किसानों ने मनाया ‘कारपोरेट भगाओ, खेती बचाओ’ दिवस, कृषि क़ानूनों की प्रतियाँ जलायीं
किसानों ने कहा कि जब तक तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य को क़ानूनी दर्जा देने की माँगें पूरी नहीं होतीं तब तक आन्दोलन जारी रहेगा।
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किसानों ने कहा कि जब तक तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य को क़ानूनी दर्जा देने की माँगें पूरी नहीं होतीं तब तक आन्दोलन जारी रहेगा।
कोरोना महामारी के हालात को देखते हुए पिछले साल की तरह इस साल भी किसान क्रेडिट कार्ड का कर्ज़ चुकाने की मियाद में तीन महीने की छूट दी गयी है। इसी छूट की मियाद 30 जून तक है।
‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ (GeM) पर मौजूद ‘द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन’ के माध्यम से बाँस और इससे बने हस्तशिल्प, डिस्पोजेबल और कार्यालयों में उपयोग होने वाले उत्पाद खरीद-बिक्री के लिए प्रदर्शित रहेंगे। ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के बाँस के कारीगरों, बुनकरों और कारोबारियों की सरकारी खरीदारों और बाज़ार तक सीधी पहुँच बनायी जा सके।
पिछले साल 5 जून को केन्द्र सरकार ने खेती-किसानी से जुड़े उन तीन अध्यादेशों को लागू किया था जिन्हें संसद के आगामी सत्र में क़ानूनों का दर्ज़ा मिल गया और लगे हाथ राष्ट्रपति ने उसे लागू किये जाने के आदेश जारी कर दिये। इन्हीं तीनों क़ानूनों के ख़िलाफ़ संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले अनेक राज्यों में तमाम किसान संगठन लामबन्द होना शुरू हुए। यही लामबन्दी ‘किसान आन्दोलन’ कहलायी। इसी आन्दोलन के तहत दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवम्बर से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का धरना-प्रदर्शन जारी है।
उत्तर प्रदेश में अभी तक पंजीकृत किसानों में से सिर्फ़ 52 फ़ीसदी ने अपना गेहूँ मंडियों में ले जाकर बेचा है। 48 फ़ीसदी अब भी बचे हुए हैं, जबकि अब सिर्फ़ दो हफ़्ते की खरीदारी बाकी है। इस साल गेहूँ का समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित है। इस तरह अभी तक 7431.27 करोड़ रुपये के गेहूँ का ही भुगतान किसानों को हो पाया है। इसीलिए खाद्य विभाग ने दर्ज़न भर ज़िलों के उन मंडी प्रभारियों से जवाब तलब किया है जहाँ अनुमान से ख़ासे कम गेहूँ की खरीद-बिक्री हुई है।
फसल बीमा योजना के ज़रिये किसानों को प्राकृतिक आपदाओं की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई की जाती है। किसानों को अपने नज़दीकी बैंक या बीमा कम्पनी या किसान ग्राहक सेवा केन्द्र से सम्पर्क करके फसल बीमा ज़रूर करवाना चाहिए। किसानों को बीमा की रकम को भी खेती की अनिवार्य लागत की तरह ही देखना चाहिए।
भारत अब भी ज़रूरत से कहीं ज़्यादा चावल और गेहूँ पैदा कर रहा है, जबकि दलहन और तिलहन के लिहाज़ से हम अब भी आत्मनिर्भरता से कोसों दूर हैं और आयात से ही अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए मज़बूर हैं। ये आलम तब है, जबकि सरकार ने दलहल और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को उन्नत किस्म के बीजों को मुफ़्त मुहैया करवाने जैसे कई आकर्षक योजनाएँ चला रखी हैं और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सुरक्षा भी दी जा रही है।
बिहार में 8 हज़ार से ज़्यादा ग्राम पंचायतों में अभी कुल 6,327 किसान सलाहकार कार्यरत हैं। यानी करीब 2 हज़ार किसान सलाहकारों के पद खाली हैं। हालाँकि, किसान सलाहकार पूरी तरह से सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। इनकी दशा ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों जैसी ही है।
संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सम्बोधित पत्र में कहा गया है कि यदि 25 मई तक सरकार की ओर से बातचीत को बहाल करने के लिए सकारात्मक जवाब नहीं मिला तो 26 मई को किसान देश भर में विरोध दिवस मनाएँगे।
