खेती-किसानी की दुनिया, सैकड़ों तरह के अनाज, दलहन, तिलहन, फल, सब्जी, मसाले, ड्राई फ्रूट्स, औषधीय जड़ी-बूटी, सजावटी बाग़वानी, पशुपालन और मछली पालन जैसे अनेक काम-धन्धों से जुड़ी हुई है। सभी उत्पादों के कच्चे माल और प्रोसेस्ड प्रोडक्ट का भी व्यापक संसार है। हरेक उपज का अपना बाज़ार है, अपने उपभोक्ता हैं। सदियों से उस कृषि उपज का विशिष्ट स्थान रहा है जिसकी मार्केटिंग आसान हो और कमाई पर्याप्त हो। इन्हें नगदी फ़सल कहते हैं। सबसे अच्छी नगद फसल वो है जिसकी माँग सदाबहार हो, सड़ने का जोख़िम कम रहे और दाम ज़ोरदार मिले। ऐसी सभी ख़ूबियाँ तिलहन और दलहन की खेती में मौजूद हैं और इसीलिए तिलहन उत्पादक बनना एक समझदारी भरा कदम हो सकता है।
तिलहन में आज़माएँ पूरा ज़ोर
अनाज और दलहन की तरह तिलहन को भी लम्बे वक़्त तक आसानी से सहेज सकते हैं। खाद्य तेल तो सालों-साल ख़राब नहीं होते। रही बात दाम की तो इसका कोई झंझट नहीं है। भारत में अभी सालाना क़रीब 250 लाख टन खाद्य तेलों (edible oils) की खपत है। जबकि हमारा घरेलू उत्पादन क़रीब 80 लाख टन का ही है। ज़ाहिर है कि घरेलू माँग के मुक़ाबले देश में तिलहनों की पैदावार इतनी कम है कि हमें खाद्य तेलों की राष्ट्रीय खपत के दो-तिहाई हिस्से की भरपाई आयात से करनी पड़ती है। ये दशा पेट्रोलियम पदार्थों जैसी ही है, जिसमें हम 80% आयात पर निर्भर हैं।
MSP के भरोसे नहीं रहते तिलहन उत्पादक
मतलब साफ़ है कि देश में अभी जितना तिलहन पैदा होता है यदि उसकी मात्रा अचानक तीन से चार गुणा भी बढ़ जाए तो भी किसानों के सामने तिलहन का बढ़िया दाम पाने की चुनौती नहीं होगी। तिलहन के किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की ओर भले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP का संरक्षण मौजूद हो लेकिन तिलहन के ज़्यादातर उत्पादकों को अपनी उपज की मार्केटिंग के लिए सरकारी एजेंसियों का मुँह नहीं ताकना पड़ता। गेहूँ और धान की तरह तिलहन उत्पादकों को MSP के भरोसे नहीं रहना पड़ता। बल्कि आमतौर पर इन्हें MSP से ज़्यादा दाम मंडियों के अढ़तियों से या तेल मिल मालिकों से मिल जाता है। इसीलिए ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को जल्दी से जल्दी और बड़े से बड़े पैमाने पर तिलहन की खेती को अपनाना चाहिए।
तिलहन की खेती से क्यों कन्नी काटते हैं किसान?
तिलहन की खेती में एकलौती चुनौती उत्पादकता की है। भारतीय कृषि प्रणाली में तिलहन की पैदावार इतनी कम है कि किसानों को इसकी खेती आकर्षित नहीं कर पाती। क्षमता के मुक़ाबले तिलहन के किसानों की औसत उत्पादकता तक़रीबन आधी ही रह जाती है। यानी, जिस खेत में 10 क्विंटल तिलहन पैदा हो सकता है, वहाँ से वहाँ से औसतन इसकी आधी उपज भी मिल पाती है। ज़ाहिर है, इसी वजह से तिलहन की खेती करने से साधारण किसानों को वैसा मुनाफ़ा नहीं होता जिससे वो ख़ुशहाल रह सकें। इसीलिए वो इसकी खेती से कन्नी काटते हैं।
बेजोड़ है ‘सीड मिनी किट कार्यक्रम’
कम पैदावार की चुनौती का समाधान करते हुए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने दलहल के अलावा तिलहन की भी ज़्यादा उपज देने वाली अनेक उन्नत और संकर नस्लें विकसित की हैं जो किसान को आकर्षक मुनाफ़ा दे सके। किसानों तक आसानी से और मुफ़्त उन्नत बीज पहुँचाने के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार ने जून-2021 से सीड मिनी किट कार्यक्रम’ (Seed Mini-kits programme) चालू किया। इससे पहले खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने को लेकर 30 अप्रैल को केन्द्र सरकार और राज्यों के बीच हुई चर्चा के बाद तय हुआ कि अब दलहन और तिलहन दोनों के किसानों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए इनकी उन्नत किस्म के बीज मुफ़्त बाँटे जाएँगे।
