सम्मिलन आधारित एक नयी पहल के तहत जनजातीय कार्य मंत्रालय की नोडल एजेंसी ट्राइफेड ने वन धन मोड से जनजातीय उद्यम मोड की तरफ बढ़ने की योजना बनाई है। जिन प्रमुख कार्यों की योजना बनाई जा रही है, उनमें से एक है एमएफपी के लिए एमएसपी के साथ वन धन योजना का सम्मिलन।
ऐसा करने का एक तरीका वन धन योजना के उद्यम मॉडल के माध्यम से होगा: स्फूर्ति (पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिए कोष की योजना) और ट्राइफेड के तहत प्रसंस्करण से लेकर क्लस्टर विकास तक।
विकास के इस क्लस्टर-आधारित मॉडल में, एक विशिष्ट स्फूर्ति इकाई में 10 वन धन केंद्र (एक क्लस्टर) शामिल होंगे और इसके दायरे में 3,000 घर आएंगे और 15,000 आदिवासियों की एक जनजातीय आबादी शामिल होगी। जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा द्वारा रायगढ़, महाराष्ट्र और जगदलपुर, छत्तीसगढ़ में अगस्त में एमएफपी और वन धन घटक दोनों के एमएसपी का सम्मिलन करने वाला ट्राइफेड/स्फूर्ति मॉडल पहले ही शुरू किया जा चुका है।
नई पहल को गति देने के लिए, ट्राईफेड ने 25 नवंबर, 2020 को इस विषय पर एक वेबिनार आयोजित किया, जिसमें सभी राज्य के नोडल विभागों, राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों और वन धन केंद्रों के सदस्यों जैसे अन्य हितधारकों ने हिस्सा लिया। यह जनजातीय विकास के सफल वन धन और एमएसपी मॉडल के अगले चरण पर केंद्रित था जो उद्यम विकास पर ध्यान देगा। इस अवसर पर बोलते हुए, ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक प्रवीर कृष्ण ने कहा, “वन धन और एमएसपी योजनाओं की सफलता के साथ, यह सोचने का समय है कि ट्राइफेड को अब आगे क्या करना है?
बहुत विचार-विमर्श और जानकारी हासिल करने के बाद, सम्मिलन को आगे ले जाने वाले इस मौजूदा मॉडल से आगे बढ़ने का यह फैसला किया गया ताकि आजीविका और सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से उच्च स्तर की आय सुनिश्चित की जा सके। वन धन के दूसरे चरण में उद्यम मॉडल पर ध्यान दिया जाएगा।”
ट्राइफेड/स्फूर्ति मॉडल जिसे पहले ही अगस्त में रायगढ़, महाराष्ट्र और जगदलपुर, छत्तीसगढ़ में शुरू किया जा चुका है, उसे ट्राइफेड इस समय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के सहयोग से लागू कर रहा है। ट्राइफ़ेड का उद्देश्य आदिवासी वन संग्रहकर्ताओं द्वारा जमा किए गए एमएफपी के बेहतर उपयोग और मूल्य संवर्धन के माध्यम से आदिवासियों की आय में वृद्धि करना है। एक शुरुआत के रूप में, रायगढ़, महाराष्ट्र और जगदलपुर, छत्तीसगढ़ में दो लघु वन उत्पादन (एमएफपी) प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की जा रही हैं।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के सहयोग से, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के तहत स्कीम फॉर बैकवर्ड एंड फॉरवर्ड लिंकेज के तहत जो इकाइयां स्थापित की जाएंगी, वे राज्य में वन धन केंद्रों से कच्चे माल की खरीद करेंगी। पूरी तरह से संसाधित उत्पादों को ट्राइब्स इंडिया के आउटलेट, और फ्रेंचाइजी स्टोरों में देश भर में बेचा जाएगा।
इसके अलावा, ट्राइफेड ने आदिवासी उद्यमियों चिन्हित करने और प्रशिक्षित करने की योजना बनाई है जो उत्पादों को बेच भी सकते हैं। पहले चरण में 100 ट्राइफूड परियोजनाओं को तुरंत शुरू करने की योजना के साथ देश भर में 200 ट्राइफूड परियोजनाएं लागू करने की योजना बनाई गयी है।
पूरे देश में सिस्टम और प्रक्रियाएं लागू की जा रही हैं, ताकि एमएफपी की खरीद पूरे साल होती रहे और यह आदिवासियों की पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ उनकी आय को दोगुना कर दे।
ट्राइफेड ने जनजातीय लोगों के लिए आजीविका कार्यक्रम के साथ कौशल विकास और सूक्ष्म उद्यमिता कार्यक्रम के विस्तार की योजना बनाई है। इसे राष्ट्रीय स्तर की पहल जैसे कि आत्मनिर्भर अभियान, “गो वोकल फॉर लोकल” और मंत्रालयों के अन्य कार्यक्रमों की मदद से एक अकेली पहल का रूप देने की योजना है।
प्रधानमंत्री जनजातीय मिशन उन आदिवासियों के लिए उचित मौद्रिक रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए एक स्थायी मॉडल की स्थापना पर केंद्रित होगा, जिनकी आय का ज्यादातर हिस्सा लघु वन उत्पाद (एमएफपी) संग्रह से आता है।
