किसान के लिए मिट्टी की अहमियत वैसी ही है जैसे इन्सान के शरीर में हड्डियों की ताक़त। यानी, जैसे दमदार हड्डियों के बग़ैर शरीर और सेहत शानदार नहीं हो सकती है वैसे ही उपजाऊ मिट्टी के बग़ैर खेती शानदार नहीं हो सकती। मनुष्य इस तथ्य को सदियों से जानता-समझता रहा है। इसके बावजूद जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के अन्धा-धुन्ध दोहन की वजह से उपजाऊ मिट्टी वाले खेतों का इलाका तेज़ी से घटता जा रहा है।
उपजाऊ मिट्टी के बंजर में तब्दील होने का सबसे घातक प्रभाव किसानों पर पड़ता है, भले ही इसके लिए समाज के अन्य वर्ग कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार हों। वैज्ञानिकों का समुदाय और सरकारों की ओर से किसानों को बंजर होती ज़मीन के बढ़ते प्रकोप से उबारने में मदद तो की जा सकती है, लेकिन बंजर ज़मीन को सुधारकर उसे फिर से कृषि योग्य भूमि में तब्दील करने का सबसे बड़ा दारोमदार किसानों पर ही रहेगा।
औद्योगिक क्रान्ति में बाद ख़ूब बढ़ा बंजर
औद्योगिक क्रान्ति के बाद से अब तक विश्व की कुल कृषि योग्य भूमि का काफ़ी बड़ा हिस्सा अनुपजाऊ हो चुका है। इसके अलावा मिट्टी में नमी की लगातार घट रही मात्रा से ज़मीन शुष्क और अनुपजाऊ बनती जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार इस दशा के पीछे दुनिया भर में कम तथा अनियमित बारिश का होना है। आँकड़ें बताते हैं कि बीती दो से तीन सदी में दुनिया भर में बारिश की कुल मात्रा में 72 फ़ीसदी तक की कमी आयी है। विकासशील देशों के लिए ऐसी वैश्विक परिस्थितियाँ बेहद चिन्ताजनक हैं, क्योंकि दुनिया की 40 फ़ीसदी आबादी एशिया तथा अफ्रीका के उन इलाकों में बसती है जहाँ मरुस्थलीकरण की आशंका ज़्यादा देखी जा रही है।
मरुस्थलीकरण की दशा तब और चिन्ताजनक हो जाती है, जब हम पाते हैं कि दुनिया में मानव की आबादी अब 8 अरब से ज़्यादा हो चुकी है। इसके अभी और बढ़ते जाने का अनुमान है। इसका मतलब ये है कि इन्सान को सिकुड़ती ज़मीन के बीच अपनी बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए भोजन जुटाना होगा। भोजन की इस चुनौती का सामना करने के लिए जहाँ एक ओर खेती की ऐसी उन्नत तकनीकों को विकसित करने पर ज़ोर है जिसे पैदावार बढ़ायी जा सके तो वहीं दूसरी ओर, उपजाऊ खेतों के बंजर बनने की रफ़्तार पर भी ज़बरदस्त ब्रेक लगाने की ज़रूरत है।
भारत की 30% ज़मीन बंजर
ज़मीन के बंजरपन या मरुस्थलीकरण की समस्या भारत में भी तेज़ी से बढ़ रही है। देश की मरुस्थलीय भूमि अब बढ़ते-बढ़ते 30 फ़ीसदी हो चुकी है। देश की कुल अनुपजाऊ भूमि का 82 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडीशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में पाया जाता है। लिहाज़ा, इन्हीं राज्यों में मिट्टी को बंजर से उपजाऊ बनाने का काम सबसे ज़्यादा करने की ज़रूरत है।
मरुस्थलीकरण ज़मीन के ख़राब होकर अनुपजाऊ हो जाने की प्रक्रिया है। इसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिविधियों समेत अन्य कारणों से शुष्क, अर्द्धशुष्क और निर्जल अर्द्धनम इलाकों की भूमि की उत्पादन क्षमता में कमी हो जाती है। घास के मैदानों में अत्यधिक चराई, उत्पादकता और जैव-विविधता को कम करते हैं तो वनों की कटाई से ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव में वृद्धि होती है। इन सभी के सामूहिक प्रभाव की वजह से मिट्टी की सबसे ऊपरी यानी उपजाऊ परत के कटाव का ख़तरा बेहद बढ़ जाता है।
विश्व का 9% है बंजर
संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में हर साल क़रीब 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी बर्बाद हो जाती है। UN का मानना है कि मृदा की गुणवत्ता में क्षति होने के कारण राष्ट्रीय घरेलू उत्पाद (GDP) की दर में हर साल 8 प्रतिशत तक गिरावट आने की आशंका है। एक अन्य शोध का अनुमान है कि दुनिया की 83 करोड़ हेक्टेयर से अधिक भूमि खारेपन से प्रभावित है। यह विश्व की कुल भूमि का 9 फ़ीसदी और भारत के क्षेत्रफल का चार गुना है। खारेपन से प्रभावित मिट्टी वैसे तो सभी महाद्वीपों और हर तरह की जलवायु वाली परिस्थितियों में पायी जाती है, लेकिन मध्य पूर्व एशिया, दक्षिण अमेरिका, उत्तर अफ़्रीका और प्रशान्त क्षेत्रों में इसका असर ज़्यादा दिखायी देता है।
मिट्टी या मृदा के खारेपन से पेड़-पौधे बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। इसी खारेपन की वजह से मरुस्थल और बंजर ज़मीन में नमी का कमी होती है तथा पानी का वाष्पीकरण भी ज़्यादा होता है, क्योंकि मिट्टी में नमी को सोखने और अपने पास सहेजकर रखने की क्षमता घटती है। मिट्टी में खारेपन यानी नमक या अम्लीयता की मात्रा बढ़ने से उसमें मौजूद पोषक तत्व बर्बाद होने लगते हैं और इससे ज़मीन धीरे-धीरे बंजर बन जाती है।
रासायनिक उर्वरक भी हैं घातक
रासायनिक उर्वरकों में भी मिट्टी की अम्लीयता बढ़ाने की प्रवृत्ति होती है। इसीलिए मिट्टी की अम्लीयता पर काबू पाने के लिए रासायनिक खादों के साथ जैविक खादों जैसे सड़ा गोबर, केंचुआ खाद, नीम, करंज और महुआ की खली भी डालना पड़ता है। दरअसल, रासायनिक खाद की वजह से ज़मीन में मौजूद सूक्ष्म खनिज तत्व जैसे मैगनीज़, बोरान आदि की उपलब्धता बढ़ जाती है। इसका फ़ायदा भी फसल पर दिखायी देता है, लेकिन लम्बे समय तक इनके इस्तेमाल से खेतों में नमक की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि ज़मीन बंजर हो जाती है।
रसायन विज्ञान की भाषा में नमक को सोडियम क्लोराइड कहते हैं। ये खेत में मौजूद अन्य तत्वों से रासायनिक क्रियाएँ करके उनके गुण बदल देता है। इससे खेत में सल्फर की मात्रा भी ज़्यादा हो जाती है, जो ज़मीन के लिए नुकसानदायक साबित होती है। शुरुआत में भले ही किसानों को रासायनिक खाद का लाभ दिखता हो, लेकिन इससे ज़मीन का बंजरपन बढ़ता है।
कैसे सुधारें बंजर को और कैसे पाएँ इससे कमाई?
अभी तक हमने आपको मिट्टी के बंजरपन से जुड़ी मौजूदा दशा के बारे में बताया। लेकिन अब हम आपको किसान ऑफ़ इंडिया के समृद्ध ख़जाने में मौजूद कुछ ऐसे लोगों का संक्षिप्त ब्यौरा दे रहे हैं, जो बंजर ज़मीन को उपजाऊ बनाने और वहाँ से भी कमाई करने के उपायों की जानकारी देते हैं। इन लेखों को विस्तार से पढ़ने के लिए आप इनके लिंक पर क्लिक करके पूरा लेख आसानी से पढ़ सकते हैं।
बंजर ज़मीन के इलाज़ की दवाई
ICAR-केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसन्धान संस्थान, लखनऊ के कृषि वैज्ञानिकों ने साल 2015-16 में ऐसे जीवाणुओं की खोज की जो बंजर भूमि को उपजाऊ बना देते हैं। इस जैविक फॉर्मूलेशन का नाम ‘हॉलो मिक्स’ (Halo Mix) है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसके इस्तेमाल से बंजर भूमि पर भी धान, गेहूँ या सब्जियों की खेती करना सम्भव है। हैदराबाद की एक कम्पनी को इसके व्यावसायिक उत्पादन के अधिकार मिला है। इसके उपयोग से बंजर ज़मीन पर की गयी खेती के नतीज़े उत्साहजनक रहे हैं।
ये भी पढ़ें – बंजर ज़मीन की आई दवाई, क्या बढ़ेगी किसानों की आय?
