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कोसली गाय (Kosali Breed Cow): छत्तीसगढ़ के बेमेतरा ज़िले के नवागढ़ निवासी किशोर राजपूत एक सफल किसान और पशुपालक हैं। कृषक और वैद्य परिवार में जन्मे किशोर हमेशा से ही कृषि और पशुपालन को एक दूसरे का अभिन्न हिस्सा मानते आये हैं। किशोर के मुताबिक बिना पशुपालन के खेती अधूरी है और इसी दिशा में नवाचार करने की इच्छा रखने वाले किशोर ने किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत के दौरान बताया की छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 90% किसान आज भी खेती और पशुपालन साथ में करते हैं। इन पशुपालकों के पास देसी गाय होती हैं। इन्ही गायों में से एक हैं कोसली गाय।
छत्तीसगढ़ की एकमात्र देसी नस्ल की रजिस्टर्ड गाय
कोसली गाय छत्तीसगढ़ राज्य की एकमात्र रजिस्टर्ड देसी गाय है। विशिष्ट रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली ये गाय हाइब्रिड गायों से सभी मायनों कहीं बेहतर है। राज्य में पायी जाने वाली ये गाय ज़्यादा दूध उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता में भी बेहतर मानी जाती है।
किशोर ने बताया कि छत्तीसगढ़ की इस गाय को राष्ट्रीय पशु अनुवांशिकीय संसाधन ब्यूरो करनाल ने 36 वां गोवंश नस्ल के नाम से पंजीकृत किया है। इंडिया केटल 2600 कोसली 03036 और राज्य की पहली पंजीकृत नस्ल होने के बाद देश भर में कोसली के नाम से प्रचलित हो गई है।
कोसली गाय के बारे में ज़रूरी बातें
- कोसली एक ‘देसी’ मवेशी नस्ल है, जो मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के मध्य मैदानी जैसे रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर और जांजगीर जिलों के आसपास के क्षेत्रों में इलाकों में पाई जाती है।
- छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम कौशल था, इसलिए इस गाय का नाम कोसली पड़ा।
- ये गाय छोटे कद-काठी की होती है। इसके मूत्र में यूरिया, खनिज लवण, एंजाइम और फसलों के लिए उपयोगी अन्य तत्वों की मात्रा भी पाई जाती है।
- खेतों में इसका छिड़काव कर कीट नियंत्रण किया जाता है।
- इस गाय का पालन छोटे और मध्यम वर्ग के किसानों के लिए काफी लाभकारी है।
- इसके दूध में मिठास ज़्यादा होती है। इनमें बच्चे पैदा करने की क्षमता ज़्यादा होने के साथ इन्हें रोग भी कम होते हैं।
जापान भी खरीदेगा कोसली गाय का गौमूत्र
जापान की जैविक खाद और कीटनाशक कंपनी टाउ एग्रो ने किशोर राजपूत से 50 रुपये लीटर की दर पर एक लाख लीटर गोमूत्र खरीदने का सौदा किया है। जापानी कंपनी CSR के तहत अपने देश के किसानों को ये गौमूत्र निः शुल्क बांटेगी।
किशोर ने बताया कि ये पूरी प्रक्रिया 4 चरणों में पूरी होगी, जिसमें से 2 चरण पूरे हो गये हैं और मार्च 2024 तक सभी चरण पूरे होने की संभावना हैं। किशोर के साथ लगभग 300 पशुपालक जुड़े हैं, जो इसका हिस्सा बनेंगे और कोसली का गौमूत्र देंगे. हालांकि, गौमूत्र सिर्फ़ उन्ही कोसली गायों का ख़रीदा जायेगा, जिन्हे प्राकृतिक रूप से जंगल में चराया जाये और कुछ हर्बल पौधों का सेवन कराया जाये।
कोसली गाय क्यों है इतनी विशेष?
