सोयाबीन प्रमुख दलहन और तिलहन फसल है, जो प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है। हमारे देश में सोयाबीन का सबसे अधिक उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है। देश के सोयाबीन उत्पादन में 80 फ़ीसदी हिस्सेदारी इसी राज्य की है। सोयाबीन की उपज क्षमता अन्य दलहन फसलों से अधिक है और यह मिट्टी को उपजाऊ भी बनाती है, लेकिन खरपतवारों के कारण इसकी फसल को 30-70 फ़ीसदी तक हानी होती है। इसलिए सोयाबीन की फसल में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए समय रहते खरपतवारों को नियंत्रित करना आवश्यक है।
सोयाबीन की खेती
सोयाबीन की खेती गर्म और नम जलवायु में अच्छी तरह की जा सकती है। सोयाबीन की फसल की बढ़ोतरी के लिए 23-32 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। इसकी खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। इसकी बुवाई का सर्वोतम समय जून से जुलाई मध्य तक माना जाता है। बुवाई के 20-45 दिनों के अंदर निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को नियंत्रित करना ज़रूरी है। खरपतवार खत्म करने के लिए कई तरह के केमिकल भी आते हैं, जिनका उपयोग किसान कर सकते हैं।
सोयाबीन की फसल में लगने वाले खरपतवार के प्रकार
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार- इन खरपतवारों की पत्तियां चौड़ी होती हैं। यह मुख्य दो बीजपत्रीय पौधे होते हैं जैसे महकुंआ (अजेरेटम कोनीजाइडस), जंगली चौलाई (अमरेन्थस बिरिडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अजरेन्सिया), जंगली जूट (कोरकोरस एकुटैंन्गुलस), बन मकोय (फाइ जेलिस मिनिगा), ह्जारदाना (फाइलेन्थस निरुरी) तथा कालादाना (आइपोमिया स्पीसीज) आदि।
सकरी पत्ती वाले खरपतवार- इस घास की प्रजाति के खरपतवारों की पत्तियां पतली व लंबी होती हैं। इन पत्तियों के अंदर समांतर धारियां पाई जाती हैं। ये एक बीज पत्री पौधे होते हैं जैसे सांवक (इकाईनोक्लोआ कोलोना), कोदों (इल्यूसिन इंडिका) आदि।
मोथा परिवार के खरपतवार- इस प्रकार के खरपतवारों की पत्तियां लंबी और तना तीन किनारों वाला व सख्त होता है। जड़ों में गांठे होती हैं, जो भोजन एकत्र करके नए पौधों को जन्म देने में मदद करता है- जैसे मोथा (साइपेरस रोटन्ड्स, साइपेरस) आदि।
सोयाबीन में लगने वाले खरपतवारों से नुकसान
खरपतवार अधिक होने पर पौधों को पर्याप्त मात्रा में नमी, प्रकाश व पोषक तत्व उपलब्ध नहीं हो पाते। इससे उनका विकास प्रभावित होता है। साथ ही इससे कई प्रकार के कीड़े, रोगाणु व बीमारियां भी हो सकती हैं। इसलिए जल्दी इसे नियंत्रित करना ज़रूरी है।
सोयाबीन की फसल पर लगने वाले खरपतवारों की रोकथाम (Weed Management in Soybean)
साफ़-सफ़ाई और अच्छे बीज- खरपतवारों को रोकने के लिए बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह से साफ़ करें और सड़ी कंपोस्ट गोबर की खाद डालें। साथ ही प्रमाणित बीज़ों का ही इस्तेमाल करें।
निराई-गुड़ाई- सोयाबीन की फसल की बुवाई के 20-45 दिन के भीतर खरपतवारों की वृद्धि अधिक होती है। ऐसे में उन्हें रोकने के लिए पहली निराई-गुड़ाई 20-25 दिन बाद और दूसरी 40-45 दिन बाद करनी चाहिए। निराई-गुराई के लिए व्हील हो या ट्रिवन व्हील हो जैसे प्रयोग किया जा सकता है।
