देश में मशरूम की कई किस्मों की खेती की जा रही है और इनकी अच्छी मांग भी है, मगर गैनोडर्मा मशरूम दूसरे मशरूम से अलग है क्योंकि यह औषधीय गुणों वाला मशरूम है। इसका इस्तेमाल कई दवाइयां बनाने में किया जाता है। गैनोडर्मा की खेती किसानों के लिए कैसे फ़ायदेमंद हो सकती है? कम लागत में इसकी खेती कैसे की जा सकती है? इस पर किसान ऑफ़ इंडिया की संवाददाता दीपिका जोशी ने कृषि विज्ञान केंद्र, पिथौरागढ़ के सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट डॉ. अलंकार सिंह से ख़ास बातचीत की।
इन बीमारियों में है फ़ायदेमंद
डॉ. अलंकार ने बताया कि इस औषधि के बारे में लोगों की जानकारी बहुत कम है। कैंसर सहित कई गंभीर बीमारियों की दवा बनाने में गैनोडर्मा मशरूम का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, यह त्वचा सबंधी बीमारी, भूलने की बीमारी, थकान, मांसपेशी सबंधी बीमारी, हृदय रोग, शुगर, अनिद्रा दूर करने के साथ ही पाचन तंत्र दुरुस्त करने में भी मददगार माना जाता है।
गैनोडर्मा मशरूम की ख़ासियत
यह औषधीय गुणों वाला मशरूम है, जो पर्वतीय इलाकों में प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाई जाता है। यह सूखे और गिरे हुए पेड़ों पर अपने आप उग जाता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा होने के साथ ही विटामिन डी, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और 19.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है। गैनोडर्मा मशरूम को रिशी मशरूम (Reishi Mushroom) भी कहा जाता है।
गैनोडर्मा मशरूम से बनाए जाते हैं कई उत्पाद
गैनोडर्मा मशरूम को प्रोसेस करके कई कंपनिया कैप्सूल बनाती हैं। इससे साबुन, क्रीम और टूथपेस्ट भी बनाए जाते हैं। मशरूम का जो पाउडर निकलता है, उसे पानी में डालकर ग्रीन टी की तरह पी भी सकते हैं। एक कप पानी में लेमन ग्रास डालकर उसमें थोड़ा शहद और मशरूम पाउडर मिलाकर ग्रीन टी की तरह सेवन कर सकते हैं।
सीमित संसाधन में किसान इसकी खेती करके लाभ उठा सकते हैं
विषय विशेषज्ञ डॉ. अलंकार सिंह का कहना है कि आमतौर पर गैनोडर्मा मशरूम उगाने के लिए ऑटोक्लेव मशीन की ज़रूरत पड़ती है, जिसमें लकड़ी की लठ्ठों को जीवाणुरहित किया जाता है। 1 लीटर पानी में 2 मिलीलीटर फॉर्मलिन मिलाकर, इस घोल में लकड़ियों को रातभर रख दिया जाता है। अगले दिन लकड़ियों को पानी से बाहर निकाल दिया जाता है। फिर एक लीटर पानी में 0.5 एमएव मॉल्ट एक्सट्रैक्ट (गेहूं से तैयार होता है मॉल्ट एक्सट्रैक्ट) मिलाकर इन लकड़ियों को उबाला जाता है।
डॉ. अलंकार सिंह कहते हैं कि हर किसान ऑटोक्लेव मशीन नहीं खरीद सकता। इसलिए उनकी टीम कम लागत में इसकी खेती के लिए लगातार रिसर्च कर रही है। डॉ. अलंकार सिंह कहते हैं कि किसानों के पास बड़ा सा भगौना होता है, उसमें वो फॉर्मलिन से लेकर मॉल्ट एक्सट्रैक्ट से जुड़ी प्रक्रिया कर सकते हैं।
उसके बाद लकड़ी को जीवाणुरहित करने के लिए सौरीकरण (Solarization) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। लकड़ियों को पॉलिथिन में डालकर 45-50 डिग्री सेल्सियस तापमान में धूप में रखा जाता है। पॉलिथिन में बांधकर रखने से तापमान दोगुना हो जाता है और लकड़ी पूरी तरह से जीवाणुरहित हो जाती है।
करीबन एक महीने में मशरूम तैयार
गैनोडर्मा मशरूम की खेती के लिए पॉप्लर की लकड़ी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। पॉप्लर की लकड़ी को छह इंच लंबे और तीन इंच व्यास के टुकड़ों को उपचारित करने के बाद बारी आती है स्पॉनिंग की। इसके लिए टेबल पर दो मोमबत्ती लगाकर पॉलिथिन में बीज डाले जाते हैं फिर उसमें रूई डालकर अच्छी तरह से मोड़कर छल्ले से एयरटाइट करके ठंडे तापमान पर रख दिया जाता है। 15 से 20 दिन में इसमें माइसिलिया (सफेद रंग का फंगस) विकसित होने लगता है। फिर इन लकड़ियों को एक किलो मिट्टी में दो ग्राम चूना के अनुपात के साथ तैयार किये गए मिश्रण में डाला जाता है। इसके बाद उचित तापमान वाली जगह पर रखकर मशरूम पैदा किया जाता है। एक लकड़ी के टुकड़े से से 6 से 10 ग्राम तक मशरूम मिल जाता है। करीबन एक महीने में ये मशरूम तैयार हो जाते हैं।
डॉ. अलंकार सिंह ने बताया कि पिथौरागढ़ के कई क्षेत्रीय किसानों को गैनोडर्मा मशरूम की खेती करवाई जा रही है। ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को गैनोडर्मा मशरूम के बारे में बताया जाए, इस लक्ष्य पर प्रदेश शिक्षा निदेशालय काम कर रहा है।
गैनोडर्मा मशरूम की कीमत
गैनोडर्मा मशरूम की कीमत उसकी गुणवत्ता और आकार पर निर्भर करती है। आमतौर पर यह 3 हज़ार से लेकर 10 हज़ार रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता है। आकार और गुणवत्ता जितनी अच्छी होगी, कीमत उतनी ही अधिक मिलेगी।
डॉ. अलंकार ने लोगों को यह भी सलाह दी कि जंगल में मिलने वाले मशरूम को ऐसे ही न खाएं, क्योंकि वह ज़हरीले हो सकते हैं इसलिए बिना जांच के इन्हें न खाएं।
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