टिड्डी प्रबंधन: सबसे खतरनाक रेगिस्तानी टिड्डियों से कैसे करें फसलों का बचाव?

भारत में पाई जाने वाली रेगिस्तानी टिड्डी सबसे ज़्यादा खतरनाक होती है। इनका झुंड जब खेतों, हरे-भरे घास के मैदानों में आता है और ज़्यादा विनाशकारी रूप ले लेता है।

रेगिस्तानी टिड्डियों से फसलों का बचाव

टिड्डे छोटे सींग वाले झींगुर जैसे नजर आने वाले कीट हैं। इनको अंग्रेजी में Locust कहा जाता है। टिड्डे समूह में चलते हैं और लंबी दूरी तक झुंड बनाकर देशों और महाद्वीपों को तेजी से पार करते हैं। इनका झुंड जहां भी जाता है वहां के खेतों को नष्ट कर देती है, फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। दुनियाभर में टिड्डियों की 10 हजार से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत में सिर्फ चार प्रजातियां ही मिलती हैं। जिनमें रेगिस्तानी टिड्डा, प्रव्राजक टिड्डा, बंबई टिड्डा और पेड़ वाला टिड्डा शामिल हैं। लेकिन इन सब में रेगिस्तानी टिड्डे सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे तरीकों के बारे में बताएंगे जिसे आप रेगिस्तानी टिड्डी से फसलों का बचाव कर सकते हैं। 

रेगिस्तानी टिड्डे होते हैं सबसे ज़्यादा खतरनाक 

भारत में पाया जाने वाला रेगिस्तानी टिड्डा सबसे ज़्यादा खतरनाक होता है। इनका झुंड जब खेतों, हरे-भरे घास के मैदानों में आता हैं तो और ज़्यादा विनाशकारी रूप ले लेता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, रेगिस्तानी टिड्डों के कारण दुनिया की दस फीसदी आबादी का जीवन प्रभावित हुआ है। रेगिस्तानी टिड्डियों से फसलों का बचाव करना एक बड़ी परेशानी का सबब  बना हुआ है।

बता दें कि वयस्क टिड्डों के झुंड हवा में एक दिन में करीब 150 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं। इसके साथ ही वो रोज़ लगभग अपने वज़न के बराबर ताजा भोजन खा सकते हैं। एक छोटा टिड्डो का झुंड भी एक दिन में लगभग 35,000 लोगों के बराबर जितना खा सकता है। रेगिस्तानी टिड्डों का व्यवहार भारत के लिए चिंता का विषय बन चुका है।  

रेगिस्तानी टिड्डों से पृथ्वी का 20 फीसदी भूमि क्षेत्र प्रभावित 

रेगिस्तानी टिड्डे एक प्रवासी कीट है जो खेती और फसलों को क्षति का कारण बनते हैं। ये वेस्ट अफ्रीका के मॉरिटानिया से लेकर मिडिल ईस्ट तक और साउथ ईस्ट एशिया में भारत तक व्यापक रूप से फैले हैं। रेगिस्तानी टिड्डे के प्रकोप के कारण लगभग 60 देश व्यापक कृषि क्षति से पीड़ित हैं। ये पृथ्वी के 20 फीसदी भूमि क्षेत्र और दुनिया की लगभग 10 फीसदी आबादी को प्रभावित करता है। बताते चलें कि रेगिस्तानी टिड्डे आमतौर पर संख्या  के मामले में कम होते हैं और उन्हें ढूंढना मुश्किल होता है, लेकिन जब पर्यावरणीय परिस्थितियां खराब होती हैं तब इनका प्रकोप देखने को मिलता है। उस समय ये विशाल झुंड में हो जाती हैं। जो फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। 

अकेलेपन के चरण में अलग-अलग टिड्डे एक-दूसरे से बचते हैं, लेकिन जब वे घने समूहों में इकट्ठा होते हैं, तो वे एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं और झुंड के रूप में चलते हैं। वे एक समूह के हिस्से के रूप में व्यवहार करते हैं और भीड़भाड़ का अनुभव होने पर झुंड में रहने लगते हैं। 

कई देशों में भोजन के रूप में टिड्डों को खाते हैं 

टिड्डे कभी भी इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और ना ही उनको काटते हैं। लेकिन लोगों को टिड्डों से सावधानी ज़रूर बरतनी चाहिए। टिड्डे सिर्फ फसलों, लंबी घास और पौधों को अपना निशाना बनाते हैं। बता दें कि कई देशों जैसे वियतनाम, ब्राजील और कंबोडिया में इन्हें बड़े चाव के साथ खाया जाता है। 

