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आपने अक्सर सड़क किनारे लगे लंबे-लबें सीधे खड़े पेड़ देखे होंगे, वहीं सफेदा यानि यूकेलिप्टस होता है। जिसे आमतौर पर लोग बेकार समझते हैं, मगर किसान अगर सही तरीके से सफेदा की खेती (Eucalyptus Farming) करें, तो इससे अच्छी कमाई कर सकते हैं। सफेदा का पेड़ आमतौर पर सड़क किनारें या खेत की बाउंड्री पर आपको दिख जाता है। इसका पेड़ बिल्कुल सीधा होता है, जिससे इसकी खेती के लिए ज़्यादा जगह की ज़रूरत नहीं पड़ती है या ये कह सकते हैं कि कम जगह में अधिक पेड़ लगाए जा सकते हैं।
सफेदा की खेती लकड़ी के लिए की जाती है। इसकी लकड़ी का उपयोग बड़े सामान की लदाई करने वाली पेटियां बनाने के साथ ही ईंधन, फर्नीचर, हार्डबोर्ड और पार्टिकल बोर्ड बनाने में किया जाता है। इसकी मांग हमेशा ही रहती है। इसलिए किसान अगर सफेदा का पौधा उगाते हैं तो उन्हें अच्छी आमदनी हो सकती है। सफेदा की खेती को बढ़ावा देने के लिए नैनीताल की कंपनी सेन्चुरी पल्प एण्ड पेपर ने इसकी कई क्लोन किस्में तैयार की हैं। सफेदा की खेती और उसकी क्लोन किस्मों के बारे में अमित सैनी ने बात की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददात सर्वेश बुंदेली से।
क्लोनल तकनीक से तैयार सफेदा की उन्नत किस्में
नैनीताल की कंपनी सेन्चुरी पल्प एण्ड पेपर यूकेलिप्ट्स की क्लोन किस्में तैयार कर रही है, जिससे किसानों को अधिक उत्पादन मिले। यही नहीं, ये किसानों से पेड़ खरीदने का भी कॉन्ट्रैक्ट करती है, ताकि उन्हें पेड़ काटने के बाद लकड़ी बेचने के लिए परेशान न होना पड़े।
यूकेलिप्टस यानि सफेदा की क्लोन किस्मों के बारे में अमित सैनी बताते हैं कि उनकी कंपनी ने सफेदा की तीन क्लोन किस्में तैयार की हैं जिसमें K-25 सबसे बेहतरीन है। ये रोग मुक्त है और काटते समय लकड़ी फटती भी नहीं है। BCM-7 किस्म भी अच्छी है और ये भी नहीं फटती है।
कैसे करें सफेदा की रोपाई?
अमित सैनी बताते हैं कि अगर किसी इलाके में पानी देने के पर्याप्त साधन है, तो किसान पूरे साल सफेदा की खेती कर सकते हैं। अगर पानी के पर्याप्त साधन नहीं है, तो वो किसानों को इसे बरसात में लगाने की सलाह देते हैं ताकि पौधों को प्राकृतिक रूप से पानी मिल जाए। वहीं अगर कोई किसान इसे खेत में बाउंड्री के रूप में लगा रहे हैं, सिंगल की बजाय उन्हें डबल बाउंड्री लगानी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर जगह तो उतनी ही लगती है, मगर उत्पादन दोगुना होगा यानि किसानों को डबल फ़ायदा।
अगर कोई पूरे खेत में इसे लगाना चाहता है, तो डेढ़ बाय तीन मीटर पर लगाएं। इस तरह से लगाने पर एक एकड़ में 888 पौधे लग जाते हैं। सफेदा का पेड़ 5-6 साल में काटने योग्य हो जाता है। K 25 और BCM-7 किस्म से बहुत अच्छी पैदावार होती है। बाउंड्री पर लगाए एक पेड़ से करीब 3-3.5 क्विंटल की उपज हो जाती है।
