दुधारू पशुओं की गुणवत्ता का सीधा नाता पशुपालन से होने वाली कमाई से होता है। इसीलिए दुधारू पशु को चुनते वक़्त उसके व्यक्तित्व की अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल करना बेहद ज़रूरी है। इसके लिए पशु की नस्ल, उम्र, शारीरिक बनावट, दूध उत्पादन और प्रजनन सम्बन्धी सेहत के हरेक पहलू पर बहुत सावधानी से ग़ौर करना चाहिए, क्योंकि पशुपालन के पूँजीगत निवेश और इसकी कमाई का सीधा सम्बन्ध पशुओं के गुण-अवगुण से होता है। इसीलिए दुधारू पशुओं के विशेषज्ञों के हवाले से किसान ऑफ़ इंडिया आपको बता रहा है कि उम्दा क्वालिटी वाले दुधारू गाय-भैंस को चुनते या खरीदते समय किन-किन सावधानियों के प्रति बहुत सचेत रहना चाहिए:
गाय-भैंस के चयन में सावधानियाँ
1. फ़ौरन कमाई: दुधारू पशु खरीदते वक़्त यथा सम्भव गर्भवती और पूरी तरह से रोगमुक्त गाय-भैस को चुनना चाहिए। इससे पशुओं की खरीदारी में लगी पूँजी से ज़्यादा और फ़ौरन आमदनी मिलना सुनिश्चित होता है। दूसरी या तीसरी बार गर्भवती हुई गाय-भैंस को प्राथमिकता देनी चाहिए। क्योंकि ये पशुओं की जवानी का ऐसा वक़्त होता है जब वो अपनी अधिकतम क्षमता में दूध देते हैं। कोशिश ऐसी गाय-भैंस को खरीदने की करनी चाहिए जो करीब महीने भर पहले बियाई हो और जिसके साथ उसका मादा बच्चा यानी बछड़ी भी हो। इससे भविष्य के लिए एक और दुधारू पशु प्राप्त करना आसान हो जाएगा।
2. शारीरिक बनावट: दुधारू गाय-भैंस की शारीरिक बनावट सुडौल होनी चाहिए। उसका शरीर आगे से पतला, पीछे से चौड़ा, नथुना खुला हुआ, जबड़ा मज़बूत, आँखें चमकदार और उभरी हुई, त्वचा चमकीली, पूँछ लम्बी, पीठ चौड़ी और समतल, कन्धा पुष्ट, गर्दन और जाँघ लम्बी तथा पतली और छाती तथा पेट ढंग से विकसित होना चाहिए। थनों को लम्बा, मोटा और परस्पर समान दूरी पर होना चाहिए। इसकी त्वचा कोमल होनी चाहिए।
3. दूध उत्पादन क्षमता: गाय-भैंस को खरीदने से पहले उसे दो-तीन बार ख़ुद दूहना चाहिए या अपने सामने ही दूहवाना चाहिए। ताकि उसकी सही दूध उत्पादक क्षमता का पता लग जाये। दूहते समय दूध की धार सीधी गिरनी चाहिए और दूहने के बाद थनों को सिकुड़ जाना चाहिए। गाय-भैंस के थनों पर दिखने वाली दूध की शिराएँ जितनी मोटी और उभरी हुई होंगी, पशु उतना ज़्यादा दूध देने वाला होगा।
4. गर्भाशय और थनैला की जाँच: पशुओं को खरीदते वक़्त यदि कोई जानकार या पशु चिकित्सक हो, तो उससे गर्भाशय की जाँच करवा लेना बहुत उपयोगी साबित होता है, क्योंकि कभी-कभार पशु की पहचान करने में धोखा हो जाता है। इसी तरह थनों की भी बारीकी से जाँच करनी चाहिए कि उनमें थनैला रोग की आशंका वाली गाँठ और सूजन वग़ैरह के लक्षण तो नहीं हैं। ऐसे पशु को भूलकर भी नहीं खरीदना चाहिए। दुधारू पशुओं को खरीदने से पहले ये सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है कि उनका सही वक़्त पर टीकाकरण हो चुका है।
5. प्रजनन क्षमता और वंशावली: हमेशा ऐसे पशुओं को खरीदने का प्रयास करना चाहिए जिनके माँ-बाप, जन्म और प्रजनन इतिहास का ब्यौरा मालूम हो। ऐसे रिकार्डधारी दुधारू पशुओं को चयन में प्राथमिकता देनी चाहिए। यदि पशु को इतिहास में गर्भपात होने, स्वास्थ्य बच्चा नहीं होने, प्रसव में कठिनाई होने जैसी समस्याएँ हों तो उन्हें नहीं खरीदना चाहिए।
6. सन्तान उत्पादन: दुधारू पशुओं का चुनाव उनकी सन्तान पैदा करने की क्षमता के आधार पर करना चाहिए। ज़्यादा सन्तान पैदा करने वाले पशुओं से ज़्यादा कमाई होती है। सन्तानोपत्ति क्षमता का सीधा नाता पशु के माता-पिता के आनुवंशिक गुणों से होता है। एक आदर्श गाय साल में एक सन्तान दे सकती है। एक बार बियाने के तीन महीने बाद गाय का फिर से गर्भधारण कर लेना बहुत अच्छा माना जाता है। पशु के दो बार बियाने के बीच 14-15 महीने का अन्तराल होना चाहिए।
7. पशु की आयु की पहचान: आमतौर पर गाय-भैंस के पहले बार गर्भाधान के वक़्त उनकी उम्र तीन साल के आसपास होती है। दुधारू पशु अपने जीवन के यौवन और मध्यकाल में अच्छा दूध उत्पादन करते हैं। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ दूध की मात्रा घटती जाती है और 10 से 12 साल की उम्र के बाद इनकी प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है। इसीलिए दुधारू पशु को खरीदते वक़्त उसकी सही उम्र का पता लगाने के लिए निम्न तरीके अपनाने चाहिए।
(i) दाँत: दाँतों को देखकर नयी और पुरानी गाय-भैंस की सटीक पहचान की जाती है। गाय-भैंस के निचले जबड़े में स्थायी दाँतों के चार जोड़े विकसित होते हैं। लेकिन ये सभी एक साथ नहीं निकलते। दाँतों का पहला जोड़ा करीब पौने दो साल की उम्र में निकलता है।
(ii) सींग: गाय-भैंस के सींग में बनने वाले छल्लों से भी उनकी सही उम्र जानने में मदद मिलती है। मसलन, सींग की जड़ में पहला छल्ला अक्सर तीन साल की उम्र में विकसित होता है। इसके बाद उम्र बढ़ने के साथ हर साल एक-एक छल्ला बढ़ता रहता है। सींग पर उभरे छल्ले की संख्या में दो का अंक जोड़कर गाय-भैंस की सही आयु का पता लगाया जाता है।
(iii) सेहत: पशु की सेहत देखकर भी उसकी उम्र का अन्दाज़ा लग जाता है। युवा अवस्था की गाय-भैंस का शरीर सुडौल, आकर्षक, कम चर्बी वाला और चुस्त होता है। इनकी त्वचा चमकदार होती है। जबकि बूढ़े हो रहे पशुओं की त्वचा ढीली और हड्डियाँ कमज़ोर होने लगती हैं। इनके चलने की गति धीमी पड़ने लगती है और मुँह से दाँत गिरने लगते हैं। वैसे पशु की सही आयु और सेहतमन्द जीवन का ब्यौरा यदि पड़ोसियों से मिल जाए तो भी उसके उत्तम स्वास्थ्य का भरोसा किया जा सकता है।
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