वैज्ञानिक तरीके से एक किलोग्राम झींगा (prawn) उत्पादन में करीब 500 ग्राम जैविक अपशिष्ट निकलता है जो मुख्यतः झींगों का मल और उन्हें दिये गये आहार का मिश्रण होता है। इसकी वजह से झींगों पर अनेक संक्रामक रोगों का प्रकोप हो सकता है।
लेकिन यदि इस अपशिष्ट का सही प्रबन्धन हो जाए तो न सिर्फ़ झींगा पालन में कमाई बढ़ती है, बल्कि मछली पालकों को खेती के लिए शानदार कार्बनिक खाद भी हासिल हो सकता है। ऐसे दोहरे लाभ के लिए वैज्ञानिकों ने ‘झींगा गड्ढे से जैविक अपशिष्ट प्रबन्धन’ की उन्नत तकनीक विकसित की है, जिसके बारे में हरेक मछली पालक किसान को ज़रूर जानना चाहिए।
क्यों करें झींगा मछली की खेती?
दुनिया भर में मछली खाने वालों में झींगा बेहद लोकप्रिय है। झींगा मूलतः एक दस पैरों वाला समुद्री केकड़ा (shrimp) है, लेकिन इसकी आकृति की मछली से ज़्यादा समानता होने की वजह से इसे झींगा मछली कहा जाने लगा। झींगा एक खारे पानी में पनपने वाला समुद्री जीव है, लेकिन इसकी व्यावसायिक माँग को देखते हुए इसे मीठे पानी में भी पालने की कोशिशें हुईं।
इसकी सबसे बड़ी वजह है झींगा का दाम। बाज़ार में ये 250 रुपये से लेकर 400 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकते हैं। मछलियों में पाये जाने वाले पोषक तत्वों के अलावा झींगा में ऐसे फैटी एसिड की ख़ासी मात्रा पायी जाती है, जो दिल को स्वस्थ रखने में मददगार होते हैं।
किन मछलियों के साथ पालें झींगा?
मीठे पानी की लोकप्रिय और व्यावसायिक मछलियों जैसे कतला, रोहू और सिल्वर कार्प के साथ भी झींगा पालन किया जा सकता है। इससे मछली पालन ज़्यादा लाभकारी बन सकता है। लेकिन कामन कार्प, ग्रास कार्म, मृगल आदि मछलियों की प्रजाति के साथ तालाब में झींगा को नहीं पालना चाहिए।
क्या है झींगा पालन की सबसे बड़ी चुनौती?
मीठे पानी के तालाब में सघन मछली पालन या झींगा पालन के लिए ज़्यादा पोषक आहार और खाद की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन इसी आहार और झींगों के अपशिष्ट (मल) के विघटन से तालाब की तलहटी में कार्बनिक पदार्थों का निर्माण होने लगता है और अमोनिया और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी हानिकारक गैसें उत्सर्जित होने लगती हैं।
तालाब के तल में कीचड़ (sludge) की तरह जमा होने वाले कार्बनिक पदार्थों के दुष्प्रभाव से झींगा मछलियों में अनेक संक्रामक रोग फैल सकते हैं। कार्बनिक पदार्थों के निर्माण के दौरान ऐसी रासायनिक क्रियाएँ होती हैं जिन्हें anoxic कहते हैं। इससे पानी में घुले हुए ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है और झींगों में तनाव के लक्षण नज़र आते हैं।
ऑक्सीजन की कमी से पैदा हुए तनाव से झींगों की सेहत और उनका विकास प्रभावित होता है और उत्पादन काफ़ी गिर जाता है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अब तक अनेक भौतिक, रासायनिक और जैविक तकनीकें आज़मायी गयीं।
मसलन, तालाब का पानी बदलना, उसकी तलहटी में हवा छोड़ने वाले पम्प से ऑक्सीजन भेजना, तलछट से कीचड़ को निकालना और तालाब में चूना डालना आदि। आजकल झींगा तालाब से कार्बनिक अपशिष्टों के उचित प्रबन्धन के लिए झींगा मल के उपयोग के तरीके तलाशे जा रहे हैं।
क्या है झींगा गड्ढे की तकनीक?