सरसों की 8.2 लाख मिनी किट को बाँटने का फ़ैसला
11 अक्टूबर 2021 को केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने बताया कि किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए सरकार ने सरसों को उत्पादन करने वाले देश के 15 राज्यों के 343 ज़िलों के किसानों के बीच 8.2 लाख अधिक उत्पादकता देने वाले संकर बीजों की 8.2 लाख मिनी किट को बाँटने का फ़ैसला लिया है। इसके बाद 14 दिसम्बर 2021 को उन्होंने ही बताया कि रबी सीज़न 2021-22 सरसों की 8.2 लाख मिनी किट को किसानों को मुफ़्त बाँटने के लिए 10.67 करोड़ रुपये आबंटित किये गये हैं।
सरकार का कहना है कि वो दलहन और तिलहल की पैदावार बढ़ाने को प्राथमिकता देते हुए न सिर्फ़ इसके रक़बा को बढ़ावा देना चाहती है, बल्कि ज़्यादा पैदावार देने वाली नस्लों HYVs (high yielding varieties) के लिए बीजों को भी तेज़ी से बदलना (increasing seed replacement rate) चाहती है तथा ज़्यादा से ज़्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का सहारा देकर खरीदारी (procurement) को प्रोत्साहित करने की रणनीति को अमल में ला रही है।
राज्यों को आबंटित और वितरित सरसों के संकर बीज मिनी किट का ब्यौरा | ||||
क्रमांक | राज्य | मिनी किट की संख्या | बीज की मात्रा (क्विंटल) | बीज प्रति मिनी किट (किग्रा) |
1 | गुजरात | 20000 | 300 | 1.50 |
2 | हरियाणा | 15000 | 225 | 1.50 |
3 | मध्य प्रदेश | 30000 | 350 | 1.17 |
4 | राजस्थान | 20000 | 260 | 1.30 |
5 | उत्तर प्रदेश | 35000 | 480 | 1.37 |
कुल | 120000 | 1615 | 1.35 | |
स्रोत: पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार, 30 नवम्बर 2021 |
क्या है मिनी किट की विशेषता?
सरकारी आँकड़ों से हिसाब लगाएँ तो सरसों की एक मिनी किट का दाम 130 रुपये बैठेगा। इसमें औसतन 1.35 किलोग्राम उन्नत किस्म का संकर बीज होता है, जो किसानों को बाँटने के वक़्त एक से सवा किलोग्राम का ही रह जाएगा। बाक़ी छीजत में चला जाएगा। इन बीजों की उत्पादकता 20 क्लिंटल प्रति हेक्टेयर से ज़्यादा पायी गयी है, जो परम्परागत बीजों के मुक़ाबले 13 से 14 फ़ीसदी ज़्यादा है।
साधारण रही मिनी किट बाँटने की उपलब्धि
दुर्भाग्यवश, किसानों तक मिनी किट पहुँचाने के मोर्चे पर केन्द्र और राज्य सरकारों की शुरुआती उपलब्धियाँ साधारण ही रही हैं। किसानों ने भी उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से मुफ़्त दिये जा रहे सरसों के बीजों के मिनी किट के प्रति वैसा उत्साह नहीं दिखाया जैसा देश की खाद्य आत्मनिर्भरता के लिए बेहद ज़रूरी है।
रबी सीज़न 2020-21 में सरसों के 8.2 लाख बीज मिनी किट बाँटने के लक्ष्य के आगे प्रदर्शन | ||
क्रमांक | राज्य | बाँटे गये मिनी किट की संख्या |
1 | बिहार | 55625 |
2 | छत्तीसगढ़ | 10200 |
3 | गुजरात | 28060 |
4 | हरियाणा | 95867 |
5 | जम्मू और कश्मीर | 8307 |
6 | झारखंड | 34950 |
7 | मध्य प्रदेश | 22980 |
8 | ओड़ीशा | 10000 |
9 | पंजाब | 25000 |
10 | राजस्थान | 173465 |
11 | उत्तर प्रदेश | 119525 |
12 | उत्तराखंड | 0 |
13 | असम | 10000 |
14 | अरुणाचल प्रदेश | 2000 |
15 | त्रिपुरा | 2500 |
कुल | 598479 | |
स्रोत: पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार, 14 दिसम्बर 2021 |
