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मछली पालन से किसानों को अधिक आमदनी हो और बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए निरंतर नई तकनीक की खोज होती रहती है, एक ऐसी ही मछली पालन की RAS तकनीक (recirculatory aquaculture system) है। जिसमें कम जगह में ही मछलियों का बंपर उत्पादन लिया जा सकता है। मछली पालन से किसानों को अधिक आमदनी हो और ये रोज़गार का एक अच्छा विकल्प साबित हो, इसके लिए इस क्षेत्र में भी वैज्ञानिक शोध करके नई तकनीक इज़ाद करने में जुटे रहते हैं।
मछली पालन की RAS तकनीक
रिसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (RAS) ऐसी ही एक तकनीक है, जिसमें एक टैंक में मछली पालन किया जाता है। इस तकनीक की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि मछली पालन में दूषित हुए पानी को बॉयो फिल्टर टैंक में डाला जाता है फिर इसे फिल्टर करके वापस मछली वाले टैंक में भेज दिया जाता है यानि पानी बर्बाद नहीं होता है। इस तकनीक की मदद से कम पानी में भी मछली पालन किया जा सकता है।
क्या है रिसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (Recirculatory Aquaculture System, RAS)?
RAS तकनीक में मछलियों को नियंत्रित वातावरण में इनडोर और आउटडोर टैंकों में पाला जाता है। इसमें बहुत कम पानी की ज़रूरत पड़ती है और ये हाई डेंसिटी तकनीक है यानि कम जगह में अधिक मछलियों का उत्पादन संभव हो पाता है, वो भी कम पानी में। टैंक में पानी का बहाव लगातार बना रहे इसके लिए पानी के आने-जाने की व्यवस्था की जाती है। इस तकनीक में पानी में मैकेनिकल और बायोलॉजिकल फिल्टर करके पानी से बेकार और हानिकारक तत्वों को हटाकर इसे रिसाइकिल किया जाता है। फिर दोबारा फिश टैंक में इसका इस्तेमाल किया जाता है। पानी को साफ़ करके फिश कल्चर टैंक में भेज दिया जाता है। मछली पालन की RAS तकनीक का इस्तेमाल किसी भी प्रजाति की मछली को पालने के लिए किया जा सकता है। ऐसे किसान जिनके पास पानी और जगह दोनों की कमी है, वो इस तकनीक की मदद से अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
RAS तकनीक से मछली उत्पादन 30 गुना बढ़ा
हरियाणा के करनाल ज़िले के रहने वाले आधुनिक मछली पालक नीरज चौधरी RAS तकनीक से ही मछली पालन करते हैं। उनके पास मेकैनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री है, लेकिन परिवार तीन दशक से भी ऊपर वक़्त से मछली पालन से जुड़ा था तो उन्होंने भी इसी में अपना भविष्य न सिर्फ़ तलाशा, बल्कि कामयाब होकर भी दिखाया। सबसे पहले वो हाईटेक फिश फ़ार्मिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए अमेरिका गए। फिर वापस आए तो उन्होंने मछली पालन आधुनिक रूप दिया। वापस अपने घर आए और फ़ार्म में RAS तकनीक से 30 गुना मछली उत्पादन को बढ़ाया। उन्होंने जानकारी दी कि जहां पहले परम्परागत तकनीक से मछली पालन करने पर प्रति क्यूबिक मीटर पानी में 2 से 3 किलो मछली उत्पादन होता था। RAS तकनीक आने से अब प्रति क्यूबिक मीटर पानी में 67 किलों मछली उत्पादन हो जाता है।
RAS तकनीक से अधिक उत्पादन (Production Rate In RAS Technology)
परंपरागत मछली पालन की तुलना में RAS तकनीक से मछली पालन से कई गुना उत्पादन मिलता है। जानकारों का कहना है कि अगर कोई इस तकनीक से मछली पालन करना चाहता है तो 625 वर्ग फ़ीटचौड़ा और 5 फ़ीट गहरा सीमेंट का टैंक बनाकर इसमें करीब 4000 मछली पाल सकता है। पारंपरिक तकनीक में जहां एक एकड़ में 15 से 20 हज़ार मछलियां पाली जा सकती है, वहीं मछली पालन की RAS तकनीक से एक एकड़ में तालाब में 8-10 टन मछलियां पाली जा सकती है। वैसे तो सीमेंट का टैंक बनवाना अच्छा रहता है, लेकिन कोई अगर चाहे तो प्लास्टिक, मेटल, लकड़ी, आदि के भी टैंक बनवाकर मछली पालन कर सकता है। टैंक का आकार भी गोल या आयाताकार चाहे रखा जा सकता है, लेकिन गोल टैंक जिसमें बीच में पानी निकलने की व्यवस्था हो, वो ज़्यादा अच्छा रहता है, क्योंकि इसे साफ़ करना आसान होता है। टैंक के अंदर की सतह खुरदरी नहीं होनी चाहिए, वरना मछलियों को इंफेक्शन हो सकता है। साथ ही समय-समय पर सफ़ाई करते रहना चाहिए।
मछली पालन की RAS तकनीक कितनी आधुनिक?