अनुपम है बायोचार (Biochar)
मिट्टी की सेहत सँवारने वाला, सबसे सस्ता और आसानी से बनने वाला टॉनिक है बायोचार। बायोचार के इस्तेमाल से मिट्टी के गुणों में सुधार का सीधा असर फसल और उपज में नज़र आता है। इससे किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता और खेती की लागत घटती है। लिहाज़ा, बायोचार को किसानों की आमदनी बढ़ाने का आसान और अहम ज़रिया माना गया है।
ये भी पढ़ें – जानिए, क्यों अनुपम है बायोचार (Biochar) यानी मिट्टी को उपजाऊ बनाने की घरेलू और वैज्ञानिक विधि?
एलोवेरा से बंजर पर कमाई
बेकार ज़मीन के लिए भी एलोवेरा की खेती वरदान बन सकती है। एलोवेरा की व्यावसायिक खेती में प्रति एकड़ 10-11 हज़ार पौधे लगाने की लागत 18-20 हज़ार रुपये आती है। इससे एक साल में 20-25 टन एलोवेरा प्राप्त होता है, जो 25-20 हज़ार रुपये प्रति टन के भाव से बिकता है। यानी एलोवेरा की खेती में अच्छे मुनाफ़े की गारंटी है, क्योंकि इसे ज़्यादा सिंचाई, खाद और कीटनाशक की ज़रूरत नहीं पड़ती। हर्बल और कॉस्मेटिक उत्पादों के कच्चे माल के रूप में औषधीय गुणों वाले एलोवेरा की माँग हमेशा रहती है।
ये भी पढ़ें – एलोवेरा की खेती (Aloe Vera Farming): बेकार पड़ी ज़मीन पर बढ़िया कमाई का ज़रिया, न कोई रोग और न ही जानवर से खतरा
बंजर पर बांस की खेती
बांस की पैदावार बैंकों के ब्याज़ की तरह साल दर साल बढ़ती जाती है। बांस एक अद्भुत वनस्पति है। विलक्षण पेड़ है। गुणों की खान है। असंख्य कृषि उत्पादों में शायद ही कोई पेड़-पौधा ऐसा हो जिसके उपयोग का दायरा बांस जितना व्यापक हो। इसीलिए बांस की खेती में व्यावहायिक और नकदी फसल वाली सारी ख़ूबियाँ मौजूद हैं। बांस की खेती जहाँ ख़ूब बारिश वाले इलाकों में हो सकती है, वहीं ये कम बारिश वाले या लद्दाख जैसे नगण्य बारिश वाले इलाके और यहाँ तक कि बंजर या ऊसर ज़मीन पर भी हो सकती है। अलबत्ता, ये ज़रूर है कि उपजाऊ ज़मीन के मुकाबले घटिया ज़मीन पर बांस की पैदावार में ज़रा ज़्यादा वक़्त लग सकता है।
ये भी पढ़ें – बांस की खेती (Bamboo Cultivation): जानिए क्यों अद्भुत और सदाबहार हैं बांस, किसान की कैसे होती है पीढ़ी दर पीढ़ी कमाई?
