मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु को गेहूँ की खेती परम्परागत तौर पर मुफ़ीद माना जाता है। यहाँ औसतन 15-16 क्विंटल प्रति एकड़ गेहूँ पैदा होता है। गेहूँ के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के हिसाब से देखें तो इतनी उपज से किसान को 30-32 हज़ार रुपये ही मिलते हैं। इसमें लागत शामिल नहीं है। वैसे जिस खेत में गेहूँ पैदा होता है, उसी में ज़्यादातर किसान धान की फसल भी पैदा करते हैं। गेहूँ और धान, दोनों फसलों में लगने वाली लागत और दाम का हिसाब लगाया जाए तो किसान का सालाना मुनाफ़ा औसतन 20-25 हज़ार रुपये प्रति एकड़ ही बैठता है।
इसीलिए भूमिहीन किसानों के लिए ठेके या बटाई या लीज़ पर खेत लेकर पूरे साल की मेहनत करके परम्परागत खेती करना बेहद घाटे का सौदा साबित होता है। इसीलिए छोटी जोत वाले किसान भी खेती को भूखों मरने वाला पेश समझते हैं। तभी तो हालात से सबक लेते हुए मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले के बीरखेड़ी गाँव के किसान बलिराम कुशवाहा ने खेती के आधुनिक तरीकों को अपनाया और शानदार नतीज़े हासिल किये।
बलिराम कुशवाहा ढाई एकड़ के खेत को किराये पर लेकर खेती करते हैं। इसके डेढ़ एकड़ में वो गेहूँ और धान पैदा करते हैं तो बाक़ी एक एकड़ में फूलों की खेती। गेहूँ-धान से परिवार के अनाज मिल जाता है तो फूलों की खेती से नियमित कमाई होती है, जिससे अनाज के अलावा बाक़ी ज़रूरतें पूरी होती हैं।
ये भी पढ़ें: गुड़ में कम मुनाफ़ा देख डरें नहीं, नये रास्ते ढूँढ़े
फूलों की खेती का अर्थशास्त्र
बलिराम कुशवाहा बताते हैं कि फूलों की खेती से चार महीने में वो करीब एक लाख रुपये कमाते हैं। बारिश में फूलों का उत्पादन गिर जाता है, लेकिन बारिश के बाद नयी फसल उग जाती है। इस तरह फूलों की खेती से बलिराम सालाना 2 लाख रुपये कमा लेते हैं। इसमें से 20 हज़ार रुपये ज़मीन का किराया और बीज या पौधों के दाम के अलावा खाद और सिंचाई जैसी 30-40 हज़ार रुपये की लागत को घटाने के बाद प्रति एकड़ 1 लाख 40 हज़ार रुपये तक का मुनाफ़ा हो जाता है। अतिरिक्त कमाई के लिए बलिराम और उनका परिवार फूलों का कारोबार भी कर लेता है। इसके लिए ये गौहरगंज और अब्दुल्ला गंज की मार्केट में अपनी फूलों की दुकान लगाकर भी फूल बेचते हैं और तरह-तरह के समारोहों के लिए ग्राहकों से ऑर्डर ले लेते हैं।
ये भी देखें : गुलाब की खेती: कलम का कमाल I एक बार लगाएं, सालभर कमाएं
गेहूँ-धान से कई गुना फ़ायदा है फूलों में
बलिराम बाते हैं कि गेहूँ और धान की तुलना में फूलों की खेती से दोगुना-तिगुना मुनाफ़ा होता है। लेकिन किसान परम्परागत खेती को भी छोड़ नहीं सकता। क्योंकि यदि साल भर का अनाज बाज़ार से खरीदना पड़े तो फूलों की खेती से होने वाली सारी कमाई इसी में चली जाएगी। यही नहीं, जब फूलों का सीज़न नहीं हो और पैसे की ज़रूरत आ जाए तो गेहूँ या धान बेचने से बात बन जाती है। इसलिए बलिराम पूरी ज़मीन पर फूलों की खेती नहीं करते। उनकी कामयाबी का राज मिश्रित खेती में ही छिपा हुआ है। उनका कहना है कि वो भूमिहानी भले हैं लेकिन उनके पास खेती-किसानी का 20 साल का अनुभव है। आइए देखें कि बलिराम के अनुभवों में बाक़ी किसानों के लिए और क्या–क्या है?