ICAR-केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षण संस्थान, मुम्बई के विशेषज्ञों के अनुसार, झींगा गड्ढे के ज़रिये तालाब में कीचड़ की तरह जमा होने वाले अपशिष्ट को इक्कठा करके शानदार कार्बनिक खाद हासिल की जाती है। इस तकनीक को झींगा शौचालय भी कहा गया।
दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में ख़ासकर बाँग्लादेश और भारत में झींगा गड्ढे के निर्माण की तकनीक पर विशेष ध्यान दिया गया है। इससे न सिर्फ़ जैविक अपशिष्टों के जमाव की समस्या का समाधान हुआ बल्कि कार्बनिक खाद भी प्राप्त हुई। झींगा गड्ढे के लिए तालाब की सतह का करीब 5-7 प्रतिशत क्षेत्र का इस्तेमाल किया जाता है।
झींगा शौचालय या झींगा गड्ढे के निर्माण के लिए तालाब का आकार 1000 से 5000 वर्ग मीटर होना चाहिए। तालाब की तलहटी में केन्द्र की ओर ढलान होना चाहिए ताकि अपशिष्ट पदार्थ वहाँ बनाये गये 2 से 3 फ़ीट गहरे गड्ढे या पिट में इक्कठा हो जाए।
इस अपशिष्ट को एक साइफनिंग मोटर से हर सप्ताह बाहर निकाला जाता है। इसके लिए आजकल एक नयी तकनीक भी इस्तेमाल हो रही है। इसमें केन्द्रीय नली के रूप में एक प्लास्टिक पाइप (High Density Polyethylene polymers, HDPE) और रबर से बना U-shaped पैराबोला कवर भी इस्तेमाल हो रहा है।
झींगा गड्ढा या झींगा शौचालय का लाभ
- झींगों में संक्रमण का ख़तरा कम
- ऑक्सीजन की कमी नहीं होने से तनावमुक्त रहते हैं झींगे
- हानिकारक गैसों का निर्माण कम होने से पर्यावरण को लाभ
- झींगों की मृत्यु दर में कमी और उत्पादन अधिक
- झींगा पालन की सामान्य विधि के मुकाबले झींगा गड्ढा तकनीक से कमाई में वृद्धि
झींगा मछली की खेती
भारत में करीब 40 लाख हेक्टेयर में मीठे जल के जलाशय, पोखर, तालाब आदि उपलब्ध हैं। इनमें झींगा पालन आसानी से हो सकता है। झींगा पालन को परम्परागत खेती और पशुपालन के साथ सहायक व्यवसाय के रूप में भी अपनाया जा सकता है।
ये छोटे जल क्षेत्र में भी अच्छा मुनाफ़ा देता है। इसीलिए बीते दो दशकों में झींगा पालन सालाना 6 फ़ीसदी की दर से बढ़ रहा है। घरेलू के अलावा विदेशी बाज़ार में भी झींगा की माँग काफ़ी बढ़ी है। इसीलिए झींगा की खेती में निर्यात की अपार सम्भावनाएँ मौजूद हैं।
झींगा तालाब की ख़ूबियाँ: झींगा पालन में ज़्यादा कमाई पाने के लिए पानी रोकने की क्षमता वाली दोमट मिट्टी में तालाब का निर्माण करना चाहिए। मिट्टी को कार्बोनेट, क्लोराइड, सल्फेट जैसे हानिकारक पदार्थों और प्रदूषणकारी तत्वों से मुक्त होना चाहिए या फिर इनकी मामूली मात्रा ही होनी चाहिए।
व्यावसायिक झींगा पालन के लिए 0.5 से 1.5 हेक्टेयर का तालाब पर्याप्त होता है। इसकी गहराई 0.75 मीटर से 1.2 मीटर होनी चाहिए। तालाब की दीवारें यथासम्भव खड़ी होनी चाहिए और बारिश के फ़ालतू पानी के निकासी का उचित इन्तज़ाम होना चाहिए। झींगा पालन के लिए तैयार किये गये तालाब में पानी भरने से पहले झींगा शौचालय या झींगा गड्ढे के निर्माण कर लेना चाहिए।
झींगा गड्ढे के अलावा तालाब में पानी के आने-जाने के रास्ते में लोहे की जाली लगाना चाहिए। झींगों को दिन के वक़्त छिपकर रहना और रात में भोजन के लिए सक्रिय होकर तालाब में घूमना पसन्द है। दिन में तालाब के किनारे छुपकर आराम करना इन्हें ख़ूब भाता है इसीलिए तालाब में जलीय वनस्पति का होना बहुत लाभकारी होता है।