टिड्डियों के विकास और आक्रमणों पर शोध 

सन 1921 में, रूसी कीटविज्ञानी सर उबरोव ने टिड्डियों पर शोध करना शुरू किया था। क्योंकि टिड्डियों के आक्रमणों से कृषि को नुकसान हो रहा था। अब तक, एफएओ कई सालों से रेगिस्तानी टिड्डियों से निपटने में अग्रणी और केंद्र में रहा है।

किस तरह से पनपते हैं राजस्थानी टिड्डे

राजस्थानी टिड्डियों के भारी संख्या में पनपने का मुख्य कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण मौसम में बदलाव है। संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, रेगिस्तानी टिड्डों की रफ्तार 16-19 किलोमीटर प्रति घंटे होती है। हवा की वजह से इनकी रफ्तार में बढ़ोतरी भी हो जाती है। इस तरह ये एक दिन में 200 किमी का सफर तय कर सकती हैं। एक मादा टिड्डी जीवनकाल में तीन बार तक अंडे दे सकती है। वहीं एक बार में 95 से 158 अंडे तक देती है। इनका जीवनकाल तीन से पांच महीनों का होता है। सबसे खतरनाक माने जाने वाले रेगिस्तानी टिड्डे रेत में अंडे देते हैं, लेकिन जब ये अंडों से निकलते हैं तब ये भोजन की तलाश में नमी वाले स्थानों की तरफ बढ़ते हैं। जिसकी वजह से नमी वाले इलाकों में रेगिस्तानी टिड्डियों का खतरा अधिक होता है। 

कब-कब हुआ भारत में टिड्डियों का हमला

साल 1993 में पाकिस्तान से आए टिड्डी दल ने राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर और श्रीगंगानगर जैसे ज़िलों में किसानों की फसलों को तबाह किया था।  बता दें कि नर टिड्डे का आकार 60-75 एमएम और मादा का 70-90 एमएम तक हो सकता है। वहीं 11 अप्रैल 2020 में भी रेगिस्तानी टिड्डियों के झुंड ने भारत के बड़े हिस्से पर अटैक किया था। वे पाकिस्तान के सिंध प्रांत से होते हुए राजस्थान के कई जिलों में घुस आए थे। अनुकूल वर्षा वाली हवाओं ने उन्हें भारत की ओर बढ़ने में मदद की। टिड्डियों के इस हमले ने राजस्थान के 20 जिलों में लगभग 90,000 हेक्टेयर भूमि को प्रभावित किया था। 

रेगिस्तानी टिड्डियों के बढ़ोत्तरी की वजह  

रेगिस्तानी टिड्डियों को लेकर एक नई रिपोर्ट जारी की गई है। जिसमें ये बताया गया है कि टिड्डो के तादाद और हमले के बढ़ने के पीछे की एक बड़ी वजह बेमौसम बारिश भी है। पिछले सालों के दौरान, भारत और पाकिस्तान समेत पूरे अरब प्रायद्वीप में बेमौसम बारिश होती रही है। इसकी वजह से नमी बढ़ने से ये तेजी से फैलते हैं। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, पहले प्रजजन काल में टिड्डियां 20 गुना, दूसरे में 400 और तीसरे में 1,600 गुना तक बढ़ जाती हैं।

रेगिस्तानी टिड्डियों पर निगरानी रखने वाली संस्थाएं 

खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization) नई टेक्नोलॉजी को यूज़ करते हुए एक ग्लोबल वॉर्निंग सिस्टम  संचालित करता है। लोकस्ट वॉच (Locust Watch) रेगिस्तानी टिड्डों से जुड़ी सभी जानकारियों के लिए FAO की वन-स्टॉप जगह है। ये पोर्टल रेगिस्तानी टिड्डों के प्रसार को रोकने और उनसे निपटने के लिए समय पर पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनियां देता है। साथ ही 1975 से शुरू होने वाले संसाधन और अभिलेख भी उपलब्ध कराता है।

टिड्डी चेतावनी संगठन (LWO)

भारत में रेगिस्तानी टिड्डों के नियंत्रण के लिए टिड्डी नियंत्रण और अनुसंधान (LC&R) स्कीम है। इसको 1939 में स्थापित टिड्डी चेतावनी संगठन (LWO) नामक संगठन के ज़रीये से काम में लिया जा रहा है।  

LWO अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र (SDA) में मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात राज्यों में जबकि आंशिक रूप से पंजाब और हरियाणा राज्यों में टिड्डों की स्थिति की निगरानी और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है। ये FAO के मासिक रेगिस्तानी टिड्डी बुलेटिनों के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदा टिड्डों की स्थिति से खुद को अवगत रखता है।

