जैविक बीज टीकाकरण (Bio priming): वैज्ञानिकों ने जिस तरह से इन्सानों को अनेक ख़तरनाक बीमारियों से सुरक्षित करने के लिए कई टीके विकसित किये हैं, उसी तरह से फ़सलों के बीजों के लिए भी टीकाकरण की तकनीक विकसित की जा चुकी है।
इस तकनीक की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि बीजों का टीकाकरण पूरी तरह से जैविक और पर्यावरण के अनुकूल उपाय है। इसीलिए इसे बीजोपचार की नवीन और उन्नत जैविक विधि का दर्ज़ा दिया गया है। इस प्रकिया को बीज टीकाकरण या बायो प्राइमिंग (Bio priming) भी कहते हैं।
भारतीय किसानों के लिए बीज टीकाकरण के ये गुण और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि भारत में आज भी ज़्यादातर किसान अनुपचारित बीज ही बोते हैं और इसकी वजह से पैदा होने वाले रोगों की रोकथाम और कीट नियंत्रण पर भारी खर्च करते हैं।
दूसरी ओर, बीज टीकाकरण तकनीक अपनाने पर खेत में रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल भी अपेक्षाकृत कम होता है। इस तरह कुलमिलाकर, बीज टीकाकरण की बदौलत जहाँ क़रीब 30 प्रतिशत ज़्यादा पैदावार मिलती हैं, वहीं उत्पादन लागत घटने की वजह से भी खेती का मुनाफ़ा ख़ासा बढ़ जाता है।
बढ़ रहा है जैविक बीज टीकाकरण का प्रचलन
‘बायो प्राइमिंग’ के तहत कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीवों के ज़रिये बीजों की रक्षा के लिए उनका जैव अस्तरीकरण या bio-lining करके रोग नियंत्रण किया जाता है। विभिन्न बीजों को मिट्टी से पनपने वाले रोगों तथा कीटाणुओं से सुरक्षित करने के लिए जैविक टीकाकरण की तकनीक का प्रचलन बीते कुछ वर्षों में काफ़ी बढ़ा है और ये तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है।
इसीलिए ज़्यादा से ज़्यादा किसानों में इसे जल्दी से जल्दी अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। ताकि उनकी खेती की लागत कम हो सके तथा मुनाफ़ा ज़्यादा मिल सके।
ये भी पढ़ें: Certified Seed Farming (बीज उत्पादन): जानिए बीज-फ़सल की खेती कैसे करें और कमाएँ शानदार मुनाफ़ा?
भारत एक उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र है। इस कारण यहाँ रोगों और कीटों का प्रकोप अधिक होता है। इससे उपज में काफ़ी हानि होती है। इसीलिए बीज टीकाकरण विधि को अपनाने के लिए पूरे देश में इसके व्यापक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। ताकि किसान कम ख़र्च में उत्तम पैदावार और ज़्यादा मुनाफ़ा पा सकें। भारत में ज़्यादातर किसानों को बीज टीकाकरण की विधि का ज्ञान नहीं हैं अथवा वो इन्हें प्रयोग में नहीं लाते हैं।
हालाँकि, सभी जानते हैं कि सिर्फ़ उन्नत बीजों की बुआई से ही उत्तम फ़सल प्राप्त नहीं हो सकती। बीज का स्वस्थ होना भी अति आवश्यक है, ताकि वह स्वस्थ सन्तति पैदा कर सके। अगर बुआई के बाद ही बीज रोगजनक कारकों से ग्रसित हो जाएँगे तो उससे उत्पन्न होने वाले पौधे अस्वस्थ, कमज़ोर, ओजरहित तथा किसानों के लिए नुकसानदायक साबित होंगे। बीज में प्रायः सभी पोषक तत्व मौजूद होते हैं। इसलिए कवक और जीवाणु इन पर आक्रमण करके अपना जीवनचक्र पूरा करते हैं।

बीज टीकाकरण के लाभ
- यह एक सस्ती और सरल विधि है।
- बीजजनित रोगों का नियंत्रण: छोटे दाने की फ़सलों, सब्जियों और कपास के अधिकतर बीजजनित रोगों के लिए बीजों का टीकाकरण बहुत प्रभावकारी होता है।
- अंकुरण में सुधार: बीजों का उचित सूक्ष्मजीवों से टीकाकरण करने से बीजों की अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है।
- मृदाजनित रोगों का नियंत्रण: मिट्टी में पाये जाने वाले कवक, जीवाणु और सूत्रकृमि से बीज और तरुण पौधों को बचाने के लिए बीजों का टीकाकरण किया जाता है। इससे बीज ज़मीन में सुरक्षित रहते हैं। बीजोपचार के बाद सूक्ष्मजीव उत्पाद बीज के चारों ओर रक्षक लेप के रूप में चढ़ जाता है और बीज को रोग कारकों से मुक्त रखता है।
