बिहार के नालंदा ज़िले की महिला किसान अनीता देवी की बतौर ‘मशरूम लेडी ऑफ़ बिहार’ अपनी अलग पहचान है। किसान परिवार की अनीता देवी ने पहले अपने मायके और फिर ससुराल में भी देखा कि पारंपरिक तरीके से की जाने वाली खेती-किसानी से इतनी आय नहीं हो पाती कि घर ठीक से चल सके, बच्चे ठीक से पढ़ सकें। परिवार के पास ज़मीन भी ज़्यादा नहीं थी, ऐसे में उन्हें एक ऐसे विकल्प की तलाश थी, जिसमें न ज़्यादा पूंजी की ज़रूरत हो और न ही ज़्यादा जगह चाहिए। ये विकल्प उन्हें मिला मशरूम के रूप में, लेकिन आज से डेढ़-दो दशक पहले उनके इलाके या ज़िले में भी दूर-दूर तक कोई ऐसा किसान नहीं था, जो मशरूम उत्पादन करता था। दूसरी ओर, मशरूम की मांग भी नहीं थी, इसलिए सभी किसान धान, गेहूं, दलहन फसलें या फिर सब्ज़ियों की ही खेती करते थे। अनीता देवी ग्रेजुएट हैं और जागरुक भी, ऐसे में उन्होंने ये तय किया कि पहले पूरी जानकारी जुटाएंगी तभी मशरूम उत्पादन में हाथ आजमाएंगी। इसके लिए उन्होंने जगह-जगह जाकर मशरूम की खेती को समझा, सेमिनार में शामिल हुईं और फिर जब एक बार उतरीं तो आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा। किसान ऑफ़ इंडिया से अनीता देवी ने मशरूम के बीज से लेकर बाज़ार तक पर खुलकर बात की और साथ ही संघर्ष से सफलता की ओर जारी अपने सफर के बारे में भी बताया।
मशरूम की खेती शुरू करने पर लोगों ने सुनाए ताने
अनीता देवी बताती हैं कि उन्होंने अपने पिता से मशरूम के बारे में सुना था, लेकिन मशरूम होता कैसा है ये कभी देखा नहीं था। वो बताती हैं कि जब रांची में बिरसा मुंडा कृषि विश्वविद्यालय में एक बार सेमिनार में किसी तरह से भाग लेने का मौका मिला, तब वहां मशरूम के बारे में पहली बार ठीक से समझा। इसके बाद वो ट्रेनिंग के लिए कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (ATMA) संस्थान और कृषि विज्ञान केंद्र के तहत उत्तराखंड गईं। उत्तराखंड स्थित गोविन्द बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय से 10 दिन की मशरूम उत्पादन ट्रेनिंग ली। अनीता देवी पहली बार वहीं से मशरूम के बीज लेकर अपने गांव नालंदा के अनंतपुर आईं थीं। शुरू में जब उन्हें नुकसान हुआ, तो कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से उन्होंने संपर्क किया और फिर कमियां ठीक की।
महिलाओं को बीज और मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग दी
अनीता देवी ने अपने साथ गांव की अन्य महिलाओं को भी जोड़ा और बड़े पैमाने पर मशरूम उत्पादन करने लगीं। उन्होंने महिलाओं को बीज और मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग दी। छोटे उत्पादकों को बेचने में दिक्कत होती थी तो उन्होंने खरीद भी शुरू की। अपने उत्पाद को मार्केट दिलाने के लिए उनके पति अलग-अलग मंडियों में जाते हैं। होटल कारोबारियों से संपर्क करते हैं और ऑनलाइन भी संभावनाएं तलाशते। अब तो खरीदार खुद भी उनके पास आने लगे हैं।
मशरूम उत्पादन के लिए क्या-क्या ज़रूरी?
अनीता देवी ने बताया कि मशरूम उगाने की जगह पर साफ-सफाई बहुत ज़रूरी है क्योंकि सफाई न होने पर फसल में रोग का खतरा बढ़ जाता है। इसके साथ ही मशरूम के अच्छे बीज (Spawn) से लेकर भूसे के रखरखाव के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। कई बार भूसा पहले से ही खराब होता है। उसमें नमी की मात्रा ज़्यादा होने पर भूसे के खराब होने का खतरा ज़्यादा होता है। ये भूसा कई बार लाल या काला भी हो जाता है, जिससे बैग में धब्बे आ जाते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि साफ भूसा लें।
100 ग्राम बीज से कम से कम एक किलोग्राम मशरूम
अनीता देवी का कहना है कि मशरूम उगाने के लिए जो भी खेत में उपलब्ध खर-पतवार होते हैं, उनका इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन नए उत्पादकों के लिए गेहूं के भूसे का इस्तेमाल करना बेहतर होता है। वज़ह ये है कि गेहूं का भूसा ज़ल्दी सड़ता नहीं है। इस भूसे में मशरूम के बीज की बिजाई की जाती है। इसे प्लास्टिक पैक में डालते हैं। औसतन 16X20 साइज़ के प्लास्टिक पैक में 100 ग्राम बीज डाला जाता है। अगर 16X28 का पैकेट हो तो फिर 200 ग्राम बीज डाला जाता है। सौ ग्राम बीज से कम से कम एक किलो मशरूम तैयार हो जाता है। इस बैग में पैक करने के बाद छेद किए जाने ज़रूरी हैं। अनीता देवी बताती हैं कि जिस तरह हमें सांस लेने के लिए ऑक्सीज़न की ज़रूरत है, वैसे ही मशरूम को भी चाहिए। अगर ठीक से मशरूम को हवा नहीं मिल पाती तो फिर उस बैग में जो बीज डालते हैं, वो सड़ना शुरू हो जाते हैं।
क्या मशरूम की जैविक खेती संभव है?
