Mushroom Farming: इन 2 तकनीकों से ऑयस्टर मशरूम की फसल जल्दी होगी तैयार
जब इन नई तकनीकों से मशरूम उगाए गए तो उत्पादन ज़्यादा देखा गया। साथ ही पौष्टिकता के लिहाज़ से ये ज़्यादा अच्छी हैं और इनका आकार भी ज़्यादा है।
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जब इन नई तकनीकों से मशरूम उगाए गए तो उत्पादन ज़्यादा देखा गया। साथ ही पौष्टिकता के लिहाज़ से ये ज़्यादा अच्छी हैं और इनका आकार भी ज़्यादा है।
लहसुन का भंडारण कैसे किया जाए? कौन सी विधि सबसे कारगर और सस्ती है? राजस्थान के बारां ज़िले स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने एक सस्ती और टिकाऊ तकनीक विकसित की है।
बिहार के बांका ज़िले की रहने वाली वंदना कुमारी की 50 फ़ीसदी से ज़्यादा ज़मीन बंजर हो चुकी थी, लेकिन उन्होंने गोबर के खाद की बदौलत अपनी मेहनत और अथक प्रयास से बंजर ज़मीन को सींच दिखाया।
प्राकृतिक खेती आज के समय की ज़रूरत है, क्योंकि इससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने से बचाया जा सकता है, साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य को हानी पहुंचने से भी बचाया जा सकता है। प्राकृतिक खेती को सही तरीके से अपनाकर किसान अपनी लागत कम करके अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं जैसा कि आंध्र प्रदेश की महिला किसान हनुमन्थु मुथ्यालम्मा ने किया।
अंजीर का सबसे अधिक उत्पादन मीडिल ईस्ट देशों में होता है, लेकिन अब भारत में भी अंजीर की खेती लोकप्रिय हो रही है, खासतौर पर बाड़मेर के रेगिस्तानी इलाके में अंजीर की खेती किसानों के लिए मुनाफ़े का सौदा बन गई है।
अगर आप बकरी पालन से जुड़े हैं तो आपको कई सावधानियाँ बरतना भी ज़रूरी है। बकरियों का निमोनिया कहे जाने वाली CCPP रोग वैसे तो किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन युवा और कमज़ोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाली बकरियाँ इसके चपेट में ज़्यादा आती हैं।
मिट्टी की जाँच करके उसमें मौजूद पोषक तत्वों का पता लगाया जाता है। जो किसान मिट्टी की जाँच करवाकर मिट्टी के पोषक तत्वों कृषि विज्ञानियों के नुस्ख़े के अनुसार अपने खेत के विकारों का निदान करके खेती करते हैं उन्हें निश्चित रूप से शानदार पैदावार मिलती है। इसीलिए यदि खेती-बाड़ी से पाना है बढ़िया मुनाफ़ा तो मिट्टी के गुणों को पहचानना सीखें और समय रहते उचित क़दम ज़रूर उठाएँ।
गायें सिर्फ़ दूध उत्पादन तक ही सीमित नहीं हैं। देसी गाय के पशुधन से कई चीज़ें बनाई जा सकती हैं। स्वप्निल कुंभार गाय की इसी इकोनॉमिक्स को किसानों तक पहुंचा रहे हैं। किसान ऑफ़ इंडिया ने उनके इस मिशन और कॉन्सेप्ट पर उनसे ख़ास बातचीत की।
केंचुआ खाद में 50-75% प्रोटीन और 7-10% वसा के अलावा कैल्शियम, फास्फोरस जैसे खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। क़ीमत के लिहाज़ से भी केंचुआ खाद से मिलने वाले ये पोषक तत्व अन्य किसी भी स्रोत की तुलना में बेहद किफ़ायती होते हैं। केंचुआ खाद के लगातार इस्तेमाल से मिट्टी के भौतक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी सुधार होता है और उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं के अनुपात बेहतर बनता है।