बीज टीकाकरण की कार्यप्रणाली
फ़सलों को प्रभावित करने वाले अनेक रोग ऐसे हैं, जो बीजों से फैलते हैं। इन रोगों के प्रमुख कारक कवक तथा जीवाणु, बीजों में सुषुप्तावस्था में पड़े होते हैं। इसीलिए, जब इन बीजों को बोया जाता है तो उसके अंकुरण के साथ ही रोगकारक भी सक्रिय हो जाते हैं और पैदावार को प्रभावित करते हैं। इससे बचाव का सबसे बढ़िया उपाय इन रोगों से बचाव के लिए, बुआई से पहले लाभकारी सूक्ष्मजीवों से बीजोपचार करना अत्यन्त आवश्यक है।
बीज टीकाकरण के तहत जिन सूक्ष्मजीवों से बीजों को उपचारित किया जाता है वो पौधों को जैविक तथा अजैविक तनाव से मुक्त रखने के अलावा जड़, उकठा, सूखा, तना/ कॉलर गलन, कार्न सड़न इत्यादि मिट्टी से पनपने वाले रोगों से बचाते हैं। सामान्यतः रासायनिक बीजोपचार से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता और मिट्टी में मौजूद लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या में कमी आ जाती है। जैविक बीज टीकाकरण से ऐसी सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। यही वजह है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और कृषि संस्थानों में बीज टीकाकरण अत्यधिक प्रचलित है।
कम लागत में ज़्यादा लाभ देता है बीज टीकाकरण
बीज प्राइमिंग, ऑस्मो-प्राइमिंग और मैट्रिक्स प्राइमिंग का इस्तेमाल व्यावसायिक रूप से कई बागवानी फ़सलों में किया जाता है। यह बीज अंकुरण के समय और पौधों के समान विकास को बढ़ाने तथा फ़सल गुणवत्ता में सुधार करने के लिए एक आसान, सस्ती और पर्यावरण हितैषी विधि है। इसीलिए बीजों के जैविक टीकाकरण की तकनीक को मिट्टी से पनपने वाले रोगजनकों की रोकथाम के लिए एक वैकल्पिक विधि के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
पर्यावरण हितैषी है जैविक बीज टीकाकरण
पादप रोगजनक कारकों के विरुद्ध चयनित कवक विरोधी प्रतिद्वन्दियों का उपयोग करके रोग का निदान करने की पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से भी बीज प्राइमिंग एक बेहद सुरक्षित विधि है। यदि किसी भी वजह से बुआई किये जाने वाले बीजों में रोगजनकों का प्रदूषण मौजूद हो तो पैदावार पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बायो-प्राइमिंग की प्रक्रिया अपनाने से पौधों के रोग नियंत्रण में अपेक्षित लाभ मिलता है। इसलिए, अकेले बीज शोधन या कवकनाशी और जैव नियंत्रक एजेंटों से बीजशोधन करने की तुलना में बायो-प्राइमिंग तकनीक बेहद लाभदायक साबित होती है।
सभी जानते हैं कि विश्व की अधिककर खाद्य फ़सलें बीज से ही उगायी जाती हैं। बीज को ही खेती की सबसे महत्वपूर्ण लागत माना गया है। इसीलिए इसके संरक्षण के लिए बीते दशकों में व्यापक रूप से कीटनाशक रसायनों का प्रचलन बढ़ा है। लेकिन कीटनाशकों के ज़हरीले रसायनों का पर्यावरण, मिट्टी और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले ख़तरनाक असर को देखते हुए सारी दुनिया में पादप रोगजनकों के नियंत्रण के लिए जैविक विधियों को बढ़ावा मिल रहा है।
बीज टीकाकरण की तकनीक को अपनाने से बीजों को लवणता, सूखा और भारी धातुओं की वजह से पैदा होने वाले तनाव जैसी स्थितियों का मुक़ाबला करने में भी मदद मिलती है। शोध अध्ययनों में पाया गया है कि बीज टीकाकरण से पौधों का उत्तम विकास होता है, फ़सल की लागत कम होती है और उससे बेहतर गुणवत्ता वाली ज़्यादा पैदावार मिलती है।
विभिन्न जैविक कारकों की कार्य प्रणाली