यह प्राथमिक प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन, भंडारण, पैकेजिंग, परिवहन, ब्रांडिंग और विपणन के लिए स्वयं सहायता समूह-आधारित सूक्ष्म-उद्यमों और क्लस्टर किए गए वन धन निर्माता कंपनियों को बढ़ावा देकर हासिल किया जाएगा।
विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों और ग्रामीण विकास मंत्रालय, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, डीएमएफ, आईसीएआर, आयुष मंत्रालय जैसे विशेषज्ञ संस्थानों के बीच सम्मिलन की योजना बनायी जा रही है जिसका लक्ष्य इन आदिवासियों के लिए स्थायी आजीविका और आय के अवसरों में सुधार करना है।
सम्मिलनों का दायरा विकास के विभिन्न पहलुओं पर आधारित होगा। जिन क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाएगा उनमें से एक आदिवासी उद्यमिता विकास है – जो जनजातीय आबादी में कौशल और तकनीक को बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम, डिजिटल सामग्री के निर्माण एवं विकास के लिए टीआईएसएस, केआईएसएस- भुवनेश्वर जैसे संस्थानों के साथ भागीदारी के जरिए किया जाएगा।
ट्राइफेड भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के एक प्रमुख राष्ट्रीय कार्यक्रम, उन्नत भारत अभियान (यूबीए) के लिए आईआईटी- दिल्ली के साथ साझेदारी भी कर रहा है। इस सहयोग के साथ, इन आदिवासी वनवासियों को नई प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों, उत्पाद नवाचार, मेंटरशिप, परिवर्तनकारी डिजिटल प्रणालियों और हैंडहोल्डिंग जैसी चीजें सीखने को मिलेंगी। सम्मिलन वाले दूसरे क्षेत्रों में औषधीय पौधों की खेती और प्रसंस्करण; कृषि और बागवानी, और अन्य शामिल हैं।
हाल ही में आयोजित किए गए वेबिनार में, नियोजित दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार करने के बाद आगे उठाये जाने वाले जरूरी कदमों को सूचीबद्ध किया गया। तत्काल उठाया जाने वाला पहला कदम राज्य योजनाओं का विकास करना है जो विशेष रूप से स्फूर्ति/ट्राइफूड तृतीयक प्रसंस्करण इकाइयों को लेकर सम्मिलन का लाभ उठा सके और कृषि, बागवानी, सेरीकल्चर, फ्लोरीकल्चर और औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती के लिए क्लस्टर कार्यक्रमों के माध्यम से आदिवासी आबादी के लिए वर्षभर की आय सुनिश्चित कर सके।
बैठक के अगले हिस्से में वन धन केंद्रों (डिजिटलीकरण, प्रस्तावों की संख्या, क्रियान्वयन) के मौजूदा कार्यान्वयन की राज्यवार समीक्षा, एमएफपी के लिए एमएसपी, ट्राइफूड परियोजनाओं (योजना और आगामी) और शेष वित्तीय वर्ष के लिए सूचीबद्ध लक्ष्यों के लिए नियोजित चरणों पर चर्चा पर ध्यान दिया गया।
ट्राइफेड अगले वर्ष में इन नियोजित पहलों के सफल कार्यान्वयन के साथ, बड़े पैमाने पर जनजातीय उद्यमिता मॉडल के माध्यम से देश भर में जनजातीय पारिस्थितिकी तंत्र के पूर्ण परिवर्तन की उम्मीद करता है।
‘न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और एमएफपी के लिए मूल्य श्रृंखला के विकास के माध्यम से लघु वन उपज (एमएफपी) के विपणन का तंत्र’ परिवर्तन के दीप के रूप में आया है और इसने आदिवासी पारिस्थितिकी तंत्र पर अभूतपूर्व असर डाला है। यह जनजातीय मामलों के मंत्रालय की एक प्रमुख योजना है और इसका उद्देश्य वन उपज के आदिवासी संग्रहकर्ताओं को पारिश्रमिक और उचित मूल्य प्रदान करना है, जो कि एमएफपी की कई वस्तुओं के मामले में, बिचौलियों के जरिए मिलने वाले मूल्य से लगभग तीन गुना अधिक है, जिससे उन्हें काफी आय होगी।
वन धन केंद्रों की स्थापना ट्राइफेड की एक और परिवर्तनकारी पहल है जो आदिवासी संग्रहकर्ताओं, वनवासियों और घरों से काम करने वाले आदिवासी कारीगरों के लिए रोजगार सृजन के एक स्रोत के रूप में उभरी है। लाखों आदिवासी संग्रहकर्ताओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए 18,500 स्वयं सहायता समूहों में 1,205 जनजातीय उद्यम स्थापित किए गए हैं। साथ में, ये दोनों पहलें रोजगार, आय और उद्यमशीलता को बढ़ावा देते हुए आदिवासियों को एक व्यापक विकास पैकेज प्रदान करती हैं।