सौर ऊर्जा के ज़रिये दूर-दराज़ के इलाके में बसे किसानों की आमदनी में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा करने के इरादे से साल 2019 में PM-KUSUM योजना शुरू हुई थी। इसी सिलसिले में जोधपुर स्थित केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (ICAR-CAZRI) ने कृषि वोल्टीय प्रणाली विकसित की है। इसके ज़रिये किसानों को अपने खेतों के दोहरे इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया जा रहा है। ताकि वो अपने खेतों में उपयुक्त फसल पैदा करने के साथ-साथ सौर ऊर्जा भी पैदा कर सके और इसकी बिजली को बेचकर अपनी अतिरिक्त आमदनी की टिकाऊ रास्ता खोल सकें। दरअसल, कृषि वैज्ञानिकों के सामने एक ऐसा मॉडल तैयार करने की चुनौती थी जिससे फसल और बिजली दोनों पैदा हो सके और किसी एक के उत्पादन से दूसरे का उत्पादन प्रभावित नहीं हो।
सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन वैसे तो पूरे देश में ही हो सकता है। लेकिन राजस्थान जैसे शुष्क जलवायु वाले इलाके के किसानों के लिए तो ‘सौर ऊर्जा’ एक बेजोड़ कमाऊ पूत बन सकता है। मिसाल के तौर पर रेगिस्तानी इलाके वाले जोधपुर में साल के करीब 300 दिन आकाश साफ़ रहता है और कड़ी धूप निकलती है। वहाँ की धरती पर औसतन रोज़ाना 6 घंटे तक ऐसी कड़ी धूप पड़ती है जिसमें सौर बिजली का शानदार उत्पादन हो सकता है। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो जोधपुर ज़िले में प्रति वर्ग मीटर पर 6 यूनिट सौर बिजली पैदा करने की क्षमता है।
देश में सौर ऊर्जा की ऐसी क्षमताओं को देखते हुए ही भारत सरकार ने राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत साल 2021-22 में एक लाख मेगावॉट (100 गीगावॉट) सौर बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसी मिशन के तहत राजस्थान रिन्यूएबल एनर्जी कॉर्पोरेशन लिमिटेड (RRECL) ने वर्ष 2022 तक प्रदेश में 25,000 मेगावॉट क्षमता के सौर ऊर्जा प्लांट लगाने का लक्ष्य तय किया है। राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत शुरू हुए कुसुम योजना का उद्देश्य सौर ऊर्जा के ज़रिये साल 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपने को साकार करने में मददगार बनने का है।
क्या है ICAR-CAZRI की कृषि वोल्टीय प्रणाली?
किसी बंजर या परती ज़मीन पर सोलर प्लांट लगाने और खेती-बाड़ी की उपज देने वाले किसी खेत में सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने में बहुत फ़र्क़ है। खेत में यदि सौर बिजली पैदा करने का महत्व है तो कृषि उपज भी ज़रूरी है। चूँकि सोलर पैनल की वजह से पूरी धूप खेत में नहीं पड़ सकती, इसीलिए ऐसी तकनीक विकसित करना ज़रूरी था, जिससे फसल या उपज पर सौर बिजली का दुष्प्रभाव नहीं पड़े। इसी चुनौती को देखते हुए ICAR-CAZRI की कृषि वोल्टीय प्रणाली विकसित की गयी है।