बंजर पर अश्वगन्धा की खेती
अश्वगन्धा में जल्दी रोग नहीं लगता। ना ही इसे रासायनिक खाद की ज़रूरत पड़ती है। आवारा पशु भी इसे नुकसान नहीं पहुँचाते। इसीलिए अश्वगन्धा की खेती करने वाले किसान अनेक मोर्चों पर निश्चिन्त रहते हैं। कृषि विशेषज्ञ ऐसी ज़मीन को अश्वगन्धा के लिए सबसे उपयुक्त बताते हैं जहाँ अन्य लाभदायक फसलें लेना बहुत मुश्किल हो। अश्वगन्धा की खेती में मुख्य पैदावार भले ही इसकी जड़ें हों, लेकिन इसकी हरेक चीज़ मुनाफ़ा देती है। अश्वगन्धा के पौधों, पत्तियों और बीज वग़ैरह सभी चीज़ों के दाम मिलते हैं।
बंजर के लिए उपयुक्त फलदार पेड़
उपजाऊ मिट्टी तो सबको खुशहाली देती है लेकिन क़माल तो तब है जबकि ऊसर में भी आ जाए जान। इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि बंजर या ऊसर भूमि में ‘आगर होल तकनीक’ का इस्तेमाल करके आँवला, अमरूद, बेर और करौंदा के फलदार पेड़ों को न सिर्फ़ सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, बल्कि इसकी खेती लाभदायक भी हो सकती है। लागत और आमदनी के पैमाने पर आँवला, करौंदा और अमरूद बेहतरीन रहते हैं। आँवले के मामले में लागत से 2.48 गुना आमदनी हुई तो अमरूद के मामले में ये अनुपात 2.15 गुना और करौंदा के लिए 1.96 गुना रहा।
ये भी पढ़ें – वैज्ञानिकों ने बताए ऐसे फलदार पेड़ जो बंजर ज़मीन और किसान, दोनों की तक़दीर बदल सकते हैं
रोशा घास की खेती
रोशा घास की खेती उपजाऊ, कम उपजाऊ या pH मान 9.0 के आसपास की ऊसर मिट्टी में भी हो सकती है। रोशा घास की बहुवर्षीय खेती में पारम्परिक फसलों की तुलना में लागत कम और मुनाफ़ा ज़्यादा है। इससे पहले साल से ज़्यादा कमाई अगले वर्षों में प्राप्त होती है। भारत में सुगन्धित तेलों के उत्पादन में रोशा घास तेल का एक महत्वपूर्ण स्थान है। देश में बड़े पैमाने पर इसकी व्यावसायिक खेती होती है। भारत ही इसका सबसे बड़ा उत्पादक है।
ये भी पढ़ें – रोशा घास (Palmarosa Farming): बंजर और कम उपयोगी ज़मीन पर रोशा घास की खेती से पाएँ शानदार कमाई
अनुपजाऊ खेतों में मेहंदी की खेती
कंकरीली, पथरीली, हल्की, भारी, लवणीय, क्षारीय, परती, बंजर, अनुपजाऊ और बारानी ज़मीन के लिए मेहंदी से शानदार शायद ही कोई और फसल हो। जिनके पास सिंचाई के साधन नहीं हैं और जो बार-बार नयी फसलें लगाने के झंझट से बचना चाहते हैं, उनके लिए मेहंदी का रंग बेजोड़ रहता है। कम लागत में ज़्यादा कमाई देने वाली मेहंदी की खेती को गर्म तथा शुष्क जलवायु वाले इलाकों में बेहद आसानी से उगाया जा सकता है। मेहंदी का बाग़ान 20 से 30 साल तक ख़ूब उपजाऊ और लाभप्रद रहता है, वैसे कहते हैं कि ये 100 साल तक उपज देता है।
शुष्क इलाकों में फालसा की खेती
फालसा की खेती बहुत शुष्क या सूखापीड़ित या अनुपजाऊ क्षेत्रों के लिए बेहद उपयोगी है। फालसा की जड़ें मिट्टी के कटाव को भी रोकने में मददगार साबित होती हैं। फालसा की खेती 44 से 45 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भी अनुकूल है। यदि सही तरीक़े से फालसा की व्यावसायिक खेती की जाए तो इसकी लागत कम और कमाई बहुत बढ़िया है, क्योंकि इसके फल खासे महँगे बिकते हैं।
बंजर में उगाएँ हरा चारा हेज लूर्सन