झींगा पालन में चूना (lime) का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण होता है। नये तालाबों में चूना और खाद की मात्रा मत्स्य विशेषज्ञों से सलाह से ही तय करनी चाहिए। सामान्यतः 100 किलोग्राम चूना प्रति एकड़ पर्याप्त होता है।
नर्सरी तैयार करना: एक एकड़ के तालाब के लिए 0.04 एकड़ की नर्सरी की ज़रूरत पड़ती है। नर्सरी वाले तालाब का पूरा पानी निकालकर उसे तब तक सूखने देना चाहिए जब तक कि मिट्टी में दरारें न पड़ जाए। इससे मिट्टी के हानिकारक जीवाणु और परजीवी नष्ट हो जाते हैं।
सूखे तालाब की एक जुताई भी कर देना चाहिए। फिर इसमें एक मीटर तक पानी भरें। नर्सरी में चूना, खाद और उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए 20 किलोग्राम चूना, 4 किलोग्राम सुपर फास्फेट और 2 किलोग्राम यूरिया पर्याप्त है।
कहाँ से खरीदें झींगा के बीज?
झींगा का बीज उत्पादन समुद्रीय पानी में ही होता है। इसे देश के तटवर्ती राज्यों में कार्यरत व्यावसायिक हैचरियों से खरीदा जा सकता है। इसके अलावा झींगा का बीज हासिल करने के लिए नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र या मछली पालन विशेषज्ञों की भी मदद ली जा सकती है। या फिर रांची स्थित सहायक मत्स्य निदेशक अनुसन्धान के कार्यालय से फोन नम्बर 0651-2440885 सम्पर्क किया जा सकता है।
नर्सरी में बीज डालना: झींगा की नर्सरी में बीजों को विकसित करने का उपयुक्त समय अप्रैल से जुलाई के बीच का है। एक एकड़ के तालाब में झींगा पालन के लिए 20 हज़ार बीज नर्सरी में तैयार करना चाहिए। बीजों के अनकूलन के लिए झींगा बीज के पैकेटों के बराबर तालाब का पानी भरकर 15 मिनट तक रखना चाहिए।
इसके बाद इन पैकेटों को खोलकर तालाब के पानी में तब तक रखें जब तक सभी लार्वा तैरकर पानी में चले जाएँ। नर्सरी में लार्वा को पहले 15 दिनों तक आहार के रूप में सूजी, मैदा और अंडा के मिश्रण की गोलियाँ बनाकर सुबह- शाम एक ही स्थान पर देना चाहिए।
नर्सरी में बीज डालने के 15 से 20 दिन बाद भी यदि शिशु झींगें दिखायी नहीं दें तो भी उन्हें आहार देते रहना चाहिए क्योंकि झींगों की वृद्धि दर में काफ़ी अन्तर पाया जाता है।
शिशु झींगा को नर्सरी से तालाब में डालना: करीब डेढ़ महीने में झींगों के लार्वा विकसित होकर 3-4 ग्राम वजन वाले शिशु झींगा बन जाते हैं। यही वो समय है जब शिशु झींगा को पहले से तैयार तालाब में और विकसित होने के लिए डाला जाना चाहिए।
शिशु झींगा को चिड़ियों से बचाने के लिए नर्सरी में उनके प्रवास के दौरान जाली से घेर देना चाहिए। झींगों की कछुआ, केकड़ा, मेंढक, साँप आदि जलीय जीवों से सुरक्षित रखने के लिए भी उपाय करना चाहिए।
झींगों का आहार: झींगा एक सर्वभक्षी जीव है। जन्तु और वनस्पति दोनों ही इसका भोजन हैं। झींगों की व्यावसायिक खेती के लिए तालाब में नियमित रूप से चूना, गोबर की खाद, उर्वरक और पूरक आहार देना चाहिए। झींगों के तालाब में आहार की कमी नहीं होने देना चाहिए। वर्ना, भूखे झींगे आपस में ही एक-दूसरे को खाना शुरू कर देते हैं।