सोलर पैनल वाले पूरे ढाँचे को ‘फोटोवोल्टिक मॉड्यूल’ (photovoltaic module) कहते हैं। ये सौर बिजली का सबसे अहम हिस्सा है और खेतों में लगाने पर इसकी छाया सूरज की दिशा के अनुसार बदलती रहती है। इसी तथ्य को देखते हुए फोटोवोल्टिक मॉड्यूल का ऐसा संयोजन बेहद ज़रूरी है जिससे ज़मीन पर फसलों की पैदावार प्रभावित नहीं हो। इसीलिए वैज्ञानिकों ने इसे ‘कृषि वोल्टीय प्रणाली’ कहा। इसमें ‘फोटोवोल्टिक मॉड्यूल’ को माइल्ड स्टील या आयरन एंगल के बने ख़ास ढाँचे पर ज़मीन से एक निश्चित ऊँचाई पर ऐसे फिट करते हैं जिससे सोलर पैनल का झुकाव ज़मीन की सतह से 26 डिग्री के कोण पर रहे। ताकि उसके नीचे भी ऐसी फसलें उगायी जा सकें जो सीधी धूप के अलावा छायादार धूप में दशाओं में भी प्रकाश संश्लेषण (photo synthesis) करके अपनी बढ़वार क़ायम रख सकें।
‘कृषि वोल्टीय प्रणाली’ में इस बात का ख़ास ख़्याल रखा जाता है कि ‘फोटोवोल्टिक मॉड्यूल’ की कतारों और इसके अगल-बगल इतना फ़ासला ज़रूर रहे जिससे एक कतार के पैनल की छाया दूसरों पर नहीं पड़े। इसमें दो कतारों के बीच के क्षेत्र का उपयोग भी फसल उगाने में करते हैं। ICAR-CAZRI के वैज्ञानिकों ने कृषि वोल्टीय प्रणाली के तीन डिज़ाइन विकसित किये हैं। उन्होंने 68×68 वर्ग मीटर की कुल जगह में 28×28 वर्ग मीटर के ब्लॉक बनाये। इसके तहत तीन कतारें बनायी गयी। पहली में दो कतारों के बीच का फ़ासला 3 मीटर, दूसरी में 6 मीटर और तीसरी में 9 मीटर रखा गया। इन तीनों ब्लॉक में दो तरह की संरचनाएँ बनायी गयीं। कुछ पंक्तियों में फोटोवोल्टिक पैनल के बीच में थोड़ी कम दूरी रखी गयी तो कुछ पंक्तियाँ को पूरी तरह से भरा बनाया गया।
कृषि वोल्टीय प्रणाली के लिए उपयुक्त फसलें
फोटोवोल्टिक पैनल्स की कतारों के बीच की खाली छोड़ी गयी ज़मीन के लिए ICAR-Central Arid Zone Research Institute (CAZRI) के कृषि वैज्ञानिकों ने अलग-अलग मौसम के लिए उपयुक्त फसलों का भी चयन किया। मसलन, वर्षाकाल या खरीफ के लिए – मूँग, मोठ और ग्वार की फसल और रबी की सिंचित फसलों के रूप में ईसबगोल, जीरा और चना की खेती। इसके अलावा ग्वारपाठा जैसे औषधीय पौधे, बैंगन, पालक और ककड़ी जैसी सब्जियाँ भी साल के अलग-अलग समय में उगायी गयीं। फोटोवोल्टिक मॉड्यूल के नीचे उगाने के लिए शुष्क जलवायु वाली लेमन घास और पामे रोजा जैसी सुगंधित घास को चुना गया।
वर्षा जल संरक्षण की तकनीक भी अपनायी
फोटोवोल्टिक मॉड्यूल के तहत प्रति मेगावॉट उत्पादन के लिए करीब दो हेक्टेयर ज़मीन की ज़रूरत पड़ती है। इसे ध्यान में रखते हुए ICAR-CAZRI के अपने परिसर में 105 किलोवॉट क्षमता वाली कृषि वोल्टीय प्रणाली स्थापित की गयी। ताकि खेत में फसल और सौर बिजली, दोनों का एक साथ लाभदायक उत्पादन हो सके। लेकिन कृषि वोल्टीय प्रमाली को और उपयोगी बनाने के लिए इसे वर्षा जल संरक्षण की तकनीक से भी जोड़ा गया। ताकि बारिश से इक्कठा हुए पानी से ही सोलर पैनल्स की नियमित सफ़ाई के अलावा वहाँ उगायी जा रही फसलों की सिंचाई में भी हो सके। इसके लिए हरेक सोलक पैनल के नीचे नालीदार ‘पतनाला’ जैसी आकृति बनायी गयी। फिर इसे पीवीसी पाइप लाइन के एक नेटवर्क से जोड़कर एक लाख लीटर क्षमता वाले एक तालाब से जोड़ा गया।
कितनी हुई सौर बिजली बेचने से कमाई?