क्लोनल पौधों की रोपाई के लिए गड्ढ़ों के साइज़ के बारे में अमित सैनी बताते हैं कि रोपाई के समय गड्ढ़ा 1 फीट गहरा और 1 फ़ीट चौड़ा होना चाहिए। अगर खेत में दीमक का प्रकोप है तो एक परसेंट सॉल्यूशन डालकर सिंचाई करें। अगर उपलब्ध हो तो गड्ढ़ों में गोबर की सड़ी हुई खाद डालें और अगर नहीं है, तो 6 महीने बाद ही खाद डालें, क्योंकि क्लोनल पौधे पहले 6-7 महीने में बिना खाद के ही बढ़ते हैं। इसमें ज़्यादा खाद डालने की ज़रूरत नहीं होती है। रोपाई के समय आधा पौधा ज़मीन में गाड़ देना चाहिए, इससे आंधी-तूफान में पौधों के गिरने की संभावना कम हो जाती है।
सफेदा की क्लोन किस्मों में खाद
सफेदा की क्लोन किस्मों को बहुत अधिक खाद की ज़रूरत नहीं पड़ती है। अमित सैनी कहते हैं कि पौधों की रोपाई के 6 महीने के बाद ही खाद डालनी चाहिए। किसान जो भी पोषक तत्व अपनी दूसरी फसलों को देते हैं, वहीं इसमें भी डालें। कोशिश करें कि देसी खाद का इस्तेमाल ज़्यादा करें। इससे ज़मीन की गुणवत्ता अच्छी रहेगी और फसल की पैदावार भी अच्छी होगी। केमिकल युक्त खाद का इस्तेमाल कम और हरी खाद का उपयोग ज़्यादा करने की कोशिश करें, इससे कम खर्च में अधिक पैदावार मिलेगी।
सफेदा की खेती में जलभराव की स्थिति
अमित सैनी कहते हैं कि जलभरना और जल का प्रवाह होना दोनों अलग चीज़ें हैं। अगर किसी जगह पानी रुकता है यानि करीब 3 महीने तक रुका रहता है, तो वहां पौधा न लगाने की सलाह दी जाती है। फिर भी अगर कोई पौधा लगाना चाहता है, तो उसे पौधे की जगह पर पहले मिट्टी भर देनी चाहिए ताकि पौधा पानी से ऊपर आ जाए, उसके बाद पौधा लगाएं।
अगर किसी जगह पानी सिर्फ़ 10-15 दिन ही रुकता है, तो वहां अक्टूबर महीने में पौधों की रोपाई करनी चाहिए। इससे बरसात के समय तक पौधा 6-7 फ़ीट का हो जाता है, फिर उसके मरने की आशंका कम हो जाती है बशर्ते पानी बहुत दिनों तक जमा न रहे। मान लीजिए अगर कहीं पानी 2 फीट भरता है और कहीं 1 फीट, तो उस स्तर तक मिट्टी भर दें। वहीं अगर कहीं पानी भरता तो है लेकिन निकल भी जाता है, यानि पानी प्रवाह वाला है, तो कोई दिक्कत नहीं है।
किसानों से खरीदते हैं सफेदा की लकड़ी
अमित सैनी बताते हैं कि जो किसान उनकी कंपनी के साथ जुड़कर सफेदा की खेती करता है उसे पेड़ तैयार होने के बाद लकड़ी बेचने के लिए परेशान होने की ज़रूरत नहीं पड़ती। उनकी कंपनी किसानों से पेड़ खरीद लेती है। वो बताते हैं कि इसके लिए एक योजना है जिसमें डिकलेरेशन फ़ॉर्म किसानों को भरना होता है।
अगर कोई किसान सफेदा के पौधे लगा रहा है और आगे भी लगाने वाला है तो उनके साथ एक एग्रीमेंट साइन किया जाता है कि पेड़ काटते समय कंपनी के योग्य जो लकड़ी होगी, उसे वो किसानों से बाज़ार भाव से अधिक कीमत पर लेगी। इससे किसानों को एक निश्चितता मिलती है और वो बिक्री को लेकर ज़्यादा परेशान नहीं होते। अमित सैनी बताते हैं कि उनकी कंपनी अब तक करीब 2 लाख पेड़ खरीद चुकी है।
सफेदा की खेती से बंजर नहीं होती ज़मीन
आम धारणा है कि सफेदा की खेती करने से ज़मीन बंजर हो जाती है। इस बारे में अमित सैनी का कहना है कि ये सिर्फ़ एक मिथक है, इसमें कुछ सच्चाई नहीं है, उनके यहां फसल के साथ सफेदा के पेड़ लगे हुए हैं।