किसी भी फसल के अच्छे विकास के लिए नाइट्रोजन, ज़िंक और कॉपर ज़रूरी होता है। नाइट्रोजन फसल की बढ़ोतरी और गुणवत्ता में अहम भूमिका निभाता है। अच्छी उपज के लिए किसान यूरिया का भी इस्तेमाल करते हैं, लेकिन रासायनिक यूरिया मिट्टी को प्रदूषित करके पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, जबकि नैनो उर्वरक या यूरिया न सिर्फ़ फसलों की अच्छी बढ़ोतरी सुनिश्चित करता है, बल्कि पर्यावरण को भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता। लिक्विड रूप में मिलने वाले इन उर्वरकों को पौधे आसानी से सोख लेते हैं।
IFFCO ने बनाया नैनो उर्वरक
इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर्स को-ऑपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) ने नैनो यूरिया, नैनो जिंक और नैनो कॉपर को देसी तकनीक से बनाया है। इससे विदेशों से उर्वरक मंगाने का खर्च कई गुना कम हो सकता है। दरअसल, भारत कई देशो से अधिक कीमत पर उर्वरकों का आयात करता है, लेकिन अब देश में ही नैनो उर्वरक बन जाने से पैसों की बचत होगी और देश आत्मनिर्भर भी बनेगा। नैनो यूरिया में 4.0% नाइट्रोजन, नैनो ज़िंक में 1.0% कुल ज़िंक और नैनो कॉपर में 0.8% कुल तांबा होता है।
कैसे करें नैनो उर्वरक का इस्तेमाल?
लिक्विड यूरिया को इस्तेमाल करने से पहले बोतल को अच्छी तरह हिला लें। इसका उपयोग दो बार किया जा सकता है। पहला छिडक़ाव फसल के अंकुरण के 30 दिन बाद और दूसरा छिडक़ाव फूल या बालियां आने के एक हफ़्ते पहले करना चाहिए। लिक्विट यूरिया को ठंडी और सुखी जगह पर रखें। एक लीटर पानी में 2 मिलीलीटर यूरिया मिलाकर छिड़काव करें। नैनो ज़िंक का छिड़काव अंकुरण या रोपाई के 30-35 दिन बाद करना चाहिए। जबकि नैनो कॉपर का इस्तेमाल फूल आने के एक हफ़्ते पहले करना चाहिए। नैनो यूरिया, नैनो ज़िंक और नैनो कॉपर को मिलाकर भी छिड़काव किया जा सकता है। लिक्विड होने के कारण यूरिया आसानी से पत्तियों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
जीरे की फसल में बढ़ोतरी
IFFCO कंपनी की ओर से रबी 2019-20 में राजस्थान के कई ज़िलों में किए गए अध्ययन से साफ पता चला कि नैनो यूरिया के इस्तेमाल से जीरे की फसल में अच्छी बढ़ोतरी हुई। कंपनी ने राज्य के 6 जिलों में ये अध्ययन किया।
जीरे के बीज की बुआई 10-12 किलोग्राम प्रति हैक्टर बीज की दर से अक्टूबर महीने के अंतिम हफ़्ते से दिसंबर महीने के पहले हफ़्ते तक 5 तरीकों से की गई। प्रयोग में नैनो यूरिया (25000 पीपीएम), नैनो जिंक (5000 पीपीएम) और नैनो कॉपर (2000 पीपीएम) का 4 मिलीलीटर की मात्रा से प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया गया। पहला छिड़काव अंकुरण के तीन हफ़्ते बाद, दूसरा छिड़काव पहले के दो हफ़्ते बाद और फिर अगला छिड़काव अंकुरण के 5 हफ़्ते बाद किया गया। पांचवें उपचार में कॉपर का तीसरा छिड़काव, दूसरे छिड़काव के दो सप्ताह के बाद किया गया।
इसके नतीजे में सामने आया कि साधारण यूरिया की आधी मात्रा के साथ 1 नैनो यूरिया, 1 नैनो ज़िंक, 1 नैनो कॉपर के छिड़काव से प्राप्त लाभ, सिर्फ साधारण यूरिया के इस्तेमाल से प्राप्त होने वाले लाभ से 7259 रुपये प्रति हेक्टेयर ज़्यादा रहा।
जीरा एक प्रमुख मसाला फसल है, जिसकी देश में काफ़ी मांग और खपत है। इसलिए जीरे की खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद होती है। नैनो यूरिया के इस्तेमाल से जीरे की खेती से होने वाला उनका मुनाफ़ा बढ़ेगा और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। इसके अलावा, लिक्विड यूरिया के इस्तेमाल का एक फ़ायदा ये भी है कि किसानों को किसी तरह का इंफेक्शन होने का डर नहीं रहता, क्योंकि इसे हाथ से छुए बिना ही सीधे पत्तियों पर स्प्रे किया जा सकता है, इसे ड्रोन से भी स्प्रे कर सकते हैं। जबकि पारंपरिक यूरिया को किसान हाथों से पौधों में डालते थे, जिससे उन्हें त्वचा से जुड़ी बीमारियों का खतरा रहता है। इसके अलावा, लिक्विवट यूरिया के इस्तेमाल से फसल भी अच्छी गुणवत्ता वाली प्राप्त होती है।
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