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बुंदेलखंड की जलवायु से लेकर मिट्टी तक, खेती के लिए बहुत उपयुक्त नहीं है। यहां गर्मी और सर्दी दोनों बहुत ज़्यादा होती है। सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं है और मिट्टी भी बहुत उपजाऊ नहीं है। इन मुश्किल स्थितियों में भी किसान कैसे खेती के ज़रिए अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, इसके लिए बांदा कृषि और प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय लगातार प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में पॉलीहाउस तकनीक को किसानों तक पहुंचाने के मकसद के साथ विश्वविद्यालय काम कर रहा है। इसकी मदद से किसान कम जगह में ही अधिक उत्पादन लेने के साथ ही, एक ही समय में एक से ज़्यादा फसल भी प्राप्त कर सकते हैं।
क्या है पॉलीहाउस तकनीक वर्टिकल फ़ार्मिंग और किसानों के लिए ये कैसे फ़ायदेमंद है, इस बारे में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और सब्ज़ी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार सिंह ने बात की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।
पॉलीहाउस में सब्ज़ियों का उत्पादन
डॉ. राजीव कुमार सिंह कहते हैं कि बुंदेलखंड का मौसम बहुत सख्त है। गर्मियों में तापमान 48-50 तक जाता है और सर्दी में 2-3 डिग्री तक। पानी की भी समस्या है और मिट्टी भी बहुत अच्छी नहीं है।इन मुश्किल परिस्थितियों में सब्ज़ियों का उत्पदान कैसे पूरे साल किया जाए, इसके लिए विश्वविद्यालय ने एक प्रोजेक्ट के तहत 200 स्क्वायर मीटर के छोटे एरिया में पॉलीहाउस बनाया है।
वो बताते हैं कि उनके क्षेत्र के किसान अभी पॉलीहाउस को अपना नहीं रहे है, क्योंकि शुरुआती लागत थोड़ी ज़्यादा आती है, लेकिन अब सरकार की ओर से 50 फ़ीसदी तक सब्सिडी दी जा रही है, जिससे धीरे-धीरे किसान इसे अपनाने लगे हैं। डॉ. राजीव बताते हैं कि उन्होंने नेचुरल वेंटिलेटेड पॉलीहाउस में टमाटर की वर्टिकल खेती की है। जिसमें टमाटर के पौधे ऊपर की तरफ़ 15 से 20 फ़ीट ऊंचाई तक जाते हैं। टमाटर के बीच मे पत्तागोभी, रंगीन गोभी, ब्रोकली, गांठगोभी की भी फसल लगाई है, जिनकी मार्केट वैल्यू बहुत ज़्यादा होती है।
एक ही समय पर कई फसल
डॉ. राजीव कुमार बताते हैं कि इस तरह सघनता से खेती करने से किसानों को एक ही जगह पर एक ही समय पर दो या उससे ज़्यादा फसल मिल जाती है। यानि किसानों को डबल फ़ायदा होता है। वो कहते हैं कि उन्होंने पूरे साल टमाटर की फसल लेने की तैयारी की है, जिसके लिए टमाटर की नर्सरी 15 से 30 जुलाई के बीच डाल दी जाती है। 15 अगस्त के बाद इसकी रोपाई की जाती है। करीब 70-75 दिन बाद तुड़ाई के लिए फसल तैयार हो जाती है और 7-8 महीने तक फल मिलता रहता है। उसके बाद दूसरी फसल लगाने की तैयारी की जाती है जिसके लिए नर्सरी जनवरी-फरवरी में तैयार की जाती है और मार्च में रोपाई कर दी जाती है और जुलाई तक फसल मिल जाती है।
डॉ. राजीव कुमार कहते हैं कि इस छोटे से नेचुरल वेंटिलेडेट पॉलीहाउस में इस तरह से प्लानिंग करने से किसानों को फ़ायदा होगा। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने पॉलीहाउस के एकदम किनारे की जगह पर भी फसल लगाई है, जिसे आमतौर पर किसान छोड़ देते हैं। उन्होंने एक फ़ीट की जगह छोड़कर बाकी सबका इस्तेमाल किया है। साइड की जगह में अर्धचंद्राकार करके टमाटर के पेड़ को ऊपर चढ़ा दिया है और नीचे गोभी लगाई है। इस तरह से पॉलीहाउस का एक-एक कोना इस्तेमाल में आ गया है। आज के समय में जहां ज़मीन कम है, खेती का ये तरीका बहुत कारगर साबित होगा।