रेगिस्तानी टिड्डियों से कैसे करें फसलों का बचाव

  • प्रभावी रेगिस्तानी टिड्डे नियंत्रण के लिए हॉपर चरण में उनको समाप्त किया जा सकता है। क्योंकि इस चरण में टिड्डे सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं।  
  • रेगिस्तानी टिड्डियों से फसलों के बचाव के लिए टिड्डियों के प्रभावी नियंत्रण के लिए ऊंचे पेड़ों और दुर्गम स्थानों पर कीटनाशकों का छिड़काव करने के लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 
  • भारत ने प्रभावी टिड्डी नियंत्रण के लिए पाकिस्तान और ईरान के साथ एक  पहल का भी प्रस्ताव रखा है। भारतीय मौसम विभाग को टिड्डियों के झुंडों की आवाजाही पर उचित नज़र रखने के लिए हवा के पैटर्न का डेटा उपलब्ध कराना चाहिए।  
  • विशेषज्ञों के अनुसार, टिड्डी के हमलों से बचने का सबसे बेहतर तरीका नियंत्रण और निगरानी है। इसी प्रकार टिड्डियों के अंडों को पनपने से पहले नष्ट किया जा सकता है। 

रेगिस्तानी टिड्डियों से जुड़े सवाल और उनके जवाब

सवाल 1- टिड्डियां कौन सी कीट होती हैं ?

जवाब- टिड्डे छोटे सींग वाले झींगुर जैसे नजर आने वाले कीट हैं। इनको अंग्रेजी में Locust कहते हैं। टिड्डे समूह में चलते हैं और लंबी दूरी तक झुंड बनाकर देशों और महाद्वीपों को तेजी से पार करते हैं। दुनियाभर में टिड्डियों की 10 हजार से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत में सिर्फ चार प्रजातियां ही मिलती हैं। जिनमें रेगिस्तानी टिड्डा, प्रव्राजक टिड्डा, बंबई टिड्डा और पेड़ वाला टिड्डा शामिल हैं। इन सब में रेगिस्तानी टिड्डा सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है।

सवाल 2- रेगिस्तानी टिड्डा क्यों सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है ?

जवाब- रेगिस्तानी टिड्डे एक प्रवासी कीट है जो खेती और फसलों को क्षति का कारण बनते हैं। ये वेस्ट अफ्रीका के मॉरिटानिया से लेकर मिडिल ईस्ट तक और साउथ ईस्ट एशिया में भारत तक व्यापक रूप से फैले हैं। रेगिस्तानी टिड्डे के प्रकोप के कारण लगभग 60 देश व्यापक कृषि क्षति से पीड़ित हैं। ये पृथ्वी के 20 फीसदी भूमि क्षेत्र और दुनिया की लगभग 10 फीसदी आबादी को प्रभावित करता है।  

सवाल 3- रेगिस्तानी टिड्डियों के बढ़ोत्तरी की सबसे बड़ी वजह क्या है ? 

जवाब- रेगिस्तानी टिड्डियों को लेकर रिपोर्ट जारी की गई है। जिसमें ये बताया गया है कि टिड्डों के तादाद और हमले के बढ़ने के पीछे की एक बड़ी वजह बेमौसम बारिश भी है। पिछले सालों के दौरान, भारत और पाकिस्तान समेत पूरे अरब प्रायद्वीप में बेमौसम बारिश होती रही है। इसकी वजह से नमी बढ़ने से ये तेजी से फैलते हैं। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, पहले प्रजजन काल में टिड्डियां 20 गुना, दूसरे में 400 और तीसरे में 1,600 गुना तक बढ़ जाती हैं।

सवाल4 -रेगिस्तानी टिड्डियों पर निगरानी रखने वाली संस्थाएं कौन-कौन सी हैं ?

जवाब-खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization) नई टेक्नोलॉजी को यूज़ करते हुए रेगिस्तानी टिड्डियों पर निगरानी रखने के लिए एक ग्लोबल वॉर्निंग सिस्टम  संचालित करता है। भारत में रेगिस्तानी टिड्डों के नियंत्रण के लिए टिड्डी नियंत्रण और अनुसंधान (LC&R) स्कीम है। इसको 1939 में स्थापना के साथ टिड्डी चेतावनी संगठन (LWO) नामक संगठन के ज़रीये से काम में लिया जा रहा है।  

सवाल5 -रेगिस्तानी टिड्डियों से कैसे निपटने के तरीके क्या-क्या हैं ?

जवाब- रेगिस्तानी टिड्डे नियंत्रण के लिए हॉपर चरण में उनको खत्म कर सकते हैं। क्योंकि इस चरण में टिड्डे सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं।  टिड्डियों के प्रभावी नियंत्रण के लिए ऊंचे पेड़ों और दुर्गम स्थानों पर कीटनाशकों का छिड़काव करने के लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, टिड्डी के हमलों से बचने का सबसे बेहतर तरीका नियंत्रण और निगरानी है। इसी प्रकार टिड्डियों के अंडों को पनपने से पहले नष्ट किया जा सकता है। 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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