हेज लूर्सन को सभी तरह की मिट्टी में लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं कम समय के लिए यह जल जमाव को भी सहन करने की शक्ति रखता है। यह बंजर भूमि पर भी आसानी से उग जाता है। इसलिए बंजर और खत्म होते चारागाह वाले इलाके में इसे लगाना अच्छा विकल्प है।
बंजर में बेर की खेती
बेर का एक पेड़ 50-60 सालों तक फल देता है। बेर भारत का प्राचीन फल है। इसकी ख़ासियत यह है कि इसे बंजर और उपजाऊ दोनों तरह की ज़मीन पर उगाया जा सकता है। बेर की खेती को कम पानी की ज़रूरत होती है। इसलिए बेर की खेती कम बारिश वाले इलाकों में और शुष्क जलवायु में की जाती है। बेर की खेती करने में ज़्यादा खर्च नहीं होता और किसानों को मुनाफा अच्छा मिलता है। इसलिए किसानों के लिए ये फ़ायदेमन्द है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- कृषि में आधुनिक तकनीक से मनेन्द्र सिंह तेवतिया ने उन्नति की राह बनाईमनेन्द्र सिंह तेवतिया ने कृषि में आधुनिक तकनीक अपनाकर पारंपरिक तरीकों से बेहतर उत्पादन प्राप्त किया, जिससे उन्होंने खेती में नई दिशा और सफलता हासिल की।
- Global Soils Conference 2024: ग्लोबल सॉयल्स कॉन्फ्रेंस 2024 का आगाज़ मृदा सुरक्षा संरक्षण पर होगा मंथनGlobal Soils Conference 2024 नई दिल्ली में आयोजित हुआ, जो 19 से 22 दिसंबर तक चलेगा, जहां मृदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी तंत्र पर चर्चा होगी।
- जल संरक्षण के साथ अनार की खेती कर संतोष देवी ने कायम की मिसाल, योजनाओं का लिया लाभसंतोष देवी ने जल संरक्षण के साथ अनार की खेती के तहत ड्रिप इरिगेशन के माध्यम से 80% पानी की बचत करते हुए उत्पादन लागत को 30% तक कम किया।
- रोहित चौहान की कहानी: युवाओं के बीच डेयरी व्यवसाय का भविष्यरोहित चौहान का डेयरी फ़ार्म युवाओं के बीच डेयरी व्यवसाय को प्रोत्साहित कर रहा है। रोहित ने कुछ गायों और भैंसों से छोटे स्तर पर डेयरी फ़ार्मिंग की शुरुआत की थी।
- जैविक खेती के जरिए संजीव कुमार ने सफलता की नई राह बनाई, जानिए उनकी कहानीसंजीव कुमार की कहानी, संघर्ष और समर्पण का प्रतीक है। जैविक खेती के जरिए उन्होंने न केवल पारंपरिक तरीकों को छोड़ा, बल्कि एक नई दिशा की शुरुआत की।
- जैविक तरीके से रंगीन चावलों की खेती में किसान विजय गिरी की महारत, उपलब्ध कराते हैं बीजबिहार के विजय गिरी अपने क्षेत्र में जैविक खेती के प्रचार-प्रसार में लगे हैं। वो 6-10 एकड़ भूमि पर धान, मैजिक चावल, रंगीन चावलों की खेती करते हैं।
- रोहन सिंह पटेल ने वर्मीकम्पोस्टिंग व्यवसाय शुरू किया, क्या रहा शुरुआती निवेश और चुनौतियां?रोहन सिंह पटेल ने दो साल पहले वर्मीकम्पोस्टिंग व्यवसाय का काम शुरू किया, जिसमें उन्होंने जैविक खाद बनाने की तकनीक को अपनाया।
- नौकरी छोड़कर अपने गांव में जैविक खेती और कृषि में नई तकनीक अपनाकर, आशुतोष सिंह ने किया बड़ा बदलावआशुतोष प्रताप सिंह ने अपने गांव लौटकर कृषि में नई तकनीक और जैविक खेती अपनाकर अपनी खेती को सफल बनाया और आसपास के किसानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनें।
- जैविक खेती के जरिए रूबी पारीक ने समाज और राष्ट्र निर्माण में किया अद्वितीय योगदानरूबी पारीक ने जैविक खेती के जरिए न केवल अपना जीवन बदला, बल्कि समाज के लिए स्वस्थ भविष्य की नींव रखी। उनकी कहानी संघर्ष और संकल्प की प्रेरणा है।
