विश्व में जनसंख्या तेज़ी के साथ बढ़ रही है। इसके साथ ही, लोगों को अच्छा खाना उपलब्ध कराना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। इसके लिए जलकृषि एक अच्छा फूड ऑप्शन बन गया है। जलकृषि (Aquatic Farming) के ज़रीये हम लोगों को सस्ता और पौष्टिक खाना प्रदान कर सकते हैं, जिसमें ढेर सारा प्रोटीन होता है। लेकिन जैसे-जैसे जलकृषि (Aquatic Farming) बढ़ रही है, उसकी कुछ समस्याएं भी सामने आ रही हैं। मछलियों को कृत्रिम आहार (Artificial Food), रसायन और दवाइयां दी जा रही हैं, जिससे ख़र्च बढ़ रहा है। साथ ही, छोटे-छोटे कीटाणुओं की वज़ह से मछलियां बीमार हो जाती हैं, जिससे मछली पालने वालों को भी नुक़सान उठाना पड़ता है।
ये समस्या ऐसी है, जैसे किसी को अच्छा खाना न मिले और वह कमज़ोर हो जाए। इसलिए, मछली के आहार की बात करें तो एक बेहतरीन विकल्प है मोरिंगा। मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग मछलियों को स्वस्थ रखने और जलकृषि के काम को अच्छे से चलाने में मदद कर सकता है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि मछली के आहार में मोरिंगा का उपयोग क्या है और यह कैसे फिश फूड के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है।
मोरिंगा क्या है? (What is Moringa?)
मोरिंगा एक ऐसा पेड़ है जिसे सहजन और ड्रम स्टिक (Drumstick) भी कहा जाता है। ये मछलियों के साथ-साथ इंसानों की सेहत के लिए भी बहुत अच्छा होता है। इसका हर हिस्सा काम आता है – फल, फूल, पत्तियां, यहां तक कि छाल भी। लोग इसे खाते हैं और इससे दवाई भी बनाते हैं। मोरिंगा में ढेर सारे पोषक तत्व हैं, जैसे विटामिन सी, कैल्शियम, आयरन और फाइबर। इसके बीज से तेल भी निकाला जाता है।
मोरिंगा मछलियों के लिए है सुपरफूड (Moringa is a Superfood for Fish)
मछली पालन आहार में मोरिंगा (Moringa) का उपयोग मछलियों के लिए एक तरह का सुपरफूड है। ये मछलियों को बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। मोरिंगा की पत्तियों में वो सारे पोषक तत्व हैं जो मछलियों को स्वस्थ रखने के लिए ज़रूरी हैं। इसमें दस तरह के ज़रूरी अमीनो एसिड हैं, जो प्रोटीन बनाने में मदद करते हैं। साथ ही, इसमें कई तरह के विटामिन भी हैं।
इसलिए, अगर हम मछलियों को मोरिंगा खिलाएं, तो वे ज्यादा स्वस्थ और मजबूत रहेंगी। ये कृत्रिम आहार (Artificial Food) से बेहतर है क्योंकि ये प्राकृतिक (Natural) है और इसमें कोई नुक़सानदायक केमिकल नहीं होते। मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग मछलियां स्वस्थ रहेंगी और मछली पालने वालों को भी फ़ायदा होगा।
मछलियों को मिलता है मोरिंगा से प्रोटीन (Fish get protein from Moringa)
मछलियों के विकास और प्रजनन के लिए प्रोटीन बहुत ज़रूरी है। रिसर्च से पता चला है कि मछली के बच्चों को कम से कम 30 फ़ीसदी प्रोटीन की ज़रूरत होती है। आमतौर पर, मछली पालने वाले फिश मील का उपयोग प्रोटीन के स्रोत के तौर पर करते हैं। लेकिन, फिश मील की मांग बढ़ने से इसके उत्पादन के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव भी बढ़ रहा है।
ऐसे में, मछली पालन आहार में मोरिंगा (Moringa) का उपयोग जैसे वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों का उपयोग जलकृषि (Aquatic Farming) में बढ़ रहा है। मोरिंगा में बहुत ज़्यादा प्रोटीन होता है, साथ ही सभी ज़रूरी अमीनो एसिड भी मौजूद हैं। इसलिए, मोरिंगा मछली के आहार के लिए एक अच्छा विकल्प है। मोरिंगा की पत्तियों का पाउडर 25-37 फीसदी प्रोटीन देता है। ये मछलियों के बढ़ने में मदद करता है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Disease Resistance) भी बढ़ाता है।
