Water Management In Natural Farming Tips: प्राकृतिक खेती में जल प्रबंधन कैसे करें?
प्राकृतिक खेती में जल प्रबंधन (Water Management In Natural Farming) से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, फसल की गुणवत्ता सुधरती है और जल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
जैविक और प्राकृतिक खेती के फायदे और तकनीकों का अन्वेषण करें। स्वस्थ जीवन के लिए जैविक खेती के लाभ जानें। किसान ऑफ इंडिया पर हमारे गाइड के साथ स्वास्थ्यपूर्ण खेती की दुनिया में कदम बढ़ाएं।
प्राकृतिक खेती में जल प्रबंधन (Water Management In Natural Farming) से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, फसल की गुणवत्ता सुधरती है और जल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
जैविक यानी ऑर्गेनिक खेती में किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि इसमें ऑर्गेनिक खाद व कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। यानी मिट्टी के प्राकृतिक गुणों को बरकरार रखते हुए खेती की जाती है।
जैविक खेती की ओर लौटने के लिए वर्मीवॉश, एक बेहद शानदार, किफ़ायती और घरेलू विकल्प है। पैदावार बढ़ाने वाली जैविक खाद के अलावा वर्मीवॉश, एक प्राकृतिक रोगरोधक और जैविक कीटनाशक की भूमिका भी निभाता है। इसका उत्पादन केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) निर्माण के दौरान ही या फिर अलग से भी किया जाता है। जानिए वर्मीवॉश उत्पादन से लेकर इसके बारे में अन्य जानकारियां।
देहरादून के युवा ताहिर हसन सिर्फ़ एक साल से ही ऑर्गेनिक खेती और वर्मीकम्पोस्ट बनाने का काम कर रहे हैं और इससे उन्हें लाखों का मुनाफ़ा भी हो रहा है। कैसे वर्मीकम्पोस्ट व्यवसाय से युवा अच्छी कमाई कर सकते हैं? आइए, जानते हैं।
फसलों की पौष्टिकता और मिट्टी की गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए अब किसान केमिकल यु्क्त खाद की बजाय जैविक खाद के इस्तेमाल पर ज़ोर दे रहे हैं। इसी तरह पौधों के विकास और कीटों के लिए भी जैविक तरल का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसे वर्मीवॉश कहते हैं।
जैविक खाद के कुटीर उत्पादन की तकनीक बेहद आसान और फ़ायदेमन्द है। इससे हरेक किस्म की जैविक खाद का उत्पादन हो सकता है। इसे अपनाकर किसान ख़ुद भी जैविक खाद के कुटीर और व्यावसायिक उत्पादन से जुड़ सकते हैं।
दलहन भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और पूरी दुनिया में दलहन का सबसे अधिक उत्पादन भारत में ही होता है। किसानों के लिए भी इसकी खेती फ़ायदेमंद है। इसलिए दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर किसान दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, तो राइज़ोबियम कल्चर उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है।
देशभर में कई किसानों ने अपनाई है प्राकृतिक खेती की विधि। आइए जानते हैं जीवामृत और बीजामृत को बनाने का तरीका।
सांवा भी मोटे अनाजों में से एक है जो कभी गरीबों का मुख्य भोजन हुआ करता था, लेकिन अब आम लोगों की थाली से दूर हो चुका है। सरकार बाकी अनाजों की तरह ही सांवा की खेती को भी बढ़ावा दे रही है, क्योंकि ये पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है और बिना सिंचाई वाले इलाकों में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है।
उत्तराखंड में किसान और कंपनियां मिलकर जैविक खेती या नेचुरल खेती को प्रमोट कर रही हैं। ऐसे में कंपनियों की ओर से कई ऐसे Agri-Equipment बनाए जा रहे हैं, जो किसानों की मदद करेंगे और फसलों को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा। ऐसा ही एक Agri-Equipment है ऑटोमैटिक सोलर लाइट ट्रैप।
दिल्ली के एक कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट ने न सिर्फ़ खुद जैविक खेती अपनाई, बल्कि किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। किसानों को बाज़ार की उपलब्धता और जैविक खेती के लिए संचित अग्रवाल ने कैसे प्रोत्साहित किया, क्या तरीके अपनाएं, जानिए इस लेख में।
वर्मीकम्पोस्ट जिसे केंचुआ खाद भी कहा जाता है, पोषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद होती है। जिसे गोबर और केंचुए की मदद से तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में केंचुए बहुत अहम होते हैं। इसलिए केंचुए की सही देखभाल करके बिज़नेस से अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
शहर में जगह की कमी के चलते जो लोग अपने बागवानी का शौक पूरा नहीं कर पातें, वो अतिथि पोपली से सीख ले सकते हैं। जो पिछले 25 सालों से गमले और घर के सामने की छोटी सी जगह में सब्ज़ियां और जड़ी-बूटियां उगा रही हैं।
ऑर्गेनिक फार्मिंग यानी जैविक खेती मिट्टी और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के साथ गुणवत्तापूर्ण पौष्टिक फसल उत्पादन के लिए ज़रूरी है और जैविक खेती में सबसे बड़ी ज़रूरत है वर्मीकम्पोस्ट। जानिए कैसे डॉ. श्रवण कुमार वर्मीकम्पोस्ट व्यवसाय को लेकर ट्रेनिंग दे रहे हैं।
Rooftop organic farming (छत पर जैविक खेती): किचन गार्डेन की तरह घर की छत पर सब्जियाँ उगाकर पैसे की बचत के अलावा घरेलू पानी और कचरे का जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल हो सकता है। घर की छत पर सब्जियों की जैविक खेती करके पूरे साल ताज़ा सब्ज़ियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन (Climate change) की वजह से जैविक और अजैविक तत्वों के बीच प्राकृतिक आदान-प्रदान से जुड़ा ‘इकोलॉजिकल सिस्टम’ भी प्रभावित हुआ है। इससे मिट्टी के उपजाऊपन में ख़ासी कमी आयी है। सिंचाई की चुनौतियाँ बढ़ी हैं। इसीलिए किसानों को जल्दी से जल्दी पर्यावरण अनुकूल खेती को अपनाना चाहिए।
ऑर्गेनिक फूड प्रॉडक्ट्स की मांग बढ़ने के साथ ही इसके लिए ज़रूरी वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost) की मांग भी बढ़ गई है। महिला किसानों और स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups) के साथ ATMA ग्रुप पंचकव्य, अमृता करैसल और पांच पत्ती के अर्क के उत्पादन में भी महिलाओं की ज़्यादा भागीदारी को बढ़ावा दे रहा है।
आज के दौर में वही किसान सफल होता है जो बदलते वक्त की नब्ज़ पकड़कर खुद को आधुनिक खेती की तकनीकों से अपडेट करता है। पारंपरिक खेती से मुनाफ़ा कमाना अब बहुत मुश्किल है, ऐसे में खेती को व्यवसाय की तरह करने और उन्नत तकनीकों के इस्तेमाल से ही सफलता मिलती है और इसकी बेहतरीन मिसाल हैं अंबाला की महिला किसान अमरजीत कौर।
आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी ज़िले के सीथमपेटा गाँव के रहने वाले सतीश कॉमर्स में पोस्ट ग्रेजुएट हैं। नौकरी के पीछे न जाते हुए उन्होंने अपनी पारंपरिक खेती को आगे बढ़ाने का फैसला किया और पशु आधारित जैविक खेती को चुना।
पंजाब की बीबी कमलजीत कौर ने किचन गार्डन में सब्ज़ियां उगाने से शुरुआत की और अब वो एक सफल महिला उद्यमी बन चुकी हैं।