तेज़ गर्मी और सूखे (Heat and Drought) के कारण विश्व के कई देशों में दुग्ध उत्पादन में गिरावट (Decline in Milk Production) आ रही है। ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस और अमेरिका सहित कई देशों में दुग्ध उत्पादन घटा है। इससे आने वाले समय में मक्खन से लेकर बेबी मिल्क पाउडर तक की कमी होने की आशंका जतायी गयी है। विश्व के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश भारत में गायें गर्मी से परेशान हैं।
गर्मी और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों की वजह से भारत के पशुपालन विशेषज्ञों की ओर से भी पशुपालकों को अपने दुधारू पशुओं को तेज़ गर्मी और लू से बचाने के लिए अनेक सलाह दी गयी हैं। इसमें पशुओं के लिए छायादार शेड, कूलर तथा पंखे और पर्याप्त चारा-पानी आदि की व्यवस्था करना शामिल है।
केरल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, यदि मवेशियों के शारीरिक तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है तो उनका दैनिक दूध उत्पादन 1.8 से 2 लीटर तक कम हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से दुग्ध उत्पादन में 5 प्रतिशत की कमी हो सकती है। गम्भीर ताप तनाव (heat stress) की वजह से पशुओं के शरीर का तापमान, दिल की धड़कनें, रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ जाता है। चारे का सेवन 35 प्रतिशत तक कम हो सकता है। देसी नस्ल के पशु तो फिर भी ज़्यादा तापमान सहन कर लेते हैं लेकिन विदेशी और संकर नस्लों में इसे बर्दाश्त करने की क्षमता भी कम होती है।
गर्मी की वजह से घट जाती है पशुओं की ख़ुराक़
देश के ज़्यादातर इलाके इन दिनों ज़बरदस्त गर्मी झेल रहे हैं। ऐसा मौसम दुधारू पशुओं और पशुपालकों के लिए भी बहुत चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि डेयरी पशुओं की अधिकतम उत्पादकता के लिए 5 से 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान सबसे मुफ़ीद माना गया है। इसी तरह, जब हवा में नमी यानी, तापमान आर्द्रता सूचकांक (Temperature Humidity Index) 72 अंक से ज़्यादा होता है तो डेयरी पशुओं पर गर्मी के तनाव (heat stress) का प्रभाव दिखायी देता है।
गर्मी की वजह से मवेशियों की प्रजनन क्षमता और दुग्ध उत्पादन में तो गिरावट आती ही है, सेहत के अन्य पहलू भी प्रभावित होते हैं। दरअसल, अधिक गर्मी के कारण पशु चारा खाना कम कर देते हैं। उनके शारीरिक तापमान में एक डिग्री की बढ़ोतरी हो जाए तो पशु अपनी ख़ुराक़ 850 ग्राम तक कम लेते हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के एक शोध के अनुसार, तापमान बढ़ने की वजह से पशुओं में ऊतकों यानी टिश्यूज़ में हाइपरमोर्या के लक्षण विकसित हो जाते हैं और इससे उनका दूध उत्पादन प्रभावित होता है।
डेयरी पशुओं पर गर्मी के तनाव का प्रभाव
ज़्यादा गर्मी से जैसे इंसान को लू लग जाती है, वैसे ही पशुओं का थर्मोरेग्युलेटरी फिजियोलॉजिकल मैकेनिज्म भी गड़बड़ा जाता है। यही थर्मोरेगुलेटरी तंत्र पशुओं के शरीर को ज़्यादा सर्दी या ज़्यादा गर्मी से सुरक्षित रखता है ताकि उनकी जैविक, रासायनिक, शारीरिक और पाचन की प्रक्रियाएँ सही ढंग से चलती रहें। इसीलिए गम्भीर ताप तनाव (heat stress) की वजह से पशुओं के शरीर का तापमान, दिल की धड़कनें, रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ जाता है।