अनीता देवी का कहना है कि बटन मशरूम में तो केमिकल फर्टिलाइज़र का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन वो ऑयस्टर मशरूम जैविक तरीके से ही उगा रही हैं। फ्लोरिडा ऑयस्टर किस्म की खेती कर रही हैं। उनका कहना है कि बटन मशरूम में केमिकल खाद का इस्तेमाल करना ही पड़ता है, लेकिन ऑयस्टर मशरूम की जैविक खेती संभव है। उन्होंने बताया कि भूसे में गर्म पानी का इस्तेमाल करना चाहिए।
मशरूम के लिए सबसे अच्छा मौसम?
अनीता देवी बताती हैं कि सितंबर से मार्च तक मशरूम के लिए सबसे अनुकूल मौसम होता है। इस दौरान माइसेलियम ग्रो अच्छा होता है। फ्रूटिंग तो अप्रैल में भी होती है, लेकिन माइसेलियिम ग्रो नहीं होता। इस दिक्कत को दूर करने के लिए पफ पैनल का इस्तेमाल करना चाहिए। अनीता देवी खुद भी पूरे साल मशरूम उगाने के लिए पैनल और नया कमरा बनवा रही हैं।
अलग किस्मों के बीज में क्या अंतर है?
अनीता देवी बताती हैं कि बटन और ऑयस्टर दोनों के बीज देखने से अंतर नहीं पता चलता,। सफेद रंग का ही फंगस होता है, लेकिन फसल का तरीका अलग है। बटन की बिजाई कंपोस्ट बनाकर और ऑयस्टर का भूसे में मिलाकर पैकिंग करते हैं। ये लेयरिंग के रूप में भी कर सकते हैं या पूरा मिलाकर, दोनों तरीके से कर सकते हैं।
मशरूम बैग में काले धब्बे क्या मशरूम में कीट की निशानी हैं?
बीज में कीट तापमान बढ़ने के साथ निकल आते हैं। जो धब्बे हैं उससे कोई नुकसान नहीं होता। इसलिए बैग में काले धब्बे देखकर उन्हें फाड़ना नहीं चाहिए। मशरूम के लिए पानी ज़रूरी है। सर्दी में सिंचाई कम चाहिए और गर्मियों में दो से तीन बार सिंचाई कर सकते हैं। अनीता देवी ने छिड़काव के लिए मशरूम उगाने वाले कमरे में स्प्रिंकलर लगा रखे हैं।
मशरूम में लागत का क्या है हिसाब?
बिहार की मशरूम लेडी अनीता देवी के इस सफर में उनके हमसफर यानी पति संजय कुमार हर कदम पर साथ खड़े रहे हैं। अनीता देवी अगर मशरूम उत्पादन का पूरा काम संभालती हैं तो संजय कुमार मशरूम की मार्केटिंग संभालते हैं। उनका कहना है कि एक किलो मशरूम बीज की कीमत 100 रुपये, 10 किलो भूसे की कीमत 50 रुपये पड़ती है। इसके अलावा, दवाइयां, पॉलीथीन, मज़दूरी वगैरह का भी जोड़ लें तो लागत 50 रुपये प्रति किलो तक आती है। दूसरी ओर इसकी बिक्री 80 रुपये से लेकर 200 रुपये तक है। मशरूम का कोई तय रेट नहीं है। ये इस पर निर्भर करता है कि कहां और किसे बेच रहे हैं। अनीता देवी होलसेल पर 85 रुपये किलो मशरूम बेचती हैं, लेकिन मंडी में 120 रुपये भी मिल जाते हैं।
घर में कैसे लगाएं मशरूम प्रोसेसिंग यूनिट?
ऑटो क्लेव स्टेरेलाइज़ करने के काम में आने वाली मशीन है। उनका कहना है कि मशरूम की बिजाई के बाद निर्जीवीकरण के लिए बैग को ऑटो क्लेव में डालती हैं। वो बताती हैं कि जैसे इंजेक्शन देने से पहले सुई को स्टेरेलाइज़ करते हैं वैसे ही मशरूम के कच्चा माल को इस मशीन में स्टेरेलाइज़ करते हैं। यहां से निकालने के बाद इसे BOD में डालते हैं, इसमें लगे पंखे से 10 से 15 मिनट में अतिरिक्त नमी सुखा दी जाती है, BOD INCUBATOR में सेहतमंद अच्छी गुणवत्ता के मदर स्पॉन तैयार करके रखे जाते हैं। यहां से बीज को निकालकर 15 दिन के लिए स्टोर रूम में माइसेलियिम ग्रो के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद एक से डेढ़ महीने के भीतर बीज पूरी तरह तैयार हो जाता है।
पहले पुरस्कार ने आगे बढ़ने में बहुत मदद की
अनीता देवी को सबसे पहले पुरस्कार के रूप में प्रशस्ति पत्र के साथ 50 हज़ार रुपये मिले थे। वो बताती हैं कि इस पैसे से उन्हें काफ़ी मदद मिली क्योंकि मशरूम का उत्पादन बढ़ाने के लिए नए कमरे की ज़रूरत थी। इन पैसों से उन्होंने कमरा बनवा लिया। अब नालंदा ज़िले के चंडीपुर प्रखंड के अनंतपुर गांव में उनका अपना अनीता मशरूम फ़ार्म है। इस फ़ार्म से आसपास के इलाकों की कई महिला किसान जुड़ी हैं। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। अनीता देवी से मशरूम की खेती के गुर सीखते हैं। धीरे-धीरे अनंतपुर और आसपास के इलाकों में मशरूम उत्पादन का दायरा बढ़ता जा रहा है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।