सामान्यतः झींगा बीज के वजन का 10 प्रतिशत तक आहार प्रतिदिन देना चाहिए। झींगों के तेज़ विकास के लिए उन्हें 80 प्रतिशत शाकाहारी और 20 फ़ीसदी माँसाहारी भोजन देना चाहिए। भोजन में 4 फ़ीसदी सरसों की खली, 4 फ़ीसदी राईस ब्रान और 2 फ़ीसदी फिशमील (fish meal) देना चाहिए।
माँसाहार के रूप से मछलियों का चूरा, घोंघा, छोटे झींगे और बूचड़खानों का अवशेष और उबली हुई छोटी मछलियाँ दी जा सकती हैं। झींगा पालन के लिए दो महीने तक प्रति एकड़ 2 से 3 किलोग्राम और 4 से 6 महीने तक प्रति एकड़ 4 से 5 किलोग्राम के हिसाब से पूरक आहार देना चाहिए।
झींगों के वजन बढ़ने के अनुरूप ही उनका आहार बढ़ाते रहना चाहिए। आहार को चौड़े मुँह वाले पात्रों में डालकर तालाब के किनारे अनेक स्थानों पर रखना चाहिए। इसके साथ ही एग्रीमीन 1 प्रतिशत, टैरामाइसिन पाउडर 40 ग्राम और एंटीबायोटिक 2 ग्राम/सिफालैक्सिन जैसी दवाएँ भी तालाब में डालनी चाहिए।
झींगों की देखभाल: झींगों के तालाब में कभी-कभी असामान्य लक्षण दिखायी पड़ते हैं, जब झींगों की संख्या तालाब के किनारों पर ज़्यादा नज़र आती है। ऐसा उन तालाबों में होता है जिसमें झींगा पालक किसान ने झींगा गड्ढे की तकनीक नहीं अपनायी होती है।
इसीलिए ऐसी दशा का समय रहते निदान ज़रूरी है, क्योंकि ये दर्शाता है कि झींगों को तालाब के पानी में ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही है। इससे उबरने के लिए पम्पिंग सेट से तालाब में कुछ ऊँचाई से पानी गिराना फ़ायदेमन्द होता है। झींगों की मृत्युदर और विकास में पानी के pH मान बड़ी भूमिका होती है। इसे सन्तुलित रखने के लिए ही पानी में चूने का प्रयोग किया जाता है।
झींगों की खेती की पैदावार और मुनाफ़ा
नर्सरी से तालाब में डाले जाने तक कुल लार्वा में से 50 से 70 फ़ीसदी तक जीवित बचते हैं और उचित देखरेख तथा कुशल प्रबन्धन के बदौलत परिपक्व होते हैं। झींगों का विकास एक जैसा नहीं होता। उनका वजन 50 से 200 ग्राम तक हो सकता है।
लेकिन आमतौर पर 4 से 5 महीने में ज़्यादातर झींगों का वजन 50 से 70 ग्राम तक बढ़ जाता है। यही वो अवस्ता है, जब झींगों को बेचने के लिए तालाब से निकालना शुरू करना चाहिए। झींगों को 100 से 200 ग्राम तक का वजन हासिल करने में 6 से 8 महीने लगते हैं।
मीठे पानी की झींगा मछली का बाज़ार भाव यदि इसके किसान को 250 रुपये प्रति किलोग्राम भी मिले तो प्रति एकड़ करीब 1200 किलोग्राम उपज प्राप्त होती है। इसका दाम 3 लाख रुपये से ज़्यादा ही होता है। इसमें से यदि करीब एक लाख रुपये की खेती की लागत को निकाल दें तो प्रति एकड़ दो लाख रुपये का मुनाफ़ा किसान के हाथ में आ जाता है।
अब यदि इसी खेती को झींगा शौचालय या झींगा गड्ढे का निर्माण करने वाली उन्नत तकनीक के ज़रिये किया जाए तो जहाँ एक ओर पूरी खेती की लागत कम होती है वहीं झींगों के अपशिष्ट के रूप में करीब 600 किलोग्राम कार्बनिक खाद से भी अतिरिक्त कमाई होती है।
इसीलिए, ‘झींगा गड्ढे से जैविक अपशिष्ट प्रबन्धन’ की तकनीक का आसान मतलब है ‘आम के आम, गुठलियों के भी दाम’। झींगा की खेती का ये और भी आकर्षण और शानदार पहलू है।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।