मिट्टी में अधिक नमी की वजह से फंगस लगने या एक साथ अधिक बीज होने की वजह से भी सोयाबीन के बीजों को नुकसान पहुंचता है। ऐसे में मध्य प्रदेश रीवा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने ख़ास तरीके से सोयाबीन के बीज को उपचारित करने की तकनीक के बारे में किसानों को जागरूक किया।
दरअसल, बिना उपचारित बीज बोने से फसल की उत्पादकता भी कम होती है और गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती। ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र ने अधिक फसल प्राप्त करने और बीजों को खराब होने से बचाने के लिए बुवाई से पहले सोयाबीन के बीज प्रबंधन के लिए एक कार्यक्रम का खाका तैयार किया।
बुवाई से पहले सोयाबीन का बीज प्रबंधन
कृषि विज्ञान केंद्र ने ‘सोयाबीन में बुवाई के पूर्व बीज प्रबंधन’ पर एक कार्यक्रम चलाया। इसके अंतर्गत किसानों को बीज प्रबंधन पर ट्रेनिंग दी गई। इसके लिए बाकायदा मॉडल लगाया गया और किसानों से सीधे संपर्क किया गया।
बीजों को किया उपचारित
कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा गोद लिए गए गाँव लक्ष्मणपुर की महिला किसान कलावती पटेल ने बताया कि बीजों के अंकुरण का परीक्षण लेने के के लिए 100 बीज लिए गए। इसमें से 99 बीज अंकुरति हुए। इस नतीजे को देखकर वो उत्साहित हुई। फिर प्रति एकड़ 32 किलो बीज की बुवाई की।
कलावती ने बुवाई से पहले बीजों को 96 ग्राम बाविस्टिन फंगीसाइड और 200 ग्राम राइजोबियम और 600 ग्राम पीएसबी कल्चर से उपचारित किया। ऐसा उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। इसके अलावा, उन्होंने पंक्ति से पंक्ति की दूरी 14 इंच रखी।बीजों को उपचारित करने और पंक्तियों के बीच दूरी के अलावा, बाकी फसल का प्रबंधन पहले की ही तरह किया गया। जब इस तरीके से बीज प्रबंधन के नतीजे फसल के रूप में सामने आए तो हर कोई हैरान रह गया।
बढ़ी उत्पादकता
पौधों में तनों का फैलाव, तनों की संख्या और फलियों की संख्या और चमक बेहतरीन आई। कलावती ने प्रति एकड़ 9.5 हेक्टेयर सोयाबीन की फसल प्राप्त की, जबकि अन्य किसानों को मात्र 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ फसल प्राप्त हुई। जिन किसानों ने पहले की तरह ही पंक्ति से पंक्ति की दूरी 9 इंच रखी थी, उनके पौधों का विकास अच्छा नहीं रहा।
कलावती और उनके पति इस नई तकनीक से सोयाबीन की खेती करके बहुत खुश हैं। उनके फ़ार्म पर कई किसान दौरा करने आते हैं। मीटिंग और ट्रेनिंग के ज़रिए भी किसानों की मदद करते हैं ताकि किसान बीजों से होने वाले नुकसान से बच जाए और अपनी फसल से अधिक मुनाफ़ा प्राप्त कर सकें।
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