एंटीबायोटिक: जैविक कारक विभिन्न प्रकार के एंटीबायोटिक उत्पन्न करते हैं, जिनका रोग कारकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हार्जिएनीक अम्ल, एग्रोसीन, बैसीलोमाइसीन, ग्लाइयोटॉक्सीन इत्यादि महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
कवक परजीविता: यह एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें लक्षित जीव की दिशा में जैविक नियंत्रक की तीब्र वृद्धि होती है। ये लक्ष्य जीव पर आक्रमण करके उसकी कोशिका भित्ति को अपने एंजाइम से नष्ट करते हैं। इसी कार्यप्रणाली से ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) विभिन्न पादप रोगजनक कारकों जैसे राइजोक्टोनिया, स्क्लेरोटोनिया, फ्यूजेरियम, फाइटोफ्थोरा, पिथियम आदि का नियंत्रण करता है।
प्रतिजैविकता: लाभकारी सूक्ष्मजीवों की ओर से विभिन्न प्रकार के प्रतिजैविक तथा उपापचय पदार्थ स्रावित किये जाते हैं। ये पदार्थ रोगकारकों के लिए हानिकारक होते हैं तथा उनकी वृद्धि और विकास को प्रभावित करते हैं।
रोगकारक एंजाइम की निष्क्रियता: जैव नियंत्रक कुछ ऐसे पदार्थ उत्पन्न करते हैं, जो रोगकारकों की कोशिका भित्ति को नष्ट करने में सहायक होते हैं। जैसे रोगकारकों के पेक्टिनोलाइटिक सेल्युलोलाइटिक तथा काइटीनोलाइटिक आदि एंजाइम को ट्राइकोडर्मा नष्ट कर देता है।

बीज टीकाकरण की विधि
- बीज को 12 घंटों के लिए पानी में भिगोकर रखें।
- 5-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से सूक्ष्मजीव उत्पाद (ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास इत्यादि) बीज में मिलाएँ।
- अच्छे से मिलाकर बीज को किसी छायादार क्षेत्र में रखें।
- मिश्रित बीजों को जूट के बोरे से ढक दें, ताकि उचित नमी बनी रहे।
- बीजों को 48 घंटे (लगभग दो दिन) के लिए सामान्य तापमान पर रखें।
- लाभकारी सूक्ष्मजीव बीज की सतह पर उगने लगेगा तथा 1-2 दिनों में पूरी बीज की सतह को ढक लेगा।
- बीज की नर्सरी में बुआई कर दें।
बीज टीकाकरण से फ़सलों की विभिन्न जैविक और अजैविक तनावों से सुरक्षा | |||
क्रमांकक | जैव नियंत्रक | फ़सल | रोग |
जैविक तनाव | |||
1. | ट्राइकोडर्मा हार्जियानम | लोबिया | जड़ गलन |
2. | ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास फ्ल्यूरोसेन्स | मटर | जड़ गलन |
3. | स्यूडोमोनास औरीगुनोसा | सोयाबीन | आर्द्रविगलन |
4. | बैसिलस सबटिलिस, स्यूडोमोनास फ्ल्यूरोसेन्स | नारियल | पत्ती गलन |
5. | स्यूडोमोनास फ्ल्यूरोसेन्स | बाजरा | मृदुरोमिल आसिता |
6. | ट्राइकोडर्मा हर्जियानम, स्यूडोमोनास फ्ल्यूरोसेन्स | धान | भूरा पत्ता रोग, बीज सड़न |
7. | स्यूडोमोनास फ्ल्यूरोसेन्स | सूरजमुखी | अंगमारी |
8. | ट्राइकोडर्मा हर्जियानम, ट्राइकोडर्मा हेमेटम | तिल | चारकोल रॉट |
अजैविक तनाव | |||
9. | राइजोबियम | गेहूँ, सूरजमुखी | सूखा |
10. | स्यूडोमोनास फ्ल्यूरोसेन्स | मटर | सूखा |
11. | अरबसकुलर माइकोराइजा कवक | ज्वार | लवणता |
12. | स्यूडोमोनास पुटिडा | कपास, मक्का | लवणता |
13. | ट्राइकोडर्मा हर्जियानम, ट्राइकोडर्मा एटरोविरिडी | सूरजमुखी, चना, मटर | भारी धातु (पारा, जस्ता, कैडमियम) |
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- PM Krishi Dhan Dhanya Yojana: उत्तर प्रदेश के 12 पिछड़े ज़िलों के लिए कृषि क्रांति का ऐलान, पूर्वांचल और बुंदेलखंड पर Focusप्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister Modi) द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना (PM Krishi Dhan Dhanya Yojana) के तहत उत्तर प्रदेश के 12 जिलों को चुना गया है, जिन्हें कृषि के हर पहलू में आत्मनिर्भर बनाने का टारगेट है।
- बागवानी से किसानों को मिला नया रास्ता, अमरूद की खेती बनी तरक्क़ी की मिसालअमरूद की खेती से किसानों की आय में बढ़ोतरी हो रही है। अमरूद की पिंक ताइवान क़िस्म बाज़ार में लोकप्रिय होकर किसानों के लिए वरदान बनी।
