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खूबसूरत और हसीन पहाड़ों से घिरे उत्तराखंड के ज़िले टिहरी के सॉन्ग वैली इलाके में एक ट्राउट फार्म है, जिसे पंचम सिंह चलाते हैं। इस फार्म में पंचम सिंह कई सालों से ट्राउट मछली पालन, उसके बीज और बच्चों का भी उत्पदान कर रहे हैं।
रेनबो ट्राउट मछली के पालन के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना है ज़रूरी है इस बारे में विस्तार से किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से पंचम सिंह ने चर्चा की।
5 सालों से कर रहे ट्राउट मछली पालन
खेती से मछली पालन का रुख़ करने वाले पंचम सिंह ने अपने इस सफर की शुरुआत के बारें में बताया कि साल 2013 से पहले धान, गेहूं, मटर, धनिया, अदरक सब चीज़ों की खेती होती थी, लेकिन 2013-14 में आई प्राकृतिक आपदा के बाद ज़मीन पत्थरीली हो गई, जिससे फसलें उगाना संभव नहीं था, तो पंचम सिंह ने आपदा को अवसर में बदलते हुए मत्स्य विभाग से मदद ली और उन्हें ट्राउट मछली पालन के लिए 40 फीसदी सब्सिडी मिल गई। जिसके बाद 2018-19 में उन्होंने ट्राउट मछली पालन का काम शुरू किया। मछली पालन के साथ ही उनके पास हैचरी भी है जहां वो मछलियों के बच्चे का भी उत्पादन करते हैं।
मछलियों को क्या खिलाना चाहिए और कितनी मात्रा में?
रेनबो ट्राउट मछलियों के आहार के बारे में जानकारी देते हुए पंचम सिंह बताते हैं कि रेनबो ट्राउट को वो ग्रोवेल न्यूट्रिला नामक दाना खिलाते हैं। जिसकी कीमत 120 रुपए प्रति किलो है, लेकिन उन्हें 50 फीसदी सब्सिडी मिलती है, यानी उन्हें ये दाना सिर्फ 60 रुपए प्रति किलो की दर से ही मिलता है। इस दाने से मछलियों का विकास तेज़ी से होता है।
मान लीजिए एक तालाब में 2 हजार मछलियां हैं जिनका औसत वज़न 200 ग्राम है, तो इन्हें 5 किलो चारा/दाना देना होता है। 2 किलो सुबह, 1 किलो दोपहर और 2 किलो शाम को। ग्रोवेल का न्यूट्रेला नामक दाना सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि इससे मछलियों का विकास अच्छा होता है। पंचम कहते हैं कि मछलियों के बच्चों को वो दिन में 5 बार चारा/दाना डालते हैं जिससे उनका विकास ठीक तरह से हो सके।
मछलियों को गंदे पानी से बचाने की ज़रूरत
जैसा की हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि ट्राउट मछलियां ठंडे, बहते और साफ पानी में ही पैदा और जिंदा रह सकती हैं। ट्राउट फिश गंदे पानी में जाते ही मर जाती हैं। इस बारे में पंचम सिंह का कहना है कि पहाड़ों में ट्राउट मछली पालन करते समय जून-जुलाई के मौसम में खास सावधानी बरतने की ज़रूरत पड़ती है, क्योंकि इस मौसम में बारिश के कारण नदी का गंदा पानी मछलियों के तालाब में आने लगता है जिससे मछलियां मरने लगती हैं। इसलिए उस दौरान रात दिन मछलियों की बहुत देखभाल करनी होती है और गंदे पानी को तालाब तक पहुंचने से रोकना पड़ता है।
वहीं तालाब की सफाई भी नियमित करनी चाहिए। तालाब में इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए कि एक तरफ से पानी आए और दूसरी तरफ से निकल जाए।
कितने तालाब से मछली पालन की शुरुआत?
पंचम सिंह बताते है कि उन्होंने रेनबो ट्राउट मछली के उत्पादन का काम 10 तालाब से शुरू किया था। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 5 और तालाब बनावाए यानी अब उनके पास कुल 15 तालाब है जिसमें रेनबो ट्राउट का उत्पादन कर रहे हैं।
कितनी होनी चाहिए तालाब की लंबाई-चौड़ाई?
ट्राउट मछली पालन के लिए तालाब के साइज के बारे में पंचम सिंह बताते हैं कि तालाब की लंबाई 25 मीटर, गहराई डेढ़ मीटर और चौड़ाई 2 मीटर होनी चाहिए।
कितना होता है मछली उत्पादन?
