लाल चावल (Red Rice) रेड राइस हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक फसल है, जो एक तरह से खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी थी, लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र (Krishi Vigyan Kendra) और सरकार की कोशिशों का नतीज़ा है कि इस गुणकारी चावल की खेती दोबारा लहलहा उठी है।
दरअसल, आम चावल से इसकी उपज लगभग आधी होती है, इसलिए किसान लाल चावल की खेती से दूर भागने लगे और ज़्यादा पैदावार देनी वाली किस्मों की खेती करने लगे। मगर सेहत के प्रति जागरुकता और सरकारी कोशिशों की बदौलत वो फिर से लाल चावल उगाने लगे हैं। इससे अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं, क्योंकि ये चावल सामान्य चावल से महंगा बिकता है।
लाल चावल में पाए जाने वाले पोषक तत्व
लाल चावल (Red Rice) औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसमें एंथोसाइनिन नामक तत्व होता है, जिसकी वजह से इसका रंग लाल होता है। एंथोसाइनिन एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट है, जो शरीर को फ्री रेडिकल्स से बचाने में मदद करता है। इसके अलावा, लाल चावल में फाइबर, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन बी6, और विटामिन ई जैसे कई पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में होते हैं।
बेहतरीन खुशबू
अगर आप ये सोचते हैं कि सिर्फ़ बासमती चावल ही खुशबूदार होता है, तो आप गलत हैं। लाल चावल में भी बेहतरीन खुशबू होती है। दरअसल, ये भी बासमती चावल की किस्म की ही फसल है। इसकी खुशबू से पूरा खेत महक जाता है और धान की बालियों को छूने पर हाथ से भी कुछ देर के लिए बासमती चावल की महक आती रहती है। यही नहीं, जिस खेत में लाल चावल की खेती होती है, उसके आसपास के खेतों में भी इसकी सुगंध महसूस की जा सकती है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस चावल पर किए रिसर्च में पाया गया है कि इसमें चावल की दूसरी किस्मों के मुकाबले पोषक अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इनमें आयरन और जिंक भी भरपूर मात्रा में होता है।
इस चावल की एक ख़ासियत ये भी है कि इसमें सभी पोषक तत्व चावल के ऊपरी हिस्से पर ही होते हैं, इसलिए इसे पॉलिश नहीं किया जाता है। इस चावल की पारंपरिक किस्मों से दूसरी किस्मों के मुकाबले उत्पादन बहुत कम मिलता है। मान लीजिए अगर चावल की दूसरी किस्मों में प्रति हेक्टेयर तकरीबन 40 क्विंटल तक चावल का उत्पादन होता है, तो लाल चावल की परंपरागत किस्मों से सिर्फ़ 20-22 क्विंटल ही उत्पादन प्राप्त होता है।
हिमाचल में बड़े पैमाने पर खेती
हिमाचल प्रदेश में लाल चावल की खेती करीब 1100 हैक्टेयर में हो रही है। इसकी खेती मुख्य रूप से उन इलाकों में की जा रही है, जहां पानी पर्याप्त मात्रा में उपल्बध है। मुख्य रूप से शिमला, चंबा, कांगड़ा, मंडी और कुल्लू ज़िले के ऊपरी इलाकों में इसकी खेती की जा रही है।
हिमाचल सरकार की पहल
राज्य सरकार हिमाचली लाल चावल को अलग ब्रांड के रूप में तैयार करने की कोशिश में है ताकि देश-विदेश में इसे पहचान मिले। इससे मांग बढ़ेगी और किसानों को फसल के अच्छे दाम मिलेंगे। इसके साथ ही राज्य सरकार लाल चावल की खेती वाले इलाकों में बेहतर बुनियादी ढांचे का भी विकास कर रही है, ताकि बाज़ार तक पहुंच आसान हो सके। इसके अलावा, इस चावल की अधिक उपज देने वाली किस्मों पर भी शोध चल रहा है और किसानों को वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती के लिए प्रेरित करने के लिए प्रशिक्षण कैंप भी आयोजित किए जा रहे हैं।
उम्मीद है कि नई तकनीक, बुनियादी ढांचे का विकास और प्रशिक्षण इस पारंपरिक फसल को लोकप्रिय बनाकर किसानों की आमदनी में इज़ाफा करेगी। हिमाचल प्रदेश के अलावा, देश के पश्चिम बंगाल, केरल और कर्नाटक में भी लाल चावल की खेती की जा रही है।
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