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कृषि समाचार – देश-विदेश के कृषि जगत में होने वाली नित नई घटनाओं तथा खोजों की जानकारी हिन्दी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

गुलदाउदी की खेती
न्यूज़, फल-फूल और सब्जी, फूलों की खेती, सब्जी/फल-फूल/औषधि

सर्दियों वाले गुलदाउदी (Chrysanthemum) के दिलकश फूलों को गर्मियों में उगाने की तकनीक विकसित

गुलदाउदी उगाने की नयी तकनीक से जहाँ घरेलू बाग़ीचों की रौनक बदल सकती है, वहीं नसर्री मालिकों, फूल उत्पादक किसानों और फूलों के कारोबार से जुड़े लोगों के लिए भी आमदनी के नये मौके विकसित हो सकते हैं। NBRI का उद्यानिकी प्रभाग लम्बे अरसे से जुलाई में ही गुलदाउदी को खिलाने की तकनीक विकसित करने की कोशिश कर रहा था। ज़ाहिर है मई-जून में खिलने वाली किस्म से ये मुराद पूरी हो गयी। अपनी उपलब्धि से उत्साहित NBRI के वैज्ञानिकों का इरादा जल्द ही गुलदाउदी की ऐसी किस्मों की पहचान करके उनका ऐसा कलेंडर बनाना है जिससे गुलदाउदी के चाहने वालों को पूरे साल इसके फूलों से सुकून हासिल करने का मौका मिल सके।

मोटे अनाज की खेती Coarse Grain Farming
कृषि उपज, न्यूज़, फसल न्यूज़

Coarse Grains Farming: थाली से गायब हुए मोटे अनाज की वापसी क्यों?

धान और गेहूँ की तुलना में परम्परागत मोटे अनाज काफ़ी कम पानी और खाद से उग जाते हैं। कम उपजाऊ भूमि में भी इसकी अच्छी पैदावार और लाभकारी दाम मिल जाता है। मोटे अनाज की खेती में महँगे रासायनिक खाद और कीट नाशकों की ज़रूरत नहीं पड़ती। ये पर्यावरण के बेहद अनुकूल होते हैं और पोषक आहारों की दुनिया में तो परम्परागत मोटे अनाजों और भी बेजोड़ हैं।

ganoderma mushroom गैनोडर्मा मशरूम
न्यूज़, फल-फूल और सब्जी, फसल न्यूज़, मशरूम, वीडियो, सब्जियों की खेती

गैनोडर्मा मशरूम: डॉ. अलंकार सिंह से जानिए कम लागत में कैसे करें Ganoderma Mushroom की खेती, 3 से 10 हज़ार रुपये प्रति किलो भाव

कृषि विज्ञान केंद्र, पिथौरागढ़ के सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट डॉ. अलंकार सिंह ने किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत में बताया कि कैसे किसानों की आमदनी बढ़ाने के लक्ष्य में गैनोडर्मा मशरूम मदद कर सकता है। जानिए इस मशरूम की ख़ासियत और बाज़ार

retractable roof polyhouse technology ( पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी )
टेक्नोलॉजी, तकनीकी न्यूज़, न्यूज़, फसल न्यूज़, फसल प्रबंधन

जानिए क्या है ‘रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस’ तकनीक (Polyhouse Technique), खेती को बनाए और फ़ायदेमंद

यह तकनीक जैविक खेती के लिए भी अनुकूल है। देश के सभी 15 विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस तकनीक उपयोगी होगी, जो किसानों को गैर-मौसमी फसलों की खेती करने में मदद करेगा, जिससे वो उच्च मूल्य और आय प्राप्त कर सकते हैं।

मशरूम की खेती कैसे करें?
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मशरूम की खेती (Mushroom Farming) से कश्मीरी किसान की बढ़ी आमदनी, जानें कैसे?

मशरूम के एक बैग में औसतन 2 किलोग्राम तक मशरूम उत्पादन होता है। मशरूम की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए कश्मीर में सरकार की ओर से सब्सिडी भी मिलती है। मशरूम की खेती का एक और फायदा है तुरंत नगद भुगतान।

food processing units in india फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट
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Food Processing Unit: फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट खुद खोल सकते हैं फसल उत्पादक, इन बातों का रखें ध्यान

भारतीय फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री देश के कुल खाद्य बाज़ार का 32 प्रतिशत है, जो भारत के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। ऐसे में किसान अगर खुद की फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाते हैं और अपनी फसल को प्रोसेस कर ग्राहकों तक पहुंचाए तो उन्हें यकीनन मुनाफ़ा होगा।

सह-फसली खेती (co-cropped farming): क्यों मुनाफ़े की खेती का राम बाण नुस्ख़ा है सह-फसली?
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सह-फसली खेती (co-cropped farming): क्यों मुनाफ़े की खेती का राम बाण नुस्ख़ा है सह-फसली?

