बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन: चावल का माढ़ यानी स्टार्च निकालने के लिए लोग चावल को तीन से चार बार धोकर उसके पानी को अलग कर देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि ये सफेद सा दिखने वाला पानी पर्यावरण को बचाने में कितना काम आ सकता है? जी हां, इस स्टार्च से बायोडिग्रेडेबल यानि कि प्राकृतिक रूप से खुद नष्ट हो जाने वाली पॉलीथिन तैयार की जा सकती है।
इस लेख में आगे आप जानेंगे कि कैसे ये ईको फ़्रेंडली प्लास्टिक बैग पर्यावरण का संरक्षण करने में सहायक होगा और कब तक ये बाज़ार में इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होंगे।
क्या है इस बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन की खासियत
जैसा कि अमूमन होता है लोग प्लास्टिक बैग इस्तेमाल करने के बाद ऐसे ही कूड़े में फेंक देते हैं, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में ये बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन खुद-ब-खुद नष्ट होकर खाद में तब्दील हो जाएगी। अगर इसे मिट्टी में गाड़ दिया जाए तो इसका इस्तेमाल बगीचों या फसलों में भी किया जा सकेगा।
यही नहीं, इस बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन में फल-सब्जी, घर का अन्य सामान लाने के साथ ही गरम खाना भी पैक किया जा सकेगा। ये पूरी तरह से पर्यावरण अनुकूल होंगी और लोगों की सेहत पर भी इसका असर नहीं पड़ेगा।
सफल हुआ प्रयोग, अब बाज़ार में उतराने की होगी तैयारी
रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने चावल के स्टार्च से बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन बनाने का सफल प्रयोग किया है। विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग में रिसर्च के दौरान इसका शुरुआती प्रयोग सफल रहा है। अब इसे बाज़ार में उतारने की दिशा में विश्वविद्यालय काम कर रहा है। अब इस सफल प्रयोग को और एडवांस्ड और इस्तेमाल करने लायक बनाने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) साथ मिलकर काम करेंगे। दोनों के बीच इसको लेकर तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट हुआ है।
कब तक बाज़ार में उपलब्ध होंगे ये ईको फ़्रेंडली प्लास्टिक बैग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के पास फ़िलहाल कंपोस्टेबल बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन बनाने की अत्याधुनिक मशीनें नहीं हैं। इसलिए ही पहले चरण के सफल प्रयोग के बाद अब BARC के सहयोग से बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन को उन्नत बनाने के साथ ही उत्पादन का काम भी चलेगा। बार्क के पास जो अत्याधुनिक मशीनें हैं वो कृषि विश्वविद्यालय में शुरुआती प्रयोग के बाद तैयार की गई पालीमर फिल्म की मोटाई को और कम करके इसे लोगों के इस्तेमाल लायक बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन बनाने में मदद करेंगी।
इस कंपोस्टेबल बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन के छह महीने से एक साल में तैयार होने होने की उम्मीद है, जिसके बाद इसके कामर्शियल उत्पादन की तैयारी की जाएगी और फिर ये लोगों के रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए बाज़ार में उतरेगा।
प्लास्टिक कचरा एक बड़ी समस्या
प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए एक गंभीर संकट रहा है। कोई सामान लेने जाओ तो कई दुकानदार ऐसे हैं जो प्लास्टिक की ही थैलियों में सामान देते हैं। प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल की एक बड़ी वजह ये भी है कि अन्य कैरी बैग जैसे कपड़े के थैलों और काग़ज़ के लिफ़ाफ़ों की तुलना में सस्ता पड़ता है। फिर लोग इन्हें इस्तेमाल कर कूड़े में फेंक देते हैं। आसानी से उपलब्धता के चक्कर में धीरे-धीरे किस तरह पर्यावरण दूषित हो रहा है, उसका अंदाज़ा समाज को नहीं है।
प्लास्टिक के थैलों को कई तरह के हानिकारक अकार्बनिक रसायनों से तैयार किया जाता है। ये न सिर्फ़ प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि जनमानस को भी इससे गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है। दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में पॉलीथिन और प्लास्टिक से बनी सामग्रियों पर रोक है। उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान भी है, लेकिन फिर भी धड़ल्ले से कई दुकानदार इन रासायनिक युक्त पॉलीथिन को बेचते हैं। ऐसे में सख्ती को को पर्बल होकर लागू करने की ज़रूरत है।