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दुनिया भर में जैविक खेती को इन दिनों ख़ूब बढ़ावा मिल रहा है। इसे आर्थिक रूप से लाभदायक और टिकाऊ बनाने में जैविक खाद अहम भूमिका निभाते हैं। जैविक खाद, ऐसे सूक्ष्मजीवों से भरपूर होते हैं जो बीजोपचार से लेकर मिट्टी के उपजाऊपन को बढ़ाने में मददगार बनते हैं।
ये सूक्ष्मजीव पौधों के जड़-क्षेत्र की मिट्टी में या जड़ों के ऊपर रहकर पोषक तत्वों की आपूर्ति को बढ़ाते हैं। जैविक खाद के सूक्ष्म जीव हानिकारक जीवाणुओं को भी नष्ट करते हैं और पौधों के लिए रक्षा-कवच बनकर उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।
जैविक खाद को कैसे तैयार करते हैं?
जैविक खेती करने वाले किसान आमतौर पर राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पिीरिलियम, बेसिलस, फॉस्फो बैक्टीरिया या PSB यानी ‘फॉस्फेट सोलुबिलाइजिंग बैक्टीरिया’, माइकोराइजा, ZSB यानी ‘ज़िंक सोलूबिलाइजिंग बैक्टीरिया’ और वर्मीकम्पोस्ट जैसे लाभकारी जीवाणुओं और केंचुए से बनी जैविक खाद का उपयोग करते हैं। हैदराबाद स्थित National Institute of Plant Health Management (NIPHM) ने इन जैविक खादों को घरेलू स्तर पर बनाने की तकनीक विकसित की है, ताकि किसानों को जैविक खाद की उपलब्धता और आपूर्ति को लेकर किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़े।
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जैविक खाद के उत्पादन की घरेलू तकनीक
जैविक खाद के कुटीर उत्पादन की तकनीक बेहद आसान और फ़ायदेमन्द है। इसे अपनाकर किसान ख़ुद भी जैविक खाद के कुटीर और व्यावसायिक उत्पादन से जुड़ सकते हैं। वो इसे अपनी अतिरिक्त आमदनी का ज़रिया भी बना सकते हैं। यहाँ हम आपको जैविक खाद ‘राइजोबियम’ के उत्पादन की घरेलू विधि के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। इसी विधि से बाक़ी किस्म की जैविक खादों का भी उत्पादन हो सकता है। फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि हरेक किस्म के लिए किसानों को उससे सम्बन्धित कल्चर यानी ‘बीज तत्व’ का इस्तेमाल करना होगा जिसे किसी भी जैविक खाद प्रयोगशाला से प्राप्त किया जा सकता है।
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राइजोबियम बनाने की घरेलू विधि
आवश्यक सामग्री: प्रेशर कुकर, काँच की बोतल, गुड़, नमक, ख़मीर, रूई, प्रारम्भिक राइजोबियम कल्चर, रबर बैंड, पानी, कम लागत का इनोक्यूलेशन डिब्बा जिसमें जीवाणुओं की वंशवृद्धि हो सके।
गुड़, नमक और ख़मीर का घोल: सबसे पहले एक लीटर पानी में 10 ग्राम गुड़ और 1 ग्राम साधारण नमक को मिलाकर इसका घोल तैयार कर लें। इस घोल में 5 ग्राम ख़मीर भी मिला दें। इससे जीवाणुओं की वृद्धि अच्छी होती है। अब इस घोल को एक बोतल में एक-तिहाई भर लें और बोतल के मुँह को रूई से अच्छी तरह बन्द कर दें।
घोल को रोगाणु रहित बनाएँ: घोल को रोगाणुओं से मुक्त करने के लिए बोतल को प्रेशर कुकर में रखकर 40 मिनट तक गर्म करें। फिर उसे निकालकर सामान्य तापमान पर ठंडा होने दें। ठंडा होने के बाद बोतल में प्रति लीटर घोल के हिसाब से 10 मिलीलीटर ‘प्रारम्भिक राइजोबियम कल्चर’ को मिला दें।