मछली पालन में मोरिंगा के फ़ायदें (Benefits of Moringa in Fisheries)
मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग पौधे की पत्तियों, बीजों और छाल में कई तरह के फाइटोकेमिकल्स होते हैं, जैसे फ्लेवोनोइड, फेनोलिक एसिड और एंथ्राक्विनोन। ये तत्व मछलियों के स्वास्थ्य को अच्छा करने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और त्वचा की चमक बढ़ाने में मदद करते हैं। इतना ही नहीं, मोरिंगा का उपयोग पारंपरिक एंटीबायोटिक्स और केमिकल दवाओं की जगह एक सस्ता और प्रभावी विकल्प है। ये मछलियों के बढ़ने, त्वचा के रंग और रोगों से लड़ने में मदद करता है, बिना किसी नुक़सानदायक असर के।
सजावटी मछलियों के लिए अहम है मोरिंगा (Moringa is Important for Ornamental Fish)
कई शोधों से पता चला है कि तिलापिया, सीब्रीम, गिबेल कार्प और गप्पी जैसी सजावटी मछलियों के लिए मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग बहुत फ़ायदेमंद है। क्योंकि इन अध्ययनों में देखा गया कि अगर मछली के आहार में 10 से 15 % मोरिंगा मिलाया जाए, तो मछली के विकास पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता। यानी, मोरिंगा को प्रोटीन का बेहतर विकल्प माना जा सकता है फिश मील के बजाय।
मोरिंगा में एक खास तत्व पाया जाता है, जिसे बेंज़िल आइसोथियोसाइनेट (benzyl isothiocyanate) कहा जाता है। इसमें एंटीबायोटिक गुण होते हैं, जो मछलियों को बढ़ने और कम मरने में मदद करते हैं। इतना ही नहीं, मोरिंगा के कैरोटीनॉयड्स (Carotenoids) मछलियों की त्वचा के रंग को गहरा करने में भी मदद करते हैं। जैसे, तिलापिया मछली के खाने में मोरिंगा डालने से उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और उसका स्वास्थ्य भी अच्छा होता है। मोरिंगा में मौजूद कुछ यौगिक, जैसे आइसोथियोसाइनेट (Isothiocyanate) और ग्लाइकोसाइड (Glycosides), मछली की रोग प्रतिरोधक क्षमता और स्वास्थ्य को बहुत बढ़ाते हैं।
मोरिंगा की खेती कैसे की जाती है? (How is Moringa Cultivated?)
मोरिंगा (Moringa) की खेती के लिए आप सीधे बीज की बुवाई गड्ढों में कर सकते हैं या फिर नर्सरी में पहले इसकी पौध तैयार कर सकते हैं। पौध तैयार करने के लिए पॉलिथिन बैग में 1-2 सेमी गहराई में बीज डालें और हर बैग में 2-3 बीज डालें। बीज 5-10 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं। जब पौध 60-90 सेंमी लंबी हो जाए, तो इसे खेत में रोपाई की जा सकती है। बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है और गड्ढे बनाकर उनमें गोबर की खाद या कंपोस्ट डाला जाता है।
मोरिंगा के पौधों की रोपाई जून से लेकर सितंबर तक की जा सकती है। पौधों के अच्छे विकास के लिए उनकी कटाई भी ज़रूरी है। जब पौधे करीब 75 सेंमी के हो जाएं, तो इसके ऊपरी भाग को तोड़ देना चाहिए जिससे बगल से नई शाखाएं निकल सकें। पौधों को 2.5 X 2.5 मीटर की दूरी पर 45 X 45 X 45 सेंमी आकार के गड्ढे में रोपा जाता है।
इस तरह, आप मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग मछली के खाने के रूप में कर सकते हैं। ये कहना ग़लत नहीं होगा कि ये एक बेहतरीन विकल्प है। इसमें प्रोटीन अच्छी मात्रा में होता है और ये मछली के स्वास्थ्य और विकास के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद है। इसलिए, मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग जलकृषि (Aquatic Farming) के लिए एक टिकाऊ और स्वास्थ्यवर्धक समाधान देता है।
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मछली पालन आहार में मोरिंगा के इस्तेमाल पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
सवाल 1: क्या मोरिंगा का उपयोग केवल मछली पालन में ही किया जाता है?
