दतिया के गांवों में किसान ऑफ इंडिया के तीसरे दिन की शुरुआत हुई हिडोरा गांव से, जहां हम सुबह-सुबह जा पहुंचे थे। गांव में एक ट्रांसफ़ॉर्मर में फॉल्ट आया हुआ था, जिसे ठीक किया जा रहा था और वहीं कुछ किसान धूप सेंकते हुए बातें कर रहे थे। हमने भी वहीं मोर्चा जमाया और फिर बातों का सिलसिला चल निकला। हमने गांव के प्रधान जी या सरपंच जी का पता पूछा तो लोगों ने जवाब में ही सवाल पूछा कि कौन वाले? मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव लंबित है और पुराने वाले सरपंच का कार्यकाल ख़त्म हो चुका है। गांवों के बारे में एक बात बहुत आम है कि लोग राजनीति पर खुलकर बोलते ज़रूर कम हैं, लेकिन राजनीति को समझते ज़्यादा हैं, शायद शहरी आबादी से भी ज़्यादा।
हमने चर्चा का रुख राजनीतिक होने से बचाने के लिए खेती-किसानी पर केंद्रित सवाल पूछे और बातचीत करते हुए एक ऐसे खेत पर पहुंचे, जिसके एक हिस्से में गन्ने की फसल काटने की तैयारी हो रही थी तो दूसरी ओर सरसों के पौधों के साथ उग आए घासों को निकाला जा रहा था।
गांव में अभी भी कोई बाहर से आता है तो ख़बर पूरे गांव को हो जाती है, ऐसे में हमारे आसपास भी बड़ी संख्या में किसान जुट आए। हम बात कर ही रहे थे तभी ज़ोर से आवाज़ लगाई गई, चाय तैयार है और फिर हमलोग किसान परिवार के घर के दरवाजे पर जा जमे। एक गाय और दो-तीन भैंस वहीं बंधी थी। यहीं हमारी मुलाकात एक बुजुर्ग से हुई, जिन्होंने अर्पित को बताया कि वो मवेशियों के लक्षण देखकर उसकी बीमारी का अंदाज़ा लगा लेते हैं और फिर देसी तरीके से इलाज़ भी कर देते हैं। उन्होंने बताया कि गांव और आसपास के लोग पहले उनसे अपने पशुओं को दिखाते हैं और शायद ही कभी पशु चिकित्सालय ले जाने या वेटेनरी डॉक्टर को बुलाने की नौबत आती है।
हिडोरा से लगा ही है पिटसूरा गांव, जहां के एक किसान बृजेश पटेल ने पिपरमिंट की खेती पहली बार की है। किसान स्वभाव से प्रयोगधर्मी होते हैं और किसान ऑफ इंडिया पर आप भी अक्सर देखते और पढ़ते हैं कि किस तरह प्रगतिशील किसानों ने कहीं बंजर में बाग लगाकर बागवानी की मिसाल कायम की है तो कहीं सफेद शकरकंद या लाल भिंडी उगा दी है।
ये भी पढ़ें – बृजेश पटेल ने पुदीने की खेती (peppermint farming) से कैसे कमाया मुनाफ़ा? जानिए सब कुछ
पिटसूरा के किसान बृजेश पटेल से बातचीत में ये सामने आया कि एक किसान अपनी खेती की प्लानिंग बिल्कुल उसी तरह करता है, जैसे हम किसी योजना का मसौदा बनाने से लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाते हैं। इस किसान का ये वीडियो देखें तो आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि किस तरह पहले इन्होंने बुवाई से लेकर मार्केटिंग तक की पूरी जानकारी जुटाई और तब जाकर ये फसल लगाई है।
हमारा अगला पड़ाव था ओरिना। नदी किनारे का ये गांव हाल ही में आई बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। यहां के किसानों से बातचीत में इसका असर गांव के छोटे और बड़े दोनों किसानों पर नज़र आता है। इंदरपाल सिंह चौहान ने बताया कि उनकी ज़मीन निचले हिस्से में है, जहां की पूरी मिट्टी नदी बहाकर ले गई। उन्होंने गन्ना की खेती की थी, गन्ना तो बर्बाद हुआ ही, लेकिन चिंता खेत बर्बाद होने की ज़्यादा है क्योंकि 5 लाख रुपये की खेत की ज़मीन ही खेती लायक नहीं बची। इंदरपाल सिंह अब अपना ट्रैक्टर बेचने की तैयारी में हैं।
ओरिना के कुछ लोगों ने बताया कि बाढ़ में गांव के गरीबों की क़रीब पचास बकरियां भी बह गईं। ये बकरियां उन परिवारों की आजीविका का साधन थीं, लेकिन उन्हें पालने वालों का कहना है कि होनी के आगे किसकी चलती है?
