विश्व में भारत दूसरा सबसे बड़ा कृषि योग्य भूमि वाला देश है जहां पर लगभग 159.7 मिलियन हेक्टेयर भूमि में खेती की जाती है जिसमें से लगभग 8.26 मिलियन हेक्टेयर भूमि सिंचित फसल वाली है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए दिन-प्रतिदिन खेती-किसानी में नई-नई तकनीक भी आ रही हैं जिसकी सहायता से किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं उन्ही में से एक है एकीकृत कृषि प्रणाली या कहें कि Integrated Farming System (IFS) मॉडल।
क्या है एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)
एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System) एक स्थायी कृषि पद्धति है जो पशुधन, फसल उत्पादन, मछली, मुर्गी पालन, लकड़ी वाले पेड़, फलदार पेड़ और अन्य प्रणालियों को एकीकृत करती है साथ ही एक दूसरे को लाभ पहुंचाती हैं।
इस तकनीक को अपनाकर किसान पूरे साल आमदानी कमा सकते हैं। इस कृषि प्रणाली को अंग्रेज़ी में Integrated Farming System या फिर IFS मॉडल भी कहते हैं।
Integrated Farming System से खेती के लिए ऐसे बांटे खेत
किसान इस कृषि प्रणाली से कम ज़मीन में, कम लागत में एक से अधिक फसलों का उत्पादन एक साथ ले सकता है। कोई भी किसान अगर एक हेक्टेयर भूमि में एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System) से खेती करना चाहते हैं तो वो अपनी कृषि ज़मीन को कुछ इस तरह से बांट सकते हैं जैसे-
-खाद्य फसलों के लिए 6000 वर्ग मीटर
-सब्जियों के लिए 1500 वर्ग मीटर
-साल भर जानवरों के लिए चारा और लकड़ी वाले पेड़ो के लिए 1000 वर्ग मीटर
-फलदार पेड़ों के लिए 500 वर्ग मीटर
-पशुपालन के लिए 100 वर्ग मीटर
-मछली पालन के लिए 300-400 वर्ग मीटर
-सहायक उद्यम के लिए 200 वर्ग मीटर
Integrated Farming System में ऐसे अपनाएं फसल चक्र
खेती-किसानी में उन्नत बीज और फसल की देख-रेख के साथ-साथ भूमि की उर्वरकता और फसल का उत्पादन इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसान फसल चक्र अपना रहा है या नहीं।
Integrated Farming System में किसान मक्का-सरसों-ढ़ैंचा, ज्वार-चना या मूंगफली-गेहूं जैसी फसलों की बुवाई करके फसल चक्र अपना सकता है। एक मौसम में गहरी जड़ वाली फसलें तो दूसरे मौसम में उधले जड़ वाली फसलों का चुनाव भी कर सकते हैं। ऐसा करने से भूमि में बराबर उर्वरकता बनी रहती है।
ऐसे करें एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती (Integrated Farming System)
इस तकनीक से खेती करने का सबसे अच्छा फ़ायदा ये होता है कि इसमें किसी एक फसल का अवशेष दूसरे के लिए इनपुट या आहार का काम करता है। और हमें बाहर से इनपुट लगाने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती है। फ़ार्म में मछली के लिए जो तालाब बनवाया जाता है, उस तालाब के ऊपर किनारे-किनारे मुर्गी पालन या सूअर पालन कर सकते हैं। सूअर या मुर्गीयों की बीट मछलियों के लिए आहार बन जाती है।
इसी तरह फसलों से अन्न का उत्पादन मिल जाता है और इसके अवशेष जानवरों के लिए चारा या आहार का के रुप में उपयोग कर लेते हैं। गाय भैंस और बकरीयों के गोबर का वर्मीकम्पोस्ट बनाकर फसलों के उत्पादन में खाद के रुप में उपयोग कर लेते हैं। इस प्रणाली से खेती करते समय किसान अपने खेत के चारों ओर लकड़ी वाले पेड़ों को भी लगा सकता है।
ये हैं एकीकृत कृषि प्रणाली के लाभ
- इस कृषि प्रणाली में केमिकल खाद और दवा का उपयोग न के बराबर करते हैं या फिर नहीं करते हैं।
- इसमें किसान को साल भर आमदनी मिलती रहती है जैसे फसलों के उत्पादन से, मछली पालन से, वर्मीकम्पोस्ट से, या फिर पशु पालन या मुर्गी पालन से।
- इस प्रणाली से किसान को एक कृषि क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की फसलें उगा लेता है जिससे उसको अपने उपभोग के लिए भी बाहर से बहुत चीज़े नहीं खरीदना पड़ता है।
- इस कृषि प्रणाली में खेती के साथ-साथ अन्य गतिविधियों को अपनाने से मजदूरी की मांग बढ़ जाती है जिसके कारण परिवार के लोगों को साल भर काम मिल जाता है। और उन्हें खाली नहीं बैठना पड़ता है। जैसे मुर्गी पालन, केंचुआ खाद, पशु पालन आदि।
- इस प्रणाली को अपना कर किसान वर्षा के जल को संरक्षित करके उसमें मछली पालन या पशुओं या फसलों की सिंचाई के लिए उपयोग कर सकता है।
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