आँकड़े बताते हैं कि बीते अक्टूबर-नवम्बर में शुरू हुए रबी सीज़न 2021-22 के लिए सरसों की 8.2 लाख मिनी किट को किसानों को मुफ़्त बाँटने का जब काम हुआ तो कुल वितरित मिनी किट की संख्या 6 लाख (5,98,479) के भीतर ही सिमट गयी। ये 73% कामयाबी है। एक तरह से देखें तो 73% की उपलब्धि घटिया नहीं है, लेकिन यदि ऐसे प्रदर्शन की तुलना देश में खाद्य तेलों की चिन्ताजनक उत्पादन से की जाए तो तस्वीर ज़रूर अफ़सोसनाक बन जाती है।
उपज की वृद्धि दर 3.5% है तो खपत की 4.5-5.5%
साल 2020-21 के तीसरे पूर्वानुमान के मुताबिक, देश में तिलहन का कुल उत्पादन 365.7 लाख टन होने की उम्मीद है। यही पैदावार 2014-15 में 275.1 लाख टन थी। यानी, 2014 से लेकर 2021 तक सात वर्षों में तिलहन की पैदावार 90.6 लाख टन बढ़ी। इसका मतलब ये है कि मोदी सरकार के सात वर्षों में तिलहन उत्पादन में सालाना वृद्धि की औसत दर 3.5% ही हासिल हो सकी। अब यदि इसकी तुलना खाद्य तेलों की खपत में हो रही सालाना 7 से 8 फ़ीसदी की वृद्धि से करें तो हम पाएँगे कि तिलहन की पैदावार बढ़ने के बावजूद खाद्य तेलों का हमारा आयात 4.5 से 5.5 प्रतिशत की तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहा है।
उपरोक्त आँकड़े और उपलब्धियाँ बता रहे हैं कि तिलहन की पैदावार में आत्मनिर्भरता का पाला छूने से अभी हम कई दशक दूर हैं। दूसरी बात जो साफ़ है वो ये कि चाहे दलहन हो या तिलहन, हमारी कृषि नीति और हमारे कृषि वैज्ञानिक ऐसी तरकीबें विकसित नहीं कर पा रहे जैसा उन्होंने हरित और श्वेत क्रान्ति (green and white revolution) के मामले में करके दिखाया था।
दलहन का बीज सीड किट कार्यक्रम
तिलहल के बीज सीड किट के प्रदर्शन से जुड़े उपरोक्त ब्यौरे के साथ ही लगे हाथ आपको बता दें कि दलहन को भी इसी ‘सीड मिनी किट कार्यक्रम’ (Seed Mini-kits programme) से जोड़ा गया है। हालाँकि, दलहन की पैदावार में ज़बरदस्त उछाल लाने के लिए साल 2010 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत Accelerated Pulses Production Programme (A3P) बनाया गया और साल 2016-17 तक देश के 644 ज़िलों को इस अभियान से जोड़ा गया था। इसके तहत 97 ज़िला कृषि विज्ञान केन्द्रों, 46 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और ICAR के 7 संस्थानों का ऐसा साझा नेटवर्क बनाया गया जो दालों के उन्नत बीजों की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित कर सके। इसके लिए 24 राज्यों में दालों के लिए 150 बड़े बीज उत्पादन केन्द्र बनाये गये और 11 राज्यों में 119 किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को दलहन के उन्नत बीजों के उत्पादन से जोड़ा गया।
इन्हीं कोशिशों में और तेज़ी लाने के लिए अप्रैल 2021 में ही दलहनों को भी ‘सीड मिनी किट कार्यक्रम’ से जोड़ने की फ़ैसला हुआ। फिर केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की अगुवाई में तय हुआ कि खरीफ़ सीज़न 2021 के लिए दलहन सीड मिनी किट के मुफ़्त वितरण पर केन्द्र सरकार करीब 82 करोड़ रुपये खर्च करेगी। इसके तहत 20.27 लाख दलहन मिनी किट्स को 15 जून तक देश के 332 ज़िलों में वितरण केन्द्रों तक पहुँचा दिया जाएगा।
सरकार का इरादा है कि ‘मिनी बीज किट’ के ज़रिये देश में अरहर, मूँग और उड़द की खेती का रकबा 4.05 लाख हेक्टेयर तक पहुँचाकर अगले साल इसकी पैदावार इतनी बढ़ा ली जाए कि दालों के मामले में भारत आत्मनिर्भर बन जाए। दरअसल, देश को अब भी करीब 4 लाख टन अरहर, 60 हज़ार टन मूँग और 3 लाख टन उड़द का आयात करना पड़ रहा है। ये आयात हमारे दलहन की कुल खपत का 3.1 प्रतिशत है। फ़िलहाल, ये ब्यौरा उपलब्ध नहीं हैं कि दलहन के 20.27 लाख मिनी किट्स के वितरण की प्रगति कैसी है?
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।