- प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना और दलहन आत्मनिर्भरता मिशन क्या है? ₹42 हज़ार करोड़ रुपये का निवेशप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष कृषि कार्यक्रम में 42 हजार करोड़ रुपये से अधिक की कई परियोजनाओं का शुभारंभ, लोकार्पण और शिलान्यास किया। ये कार्यक्रम भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में आयोजित हुआ, जिसमें दो बड़ी योजनाओं- पीएम धन धान्य कृषि योजना और दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन की शुरुआत की गई।… Read more: प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना और दलहन आत्मनिर्भरता मिशन क्या है? ₹42 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश
- सिमरता देवी की मेहनत ने बदली खेती की परंपरा प्राकृतिक खेती से मिली नई राहसिमरता देवी ने प्राकृतिक खेती अपनाकर ख़र्च घटाया, आमदनी बढ़ाई और गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की राह दिखाई।
- योगी सरकार की सख्ती : उत्तर प्रदेश में अब सैटेलाइट से ट्रैक होगी पराली, Digital Crop Survey में लापरवाही बर्दाश्त नहीं !योगी सरकार ने पराली जलाने की समस्या (Problem of stubble burning) से निपटने के लिए इस बार ‘Zero tolerance’ का रुख अपनाया है।पराली प्रबंधन (stubble management) के साथ-साथ योगी सरकार डिजिटल क्रॉप सर्वे अभियान को लेकर भी पूरी तरह सक्रिय है। इस अभियान का उद्देश्य खेत स्तर तक वास्तविक फसल की जानकारी जुटाना है
- खाद्य सुरक्षा से आत्मनिर्भरता तक: 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी लॉन्च करेंगे कृषि क्रांति के दो महाअस्त्रप्रधानमंत्री मोदी किसानों की ख़ुशहाली और देश की खाद्य सुरक्षा (Food Security) को नई दिशा देने वाली दो बड़ी स्कीम- ‘पीएम धन-धान्य कृषि योजना’ और ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ (PM Dhan-Dhaanya Yojana and Self-Reliance in Pulses Mission) की शुरुआत करेंगे।
- Bhavantar Yojana: भावांतर योजना में सोयाबीन रजिस्ट्रेशन शुरू, 5328 रुपये MSP का वादा, बागवानी किसानों को भी फ़ायदामध्य प्रदेश के सोयाबीन उत्पादक किसानों (soybean producing farmers) के लिए भावांतर योजना (Bhavantar Yojana) के तहत MSP पर फसल बिक्री के रजिस्ट्रेशन प्रोसेस शुरू हो चुका है।
- Chatbot In Punjabi Language: धुंए में घिरे पंजाब में पराली प्रबंधन की चुनौती और नई उम्मीद बना पंजाबी भाषा का Chatbot‘सांझ पंजाब’ (‘Sanjh Punjab’) नामक एक गठबंधन ने एक ऐसी रिपोर्ट और टेक्नोलॉजी पेश (stubble management) की है, जो इस समस्या के समाधान (Chatbot in Punjabi Language) की दिशा में एक मजबूत कदम साबित हो सकती है।
- Stubble Management: केंद्र और राज्यों ने कसी कमर, अब पराली प्रबंधन पर जोर, लिया जाएगा सख़्त एक्शनधान की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेष (stubble management) को जलाने के पीछे किसानों की मजबूरी है। अगली फसल (गेहूं) की बुवाई के लिए समय बहुत कम होता है और पराली हटाने की पारंपरिक विधियां महंगी और वक्त लेने वाली हैं। इससे निपटने के लिए अब सरकार ने जो रणनीति बनाई है
- Shepherd Community: भारत की अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक ताने-बाने में ग्रामीण जीवन की धड़कन है चरवाहा समुदायचरवाहा समुदाय (shepherd community) की भूमिका सिर्फ पशुपालन (animal husbandry) तक सीमित नहीं है। वे एक पुल की तरह काम करते हैं। जो हमारी परंपरा को आज के वक्त के साथ जोड़ते हैं, प्रकृति के साथ coexistence बढ़ाते हैं। देश की खाद्य सुरक्षा की नींव मजबूत करते हैं।