खाद का इस्तेमाल
डॉ. राजीव कुमार ने आगे कहा कि उनके वहां लगे एक स्क्वायर मीटर के हिसाब से 6 पौधे लगाए हैं। आजकल ज़मीन कम है ऐसे में सघन रोपाई करके अधिक उपज लेना ज़रूरी है। पॉलीहाउस में ज़्यादा से ज़्यादा ऑर्गेनिक खेती करते हैं। केमिकल यु्क्त कीटनाशकों की जगह नीम से बने कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं। बहुत ज़रूरी होने पर ही थोड़े केमिकल का इस्तेमाल होता है। खाद के लिए वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करते हैं। ये उत्पादन हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए होता है। इसलिए ज़्यादा केमिकल वाले खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करते हैं। फिर भी हम ऑर्गेनिक प्रोडक्ट डालकर ज़्यादा से ज़्यादा उपज प्राप्त करते हैं। एक पौधे से 6-12 किलो फल निकलता है। एक स्क्वायर मीटर से करीब 30 किलो तक फल मिल जाता है।
पॉलीहाउस तकनीक में फसल चक्र ज़रूरी है
राजीव कुमार बताते हैं कि पॉलीहाउस में वर्टिकल फ़ार्मिंग के तहत टमाटर से पहले उन्होंने शिमला मिर्च लगाई थी। उससे पहले खीरा लगाया था। उनका कहना है कि फसल चक्र ज़रूरी है, नहीं तो कई रोग होने पर मिट्टी खराब हो सकती है।
खीरे की एक साल में 3 फसल मिल जाती है। किसानों को वो सलाह देते हैं कि पॉलीहाउस में ऐसी सब्ज़ियों की खेती करनी चाहिए जिसकी कीमत ज़्यादा मिलती है जैसे चेरी टोमैटो, ब्रोकोली जैसे फसलें किसान लगा सकते हैं।
सिंचाई की तकनीक और तापमान नियंत्रण
डॉ. राजीव बताते हैं कि नेचुरल वेंटिलेटेड पॉलीहाउस में इंसेक्ट प्रूफ़ नेट है, जिसमें रोलिंग सिस्टम लगा हुआ है, जिसे खोल दिया जाता है। इससे नेचुरल हवा आती है। पानी के लिए ड्रिप सिस्टम लगाया हुआ है, जो ऑटोमैटिक है। ज़रूरत पड़ने पर दिन में कभी भी इसे चला देते हैं। तापमान ज़्यादा होने पर फॉगर्स चला दिया जाता है, जिससे तापमान 2-3 डिग्री तक कम हो जाता है और पौधों को राहत मिलती है।
वर्टिकल फ़ार्मिंग से सब्जियों का उत्पादन
डॉ. राजीव कहते हैं कि बांदा कृषि विश्वविद्यालय ने घर की छत पर वर्टिकल फ़ार्मिंग की भी तकनीक ईज़ाद की है। इसमें छत पर लंबाई में किसी रॉड या खंबे पर एक प्लास्टिक की बोतल बांधकर हाई वैल्यू सब्जियां लगा सकते हैं।
एक ही पौधे में दो फसल
बांदा कृषि विश्वविद्यालय में एक और ख़ास तकनीक देखने को मिली जिसमें एक ही पौधे में टमाटर और बैंगन दोनों फसलें लगी हुई हैं। डॉ. राजीव बताते हैं कि ये ख़ास तकनीक का नाम ब्रिमैटो है। इससे किसानों को पता चलेगा कि कैसे एक ही पौधे पर टमाटर और बैंगन की खेती कैसे कर सकते हैं। ऐसी तकनीक से किसानों को अधिक आमदनी प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
किसानों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम
डॉ. राजीव बताते हैं कि विश्वविद्यालय में हर साल किसान मेले का आयोजन किया जाता है जहां किसान आते हैं और नई-नई जानकारी प्राप्त करते हैं। इसके अलावा, यहां पर प्रोजेक्ट के तहत भी ट्रेनिंग दी जाती है। यही नहीं अगर कोई किसान आता है और किसी ख़ास तरह की ट्रेनिंग लेना चाहता है तो उनके लिए 3, 5 या 7 दिनों की ट्रेनिंग का भी आयोजन किया जाता है।
पॉलीहाउस और नेटहाउस में अंतर