आपदा का सामना किसान से ज़्यादा कोई नहीं करता
प्राकृतिक आपदा का सामना अगर सबसे ज़्यादा किसी को करना पड़ता है तो वो है किसान। आंधी, बारिश, ओला, बाढ़, सूखा सबका फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इन सबका सामना करते हुए भी किसान सदियों से खेती करते आ रहे हैं। ओरिना के किसानों से जब हमने पूछा कि बाढ़ से हुए नुकसान से कैसे उबरेंगे तो उनका जवाब था कि हाथ पर हाथ धरे तो बैठे नहीं रहेंगे, प्रकृति ने अपना काम कर दिया, ये ऊंच नीच तो चलता ही रहता है, सरकार को जो थोड़ी-बहुत मदद देनी होगी तो कभी न कभी मिल ही जाएगी, लेकिन हम तो किसान हैं, अपना काम करते रहेंगे और जो हमारी किस्मत में मिलना लिखा होगा, वो हमें मिलेगा ही। ये वो हौसला है, जो जय जवान, जय किसान को सार्थक करता है।
दतिया ग्राम यात्रा का चौथा दिन – रावड़ी, बेहरुका, डोंगरपुर, गढ़ी, बरेरा
चौथे दिन की शुरुआत बिल्कुल मन के मुताबिक हुई, पहला पड़ाव था रावड़ी गांव। यहां गांव के भीतर एक छोटे से चौराहे पर दस-बारह किसान जुटे थे और कृषि कानून, सरकार की कृषि योजनाओं और किसानों की मौजूदा स्थिति जैसे मुद्दों पर बहस छिड़ी हुई थी। हमारा परिचय जानते ही उनमें से एक किसान ने सीधा सवाल दागा कि मीडिया को तो खेती-किसानी से कोई सरोकार है ही नहीं तो फिर आपसे क्या बात करनी है? हमने उनसे कहा कि किसान ऑफ इंडिया पर तो खेती-किसानी की ही बात होती है, जिसका सीधा संबंध उन्नत खेती और किसानों के फ़ायदे की ही बात होती है, इसके बाद उन्होंने हमसे बात शुरू की। किसानों का स्वभाव ऐसा ही होता है, आप उनके भरोसे पर खरा उतरेंगे तभी वो आप पर भरोसा करते हैं।
यहां के किसानों की आम शिकायत है कि सरकारी योजनाओं की जानकारी उनतक नहीं पहुंचती और जिन्हें सरकार ने ये जिम्मेदारी सौंप रखी है, वो काम ही नहीं करते। ये शिकायत सिर्फ रावड़ी में ही नहीं, कई गांवों से हमारे सामने आई। यही वो स्थिति है, जिसमें सरकार और किसान के बीच की कड़ी कमज़ोर नज़र आती है और ज़्यादातर योजनाएं अपने मकसद में नाकाम हो जाती हैं।
आपके साथ हमारा दतिया का सफ़र जारी रहेगा जहाँ मैं आपको ज़िले के अन्य गांव के किसानों से मुलाकात कराऊँगा। तब तक के लिए पढ़ते रहिए www.kisanofindia.com
अगर हमारे किसान साथी खेती-किसानी से जुड़ी कोई भी खबर या अपने अनुभव हमारे साथ शेयर करना चाहते हैं तो इस नंबर 9599273766 या [email protected] ईमेल आईडी पर हमें रिकॉर्ड करके या लिखकर भेज सकते हैं। हम आपकी आवाज़ बन आपकी बात किसान ऑफ़ इंडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएंगे क्योंकि हमारा मानना है कि देश का किसान उन्नत तो देश उन्नत।