- खेत से बाज़ार तक बस एक क्लिक! Kapas Kisan App लाया क्रांति, लंबी कतारों और भ्रष्टाचार से मुक्तिकेंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने ‘कपास किसान’ (Kapas Kisan App) मोबाइल ऐप लॉन्च करके देश की कपास खरीद प्रोसेस में एक डिजिटल क्रांति (digital revolution )की शुरूआत की
- प्राकृतिक खेती और सेब की बागवानी से शिमला के किसान सूरत राम को मिली नई पहचानप्राकृतिक खेती से शिमला के किसान सूरत राम ने सेब की खेती में कम लागत और अधिक मुनाफे के साथ अपनी पहचान बनाई है।
- 1962 Mobile App: पशुपालकों का स्मार्ट साथी,Animal Husbandry Revolution का डिजिटल सूत्रधार!Digital India के इस युग में, पशुपालन (animal husbandry) के क्षेत्र में एक ऐसी स्मार्ट क्रांति की शुरुआत हुई है, जो किसानों और पशुपालकों की हर समस्या का समाधान उनकी उंगलियों के इशारे पर ला देना चाहती है। इस क्रांति का नाम है-1962 Mobile App- पशुपालन का स्मार्ट साथी।
- Pulses Atmanirbharta Mission: 11,440 करोड़ रुपये का दलहन आत्मनिर्भरता मिशन, भारत की आत्मनिर्भरता की ओर ऐतिहासिक छलांगकेंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ (Pulses Atmanirbharta Mission) को मंजूरी दे दी है। ये मिशन, जो 2025-26 से 2030-31 तक चलेगा, देश को दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सशक्त कदम है।
- Makhana Revolution In Bihar: बिहार में शुरू हुई मखाना क्रांति, गरीब का ‘Superfood’ बन रहा है वैश्विक धरोहरमखाना महोत्सव 2025 (Makhana Festival 2025) का मंच सिर्फ एक उत्सव का प्लेटफॉर्म नहीं, बल्कि बिहार की अर्थव्यवस्था (Economy of Bihar) के एक नए युग का सूत्रपात (Makhana Revolution In Bihar) बन गया।
- Natural Farming: बीर सिंह ने प्राकृतिक खेती से घटाया ख़र्च और बढ़ाई अपनी आमदनी, जानिए उनकी कहानीविदेश से लौटकर बीर सिंह ने संतरे की खेती में नुक़सान के बाद प्राकृतिक खेती शुरू की और अब कमा रहे हैं बढ़िया मुनाफ़ा।
- हरियाणा के रोहतक में खुला साबर डेयरी प्लांट पशुपालकों की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगी मज़बूतीरोहतक में शुरू हुआ साबर डेयरी प्लांट जो देश का सबसे बड़ा डेयरी प्लांट है किसानों की आय और दिल्ली एनसीआर की जरूरतों को पूरा करेगा।
- Cluster Development Programme: भारत का क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम है किसानों की आमदनी बढ़ाने की एक क्रांतिकारी रणनीतिकृषि क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए भारत सरकार ने क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम (Cluster Development Programme – CDP) की शुरुआत की है। ये केवल एक योजना नहीं, बल्कि कृषि व्यवस्था में एक अहम परिवर्तन लाने का एक सशक्त मॉडल है।
- Mushroom Farming In Bihar: बिहार में महिला किसानों के लिए ‘सोना’ उगाने का मौका! मशरूम योजना से महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भरबिहार जैसे घनी आबादी वाले राज्य में जहां जोत छोटी है और संसाधन सीमित, मशरूम की खेती एक वरदान साबित हो सकती है। ये एक ऐसी कृषि तकनीक है जिसे छोटे से घर के आंगन या खेत के एक कोने में भी शुरू किया जा सकता है। सबसे बड़ा फायदा ये है कि मशरूम की फसल बेहद कम समय में तैयार हो जाती है।
- कौशल विकास और प्रशिक्षण से किसान हो रहे सशक्त, बढ़ रही है क्षमता और हो रहा है विकासकिसानों को कौशल विकास और प्रशिक्षण के माध्यम से नई तकनीक, आधुनिक खेती और आय बढ़ाने के साधन उपलब्ध कराकर उन्हें सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है।