

जवाब: ये दलहनी फ़सल कम बारिश वाले इलाकों में उगाई जाती है, जहां समुद्र की सतह से 1200 से 1800 मीटर ऊंचाई हो। ये सूखे और गर्मी को सहन कर सकती है।

सवाल : गहत का उपयोग कैसे किया जाता है?  

जवाब: इसका इस्तेमाल कई तरह के खाने में होता है, जैसे दालें, चटनी और चपाती। आयुर्वेद में इसे कई बीमारियों के इलाज में भी उपयोग किया जाता है।

सवाल : गहत की फ़सल को बेहतर बनाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?  

जवाब: भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान इसकी नई क़िस्में विकसित कर रहा है। इसके साथ ही किसानों को तकनीकी सहायता भी मिल रही है।

सवाल : क्या गहत की खेती पर्यावरण के लिए फ़ायदेमंद है?  

जवाब: हाँ, यह जैविक खेती को बढ़ावा देती है और मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारती है। गहत की खेती से जल संरक्षण में भी मदद मिलती है।

सवाल : गहत दाल के सेवन से स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?  

जवाब: इसके सेवन से शरीर को ज़रूरी पोषक तत्व मिलते हैं। यह मोटापा कम करने, गुर्दे की पथरी, और पेट की समस्याओं में भी मदद करती है। साथ ही, ये इम्यून सिस्टम को भी मज़बूत बनाती है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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