तूफ़ान के सिलसिले में राहत और बचाव के सभी एहतियाती उपाय किये जा रहे हैं। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) ने अपनी 65 टीमों को तैनात कर दिया है तथा 20 टीमें को आपात परिस्थितियों के सतर्क रहने यानी स्टैंडबाय पर रखा गया है। थल सेना, नौसेना और तटरक्षक बल को भी अपने जहाज़ों और विमानों के साथ मुस्तैद रहने को कहा गया है।
मार्केटिंग सीज़न में सरकारी खरीद का कोटा इसलिए निर्धारित किया जाता है ताकि यदि किसी भी वजह से बिक्री सीज़न के दौरान बाज़ार में दलहन-तिलहन या खोपरा का दाम इसके MSP से नीचे जाने लगे तो केन्द्र और राज्य सरकार की ख़रीद मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत पंजीकृत किसानों से सीधे खरीदारी कर सके।
खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने को लेकर अप्रैल में केन्द्र सरकार और राज्यों के बीच हुई चर्चा के बाद अब 253.6 करोड़ रुपये के खर्च से तिलहन की उन्नत किस्म के बीजों को मुफ़्त बाँटा जाएगा।
50 किलो की DAP की बोरी अब 2,400 रुपये की जगह अब 8 अप्रैल से पहले वाली अपनी पुरानी कीमत यानी 1,200 रुपये में ही मिलेगी।
PMGKAY-III के तहत लक्षद्वीप प्रशासन इकलौता है जिसने मई और जून 2021 के लिए आबंटित अपने पूरे कोटा को उठा लिया है। लक्षद्वीप के बाद 15 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश अब तक मई के लिए आबंटित अपने पूरे कोटा को FCI के डिपो से उठा चुके हैं। ये हैं – आन्ध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, केरल, लद्दाख, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, पुडुचेरी, तमिलनाडु, तेलंगाना और त्रिपुरा।
PMKSNY अब पूरे देश के हरेक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों के किसानों के लिए समान रूप से लागू हो गयी है। इसके तहत उन छोटे और सीमान्त किसानों को 2-2 हज़ार रुपये की तीन किस्तों के रूप में 6,000 रुपये सालाना दिये जाते हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर या 5 एकड़ से कम ज़मीन है।
दलहन की अनेक फसलों को खेत का टॉनिक माना जाता है। जैसे खरीफ की फसलों से पहले मूँग, उड़द, ढेंचा, लोबिया और रबी की फसलों से पहले मसूर, अरहर और चना की खेती करने पर इसलिए बहुत ज़ोर होता था क्योंकि इन फसलों की जड़ों में ऐसे बैक्टीरिया होते हैं जो वातावरण से नाइट्रोजन को खींचकर ज़मीन में मिलाते हैं। इसीलिए इन फसलों के अवशेष को भी 45-50 दिनों बाद खेतों में ही जोतकर सिंचाई कर दी जाती है ताकि वो जल्दी से सड़-गलकर खाद में तब्दील हो जाएँ। इसे ही ‘हरी खाद की खेती’ कहते हैं।
खेत-तालाब योजना बुन्देलखंड समेत कम वर्षा और अत्यधिक भूजल दोहन करके नाज़ुक (क्रिटिकल) श्रेणी में पहुँच गये 44 ज़िलों के 167 ब्लॉक के किसानों से जुड़ी है। 27.88 करोड़ रुपये की इस योजना में 3,384 तालाब के निर्माण का लक्ष्य है। वैसे बुन्देलखंड में साल 2018 और 2019 में केन्द्र सरकार के विशेष पैकेज़ की बदौलत 166 चेक डैम का भी निर्माण हुआ है। इससे सूखा पीड़ित क्षेत्र के किसानों को ख़ासी राहत भी मिली है।
परम्परगत खेती के तहत गेहूँ-चावल-दलहन-तिलहन जैसी फसलों के सिवाय बाक़ी पूरा का पूरा ग्रामीण समाज बुरी तरह से टूटा हुआ है। ऐसे करोड़ों लोगों की मदद के लिए आगे आने वाले सरकारी तंत्र का कहीं दूर-दूर तक कोई नामोनिशान नहीं हैं। सभी ने किसानों को उनके नसीब पर ही छोड़ दिया है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PMKSNY) योजना के तहत की ताज़ा किस्त के रूप में 19 हज़ार करोड़ रुपये किसानों के खातों में पहुँचेंगे। इससे पहले PMKSNY के तहत किसानों को 1.15 लाख करोड़ रुपये भेजे जा चुके हैं।
राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार लगातार किसानों और प्रदर्शनकारियों का बदनाम करने के रवैये से बाज नहीं आ रही। इसीलिए बार-बार आम जनता के बीच दुष्प्रचार करवाया जा रहा है कि प्रदर्शनकारी किसान कोरोना से जुड़े नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल परे है।