पॉलीहाउस और नेटहाउस में क्या अंतर होता है, ये समझाते हुए राजीव कुमार कहते हैं कि ये नेचुरल वेंटिलेटेड पॉलीहाउस है जिसमें 3.5 से 4 लाख रुपये का खर्च आता है। इसमें चारों तरफ़ से ऐसा सिस्टम लगा होता है कि आप इसे चारों तरफ़ से खोल और बंद कर सकते हैं। बारिश होने पर पूरा बंद कर दिया जाता है और ज़रूरत पड़ने पर इसे खोल दिया जाता है ताकि हवा आए।
वहीं, नेट हाउस की लागत कम आती है और इसमें खोलने और बंद करने की सुविधा नहीं होती है। ये सफ़ेद कलर का सिंपल इंसेक्ट प्रूफ नेट होता है, जिसे वायरस से बचाने के लिए लगाया जाता है। ये 3 लाख रुपये तक की लागत में बन जाता है। ये ऐसे पौधों के लिए लगाए जाते हैं जिसमें वायरस का अटैक होने का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा ग्रीन शेड नेट होता है जिसकी लागत और कम होती है। पॉलीहाउस लगाने का एक बार का खर्च भले ही अधिक आता हो, मगर ये लंबे समय तक उपयोगी होता है। इसमें जो पॉलीथिन इस्तेमाल होती है, वो 5 से 6 साल चलती है।
नर्सरी तैयार करना
ड़ॉ. राजीव बताते हैं कि नर्सरी 98 खाने वाली एक ट्रे में तैयार की जा सकती है, जिसमें खाने बने होते हैं। इसमें सीडलिंग तैयार की जाती है। हर खाने में एक बीज डाला जाता है, जिससे एक साथ 98 पौध तैयार हो जाते हैं। ज़मीन को स्टरलाइज़्ड करके भी पौध तैयार की जाती है।
पॉलीहाउस की खेती में अहम बातें
पॉलीहाउस में वर्टिकल खेती करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए इस बारे में डॉ. राजीव कुमार का कहना है-
– बुंदलेखंड की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि यहां का पानी बहुत खारा है। एक साथ पानी आने से ज़मीन सफेद हो जाती है। ऐसे में अगली बार खेती करने पर फसल का उत्पादन कम होता है। इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसे हटाकर वर्मीकम्पोस्ट और गोबर की खाद का अधिक से अधिक इस्तेमाल करके ज़मीन को उपजाऊ बनाया जाए।
– पॉलीहाउस में फसल हमेशा बदलती रहनी चाहिए। यानि एक बार टमाटर लगाया तो अगली बार खीरा और फिर शिमला मिर्च। इसी तरह से फसल चक्र अपनाते रहना चाहिए।
-क्षेत्र से युवाओं के पलायन को रोकने के लिए डॉ. राजीव कुमार उन्हें पॉलीहाउस में खेती करने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि अगर इस तरह के पॉलीहाउस का स्ट्रक्चर बनाकर युवा हाई वैल्यू क्रॉप उगाने लगें, तो अच्छी आमदनी होगी।
ग्रीन शेड नेट में खेती
राजीव कुमार बताते हैं कि उन्होंने ग्रीन शेड नेट में वर्टिकल फ़ार्मिंग के तहत खीरा और लाल-हरी शिमला मिर्च की खेती एक साथ की है। इससे कम जगह में ही खीरा और शिमला मिर्च की खेती से किसानों को अच्छी आमदनी होगी। वो बताते हैं कि 15 जुलाई के बाद शिमला मिर्च की नर्सरी बनाते हैं, 15 से 30 अगस्त तक रोपाई कर लेते हैं।
जब शिमला मिर्च के पौधे जड़ पकड़ लेते हैं, तो खीरा लगा दिया जाता हैं ताकि खीरे का पौधा ऊपर आ जाए। इस बात का ध्यान रखें कि बीच में जो फसल लगा रहे हैं वो साइड वाली फसल से जल्दी ऊपर आ जाए, ताकि दोनों को बराबर पोषण, प्रकाश और हवा मिलती रहे। सिंचाई के लिए टपक सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल किया गया है। इससे जड़ों तक पानी जाता है और फसल अच्छी होती है।इस तरह से पॉलीहाउस में वर्टिकल खेती करके किसान बिना सीज़न के भी फसल प्राप्त कर सकते हैं और अच्छी कीमत पर बेच आमदनी बढ़ा सकते हैं।