‘क्रिसमस ट्री’ किसी भी तरह की मिट्टी में उग सकता है, लेकिन इसकी खेती में कई बातों का ख्याल रखना ज़रूरी है। जानिए क्रिसमस ट्री फार्मिंग व्यवसाय के बारे में में विस्तार से।
अनार में ढेर सारे पौष्टिक तत्व होते हैं जो इंसानों के लिए बहुत फायदेमंद हैं , लेकिन क्या आपको पता है किअनार के छिलके का अपशिष्ट मुर्गियों के लिए भी गुणों का खजाना है।
2 एकड़ ज़मीन में चार तालाब बने हुए थे। इसमें वो तिलापिया मछलियां पालती थीं। उनके पास 5 बकरियां और 50 देसी मुर्गियां भी थीं। सही प्रबंधन न होने की वजह से आमदनी कुछ ख़ास आमदनी नहीं होती थी। कैसे नारियल आधारित एकीकृत कृषि मॉडल अपनाकर उनकी आमदनी में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ, जानिए इस लेख में।
छोटे किसानों के लिए पशु बहुत कीमती संपत्ति होते हैं, क्योंकि यही मुश्किल समय में उनकी आजीविका का स्रोत बनते हैं। अगर सही तरीके से व अच्छी नस्ल के पशुओं का पालन किया जाए तो किसान इससे बढ़िया आमदनी कमाकर अपने जीवन स्तर में सुधार कर सकते हैं, जैसा कि ओड़ीशा की महिला किसान ने किया है। डेयरी व्यवसाय कैसे गीतांजलि बेहरा की पहचान बन चुका है, जानिए इस लेख में।
एक किसान के लिए जितनी महत्वपूर्ण खेती होती है, पशुपालन से भी उसका लगाव उतना ही गहरा होता है। रंजीत सिंह अपने क्षेत्र के किसानों के लिए एक मिसाल तो बने ही, साथ ही अपने किसान साथियों की प्रगति के लिए भी काम कर रहे हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में रंजीत सिंह ने डेयरी सेक्टर (Dairy Farming) से जुड़ी कई दूसरी ज़रूरी जानकारियां भी दीं।
सुंडाराम वर्मा के निरंतर अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि आज राजस्थान और अन्य राज्यों के कई किसान इस तकनीक से खेती कर अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं।
पद्मश्री से सम्मानित सेठपाल सिंह ने खेती में ऐसे नये-नये प्रयोग किये हैं कि जिन्हें जानकर कृषि जानकार भी हैरत में पड़ गए। क्या हैं उनके अभिनव प्रयोग। जानिए इस लेख में।
हरियाणा के रहने वाले कृष्ण कुमार ने 2016 में वर्मीकम्पोस्ट व्यवसाय में कदम रखा था। उस वक़्त कई लोगों ने उन्हें इसके लिए मना किया था, लेकिन प्रकृति के प्रति उनके लगाव ने उन्हें खेती-किसानी से जोड़ा। जानिए इस व्यवसाय का पूरा गणित।
उत्तराखंड के रानीखेत के चिलियानौला गाँव के रहने वाले प्रगतिशील किसान मनोज भट्ट ने 2009 से जैविक खेती की शुरुआत की। कोरोना काल में उनका करीब 12 लाख रुपये का सालाना टर्नओवर हुआ।
भारतीय कृषि में चौधरी चरण सिंह के योगदान को याद करने के लिए किसान दिवस मनाने का फैसला किया गया था। जानिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक एग्रीकल्चर सेक्टर में क्या चुनौतियाँ हैं?
आम की खेती में अधिक समय, कीटों के प्रकोप और मौसम की मार के कारण होने वाली फसल हानि के चलते कर्नाटक में बहुत कम किसान ही आम की खेती कर रहे हैं। हालांकि, कुछ किसान ऐसे भी हैं जो वैज्ञानिकों की सलाह पर नई तकनीक और तरीके अपनाकर आम की खेती में अच्छी आमदनी अर्जित कर रहे हैं। एक ऐसे ही किसान हैं सत्यनारायण रेड्डी।