फसल के ख़राब होकर कम उत्पादन देने से किसान उतना तबाह नहीं होता, जितना शानदार फसल होने पर होता है। इसीलिए किसानों को ऐसी फसलें चुननी चाहिए जिसका बाज़ार में अच्छा भाव मिलने की उम्मीद हो। अब सवाल ये है कि किसान अपनी फसलों का चुनाव कैसे करें? इसका सबसे आसान जवाब है कि उन्हें सह-फसली खेती तकनीक को अपनाना चाहिए।

वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक
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वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक (Water Harvesting Tank) बनाकर इस किसान ने पानी की बर्बादी रोक कर गांव को किया आबाद

कश्मीर के एक किसान ने अपने गांव में वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक बनाकर गर्मी में पानी की कमी की समस्या का स्थाई समाधान निकालने का काम किया और वहां की सिंचाई व्यवस्था को सुधारा।

arka kiran guava farming अमरूद की खेती guava cultivation
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अमरूद की खेती (Guava Farming): अमरूद की इस किस्म से किसान कर रहे लागत से दोगुनी कमाई

हल्के लाल रंग का दिखने वाला अर्का किरण अन्य किस्मों की तुलना में जल्दी पक जाती है। इसका फल उस समय भी बाज़ार में उपलब्ध रहता है, जब अन्य किस्में नहीं होती। इस किस्म की अमरूद की खेती करके कैसे किसानों को लाभ हो रहा है, जानिए इस लेख में।

ऑर्गेनिक मल्टीलेयर फ़ार्मिंग
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ऑर्गेनिक मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multi Layer Farming) करने के लिए आईटी इंजीनियर ने छोड़ी जॉब, जानिए उनकी मार्केटिंग स्ट्रेटिजी

मल्टीलेयर फ़ार्मिंग के फ़ायदों को देखते हुए अब लोगों का रुझान इसकी ओर बढ़ता जा रहा है। इसके फ़ायदों और भविष्य को देखते हुए कई लोग अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़कर आधुनिक खेती में हाथ आजमा रहे हैं।

राइस ट्रांसप्लांटर
कृषि उपकरण, न्यूज़, राइस प्लांटर

धान रोपने वाली मशीन राइस ट्रांसप्लांटर (Rice Transplanter) से लागत कम और कमाई ज़्यादा, जानिए इस कृषि उपकरण के बारे में

राइस ट्रांसप्लांटर एक ऐसा उपकरण है जो किसानों को खेतिहर मजदूरों पर निर्भरता कम करता है। धान की रोपाई राइस ट्रांसप्लांटर की मदद से आसानी से की जा सकती है।

banana flour ( केले का आटा ) केले की खेती
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केले की खेती (Banana Cultivation): केला किसानों की आमदनी का ज़रिया बन रहा ये आसान तरीका

भारत दुनिया में केले का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। दुनिया में केले के कुल उत्पादन में भारत की 25 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा केले की खेती होती है।

एथनॉल उत्पादन ethanol production in india
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एथनॉल उत्पादन (Ethanol Production) के मौजूदा तरीके से देश की खाद्य सुरक्षा को हो सकता है ख़तरा: कृषि विशेषज्ञ

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि गन्ना आधारित एथनॉल उत्पादन इकाइयों की क्षमता बढ़ती रही तो सिंचाई से जुड़ी चुनौतियाँ पेंचीदा हो जाएँगी, क्योंकि जितने गन्ने से एक लीटर एथनॉल पैदा होता है, उसके उत्पादन के लिए 2,750 लीटर पानी की ज़रूरत पड़ती है।

पूसा हाइड्रोजैल pusa hydrogel
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पूसा हाइड्रोजैल: फसलों को सूखने से बचाता है Hydrogel, डॉ. संजय अरोड़ा से जानिए कैसे कम पानी में भी ले सकते हैं बढ़िया उत्पादन

अक्सर पानी की कमी से किसानों की फसलें सुख जाती हैं। सही समय पर बारिश न होने की वजह से भी फसलों को नुकसान पहुंचता है। ऐसी परिस्थितियों में पूसा हाइड्रोजैल तकनीक किसानों के लिए उपयोगी समाधान के रूप में सामने आई है।

फालसा की खेती
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फालसा की खेती (Falsa Farming): खराब से खराब जमीन से लेकर बंजर ज़मीन में उगता है फालसा, जानिए इस फल की ख़ासियत

असिंचित क्षेत्रों के किसानों के लिए फालसा की खेती वरदान साबित हो सकती है क्योंकि इसके पौधे अनुपजाऊ, खराब, घटिया, पथरीली या बंजर मिट्टी में भी पनप सकते हैं। फालसा सूखा रोधी होते हैं। इन पर प्रतिकूल मौसम का बहुत कम असर पड़ता है।

खस की खेती से शानदार कमाई
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Vetiver Farming: खस की खेती में कितनी लागत और कमाई? कहां से लें ट्रेनिंग?

