मध्य प्रदेश के भोपाल ज़िले के गाँव बरखेड़ा नाथू के रहने वाले राज कुमार पाटीदार वैसे तो पुश्तैनी किसान हैं लेकिन खेती-बाड़ी को लेकर उनका नज़रिया आधुनिक और प्रगतिशील है। राज कुमार अपनी 10 एकड़ की ज़मीन पर गेहूँ की परंपरागत खेती करते थे, लेकिन उपज 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ ही हो पाती थी। इस कारण उन्हें फसल की सही कीमत पाने के लिए 6 महीने तक का लंबा इंतज़ार करना पड़ता था। इस बीच कोई खर्चा या परिवार की कुछ ज़रूरतें निकल आती थी तो उनके पास पैसे नहीं होते थे। परंपरागत खेती करते हुए उन्हें सिर्फ़ उनकी लागत के पैसे ही मिल पा रहे थे, मुनाफ़ा शून्य के बराबर होता था। ऐसे में वो परंपरागत खेती के अलावा एक ऐसे आय के स्रोत की तलाश में थे, जो भोपाल के मौसम के हिसाब से अनुकूल हो और जिसकी बाज़ार में मांग भी अच्छी खासी हो। ऐसे में उन्होंने गेंदे की खेती की राह चुनी।
क्यों किसान कर रहे गेंदे की खेती की ओर रूख
गेंदे की फसल 2 से 3 महीने में बड़ी हो जाती है और एक बार फसल बड़ाई होने के बाद गेंदे की फसल को हर हफ़्ते ज़रुरत के हिसाब से तोड़ सकते हैं। अब राज कुमार गेंदे के फूल को पैक करके सीधा बाज़ार में बेचते हैं, जिसका उन्हें 250 से लेकर 500 रुपये प्रति किलो तक दाम मिल जाता है और हर हफ़्ते या महीने के उनको गेंदे के फूल के दाम भी मिलते हैं।
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सालभर बनी रहती है फूलों की मांग
आज के समय में राज कुमार गेंदे की खेती से बहुत खुश है क्योंकि अब उन्हें 6 महीने तक फसल का इंतज़ार नहीं करना पड़ता और घर परिवार के खर्चे भी आराम से निकल जाते हैं। गेंदे की खेती साल भर की जा सकती है। वहीं फूलों की मांग बाज़ार में सालभर बनी रहती है। यही कारण है कि कई किसान इसका रूख कर रहे हैं। इनकी खेती अन्य फसलों की तुलना में किसानों के लिये ज़्यादा फ़ायदेमंद है।