Table of Contents
पशुपालन या मुर्गी पालन छोटे किसान अपने घर के आंगन में शुरू करके आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं, लेकिन पशुपालन से अच्छी कमाई करने के लिए पशुओं की सही देखभाल का तरीका पता होना चाहिए, साथ ही पशुओं के उन्नत नस्लों की भी जानकारी होनी चाहिए।
मान लीजिए अगर आपको पशुओं को होने वाली बीमारियों के बारे में पता ही नहीं, तो अपने पशु के बीमार होने पर आप उसकी देखभाल कैसे करेंगे, और अगर सही देखभाल न की जाए तो कई तरह की बीमारियों से पशु की जान भी जा सकती है। पंतनगर यूनिवर्सिटी के पशु चिकित्सा और पशुपालन विस्तार शिक्षा विभाग के प्रमुख और प्रोफ़ेसर डॉ. एस.सी. त्रिपाठी ने पशुओं के रोग, उनकी नस्ल के साथ ही पशुपालन से जुड़ी और भी कई अहम जानकारियां साझा की किसान ऑफ़ इंडिया की संवाददाता दीपिका जोशी के साथ।
मुर्गियों की उन्नत नस्ल
किसानों की आय बढ़ाने का बेहतरीन स्रोत है मुर्गी। कड़कनाथ मुर्गी की आज के वक्त में बहुत मांग है, इसके मांस का स्वाद बहुत अच्छा होता है। किसान मांस और अंडे के लिए इसे पालते हैं। मूल रूप से कड़कनाथ छत्तीसगढ़ की प्रजाति है।
मुर्गी की एक अन्य उन्नत प्रजाति के बारे में बताते हुए डॉ. त्रिपाठी कहते हैं कि पंतनगर के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित उत्तरा फाउल प्रजाति को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। किसानों के बीच इनकी मांग भी अधिक है। इसके अलावा, मुर्गी की एक अन्य नस्ल RIR भी काफ़ी लोकप्रिय है। दरअसल, मुर्गीपालन के लिए ये बेस्ट ब्रीड है, क्योंकि ये जल्दी परिपक्व हो जाती है। मांस और अंडे के लिए इसे पालना सबसे अच्छा है।
कड़कनाथ मुर्गी की अधिक कीमत के बारे में डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि इन मुर्गियों को मैनेज करने की लागत अधिक होती है, इसलिए ये बाज़ार में 1000 रुपये प्रति किलो तक बिकती हैं।
पहाड़ी क्षेत्रों में साहीवाल गाय को बढ़ावा
प्रोफ़ेसर त्रिपाठी कहते हैं कि साहीवाल स्वदेशी ब्रीड है। भले ही क्रॉस ब्रीड गाय से दूध कम हो, लेकिन दूध की क्वालिटी अच्छी होती है। स्वदेशी गाय पालन को बढ़ावा देने के लिए उनका विभाग किसानों को इस गाय को पालने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक परियोजना तहत कई किसानों का चयन किया गया है जिनके पास जाकर विभाग के लोग उन्हें गाय की सही देखभाल और खानपान के साथ ही कैसे कम समय में ही गाय का प्रजनन कराया जा सकता है, इसके बारे में बताते हैं। किसानों को समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
पशुओं से इंसानों को होने वाले रोग
प्रोफ़ेसर त्रिपाठी का कहना है कि पशुपालकों को इस बात की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है कि कौन से रोग इंसानों से पशुओं को और पशुओं से इंसानों को हो सकते हैं, क्योंकि पशुपालक हमेशा पशुओं के साथ ही रहते हैं। उनका कहना है कि ट्यूबरोक्लोसिस और ब्रूसेलोसिस दो मुख्य रोग हैं, जो पशुओं से इंसानों और इंसानों से पशुओं को हो सकते हैं।
वो बताते हैं कि ब्रूसेलोसिस बहुत ही खतरनाक बीमारी है जिसकी वजह से पशुओं का अबॉर्शन हो जाता है। वो बताते हैं कि रोग से बचाव के लिए कौन सी सावधानियां बरतनी ज़रूरी है। समय रहते टीकाकरण किया जाना भी ज़रूरी है, जिससे भविष्य में इस तरह की कोई बीमारी आने पर पशुओं को बचाया जा सके।
