IPM तकनीक: दक्षिण भारत के अन्य राज्यों के अलावा गोवा में नारियल की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। ये यहां की महत्वपूर्ण बागानी फसल है। यहां 25,730 हेक्टेयर क्षेत्र में नारियल उगाया जाता है और इसका औसत उत्पादन 5014 किलो प्रति हेक्टेयर है। मगर नारियल की बड़े पैमाने पर खेती करने के बावजूद किसानों को मुनाफ़ा नहीं हो पा रहा था। इसकी बड़ी वजह थे रेड पाम वीविल (RPW) और राइनोसेरोस बीटल (RB) जैसे कीट, जो फसलों को बर्बाद कर देते हैं।
10 प्रतिशत तक कम उत्पादन
रेड पाम वीविल (RPW) और राइनोसेरोस बीटल (RB) जैसे कीट नारियल के प्राथमिक कीट हैं, जो फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। रेड पाम वीविल 5 से 20 साल पुराने पेड़ों के करीब 12 प्रतिशत कच्चे नारियल को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे फल बड़े नहीं हो पाते। जबकि राइनोसेरोस बीटल (RB) के कारण उत्पादन में 10 प्रतिशत तक की कमी आती है।
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नारियल के पेड़ पर कीट प्रबंधन इसलिए और मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इसके पेड़ बहुत ऊंचे होते हैं और इस पर चढ़ने के लिए कुशल मज़दूर नहीं मिल पातें। इस समस्या को मद्दे नज़र रखते हुए ICAR – केंद्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने कीट प्रबंधन के लिए IPM तकनीक (एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन) के इस्तेमाल के बारे में किसानों को जागरुक करने का फैसला किया।
क्या है IPM तकनीक?
ये फेरोमोन आधारित तकनीक है, जिसमें कीटों को पकड़ने के लिए फेरोमोन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही इसमें अन्य चीज़ें भी शामिल हैं। ICAR – केंद्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने गोवा के किसानों के बीच इस तकनीक को लोकप्रिय बनाने के लिए 2017-2019 में कई प्रदर्शन और ट्रेनिंग कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें किसानों को फेरोमोन ट्रैप, फूड बाइट, ट्रैप सर्विसिंग, ल्यूर प्लेसमेंट, रिप्लेसमेंट और वीविल और बीटल की पहचान आदि के बारे में ट्रेनिंग दी गई और डेमोनस्ट्रेशन भी किए गए।
इसके अलावा, 300 किसानों को बाल्टी ट्रैप के साथ 1000 फेरो ल्यूर और राइनो ल्यूर बांटे गए। इसके अलावा, IPM से जुड़ी अन्य तकनीकों जैसे फाइटो-स्वच्छता, रोगनिरोधी पत्ती धुरी उपचार, कीटरोगजनक कवक का उपयोग और रासायनिक नियंत्रण को भी प्रदर्शित किया गया।
90 प्रतिशत तक कम हुई हानि
IPM तकनीक के इस्तेमाल के बाद रेड पाम वीविल (RPW) और राइनोसेरोस बीटल (RB) से होने वाले नुकसान में 80-90 प्रतिशत तक की कमी देखी गई। इसके बाद बड़े पैमाने पर फेरोमेन ट्रैपिंग का इस्तेमाल किया गया। साथ ही IPM तकनीक की अन्य चीज़ों को भी अपनाया गया। जिससे नारियल के बागानों में कीटों के संक्रमण में भारी कमी आई और बार-बार ट्रेनिंग और प्रशिक्षण के कारण किसानों का तकनीकी ज्ञान बढ़ा।
IPM तकनीक (एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन) की लागत प्रति हेक्टेयर 1500 रुपए आती है और इसके इस्तेमाल से लाभ 40,500 रुपये तक हो सकता है। फेरोमोन आधारित IPM तकनीक को किसानों के सहयोग से अन्य तटीय इलाकों में भी बढ़ाया जा सकता है जिससे नारियल उत्पादकों को फ़ायदा होगा।
रेड पाम वीविल (RPW) और राइनोसेरोस बीटल (RB) जैसे कीटों का प्रकोप बरसात के बाद यानी अक्टूबर और नवंबर के बीच अधिक देखा गया। इसके विपरीत, अप्रैल से जून तक पूर्व और मानसून अवधि के दौरान इनका असर मामूली था। राइनोसेरोस बीटल का सबसे अधिक प्रकोप जुलाई और सितंबर के दौरान देखा गया। यही नहीं फेरोमोन ट्रैप में पकड़े गए कीट पर किए एक्सपेरिमेंट के दौरान पता चला कि इनमें अधिक संख्या मादा कीटों की हैं।
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नमस्ते भैया जी, बहुत बढ़िया साइट है आपकी और पोस्ट क्या कमाल का डालते है
नमस्ते भैया जी किसान of India kya site hai kya desine kiye hai aap
Bahut सुंदर और उतना ही सुंदर आपका पास details hai