फोटोवोल्टिक मॉड्यूल से पैदा हुई बिजली को ‘नेट मीटरिंग सिस्टम’ के तहत स्थानीय विद्युत ग्रिड से जोड़ा गया है। इस तरह से ICAR-CAZRI में पैदा हो रही सौर बिजली सीधी राजस्थान बिजली बोर्ड बेची जा रही है। वैसे तो इस तरह से राज्य बिजली बोर्ड को बेची जाने वाली बिजली का दाम विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है, लेकिन ICAR-CAZRI की कृषि वोल्टीय प्रणाली से उत्पादित बिजली से हुई आमदनी की गणना, 5 रुपये प्रति किलोवॉट की औसत दर से की गयी।
जोधपुर में बिजली उत्पादन लायक धूप औसतन 4-5 घंटे रोज़ाना मिलती है। लिहाज़ा, 1 किलोवॉट वाला फोटोवोल्टिक सिस्टम रोज़ाना 4-5 किलोवॉट घंटा (यूनिट) बिजली पैदा करता है। अब चूँकि ICAR-CAZRI की कुल स्थापित क्षमता 105 किलोवॉट है, इसलिए रोज़ाना कम से कम 400 यूनिट बिजली पैदा हो सकती है।वर्ष 2020 में बिजली उत्पादन का औसत 353 यूनिट प्रति माह रहा। यानी, सालाना उत्पादन 1,29,266 यूनिट का रहा, जिसका मूल्य 6,46,330 रुपये है।
ज़ाहिर है कि सिंचाई और फसल से होने वाली कमाई के अलावा सोलर बिजली बेचकर 2 हेक्टेयर जोत का किसान करीब साढे छह लाख रुपये की अतिरिक्त आमदनी पा सकता है। इसे अतिरिक्त आमदनी से बैंक का कर्ज़ आसानी से चुकाया जा सकता है। इसीलिए ज़रूरी है कि किसान भाई कुसुम योजना जैसी योजनाओं का फ़ायदा उठाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में आगे आएँ।
क्या है कुसुम योजना?
केन्द्र सरकार के गैरपरम्परागत और नवीकृत ऊर्जा मंत्रालय यानी Ministry of New and Renewable Energy (MNRI) की एक लोकप्रिय स्कीम का नाम ‘कुसुम योजना’ है। इसका मुख्य उद्देश्य सौर ऊर्जा को खेती-किसानी के क्षेत्र में प्रोत्साहित करके किसानों की कमाई बढ़ाने में मदद करना है। PM-KUSUM का पूरा नाम Pradhan Mantri Kisan Urja Suraksha evem Utthan Mahabhiyan या ‘प्रधान मंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान’ है। इसकी घोषणा मार्च 2019 में हुई थी और रूप-रेखा जुलाई 2019 में जारी हुई।
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कुसुम योजना के तहत किसानों को अपने खेतों या घर की छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने और डीज़ल या बिजली से चलने वाले पम्पिंग सेट्स को सौर बिजली से चलाने वाले सोलर प्लांट को लगाने के लिए बेहद रियायती दरों पर सहायता दी जाती है। कुसुम योजना के तहत किसानों को सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए 60 फ़ीसदी अनुदान या आर्थिक मदद देकर प्रोत्साहित किया जाता है। ऐसे प्लांट लगाने वाले किसान या भूमि मालिक को 60 हज़ार से लेकर एक लाख रुपये सालाना की अतिरिक्त कमाई हो सकती है, जिससे वो आसानी से बैंक का कर्ज़ उतार सकते हैं।
कुसुम योजना के लाभार्थी किसानों को सोलर प्लांट की कुल लागत में से सिर्फ़ 10 फ़ीसदी रक़म का इन्तज़ाम ख़ुद करना पड़ता है। बाक़ी राशि बैंक से कर्ज़ के रूप में मुहैया करवायी जाती है। कुसुम योजना का लाभ उठाने के इच्छुक किसान अपने नज़दीकी बैंक या नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) की वेबसाइट www.mnre.gov.in पर क्लिक करके या फिर टोल फ्री नम्बर 1800-180-3333 पर कॉल करके पूरी जानकारी ले सकते हैं।
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