थनैला रोग की जांच
दुधारु पशुओं को होने वाला ये एक अन्य सामान्य रोग है जिसे मेसेसाइटिस भी कहा जाता है। कई बार पशुपालकों को समझ नहीं आता कि पशु को ये बीमारी लग गई है। थनैल कभी एक थन, दो या चारों थन में हो सकता है। इससे दो नुकसान होते हैं, एक तो दूध नहीं मिलेगा और दूसरा ये कि ऐसे पशु की बाज़ार में कीमत भी कम मिलती है।
डॉ. त्रिपाठी बताते हैं कि इस रोग की जांच के लिए उनके पास कई तरीके हैं। वो बताते हैं कि जब भी जांच के लिए जाएं तो सभी थनों से दूध लेकर आएं और हम जांच करके उन्हें बताते हैं कि कौन सा थन प्रभावित है और इसके लिए क्या उपचार हैं। कौन सी दवाइयां है ये बताई जाती है ताकि पशुपालक उपयोग करें।
ये भी पढ़ें- थनैला (Mastitis): दुधारू पशुओं का ख़तरनाक रोग, इलाज़ में नहीं करें ज़रा भी देरी
पशुओं के लिए ख़ास उपकरण
पशुओं को पीने का साफ़ पानी मिले इसके लिए भी ख़ास यंत्र बनाया गया है, जो चलता रहता है और पानी आता रहता है। इसके साथ ही सुअर के बच्चों को दूध पिलाने के लिए भी खास यंत्र बनाया गया है।
पशुओं की हरकतों पर ध्यान दें
डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि पशुओं को पूरी तरह स्वस्थ रखने के लिए उनकी हरकतों पर भी नज़र रखना ज़रूरी होता है, क्योंकि कई बार पशु अजीब हरकतें करता रहता है जैसे दूसरे जानवर को चाटना या दीवार को चाटना, जो यूं ही नहीं होता। इसकी वजह शरीर में किसी चीज़ की कमी या कोई बीमारी होती है।
कई बार पशु दूसरे पशु को चाटते रहते हैं जिसकी वजह से धीरे-धीरे उनके पेट में बाल इकट्ठा होकर फुटबॉल के साइज का गोला बन जाता है। इससे उनका पाचन बुरी तरह से प्रभावित होता है। इसलिए पशु पर ध्यान देना ज़रूरी है और कोई समस्या होने पर डॉक्टर की सलाह लें।
पशुओं का आहार और औषधि
पशुओं की देखरेख और मैनेजमेंट के साथ ही उन्हें अच्छा और पौष्टिक आहार देना भी ज़रूरी है, क्योंकि तभी वो गुणवत्तापूर्ण और अधिक दूध देंगी। डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि बहुत से हर्ब्स हैं जिनमें औषधीय गुण होते हैं।
यूनिवर्सिटी के छात्र अलग-अलग पेड़ों के औषधीय गुणों पर रिसर्च करते हैं, जिससे पता चलता है कि कौन-सी चीज़ कितनी मात्रा में देना फ़ायदेमंद होगा। फिर उसी हिसाब से पशुओं को दिया जाता है जिससे उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। उन्होंने बताया कि यूनिवर्सिटी के छात्र स्वदेशी ज्ञान से कैसे पशुओं का उपचार कर रहे हैं, रिसर्च कर रहे हैं। इसके तहत उपलब्ध मसालों और जड़ी बूटियों से दवा तैयार की जाती है।
ज़रूरी है पशुओं की डिवॉर्मिंग
प्रोफ़ेसर त्रिपाठी का कहना है कि 3 महीने की उम्र के बाद से ही पशुओं में कई तरह के परजीवी होने लगते हैं। ये शरीर के किसी भी हिस्से में भी हो सकते हैं और जिस भी हिस्से में ये जाते हैं उसे नष्ट कर देते हैं। इसलिए उनका विभाग किसानों को जागरुक कर रहा हैं कि वो पशु के गोबर की जांच करते रहें और 3-6 महीने में उनकी डिवॉर्मिंग कराएं।
पशुपालन को और बेहतर बनाकर कैसे किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर ही पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय लगातार काम कर रहा है। किसानों को पशुओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करने के मकसद से ही यहां हर साल पशु मेले का आयोजन किया जाता है, जहां सर्वश्रेष्ठ पशुओं का चयन किया जाता है।