जवाब: नहीं, मोरिंगा का उपयोग केवल मछली पालन में ही नहीं, बल्कि यह मानव आहार, स्वास्थ्य लाभ, और औषधीय प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है। इसकी पत्तियों, बीजों और छाल से अलग-अलग स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं।
सवाल 2: मोरिंगा की पत्तियों का पाउडर मछलियों के लिए कैसे तैयार करें?
जवाब: मोरिंगा की पत्तियों को अच्छे से धोकर सुखा लें और फिर उन्हें पीसकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को मछली के आहार में मिलाया जा सकता है, जिससे मछलियों को अधिक पोषक तत्व मिल सकें।
सवाल 3: क्या मोरिंगा के उपयोग से मछलियों की त्वचा का रंग बदलता है?
जवाब: हां, मोरिंगा में कैरोटीनॉयड्स होते हैं जो मछलियों की त्वचा के रंग को गहरा कर सकते हैं। ये खासकर सजावटी मछलियों के लिए लाभकारी हो सकता है।
सवाल 4: मोरिंगा की खेती किस प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है?
जवाब: मोरिंगा को किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, चाहे वह बंजर या कम उपजाऊ ही क्यों न हो। लेकिन, मिट्टी का pH मान 6.3 से 7 के बीच होना चाहिए।
सवाल 5: मछलियों को मोरिंगा से कितना प्रोटीन मिलता है?
जवाब: मछलियों को मोरिंगा की पत्तियों का पाउडर 25-37% प्रोटीन प्रदान करता है। इससे मछलियों के विकास में मदद मिलती है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
सवाल 6: मोरिंगा की खेती के लिए सबसे अच्छा मौसम कौन सा है?
जवाब: मोरिंगा की खेती के लिए गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। सबसे अच्छा मौसम जून से सितंबर तक होता है, जब तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
सवाल 7: मोरिंगा की फलियां कितने दिन में तैयार होती हैं?
जवाब: मोरिंगा की फलियां आमतौर पर 160-170 दिनों में तैयार हो जाती हैं। साल में दो बार फलियां आती हैं और चार बार इनकी तुड़ाई की जा सकती है, ज़रूरत के अनुसार अलग-अलग अवस्था में।
सवाल 8: मोरिंगा की सिंचाई कैसे करनी चाहिए?
जवाब: मोरिंगा की जड़ों के लिए फॉस्फोरस और पत्तियों के विकास के लिए नाइट्रोजन की ज़रूरत होती है। पौधों को ज्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए ड्रिप या फव्वारा सिंचाई पद्धति का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, 30 दिनों के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करना ज़रूरी है, ताकि खरपतवारों से पौधों का विकास प्रभावित न हो।
सवाल 9: मछली पालन में मोरिंगा का उपयोग करने के फ़ायदे क्या हैं?
जवाब: मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग मछलियों को प्राकृतिक प्रोटीन प्रदान करता है, जिससे उनकी वृद्धि और विकास बेहतर होता है। ये मछलियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है और उनकी त्वचा की गुणवत्ता को सुधारता है। इसके अतिरिक्त, मोरिंगा कृत्रिम आहार और रसायनों के उपयोग को कम कर सकता है।
सवाल 10: मछली पालन आहार में मोरिंगा का कितना प्रतिशत मिलाना चाहिए?
जवाब: सजावटी मछलियों के लिए, मछली पालन आहार में मोरिंगा की मात्रा 10 से 15 % तक मिलाना चाहिए। इससे मछलियों की वृद्धि पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता और ये एक अच्छा प्रोटीन ऑप्शन साबित होता है।
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