कृषि अवशेष जलाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बढ़ोतरी पर IISER का अनुसंधान
वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी उपग्रह-आधारित तकनीक विकसित की है, जो भारत में कृषि अवशेष जलाने से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर प्रकाश डालता है।
वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी उपग्रह-आधारित तकनीक विकसित की है, जो भारत में कृषि अवशेष जलाने से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर प्रकाश डालता है।
पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान करने का संकल्प लेने के उद्देश्य से ही हर साल विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। आइए जानते हैं पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य, क्या है इतिहास और क्या है इस साल की थीम।
हरित क्रान्ति के तहत जैसे-जैसे गेहूँ और धान की पैदावार बढ़ी वैसे-वैसे भारतीय थालियों से पौष्टिक मोटे अनाजों से बने व्यंजन और इसकी प्रति व्यक्ति खपत घटती चली गयी। आम तौर पर धान के मुक़ाबले मोटे अनाजों की पैदावार कम है। लेकिन देश के कुछ ज़िलों में वर्षा आधारित मोटे अनाजों की खेती की उपज धान से बेहतर है। इसीलिए जलवायु अनुकूलन और अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए मोटे अनाज की खेती आज के वक़्त की मांग है।
जलवायु परिवर्तन (Climate change) की वजह से जैविक और अजैविक तत्वों के बीच प्राकृतिक आदान-प्रदान से जुड़ा ‘इकोलॉजिकल सिस्टम’ भी प्रभावित हुआ है। इससे मिट्टी के उपजाऊपन में ख़ासी कमी आयी है। सिंचाई की चुनौतियाँ बढ़ी हैं। इसीलिए किसानों को जल्दी से जल्दी पर्यावरण अनुकूल खेती को अपनाना चाहिए।
कृषि पर पड़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखते हुए किसान ऑफ़ इंडिया ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एग्रोनामी डीविज़न के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह और केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एच. एस.सिहं से ख़ास बातचीत की।
केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि आज जलवायु परिवर्तन वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चिन्ता और चुनौती का विषय है। इससे निपटने के लिए सभी केवीके और आईसीएआर के संस्थानों तथा अन्य वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण निभानी होगी।
बुआई की परम्परागत छिटकवाँ विधि को ऊँची लागत और जलवायु परिवर्तन की दोहरी मार से बचाने के लिए ही कृषि विज्ञानियों ने कुंड और नाली विधि से बुआई करने की तकनीक विकसित की। कुंड और नाली विधि की बदौलत खेतों में बारिश के पानी का ज़्यादा संरक्षण होता है।