जीवाणुओं की वंश वृद्धि: घोल में राइजोबियम कल्चर मिलने के बाद 5 से 7 दिनों के लिए बोतल को साफ़-सुथरे इनोक्यूलेशन डिब्बे में सामान्य तापमान पर और छायादार जगह में रख दें। इसके बाद, बैक्टीरिया की निरन्तर वृद्धि के लिए रोज़ाना 3 से 4 बार बोतल को हिलाते रहें। इस दौरान आप बोतल में हो रही राइजोबियम जीवाणुओं की बढ़वार को आसानी से देख सकते हैं। यदि घोल का धुँधलापन लगातार बढ़ता रहे और उसका रंग हल्का भूरा हो तो इसे जीवाणुओं की अच्छी वृद्धि का संकेत मानना चाहिए।
सावधानियां: यदि बोतल में हानिकारक फंगस, कवक या कीटाणुओं का संक्रमण होगा तो घोल का रंग काला पड़ने लगेगा। यदि ऐसा हो इसका इस्तेमाल नहीं करें। आमतौर पर राइजोबियम के दूषित कल्चर का उपयोग करने से ऐसी गड़बड़ी होती है। लिहाज़ा, हमेशा प्रमाणिक कल्चर का इस्तेमाल करें। सही ढंग से बनाये गये राइजोबियम खाद को 3 महीने तक सामान्य तापमान वाले कमरे में सुरक्षित रखा जा सकता है और अगले उत्पादन चक्र के लिए इसे ही राइजोबियम कल्चर के तौर इस्तेमाल किया जा सकता है।
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जैविक खाद के तौर में राइजोबियम का इस्तेमाल
एक एकड़ में बोये जाने वाले बीजों के उपचार के लिए 300 मिलीलीटर राइजोबियम कल्चर की ज़रूरत पड़ती है। राइजोबियम कल्चर से उपचारित अरहर, राजमा, मूँगफली, सोयाबीन, मूँग, मोठ, उड़द और चना आदि दलहनी और तिलहनी फ़सलों के बीजों को बहुत फ़ायदा होता है। इनके बीजों पर राइजोबियम जैविक खाद का एक-समान लेप लगाने के लिए कल्चर और बीजों को अच्छी तरह से मिलाना चाहिए। इस कल्चर का उपयोग मिट्टी और पौधों के उपचार के लिए भी किया जा सकता है।
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जैविक खाद का लाभ
जैविक खाद में मौजूद सूक्ष्मजीव वायुमंडल से नाइट्रोजन को सोखने के अलावा फॉस्फोरस तथा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की घुलनशीलता को बढ़ाकर पौधों को आसानी से पोषक तत्व उपलब्ध करवाने में मददगार बनते हैं। इससे पौधों की तेज़ वृद्धि होती है और वो स्वस्थ तथा निरोगी बने रहते हैं। जैविक खाद के इस्तेमाल से फ़सलों की उपज 15 से लेकर 35 प्रतिशत तक इज़ाफ़ा होता है। इससे रासायनिक खाद के इस्तेमाल में 25-30 प्रतिशत की कटौती लायी जा सकती है।
जैविक खाद के इस्तेमाल से मिट्टी और पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचता। जबकि रासायनिक खाद का दुष्प्रभाव न सिर्फ़ खेत की मिट्टी पर पड़ता है बल्कि इसके प्रभाव से उपज भी जहरीले रसायनों से दूषित हो जाती है। इसीलिए, सारी दुनिया में रासायनिक खादों और कीटनाशकों के उपयोग से बचने की कोशिश हो रही है।
जैविक खाद से लाभान्वित फ़सलें | |||
क्रमांक | जैव उर्वरक | उपज में वृद्धि (%) | फ़सल |
1 | राइजोबियम | 15-30 | मसूर |
2 | राइजोबियम | 20-45 | चना |
3 | राइजोबियम | 18-35 | मूँग दाल |
4 | राइजोबियम | 25-45 | लोबिया |
5 | राइजोबियम | 20-40 | मूँगफली |
6 | राइजोबियम | 75-200 | सोयाबीन |
7 | एजेटोबैक्टर | 18.8 | गेहूँ |
8 | फॉस्फेट घोलक जीवाणु (PSB) | 13.3 | गेहूँ |
9 | माइकोराइजा | 10 | चावल |
10 | एजोस्पिरिलियम | 10-20 | चावल |