चारे का सेवन 35 प्रतिशत तक कम हो सकता है। इससे दुग्ध उत्पादन क्षमता तेज़ी से गिरने लगती है और पशुपालकों को बहुत नुकसान होता है। देसी नस्ल के पशु तो फिर भी ज़्यादा तापमान सहन कर लेते हैं लेकिन विदेशी और संकर नस्लों में इसे बर्दाश्त करने की क्षमता भी कम होती है।
विकसित देशों में गम्भीर डेयरी संकट
आईसीएआर के विशेषज्ञों ने समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि ऑस्ट्रेलिया में वर्षों से पड़ रही भीषण गर्मी के कारण दुधारू पशु बेहाल हैं। इसी वजह से वहाँ पशुपालक किसान दुग्ध उत्पादन का काम छोड़ रहे हैं। इसकी वजह से उस ऑस्ट्रेलिया का दुग्ध उत्पादन क़रीब 5 लाख टन कम हो गया है, जिसकी 1990 में वैश्विक डेयरी व्यापार में 16 फ़ीसदी हिस्सेदारी हुआ करती थी। आलम ये है कि वर्ष 2018 में ऑस्ट्रेलिया की यही हिस्सेदारी घटकर 6 फ़ीसदी तक सिमट गयी। यही सिलसिला आगे भी जारी रहा। नतीज़तन, वर्ष 1980 से 2020 तक ऑस्ट्रेलिया में डेयरियों की संख्या क़रीब एक चौथाई ही रह गयी।
ऑस्ट्रेलिया की तरह फ्राँस में सूखे की समस्या बढ़ने के कारण गायों को भरपूर मात्रा में आहार नहीं मिल पा रहा है। इसके कारण वहाँ ख़ास गुणवत्ता वाले पनीर का उत्पादन बन्द हो गया है। वहाँ गायों को गर्मी और सूखे से बचाने के लिए किसान नयी-नयी योजनाएँ बना रहे हैं।
छोटे किसान भी एसी और कूलर लगाकर पशुओं को गर्मी से राहत दिलाने की कोशिश में जुटे हैं। हालाँकि, महँगे उपायों के बावजूद किसानों को मवेशियों को गर्मी से बचाने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। यही वजह है कि रोबा बैंक में तैनात वैश्विक डेयरी के रणनीतिकारों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर संकट और गहरा सकता है।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अमेरिका में डेयरी उद्योग को सालाना 2.2 अरब डॉलर की हानि होगी। विकसित देशों में गिरता दुग्ध उत्पादन स्पष्ट तौर पर बता रहा है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से भी सबसे ज़्यादा नुकसान उन्हें ही उठाना पड़ रहा है। विकासशील देशों की उत्पादकता को पहले से ही कम रही है, इसलिए वहाँ जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी अपेक्षाकृत कम नज़र आता है। लेकिन चिन्ता की घंटी तो इनके लिए भी बज ही रही है।
गर्मी से पशुओं का बचाव के 10 घरेलू नुस्ख़े
आमतौर पर पशुपालक इस बात को जानते हैं कि पशु यदि गर्मी के तनाव से पीड़ित हो तो उसका उपचार कैसे करें? फिर भी ‘किसान ऑफ़ इंडिया’ यहाँ आपको ऐसी घरेलू नुस्ख़ों के बारे में बता रहा है जिसकी सिफ़ारिश ICAR-केन्द्रीय गोवंश अनुसन्धान संस्थान, मेरठ के विशेषज्ञों की ओर से की गयी है। मुमकिन है कि आगे बताये जा रहे नुस्ख़ों के बारे में पशुपालक पहले से ही जानते हों। इसके बावजूद उन्हें ये जानना चाहिए कि ऐसा और क्या-क्या है जिसे वो जानते नहीं, जबकि इन्हें अपनाना बहुत आसान है?