केमिकल- खरपतवारों को रोकने के लिए जिन केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है उसे खरपतवारनाशी (हरबीसाइड) कहते हैं। साथ ही सोयाबीन की चारामार (खरपतवार नाशक) दवा भी कहा जाता है। इन केमिकल के इस्तेमाल से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है और समय की भी बचत होती है, लेकिन इनका इस्तेमाल करते समय मात्रा को लेकर सावधानी बरतें, वरना नुकसान भी हो सकता है। सोयाबीन की चारामार दवा यानी कि खरपतवारनाशी कई प्रकार के होते हैं। इसकी मात्रा और किसी तरह से इस्तेमाल करना है, इसके संबंध में आप किसी कृषि विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं।
खरपतवारनाशी केमिकल का इस्तेमाल करते समय बरतें ये सावधानियां
- सभी खरपतवारनाशी केमकिल के डिब्बों पर दिशा-निर्देश लिखे होते हैं। उन्हें ध्यान से पढ़ने के बाद ही इसका इस्तेमाल करें।
- समय पर छिड़काव करना ज़रूरी है। समय से पहले या बाद में छिड़काव करने पर फ़ायदे की बजाय नुकसान हो सकता है।
- इनका पूरे खेत में एक समान छिड़काव करना चाहिए।
- इनका छिड़काव तेज़ हवा के बीच नहीं करना चाहिए।
- छिड़काव करते समय शरीर, चेहरे व आंखों को पूरी तरह से ढंक लें। केमिकल शरीर के संपर्क में नहीं आना चाहिए।
- छिड़काव करने के बाद हाथ और मुंह अच्छी तरह से साबुन से धो लें।
सोयाबीन की फसल में इस्तेमाल किए जाने वाले कई तरह के खरपतवारनाशी रसायन की मात्रा और विधि:
खरपतवारनाशी रसायन का नाम | मात्रा (ग्राम सक्रिय पदार्थ/हें.) | प्रयोग का समय | नियंत्रित खरपतवार | |
फ्लूक्लोरोलिन (बासालिन) | 1000-1500 | बुवाई से पहले छिड़ककर भूमि में मिला दें। | चौड़ी व सकरी पत्ती वाले खरपतवारों का कारगर नियंत्रण होता है। | |
पेंडीमेंथलिन (स्टाम्प) | 1000 | बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व। | मुख्यत: सकरी पत्ती वाले खरपतवारों एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण में प्रभावी है। | |
एलाक्लोर (लासो) | 1000 | निरंतर | केवल सकरी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण में प्रभावी है। | |
मेट्रीब्यूजिन (सेन्कोर) | 500 | निरंतर | चौड़ी व् सकरी पत्ती वाले खरपतवारों का कारगर नियंत्रण होता है। | |
क्लोरीम्यूरॉन (क्लोवेन 25 डब्लू.पी.) | 6-9 | बुवाई के 15-20 दिन बाद | मुख्यत: चौड़ी पत्ती वाले एवं कुछ घासकुल और मोथाकुल के खरपतवारों के नियंत्रण में प्रभावी है। | |
फेनाक्जाप्राप (व्हिप सुपर 10 ई.सी.) | 80-100 | बुवाई से 20-25 दिन बाद | वार्षिक घासकुल के खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण, लेकिन अन्य खरपतवारों पर बहुत कम असर करता है। | |
इमेजेथापायर (परस्यूट 10 एस.एल. अथवा लगाम) | 80-100 | बुवाई के 15-20 दिन बाद | चौड़ी पत्ती वाले एवं कुछ घासकुल के खरपतवारों के नियंत्रण में प्रभावी है। | |
क्यूजालोफाप इथाईल (टरगासुपर 10 ई.सी.) | 40-60 | बुवाई के 15-20 दिन बाद | घासकुल के खरपतवारों के नियंत्रण में प्रभावी है। |
तालिका साभार: Vikaspedia
सोयाबीन की चारामार (खरपतवार नाशक) यानी खरपतवारनाशी रसायनों की आवश्यक मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करें। छिड़काव के लिए नैपसैक स्प्रेयर और फ़्लैट फेन नोजल का इस्तेमाल करें।
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