खस की खेती के लिए किसी ख़ास तरह की ज़मीन की ज़रूरत नहीं होती। आमतौर पर खस की खेती में प्रति एकड़ लागत करीब 60-65 हज़ार रुपये बैठती है। प्रति एकड़ खस की उपज से करीब 10 किलो तक तेल निकल जाता है। बाज़ार में इस तेल का दाम करीब 20 हज़ार रुपये प्रति किलो तक मिल जाता है।

रवि प्रसाद केले के कचरे banana agriculture waste
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रवि प्रसाद ने केले के कचरे से खड़ा कर दिखाया ग्रामीण उद्योग, जानिए कैसे रोज़गार का ज़रिया बनी केले की खेती

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के रवि प्रसाद ने रोज़गार के अवसर विकसित करने की सराहनीय उपलब्धि हासिल की है। वो केले के रेशे से कालीन, चप्पल, टोपी, बैग और डोरमैट वग़ैरह बनाते हैं। अपने इस व्यवसाय से उन्होंने कइयों को रोज़गार दिया है।

एयर प्यूरीफाइंग पौधे (Air Purifying Plants): प्रदूषण सोखने वाले एयर प्यूरीफाइंग पौधों की लिस्ट में वैज्ञानिकों ने जोड़े तीन और पौधे
लाईफस्टाइल, न्यूज़

एयर प्यूरीफाइंग पौधे (Air Purifying Plants): प्रदूषण सोखने वाले एयर प्यूरीफाइंग पौधों की लिस्ट में वैज्ञानिकों ने जोड़े तीन और पौधे, साफ़ हवा के लिए इन्हें ज़रूर अपनाएँ  

शोध से पता चला कि ‘एयर प्यूरीफाइंग पौधे पीस लिली’, ‘कॉर्न प्लांट’ और ‘फर्न अरूम’ नामक तीन पौधों में भी प्रदूषणरोधी गुण मौजूद हैं। नयी पहचान उन परम्परागत पौधों से अलग है जिन्हें घरों में रखने का लिए मुफ़ीद बताया जाता रहा है, क्योंकि इन तीनों पौधों में हवा में मौजूद नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को सोखने की क्षमता पायी जाती है।

ड्रम सीडर (Drum Seeder)
कृषि उपकरण, न्यूज़

Drum Seeder: ड्रम सीडर से धान की सीधी कैसे होती है? कृषि वैज्ञानिक से जानिए फ़ायदे

ड्रम सीडर के इस्तेमाल से आप न सिर्फ़ अपना समय बचा सकते हैं, बल्कि किसानों के पैसो की भी बचत होगी। कृषि विज्ञान केन्द्र पीपीगंज गोरखपुर के कृषि वैज्ञानिक अवनीश कुमार सिंह से किसान ऑफ़ इंडिया ने इस मशीन की ख़ासियतों पर विस्तार से बात की।

बकरी पालन (Goat Farming): बकरियों की 8 नयी नस्लें रजिस्टर्ड
न्यूज़, पशुपालन, बकरी पालन

बकरी पालन (Goat Farming): बकरियों की 8 नयी नस्लें रजिस्टर्ड, चुनें अपने इलाके के लिए सही प्रजाति और पाएँ ज़्यादा फ़ायदा

बकरी पालन में न सिर्फ़ शुरुआती निवेश बहुत कम होता है, बल्कि बकरियों की देखरेख और उनके चारे-पानी का खर्च भी बहुत कम होता है। लागत के मुकाबले बकरी पालन से होने वाली कमाई का अनुपात 3 से 4 गुना तक हो सकता है, बशर्ते इसे वैज्ञानिक तरीके से किया जाए। बकरी पालन के विशेषज्ञों ने देश के विभिन्न इलाकों की जलवायु के अनुकूल 8 नयी और ख़ास नस्लों की बकरियों की पहचान करके उन्हें पंजीकृत भी करवाया है। ताकि बकरी पालक किसान अपने इलाके की जलवायु के अनुरूप उन्नत नस्ल की बकरियों का चुनाव करके उसके पालन से ज़्यादा से ज़्यादा आमदनी पा सकें।

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