Genetically modified crops (आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें): आजकल सभी ओर GM फसलों के बारे में काफी कुछ कहा और सुना जा रहा है। जहां एक ओर बीज कंपनियां इन फसलों की खूबियां बताते नहीं थक रहीं वहीं सामाजिक कार्यकर्ता और एनजीओ इनका विरोध कर रहे हैं।
आइए जानते हैं कि वास्तव में जीएम फसलें क्या होती हैं और इनके क्या फायदे तथा नुकसान हैं?
जानिए, जेनेटिक मोडिफाइड फसलें क्या होती हैं?
वर्तमान में जेनेटिक इंजीनियरिंग genetic engineering (यानि बीजों के जीन्स में बदलाव करके उनके मनचाही विशेषता पैदा कर देना) के जरिए प्राकृतिक बीजों को मोडिफाई कर नई फसल की प्रजाति तैयार की जाती है।
कई बार इन्हें हाईब्रिड फसल (hybrid crop) भी कहा जाता है। यह बहुत कुछ प्राकृतिक फसलों की ही तरह दिखती है परन्तु उनसे बहुत अलग होती है। इन्हें वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करते हुए तैयार किया जाता है इसलिए इनमें अपनी जरूरत के अनुसार बदलाव किए जा सकते हैं और उनसे मनचाही पैदावार ली जा सकती है।
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जीएम फसलों के लाभ
जैसाकि हम बता चुके हैं जेनेटिकली मोडिफाइड (Genetically modified) फसलों के बीजों में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग कर मनचाहा बदलाव किया जा सकता है। अत: ये बीज तथा फसलें सूखा-रोधी होती हैं। इनमें अधिक कीटनाशक तथा फर्टिलाइजर डालने की भी आवश्यकता नहीं होती। इसके साथ ही पैदावार भी आम फसलों के मुकाबले कई गुणा होती हैं जिससे उत्पादन बढ़ता है।
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ये हैं जीएम फसलों के नुकसान
इन फसलों का सबसे बड़ा नकारात्मक पक्ष है कि इनके बीज फसलों से हासिल नहीं किए जा सकते। देशी किस्मों की तरह इन्हें खेत में उगी फसल से नहीं बनाया जा सकता वरन उन्हें कंपनी से ही खरीदना पड़ता है। कंपनियां इन बीजों पर अपना एकाधिकार रखती हैं तथा महंगे दामों पर बेचती हैं।
इन बीजों को दुबारा प्रयोग नहीं किया जा सकता। इनका दूसरा नकारात्मक पक्ष यह है कि इनकी वजह से स्थानीय किस्मों के लिए खतरा पैदा हो जाता है तथा जैव-विविधता खत्म होने के चांसेज बढ़ जाते हैं।