टिश्यू कल्चर तकनीक से बढ़ी पैदावार और उपजाऊ हुई ज़मीन, जानिए मध्य प्रदेश के किसान उपेन्द्र ने कैसे पाई सफलता
मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले के रहने वाले उपेन्द्र गद्रे टिश्यू कल्चर तकनीक से ही केले की खेती करते हैं। इस तकनीक के इस्तेमाल के कई फ़ायदे हैं।
अपने खेतों में स्वाद से भरपूर फल, फूल और सब्जियों की खेती करने के लिए विशेषज्ञ सुझाव और तकनीकें।
मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले के रहने वाले उपेन्द्र गद्रे टिश्यू कल्चर तकनीक से ही केले की खेती करते हैं। इस तकनीक के इस्तेमाल के कई फ़ायदे हैं।
गोवा में सत्तारी के नागरगांव की रहने वाली कल्पना का परिवार कटहल की खेती करता है। उनकी कटहल की आधे से ज़्यादा उपज बर्बाद ही जाती थी। इसके समाधान के लिए उन्होंने ज़िले के कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क किया।
कश्मीर में होने वाले बादाम में सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी पुलवामा के किसानों की है। भारत में होने वाले कुल 10 हज़ार टन बादाम में से 60 प्रतिशत से ज़्यादा तो यही ज़िला पैदा करता है। बादाम की मांग ऐसी बढ़ी है कि भारत को दूसरे देशों से इसे आयात करना पड़ता है। अब कश्मीर में हाई डेंसिटी बादाम की खेती पर ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा किसान बादाम की खेती से जुड़ें।
राजस्थान के रहने वाले प्रगतिशील किसान अब्दुल रहमान ने किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में खजूर की खेती को लेकर कई अहम साझा कीं। आइए आपको बताते हैं।
एक कनाल क्षेत्र में हाई डेंसिटी तकनीक से 170 पेड़ लगते हैं, जबकि परम्परागत सेब के तकरीबन 20 पेड़ों को इतनी जगह चाहिए होती है। यही नहीं, हाई डेंसिटी का प्रत्येक पेड़ परम्परागत पेड़ के मुकाबले फल भी कहीं ज़्यादा देता है। उन्होंने सेब की खेती करते हुए उसके विशेष प्रबंधन पर भी ध्यान दिया है।
आनन्द मिश्रा बताते हैं कि नींबू की खेती में ज़्यादा इनवेस्टमेंट की ज़रूरत नहीं पड़ती। आप छोटे निवेश के साथ इसकी शुरुआत कर सकते हैं।
किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत में कर्नाटक के रहने वाले एच. मुरलीधर ने अंगूर की मार्केटिंग को लेकर अहम बातें साझा कीं। प्रतिकूल मौसम की वजह से उन्हें बाज़ार में कीमतें कम मिलती थीं। जानिए अंगूर की खेती से जुड़ी अहम बातें।
लाल भिंडी का पौधा 40 से 45 दिनों में फल देना शुरू कर देता है। फसल चार से पाँच महीने में तैयार हो जाती है। लाल भिंडी की खेती एक एकड़ के रकबे से 50 से 60 क्विंटल की पैदावार किसान को मिल सकती है।
हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड जैसे मुख्य सेब उत्पादकों राज्यों के लिए Apple Pomace (सेब का गूदा) से केक और ब्रेड बनाने की नयी तकनीक एक सौग़ात साबित हो सकती है, क्योंकि वहाँ हर साल हज़ारों टन सेब से जूस निकालने के बाद एपल पोमेस को या तो फैक्ट्रियों में ही या उसके आसपास डम्प करना पड़ता है। इससे जल और वायु प्रदूषण की समस्या पैदा होती है।
प्रगतिशील किसान मोइनुद्दीन ने लखनऊ से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद खेती को अपने व्यवसाय के रुप में चुना। कुछ साल परंपरागत खेती करने के बाद विदेशी फूलों की खेती उन्होंने शुरू कर दी।
मंजीत सिंह सलूजा खेती-किसानी में कई अभिनव प्रयोग करते आए हैं। उन्होंने एक ठेले से सब्जी बेचना शुरू किया और फिर Vegetable Outlet की शुरुआत की। किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में उन्होंने डायरेक्ट बिक्री, वेजिटेबल आउटलेट और खेती से जुड़े कई पहलुओं पर हमसे बात की।
विशाल शांकता बताते हैं कि कई युरोपियन और एशियन देशों में सेब की औसत उत्पादकता 50 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि भारत में यह केवल 7 से 8 टन है। हाई डेंसिटी तकनीक के इस्तेमाल से सेब की खेती में उत्पादन बढ़ता है और लागत भी कम लगती है। जानिए इस तकनीक के बारे में विस्तार से।
केले की टिश्यू कल्चर तकनीक में विशेषता है कि एक पौधे के टिश्यू को बायो लैब में मल्टीप्लाई करके एक बार में कम समय में पाँच सौ से हज़ार पौधे तैयार किए जाते हैं। इसे करने के लिए कई तरह की तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक के बारे में और जानें के लिए किसान ऑफ़ इंडिया ने बात की बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ़ हॉर्टिकल्चर के प्रोफेसर डॉ. अजीत सिंह से।
घर के आसपास की खाली पड़ी जगह में या छत में सही तरीके से फल-सब्जियों की खेती की जाए तो औसतन पांच लोगों के एक परिवार के लिए पूरे हफ़्ते की सब्जियां तैयार हो सकती हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में केवीके के वैज्ञानिक डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह ने पोषण वाटिका तैयार करने और इसको लेकर कई महत्वपूर्ण बातें बताईं।
इस नई तकनीक से भूसे पर लगने वाली लागत में कमी आई और आमदनी में भी इज़ाफ़ा हुआ। ऐसे ही एक सफ़ल प्रयोग का उदाहरण हैं सतीश कुमार, जिन्होंने केले के अवशेष का इस्तेमाल करके मशरूम का उत्पादन बढ़ाया।
केले की खेती किसान के लिए कई मायनों में फ़ायदेमंद है बशर्ते उत्पादक किसान केले की खेती करते समय कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखें।
फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना के अंतर्गत आम आधारित मुर्गीपालन तकनीक की शुरुआत की गई। आज आम की खेती के साथ मुर्गीपालन करने की इस तकनीक को अपनाकर मलिहाबाद के कई किसान साल के 12 महीने अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं।
तोषण कुमार सिन्हा न सिर्फ़ मशरूम की खेती की फ़्री में ट्रेनिंग देते हैं, बल्कि कम दरों में किसानों को बीज भी मुहैया कराते हैं।
महिला किसान तारावती जिस क्षेत्र से आती हैं, वहां अक्सर आंधी तूफ़ान के कारण 20 से 25 फ़ीसदी आम की फसल को नुकसान पहुंच जाता है। इससे आम की खेती कर रहे इलाके के किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
नैनीताल के पर्यटक स्थल टिफ़िन टॉप में ‘लाल मशरूम’ बोलेटस रूब्रोफ्लैमियस (Boletus carminiporus) पाया गया है। मशहूर फ़ोटोग्राफ़र अनूप साह ने इस मशरूम को अपने कैमेरे में कैद किया। जानिए इसके बारे में।