दैनिक उपाय: गर्मी के दिनों में पशुओं को रात में खाना खिलाएँ। उन्हें आसानी से पचने लायक और अच्छी गुणवत्ता वाला चारा दें। हरे चारे की मात्रा बढ़ाएँ। नियमित रूप से खनिजों का मिश्रण दें। जैसे, नमक को उनके नाद या चरनी में डालें। चारे में 100 ग्राम सोडियम बाइकार्बोनेट भी मिलाएँ। यह गर्मी के प्रतिकूल प्रभाव को कम करता है। उन्हें रोज़ाना 100 ग्राम तेल भी दें। अगर पशु एक जगह बँधे रहते हों तो उनके लिए दिन के कम से कम पाँच बार पानी पीने का इन्तज़ाम होना चाहिए।
- पशुओं को छायादार जगह पर रखें।
- हर समय पशुओं के लिए साफ़ पानी की उपलब्धता रखें।
- पशुओं को बार-बार नहलाएँ। धूप कम होने या मौसम ठंडा होने पर ही गायों को चरायें।
- गर्मी के मौसम में पशुओं के लिए आहार की समय-सीमा बदलें।
- गायों के खुरों के स्वास्थ्य का ख़्याल रखें।
लू का घरेलू और प्राकृतिक उपचार:
- गायों के शरीर पर और कान के पीछे प्याज़ का रस लगाना हीट स्ट्रोक के लिए सबसे अधिक प्रभावी घरेलू उपचारों में से एक है।
- कड़ाही में कुछ कटा हुआ प्याज भूनकर उसमें थोड़ा सा जीरा पाउडर और थोड़ा सी चीनी मिलाकर तैयार मिश्रण को पशुओं को देना भी एक मूल्यवान घरेलू उपाय है।
- तुलसी के पत्तों का रस निकालें और इसमें थोड़ी सी चीनी मिलाएँ। इस घोल को गायों को पिलाने से हीट स्ट्रोक के उपचार में मदद मिलती है।
- कच्चा आम भी हीट स्ट्रोक से बचाव के साथ-साथ इलाज़ के लिए सबसे लोकप्रिय प्राकृतिक घरेलू उपचारों में से एक है। इसके लिए कुछ कच्चे आम लें, उन्हें उबालें और फिर उन्हें ठंडे पानी में भिगो दें। फिर इन आमों का गूदा लें और उसमें कुछ धनिया, जीरा, गुड़, नमक और काली मिर्च डालकर मिलाएँ। हीट स्ट्रोक से बचाने के लिए इस मिश्रण को दिन में 3-4 बार पशु को दें।
- थोड़े से नारियल पानी में पिसी हुई कालीमिर्च डालकर इसका पेस्ट तैयार करें। इसे ठंडा करके गायों के शरीर पर लगाने से भी हीट स्ट्रोक से बचाव होता है।
- पानी में एलोवेरा का जूस मिलाकर पिलाना भी हीट स्ट्रोक के लिए सबसे आसान प्राकृतिक घरेलू उपचार है।
- 10 ग्राम गुलाब की पंखुड़ियों, 25 ग्राम सौंफ, 10 ग्राम गोजुवा के फूल और 10 ग्राम जावा फूल को मिलाकर पीस लें। फिर इसमें थोड़ा सी चीनी या दूध मिला लें। हीट स्ट्रोक से निपटने के लिए इस मिश्रण को पशु को 3-4 दिन तक दें।
- चीनी के साथ धनिया का रस लेना एक सरल प्राकृतिक घरेलू उपचार है। इसका उपयोग भी हीट स्ट्रोक और अन्य गर्मी सम्बन्धी लक्षण दिखने पर किया जाता है।
- कुछ बेरों को पानी में तब तक भिगोकर रखें, जब तक वे नरम ना हो जाएँ। फिर नरम बेरों को पानी में मसल लें। इसे छानकर और इसका काढा बनाकर भी गायों को देने से गर्मी से पैदा हुए तनाव से राहत देता है।
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