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ट्राउट मछली बहुत ही खास किस्म की मछली है, जिसे अंग्रेज़ भारत लेकर आए थे, लेकिन इसके औषधीय गुणों की वजह से भारत में भी धीरे-धीरे बड़े पैमाने पर उसका उत्पादन शुरू हो गया। ट्राउट मछली ठंडे पानी में पैदा होती है, इसलिए ट्राउट मछली पालन जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के साथ ही पूर्वोत्तर भारत के राज्यों अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में भी हो रहा है।
इस मछली का हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है। यहां की जलवायु इन मछलियों के लिए बहुत अनुकूल है। ठंडे, ताज़े पानी की ट्राउट फिश भारत में बिकने वाली महंगी मछलियों में से एक है।
ट्राउट मछली की ख़ासियत
ट्राउट मछली दो तरह की होती है रेनबो ट्राउट और ब्राउन ट्राउट। दोनों ही मछलियों का साफ और ठंडे बहते पानी में पालन किया जा सकता है। इस मछली में प्रोटीन और ओमेगा-3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं, इसलिए दिल की बीमारियों वाले मरीज़ों के लिए ये मछली बहुत फायदेमंद साबित होती है। ये मोटापे, हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में भी मददगार होती है। पहाड़ी इलाकों के किसान ट्राउट मछली पालन करके अपनी कमाई में इज़ाफा करने में जुड़े हैं।
ट्राउट मछली की कीमत
इस मछली की मांग काफी ज्यादा है लेकिन उत्पादन काफी कम है, इसलिए बाज़ार में इसकी बहुत मांग है और ये महंगी बिकती है। ट्राउट मछली 1,000 से 1500 रुपये प्रति किलो तक बिकती है। दरअसल, इस मछली को पाने का खर्च भी ज्यादा होता है जिससे इसकी कीमत और बढ़ जाती है।
प्रजनन की स्ट्रिपिंग विधि
स्ट्रिपिंग मछली के प्रजनन का एक तरीका है। इस विधि में मादा मछली के पेट से अंडों को रिलीज़ किया जाता है और उसके बाद नर मछली के शुक्राणुओं को इसमें डालकर मत्स्य बीज तैयार किए जाते हैं। एक मादा मछली एक बार में 1-2 हजार तक अंडे देती है और 2 से 3 साल की मछली ही अंडे देने के लिए परिपक्व होती है।
ब्राउन ट्राउट और रेनबो ट्राउट
ब्राउन ट्राउट दिसंबर से जनवरी के दौरान और रेनबो ट्राउट फरवरी से मध्य मार्च के दौरान परिपक्व होती है। मछलियों के तैयार होने पर नर और मादा की पहचान की जाती है।
ट्राउट मछली पालन पर सरकारी मदद
ट्राउट मछली पालन के लिए सरकार की ओर से भी मदद की जा रही है। रेसवे और दानों के लिए अलग से सहायता राशि प्रदान की जाती है। दरअसल, इस मछली का दाना भी काफ़ी महंगा आता है।
रेसवे उस टैंक को कहते हैं जिसमें मछली पाली जाती है। टैंक की लंबाई करीब 17 मीटर, चौड़ाई 2 मीटर और गहराई डेढ़ मीटर होती है। एक रेसवे के लिए सरकार की तरफ़ से 1.5 से 2 लाख रुपए तक का लोन मिल जाता है और दाने के लिए अलग से मदद मिलती है। इस तरह दोनों को मिलाकर किसानों को करीब 3-3.5 लाख रुपये की आर्थिक मदद मिल जाती है।
ट्राउट मछली के अंडों से कमाई
ट्राउट मछली की बिक्री के साथ ही किसान इसके अंडे बेचकर भी अच्छी कमाई कर सकते हैं। इसके अंडे दूसरे देशों में रिसर्च के लिए जाते हैं। इससे उनकी अच्छी कमाई हो जाती है। मछली के बीज से भी आमदनी हो सकती है, क्योंकि छोटे किसान मछली पालन के लिए इसे खरीदते हैं, साथ ही दूसरे राज्यों में भी मछली के बीज बेचे जा सकते हैं।
एशिया का सबसे बड़ा ट्राउट फ़िश फ़ार्म
दक्षिण कश्मीर के कोकेरनाग क्षेत्र में एशिया का सबसे बड़ा ट्राउट फ़िश फ़ार्म है। जहां ट्राउट मछली के बीजों का उत्पादन होता है। हर साल यहां 45 लाख ट्राउट मछली के बीजों का उत्पादन किया जाता है। देशभर में इसकी सप्लाई होती है।
उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में ताज़े बहते पानी की उपलब्धता और यहां की जलवायु ट्राउट मछली पालन के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है, इसलिए सरकार भी इसे बढ़ावा दे रही है।