पश्चिमी उत्तर प्रदेश को शुगर बाउल यानी मिठास का कटोरा भी कह सकते हैं। इसी इलाके की बदौलत उत्तर प्रदेश देश के सबसे बड़ा गन्ना, गुड़, चीनी, खांडसारी उत्पादक बनता है। यहाँ की मिट्टी और जलवायु गन्ने की खेती के अनुकूल है। इसीलिए यहाँ पारम्परिक रूप से गन्ना उपजाया जाता है।
गन्ने का दाम, चीनी मिलों पर किसानों का बकाया और इसके भुगतान में होने वाली देर-सबेर इस इलाके में राजनीति का बड़ा मुद्दा भी बनते रहे हैं। ऐसे में गन्ना किसानों के ‘मन की बात’, उनकी मुश्किलों और इनसे उबरने के लिए क्या हो रहा है या होना क्या चाहिए, इसका जायज़ा लेने के लिए किसान ऑफ़ इंडिया की टीम ग़ाज़ियाबाद ज़िले के पतला गाँव में थी। यहाँ युवा किसान जीतेन्द्र कश्यप अपने 3 बीघा खेत में गन्ना उपजाते हैं। लेकिन इस छोटी जोत से गृहस्थी नहीं चलती, इसीलिए जीतेन्द्र ने गाँव में ही गुड़ बनाने का कारोबार भी करते हैं।
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गुड़ की आर्थिकी
जीतेन्द्र बताते हैं कि गन्ना किसानों को चीनी मिलों में अपना गन्ना बेचने पर 320 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत मिलती है, लेकिन रकम हाथ आने से साल भर के आसपास का वक़्त लग जाता है। जबकि गुड़ निर्माता हाथ के हाथ पैसे देकर 250 रुपये से 270 रुपये प्रति क्विंटल गन्ना खरीदते हैं। यानी उत्पादक किसानों को प्रति क्लिंटल 50 से 70 रुपये इसलिए कम मिलते हैं क्योंकि उनके जैसे छोटी जोत वाले किसानों की उपज कम होती है। उन्हें फसल को चीनी मिलों तक जाने में ज़्यादा भाड़ा खर्च करना पड़ता है।