भूमि अधिग्रहण को लेकर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में विकास कार्यों में जुटे सार्वजनिक प्राधिकरणों को बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि मुआवजा लेने के बाद मालिक भूमि अधिग्रहण को चुनौती नहीं दे सकते।
एक अक्टूबर को जस्टिस दया चौधरी और जस्टिस मीनाक्षी आई मेहता की खंडपीठ ने गुरुग्राम के सेक्टर 9 में विकास कार्य के लिए एचएसवीपी द्वारा भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की धारा 101-ए की व्याख्या के बाद यह फैसला सुनाया।
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दरअसल गुरुग्राम में भूमि अधिग्रहण पर मुकदमों के कारण मुख्य रूप से कई विकास परियोजनाओं में कई वर्षों की देरी हो चुकी है। कई भूमि मालिकों ने बढ़ा मुआवजा लेने के बाद भी हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) द्वारा किए अधिग्रहण को चुनौती देने के लिए कई याचिकाएं दायर की थीं।
Land Acquisition Bill 1984 के तहत तय है अधिकार
हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 101-ए राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अधिग्रहीत की गई भूमि को डी-नोटिफाई करने का अधिकार देती है, अगर उसे अधिगृहीत भूमि जन कार्य के लिए अनुपयोगी लगे।
हालांकि इससे भूमि मालिक को यह अधिकार नहीं मिलता है कि वह भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को डिनोटिफाई करने के लिए सरकार को मांगपत्र सौंप सके।
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इंदौर विकास प्राधिकरण बनाम मनोहर लाल मामले में सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यदि सरकार ने भूमि का अधिग्रहण कर लिया है तो वह उस भूमि की मालिक हो जाती है और ऐसे में भूमि का पूर्व मालिक या कोई और इसमें प्रवेश करे तो उसे घुसपैठ माना जाएगा। हाईकोर्ट ने कहा कि भूमि मालिकों को ऐसी छूट देने से न केवल बार-बार इस तरह की याचिकाएं दाखिल होंगी और कोर्ट का समय बर्बाद होगा, बल्कि इन याचिकाओं का कोई अंत नहीं होगा।
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पहले भी Land Acquisition को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर चुका है कोर्ट
सेक्टर 9 का यह मामला वर्ष 2002 का है, जब HSVP (पूर्व में, हुडा) ने आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों के सार्वजनिक प्रयोजन के लिए लगभग 12 एकड़ भूमि अधिग्रहीत की थी। इसके लिए 2004 में मुआवजे की घोषणा की गर्ई थी। जमीन का कब्जा पहले से ही विकास प्राधिकरण के पास था और भूमि मालिक मुआवजा भी ले चुके थे।
ऐसे में पंजाब एवं चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने 2008 में अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद 2012 और 2013 में दाखिल याचिकाओं को भी हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।
2013 में जब नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू हुआ तो 2014 में अधिनियम की धारा 24 (2) के तहत अधिग्रहण को चुनौती देते हुए एक नई याचिका दाखिल की गई, जिसमें कहा गया था कि पांच साल तक कोई मुआवजा नहीं मिलने और कोई विकास कार्य नहीं होने की सूरत में भूमि अधिग्रहण निरस्त हो जाता है। इस याचिका पर 2015 में निपटारा किया गया। वर्तमान याचिका 2016 में दायर की गई थी।