Agribusiness (एग्री-बिज़नेस/कृषिव्यवसाय): गुजरात के पाटन ज़िले की रहने वाली ताराबेन ठाकोर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उनके पास कोई काम भी नहीं था। हालांकि, उन्हें पारंपरिक तरीके से सब्जियों और फलों के वैल्यू एडीशन और प्रोसेसिंग की जानकारी तो थी, लेकिन इसे व्यवसाय के तौर पर कभी अपनाया नहीं था। धीरे-धीरे अपनी इसी प्रतिभा को उन्होंने एग्री-बिजनेस के तौर पर अपनाना शुरू किया।
उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र (Krishi Vigyan Kendra, KVK) के कार्यों के बारे में पता चला। उन्हें मालूम पड़ा कि KVK में महिलाएं विभिन्न व्यवसायों की ट्रेनिंग ले सकती हैं। फिर उन्होंने अपनी प्रतिभा को और निखारने के लिए समोदा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन पर ट्रेनिंग हासिल की। इसके बाद वो अपने पति के घर कोटड़ा गांव, कच्छ आ गईं।
कई स्वयं सहायता समूहों के गठन में की मदद
ताराबेन ठाकोर के काम से प्रभावित होकर मुंद्रा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। कृषि विज्ञान केंद्र ने उन्हें बतौर मास्टर ट्रेनर तैयार किया। ताराबेन ठाकोर ने कई स्वयं सहायता समूहों का गठन किया और कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से ग्रामीण महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने लगीं।
उनके द्वारा प्रशिक्षित किये गए कई स्वयं सहायता समूहों ने आज अपनी प्रोसेसिंग यूनिट खोल ली है और अच्छा कारोबार कर रहे हैं। स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं महीने का करीबन 3300 रुपये कमा लेती हैं।
ग्रामीण महिलाओं के विकास के लिए किया काम
इन सब के बावजूद घर की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में दिक्कत होती थी। वो नौकरी की तलाश में थी। इसमें केवीके, मुंद्रा ने उनकी मदद की। नलिया स्थित एनजीओ- श्री विवेकानंद रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में 8 हज़ार प्रति महीने की सैलरी में उनकी नौकरी लग गई। कई साल उन्होंने इस एनजीओ के साथ जुड़कर ग्रामीण महिलाओं के विकास के लिए काम किया।
नौकरी छोड़ी खुद का बिज़नेस किया शुरू
ताराबेन ठाकोर ने कुछ सालों बाद अपना बिज़नेस करने की सोची। नौकरी छोड़ उन्होंने छोटे स्तर पर अपने ही उत्पादों की मार्केटिंग शुरू कर दी। कई फलों, वॉशिंग पाउडर, अगरबती, आदि उत्पाद बनाने शुरू कर दिए। इस तरह से अब वो महीने का करीब 12 हज़ार रुपये कमा लेती हैं।
इसके अलावा, वो बतौर मास्टर ट्रेनर महिला किसानों को ट्रेनिंग भी दे रही हैं। केवीके- मुंद्रा, जिला जलग्रहण विकास इकाई (DWDU), कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (ATMA), देना बैंक और ज़िले के अन्य गैर-सरकारी संगठनों की तरफ से वो किसानों और युवकों को ट्रेनिंग देती हैं।
ये भी पढ़ें: जैविक गुड़ बनाने की प्रक्रिया में लगती है कड़ी मेहनत, किसान जयराम गायकवाड़ का गुड़ क्यों है ख़ास?