किशोर बताते हैं कि वो खुद जैविक पद्धति के पक्षधर हैं और अपने खेतों में रासायनिक खाद, उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसी दिशा में उन्होंने नवाचार करते हुए लगातार कई सालों तक अपने खेतों में रासायनिक उर्वरक की जगह अलग-अलग गायों के गोबर और गौमूत्र का छिड़काव नियमित रूप से किया। इस एक्सपेरिमेंट में उन्होंने पाया कि जिस साल उन्होंने अपने खेत और बगीचे में कोसली गाय के गौमूत्र का छिड़काव किया उस साल उत्पादन में बढ़ोतरी हुई।
कोसली गाय के गौमूत्र छिड़काव के फ़ायदे
किशोर, कोसली गाय के गौमूत्र के फ़ायदों के बारे में बात करते हैं। इसको लेकर उन्होंने निम्न बिंदुओं पर अपनी बात कही।
मित्र कीटों की संख्या में बढ़ोतरी: भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ाने वाले, फसल उत्पादन में सहायक, शत्रु कीटों से बचाव और फलों-फूलों के परागण के आवश्यक किट बढ़ते हैं। कौन हैं मित्र किट- केचुए, वास्पा, ब्रैकान, कॉक्सीनेला, नेबिस, ट्राइकोग्रामा, तितकी, मकड़ी, चींटी, मेंढक, मधुमक्खियां आदि।
भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि: भूमि में मित्र कीटों की संख्या ज़्यादा होती है तो भूमि से वाष्पीकरण कम होता है और जल धारण क्षमता बढ़ती है।
शत्रु कीटों के प्रकोप से राहत: ज़मीन और फसलों में कोसली गाय के गौमूत्र छिड़काव से किशोर ने देखा कि मित्र कीटों की अधिकता के वजह से शत्रु किट पनपने और फसलों को नुकसान पहुंचाने के पहले ही ख़त्म हो जाते हैं।
फसल उत्पादन में वृद्धि: किट पतंगों और परजीवियों की अनुपस्थिति में फसल नुकसान में कमी देखी गई और उत्पादन में बढ़ोतरी हुई।
उच्च गुणवत्ता: कोसली गाय के गौमूत्र छिड़काव से फसलों, सब्जियों की गुणवत्ता में फ़र्क साफ़ नज़र आता है। सब्जियों का आकार बड़ा होता है। स्वाद भी रासायनिक खाद से उपजी सब्जियों से बेहतर होता है। वहीं धान और गेहूं की बालियां अपेक्षाकृत बड़ी और मज़बूत होती हैं।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वैज्ञानिक भी किशोर के इस एक्सपेरिमेंट से सहमति रखते हैं। वैज्ञानिकों की टीम ने किशोर के इस दावे को सही माना है।
कोसली नस्ल की गाय का दूध
NDDB (National Dairy Development Board) के अनुसार, कोसली नस्ल की गाय एक ब्यान्त में अधिकतम 250 लीटर तक दूध देती है। इनके दूध में अधिकतम फैट की मात्रा 4.5 प्रतिशत पाई जाती है।
कामधेनु कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा भी प्रमाणित किया गया है कि कोसली गाय के दूध से निर्मित उत्पादों के सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। साथ ही किशोर ने बताया कि कोसली गाय के दूध से बने घी का सेवन करने से कब्ज, बलगम, जुकाम की समस्या दूर होती है। इसके दही में गुड बेक्टेरिया ज़्यादा होते हैं, जो पाचन शक्ति बढ़ाने में मदद करते हैं, वहीं त्वचा सम्बन्धी समस्याएं भी काफ़ी हद तक कम होती हैं।
कोसली गाय का रखरखाव और प्रबंधन
पशुपालक किशोर ने बताया कि ये गाय इसलिए इतनी ख़ास है क्योंकि ये पारिस्थितिक बदलावों के साथ ढलना जानती हैं। धूप, गर्मी, बारिश, ठण्ड से इन्हें ज़्यादा परेशानी नहीं होती। ना ही इनका रखरखाव हाइब्रिड गायों की तरह मंहगा है। बड़ी सरलता से कहीं भी आसानी से इन्हे पाला जा सकता है। मानवीय भावनाओं के प्रति इनकी समझ भी अन्य गायों की अपेक्षा अच्छी होती हैं।