छतरी के आकार की दिखने वाली मशरूम की फसल की खेती पर पिछले कुछ सालों से ज़्यादा जोर दिया जा रहा है। इसकी वजह है छोटे और सीमांत किसान कम जगह और कम लागत में मशरूम की खेती शुरू कर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। सबसे खास बात है कि मशरूम की खेती के लिए ज़मीन की ज़रूरत नहीं पड़ती। भूमिहीन किसान भी इसका उत्पादन कर अच्छी कमाई कर सकते हैं।
उच्च मूल्य वाली कृषि फसल बनकर उभर रही मशरूम
देश के कई राज्यों के किसान मशरूम की खेती कर अच्छी आमदनी भी कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक तेलंगाना,हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में व्यापारिक स्तर पर मशरूम की खेती होती है। अनुकूल जलवायु परिस्थिति जैसे राज्य कश्मीर में इसकी खेती की जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि मशरूम ऐसी उच्च मूल्य वाली कृषि फसल है, जो छोटे और सीमांत किसानों की आय में बढ़ोतरी करने में कारगर साबित हो सकती है।
मशरूम की खेती पर सरकार दे रही सब्सिडी
मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी कई अहम कदम उठा रही है। मशरूम की खेती के लिए किसान किसी भी कृषि विज्ञान केंद्र या फिर कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण ले सकते हैं। कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य प्रशिक्षण संस्थानों की ओर से मशरूम की खेती करने की विधि, मशरूम बीज उत्पादन तकनीक, मशरूम उत्पादन और प्रोसेसिंग जैसे कई विषयों पर कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
वहीं प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना सहित कई योजनाओं के तहत किसानों को कंपोस्ट पर सब्सिडी दी जाती है। वहीं कंपोस्ट यूनिट, बैग्स, मशरूम के बीज सहित कई चीजें निशुल्क किसानों को दी जाती है।
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देश में मुख्य तौर पर होती मशरूम की पांच किस्मों की खेती
देश में बेहतरीन पौष्टिक खाद्य के रूप में मशरूम का इस्तेमाल किया जाता है। दुनियाभर में खाने लायक मशरुम की लगभग दस हज़ार प्रजातियां हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां हीं खेती के लिए अच्छी मानी जाती हैं। भारतीय जलवायु के हिसाब से सफेद बटन, ढींगरी (ऑयस्टर) मशरुम, दूधिया मशरुम, पैडीस्ट्रा मशरुम, शिटाके मशरुम की खेती उपयुक्त मानी जाती है।
कमर्शियल उत्पादन से बढ़ेगी आमदनी
अब मशरूम का कमर्शियल उत्पादन सिर्फ़ महानगरों तक सीमित नहीं रहा है। कई गांवों के किसान भी इसका उत्पादन कर रहे हैं। मशरूम को सीधा सरकार किसानों से खरीदती हैं तो वहीं खुले बाज़ार में भी इसका दाम अच्छा मिल जाता है। मान लीजिए अगर गांव में किसान के आसपास इसका बाज़ार मौजूद नहीं भी है तो वो बाई प्रॉडक्ट्स बनाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं।
मशरूम में 85 से 90 फ़ीसदी तक पानी होने के कारण ये जल्दी खराब हो जाता है। इसी कारण इसे अगर प्रोसेस किया जाए तो ये लंबे समय तक तो चलता ही है, साथ ही इसके प्रोसेस्ड उत्पादों को बाज़ार में दाम भी अच्छा मिलता है।
प्रोसेस प्रॉडक्ट्स से अच्छी कमाई
प्रोसेसिंग के ज़रिए खाद्य पदार्थों को कई रूप में इस्तेमाल के लायक बनाया जाता है। वहीं इस विधि से उत्पादों को लंबे वक्त तक खाने लायक बनाया जाता है। मशरूम के पापड़, प्रोटीन का सप्लीमेंट्री पाउडर, अचार, बिस्किट, कूकीज, नूडल्स, जैम (अंजीर मशरूम), सॉस, सूप, चिप्स, सेव और भी कई उत्पाद बनाए जाते हैं।
मशरूम के पापड़ 300 रुपये प्रति किलो, मशरूम का पाउडर 500 से हज़ार रुपये प्रति किलो, 200 ग्राम के मशरूम अचार की कीमत करीब 300 रुपये, 700 ml की मशरूम सॉस की बोतल 300 से 400 रुपये, मशरूम के चिप्स 1099 प्रति किलो के हिसाब से बाज़ार में बिक जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मशरूम फेस्टिवल का आयोजन
मशरूम की खेती को लेकर प्रगतिशील किसानों को जागरूक करने के लिए बाकायदा हरिद्वार में अंतरराष्ट्रीय मशरूम फेस्टिवल (International Mushroom Festival) का आयोजन किया जा रहा है। 18 से 20 अक्टूबर तक चलने वाले इस आयोजन में देश और विदेश के कई कृषि विशेषज्ञ शामिल होंगे और मशरूम की खेती से जुड़ी नई तकनीकों और इससे किस तरह से रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं, इसके बारे में बताएंगे। International Mushroom Festival के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ पढ़ें: Mushcon International Mushroom Festival 2021: मिलेगी मशरूम की खेती से जुड़ी हर जानकारी
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