- Millets Products: बाजरे के प्रोडक्टस से शुरू की अनूप सोनी ने सफल बेकरी, पढ़ें उनकी कहानीअनूप सोनी और सुमित सोनी ने मिलेट्स प्रोडक्ट्स (Millets Products) से बेकरी व्यवसाय शुरू किया, बाजरे से हेल्दी केक बनाकर स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा दिया।
- जानिए रघुवीर नंदम का कम्युनिटी सीड बैंक कैसे उनके क्षेत्र में वन सीड रेवोल्यूशन लेकर आ रहा हैआंध्र प्रदेश के रहने वाले रघुवीर नंदम ने ‘वन सीड रेवोल्यूशन कम्युनिटी सीड बैंक’ की स्थापना की, जिसमें उन्होंने 251 देसी चावल की प्रजातियों का संरक्षण किया है।
- पोल्ट्री व्यवसाय और जैविक खेती से बनाई नई पहचान, जानिए रविंद्र माणिकराव मेटकर की कहानीरविंद्र मेटकर ने पोल्ट्री व्यवसाय और जैविक खेती से अपनी कठिनाइयों को मात दी और सफलता की नई मिसाल कायम की, जो आज कई किसानों के लिए प्रेरणा है।
- उत्तराखंड में जैविक खेती का भविष्य: रमेश मिनान की कहानी और लाभउत्तराखंड में जैविक खेती के इस किसान ने न केवल अपनी भूमि पर जैविक खेती को अपनाया है, बल्कि सैकड़ों अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है।
- Wheat Varieties: गेहूं की ये उन्नत किस्में देंगी बंपर पैदावारगेहूं की ये किस्में (Wheat Varieties) उच्च उत्पादन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और विभिन्न क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं, किसानों के लिए लाभकारी मानी गई हैं।
- पहाड़ी इलाके में मछलीपालन कर रही हैं हेमा डंगवाल: जानें उनकी सफलता की कहानीउत्तराखंड की हेमा डंगवाल ने पहाड़ी इलाकों में मछलीपालन को एक सफल व्यवसाय में बदला, इस क्षेत्र में सफलता हासिल की और अन्य महिलाओं को भी जागरूक किया।
- किसान दीपक मौर्या ने जैविक खेती में फसल चक्र अपनाया, चुनौतियों का सामना और समाधानदीपक मौर्या जैविक खेती में फसल चक्र के आधार पर सीजनल फसलें जैसे धनिया, मेथी और विभिन्न फूलों की खेती करते हैं, ताकि वो अधिकतम उत्पादकता प्राप्त कर सकें।
- पुलिस की नौकरी छोड़ शुरू किया डेयरी फ़ार्मिंग का सफल बिज़नेस, पढ़ें जगदीप सिंह की कहानीपंजाब के फ़िरोज़पुर जिले के छोटे से गांव में रहने वाले जगदीप सिंह ने पुलिस नौकरी छोड़कर डेयरी फ़ार्मिंग में सफलता हासिल कर एक नई पहचान बनाई है।
- जानिए कैसे इंद्रसेन सिंह ने आधुनिक कृषि तकनीकों से खेती को नई दिशा दीइंद्रसेन सिंह ने आधुनिक कृषि में सुपर सीडर, ड्रोन सीडर और रोटावेटर का उपयोग करके मक्का, गन्ना, और धान की फसलें उगाई हैं।
- Food Processing से वंदना ने बनाया सफल बिज़नेस: दिल्ली की प्रेरणादायक कहानीदिल्ली की वंदना जी ने खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing) से पारंपरिक भारतीय स्वादों को नया रूप दिया और महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाएं।
- देवाराम के पास 525+ बकरियां, बकरी पालन में आधुनिक तकनीक अपनाईदेवाराम ने डेयरी फार्मिंग की शुरुआत एक छोटे स्तर से की थी, लेकिन वैज्ञानिक और आधुनिक तरीकों को अपनाने के बाद उनकी डेयरी यूनिट का विस्तार हुआ।