एक तालाब से डेढ़ से 2 क्विंटल तक रेनबो ट्राउट मछली का उत्पादन हो जाता है। इसके लिए पंचम सिंह एक तालाब में 10 हजार बच्चे डालते हैं, 2 महीने बाद उसे दूसरे तालाब में पलटकर पहले तालाब को साफ करते हैं। उनका कहना है कि तालाब का पानी गंदा नहीं होना चाहिए और बहता पानी होना चाहिए।
कैसे करते हैं तालाब की सफ़ाई?
तालाब की सफाई की प्रक्रिया के बारे में कहते हैं कि उनके पास अभी डेढ़ साल, एक साल, 6 महीने वाली ट्राउट फिश हैं। आमतौर पर रेनबो ट्राउट का प्रजनन दिसंबर और जनवरी में होता है। मछलियों को साफ करने के लिए मोटे नमक के घोल का इस्तेमाल करते हैं। सबसे पहले दो डंडे लगे नेट से मछलियों को तालाब से निकालकर टब में डालें जिसमें नमक का घोल है दो मिट तक हिलाएं। इसके बाद मछलियों को दूसरे साफ तालाब में डाल दें।
रेनबो ट्राउट मछली की ख़ासियत
पंचम सिंह बताते हैं कि रेनबो ट्राउट से ओमेगा-3 नामक दवा बनती है।ये मछली बहुत पौष्टिक होती है साथ ही दिल, दिमाग और संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए फ़ायदेमंद है।
रेनबो ट्राउट कब होती है तैयार?
इन मछलियों का वज़न बहुत अधिक नहीं होता है, पंचम बताते हैं कि एक किलो वज़न होने पर इसे बाज़ार में बेच सकते हैं। एक किलो की मछली तैयार होने में 10 महीने का समय लगता है और वो 400 रुपए का दाना खा लेती है। जितना ज़्यादा दाना देंगे मछलियों की ग्रोध उतनी ही ज़्यादा होगी। उनका कहना है कि 2000 मछलियां करीब एक क्विंटल दाना खा लेती हैं।
रेनबो ट्राउट मछली पालन से कमाई
कमाई के बारे में वो बताते हैं कि इस काम में मेहनत काफ़ी है और वो साल में 3 से 4 लाख रुपए कमा लेते हैं। मछलियां 600 से 700 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती हैं।
कैसे तैयार करते हैं बच्चे?
पंचम सिंह अपनी हैचरी में मछलिओं के बच्चे भी तैयार करते हैं। इस बारे में वो कहते हैं कि वो खुद ही बीज और बच्चे तैयार कर रहे हैं। इसके लिए सबसे पहले नेट लगाकर बड़ी मछलियों, जिसमें मादा और नर होते हैं, को निकाल लेते हैं। फिर एक टिन शेड बनाना होता है। मादा मछली के अंडे और नर मछली का वीर्य निकालकर एक कांच के बाउल में मुर्गी के पंख से मिलाते हैं और हेचरी के डिब्बे में एक इंच पानी डालकर उसे मिक्स करते हैं। ये काम शाम को 7 बजे का बाद ही करते हैं, क्योंकि सूरज की रोशनी पड़ने पर बच्चे नहीं होंगे। हेचरी डिब्बे में डालने के बाद इसकी देखरेख 40 दिनों तक करनी पड़ती है। अगर कोई अंडा काला पड़ जाए तो उस खराब अंडे को हटाना होता है, वर्ना सभी अंडे खराब हो जाएंगे। आमतौर पर अगर 20 हज़ार अंडे हैं, तो उसमें से 5 हज़ार खराब हो जाते हैं।
रेनबो ट्राउट मछली पालन में इन बातों का ध्यान रखें
अगर कोई किसान या युवा स्वरोज़गार के रूप में रेनबो ट्राउट मछली पालन करना चाहते हैं, तो पंचम सिंह उन्हें कुछ ज़रूरी बातें बता रहे हैं जैसे-
– रेनबो ट्राउट केवल ठंडे पानी की मछलियां हैं, जो 20 से ऊपर तापमान होने पर मर जाती हैं।
– जहां ग्लेशियर का ठंडा पानी होगा, वहां इसका पालन किया जा सकता है।
– मछली पालन से जुड़ी अन्य ज़रूरतों या मदद के लिए मत्स्य विभाग से संपर्क करें।
पंचम सिंह की युवाओं को सलाह
पहाड़ी इलाकों के युवाओं को पंचम सिंह सलाह देते हैं कि अगर उनके इलाके में पानी है और तापमान 15-20 के बीच रहता है, तो रेनबो ट्राउट पालन का स्वरोज़गार वो आसानी से शुरू कर सकते हैं। इसके लिए पहले वो प्रशिक्षण लें और बाद में खुद ही हेचरी बनाकर मछली के बच्चों का भी उत्पादन कर सकते हैं।
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