RAS तकनीक से मछली पालन में मछलियों का नुकसान नहीं होता है, क्योंकि इनडोर में टैंक रखे जाते हैं तो किसी तरह के जानवर या पक्षी से नुकसान का खतरा नहीं रहता। जबकि खुले तालाब में मछली पालन में ये समस्या रहती है। न ही सर्दी और गर्मी का असर मछलियों पर पड़ता है क्योंकि रिसर्कुलेशन एक्वाकल्चर सिस्टम में तापमान कंट्रोलर लगा होता है, जो अपने आप तापमान को नियंत्रित करता है।
टैंक के पानी के पीएच मान पर नज़र रखने के लिए खास तरह की स्ट्रिप का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि पानी की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके। मछलियों को किसी तरह की बीमारी न हो, इसके लिए दवाओं का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में कई फिल्टर का इस्तेमाल होता है जिसकी मदद से पानी से अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त पोषक तत्वों बाहर निकाल जाता है। इसमें साफ़ पानी का इस्तेमाल होता है जिससे मछलिया बाहरी प्रदूषण का शिकार नहीं होती हैं।
मछलियों का आहार (Fish Feed In RAS Fish Farming)
मछलियों को मिनरल्स और विटामिन्सि से भरपूर आहार देना चाहिए, जो ख़ासतौर से उनके लिए ही बनाया गया हो। साथ ही आहार का चुनाव टैंक में मछलियों की प्रजाति के हिसाब से करना चाहिए। इस तकनीक में मछलियों को सूखा या तैरते हुए रूप में आहार दिया जाता है ताकि उनकी सेहत पर नज़र रखी जा सके। मछलियों के चारे को सूखी जगह पर स्टोर करना चाहिए ताकि इसमें कीड़े न लगें। आमतौर पर मछलियों को अपने शरीर के वज़न के 3-5 प्रतिशत तक भोजन की आवश्यकता होती है, लेकिन मछलियां अगर भोजन नहीं करती हैं, तो समझ लेना चाहिए कि कुछ समस्या है। ऐसे में मछली पालको को तुरंत पानी में अमोनिया के स्तर की जांच करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पानी का तापमान बहुत अधिक या कम होने पर मछलियां भोजन नहीं करती हैं।
RAS तकनीक में मछली प्रजाति का चुनाव (Fish Species In RAS Technique)
इस तकनीक से मछली पालक एक साल में दो कार्प फसल ले सकते हैं। एक बार बीज डालने के 6 महीने बाद मछलियां बाज़ार में बेचने के लिए तैयार हो जाती हैं। इस तकनीक से मछली पालक सिबास, चितल, देसी मंगूर झिंगा, नाइल, तपेलिया जैसी प्रजातियों का पालन कर सकते हैं।
RAS तकनीक में लागत? (Cost Of RAS Technology)
RAS तकनीक थोड़ी महंगी ज़रूर है, मगर जल्द ही इससे मिलने वाला फ़ायदा लागत की भरपाई कर देता है। 8 टैंक वाले RAS सिस्टम में 50 लाख रुपए, 6 टैंक वाले में 25 लाख रुपए और एक टैंक वाले RAS सिस्टम में 7.5 लाख रुपए की लागत आती है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से सब्सिडी भी दी जाती है।
RAS तकनीक के फ़ायदे (Benefits Of RAS Technology)
तालाब की तुलना में RAS तकनीक में बहुत कम पानी और कम जगह में मछली पालन किया जाता है। ये तकनीक कई तरह के डिज़ाइन में उपलब्ध है जिससे मछली पालक अपनी भौगोलिक स्थिति, जलवायु और पूंजी के आधार पर डिज़ाइन का चुनाव कर सकते हैं। इसमें मछलियों को किसी तरह का खतरा नहीं होता है और रोग प्रबंधन भी बेहतर तरीके से होता है।
अगर आप भी RAS तकनीक लगाने की सोच रहे हैं, तो एक बात ध्यान में रखनी होगी कि इसमें खर्च अधिक होता है। इसके लिए गहन तकनीकी निगरानी की ज़रूरत होती है और RAS तकनीक को सही तरीके से काम करने के लिए बिना किसी रुकावट के बिजली की आपूर्ति होनी चाहिए।