मुर्गीपालन के पारंपरिक तरीके की बजाय वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करना अधिक फ़ायदेमंद होता है। असम के रहने वाले 28 साल के युवा तपिश रॉय ने मुर्गी पालन में वैज्ञानिक प्रबंधन का इस्तेमाल किया। अंडे सेने के लिए घर के बने इन्क्यूबेटर के उपयोग से उनका मुनाफ़ा पहले के मुकाबले काफ़ी बढ़ गया। इसे देखकर गांव के अन्य युवा भी मुर्गी पालन व्यवसाय को बतौर व्यवसाय अपनाने के लिए प्रेरित हुए।
मुर्गी पालन से जुड़ी ट्रेनिंग ली
फरवरी 2020 में कृषि विज्ञान केंद्र, करीमगंज द्वारा ग्रामीण युवाओं के लिए ‘मुर्गीपालन और प्रबंधन’ पर एक ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किया गया था। कार्यक्रम का आयोजन विस्तार शिक्षा निदेशालय, असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट के सहयोग से किया गया।
युवाओं को वैज्ञानिक तरीके से मुर्गी पालन व्यवसाय करने और इसके प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित जानकारी दी गई। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम ने असम के करीमगंज ज़िले के ब्रजेंद्रनगर गांव के रहने वाले तपश रॉय को बहुत प्रभावित किया। ट्रेनिंग से प्राप्त कौशल का इस्तेमाल करके उन्होंने अपनी एक एकड़ भूमि पर वैज्ञानिक तरीके से मुर्गी पालन व्यवसाय की शुरुआत की। इससे पहले वह स्वदेशी बतख और कम उत्पादन देने वाली स्थानीय मुर्गियों को पालते थे।
ट्रेनिंग के दौरान क्या सीखा?
मुर्गी पालन और प्रबंधन, ब्रॉयलर मुर्गी/बतख पालन के लिए जगह का चुनाव, ब्रॉयलर मुर्गियों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों (शून्य दिन से लेकर बाज़ार परिपक्वता आयु) की जानकारी, चूजों का प्रबंधन और भोजन की व्यवस्था, ब्रॉयलर मुर्गी और बत्तख से अधिक मांस और अंडा प्राप्त करना, मुर्गियों/बत्तख के सामान्य रोग निवारक/नियंत्रण उपाय, टीकाकरण, विभिन्न पोल्ट्री पक्षियों की अलग-अलग प्रबंधन प्रणाली, मुर्गी उत्पादन में एकीकृत कृषि प्रणाली की भूमिका, अंडे सेने के लिए घर पर इनक्यूबेटर तैयार करना, हैचरी प्रबंधन और पक्षियों की मार्केटिंग यानी विपणन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया।
मुर्गी पालन व्यवसाय में कितना बढ़ी आमदनी
ट्रेनिंग से पहले तपश रॉय पारंपरिक तरीके से मुर्गी पालन कर रहे थे, जिससे महीने की सिर्फ़ 13 हज़ार रुपये ही आमदनी होती थी, लेकिन वैज्ञानिक तकनीक अपनाने के बाद उनकी प्रति महीना आमदनी 23 हज़ार रुपये पहुँच गई।
प्रशिक्षण से कैसे मिली मदद?
मुर्गी पालन व्यवसाय में वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल सफलता के लिए ज़रूरी है। कृषि विज्ञान केंद्र से मिली ट्रेनिंग ने तपश को मुर्गियों के लिए सही आवास का चुनाव और मुर्गीपालन के विभिन्न पहलुओं के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए प्रेरित किया। मुर्गियों के नियमित टीकाकरण के सख्त पालन से उत्पादन में सुधार हुआ, जिससे आमदनी बढ़ी। इसके अलावा, मुर्गी पालन के साथ मछली पालन का एकीकृत कृषि मॉडल अपनाकर अच्छा मुनाफ़ा कमाया।
ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान ही मुर्गियों की अधिक उत्पादन देने वाली नस्लें वनराज, कमरुपा, रेनबो रूस्टर, खाकी कैम्पबेल, विगोना सुपर एम डक, बटेर पक्षी आदि की जानकारी मिली।
अंडे सेने के लिए घर पर बने इनक्यूबेटर का उपयोग
तपिश अधिक अंडे के उत्पादन के लिए होम मेड इनक्यूबेटर का इस्तेमाल करते हैं। इसे देखकर अन्य युवा भी मुर्गी पालन व्यवसाय की ओर आकर्षित हुए। आसपास के गांव के 30 अन्य किसान भी तपिश को देखकर मुर्गीपालन में वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करने लगें। तपिश ने अन्य युवाओं को भी घर के पिछले हिस्से में वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करके मुर्गीपालन व्यवसाय करने के लिए प्रेरित किया ताकि उनकी भी आय बढ़ सके।
मुर्गीपालन के दौरान छोटे किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या हैचिंग की आती है।इनक्यूबेटर की मदद से अंडों को हैच करके चूज़े तैयार किए जाते हैं। इससे आसानी से चूज़े मिल जाते हैं। इसकी मदद से चूज़ों की अनुपलब्धता से दो चार नहीं होना पड़ता।
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